दुनियाभर में तबाही की भयानक दास्तान लिख चुके कोरोना वायरस ने जहां लाखों इंसानों को मौत के घाट उतार दिया, वहीं आम लोगों के लिए यह वायरस अब भी जबरदस्त चिंता और निराशा का कारण बना हुआ है।
इस बीमारी की चपेट में आने वाले मरीजों में जहां शारीरिक कमजोरी व्याप्त रहती है, वहीं यह मानसिक तौर पर भी लोगों को तोड़ कर रख देता है।
एक और जहां इसकी चपेट में आकर लाखों लोग मौत की नींद सो गए, वहीं यह अपनी गिरफ्त में लेने वाले मरीजों के अलावा सेहतमंद लोगों को भी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक तौर पर परेशान कर रहा है।
इस परेशानी की सबसे बड़ी वजह यह रही कि इस वायरस के वजूद में आने के बाद से ही दुनियाभर में हर तरह की सामाजिक सरगर्मियों और गतिविधियों पर रोक लग गई और वे लॉकडाउन के चलते अपने घरों में ही कैद होकर रह गए। इस तरह जो लोग स्वस्थ थे, वे भी या तो भय एवं संशय में पड़ गए या फिर भविष्य की चिंता और आर्थिक हालात की तंगी के कारण घोर मानसिक तनाव से ग्रस्त हो गए।
किनकी बिगड़ी है मानसिक स्थिति?
कोरोना महामारी के इस विनाशकारी दौर में परिस्थितियों की विडंबना यह है कि इसके सही आंकड़ों से अब तक लोगों को पूरी तरह से खबरदार भी नहीं किया जा सका है। कोविड के सक्रिय मरीजों के अलावा बहुत से पुरुष, महिलाएं, बच्चे, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, सफाई कर्मी, आशा व आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और फ्रंट लाईन वर्कर्स भी मानसिक तनाव और बेचैनी का शिकार रही हैं।
दुनिया की किसी भी महामारी की विशेषता यही होती है कि वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समाज के हर व्यक्ति को किसी न किसी तरह प्रभावित ज़रूर करती है जिससे उनके बीच चिंता, अवसाद और संकट के गाढ़े काले बादल लगातार छाए रहते हैं।
ये बादल तब तक नहीं छंटते जब तक इस महामारी का कोई कारगर हल या समाधान नहीं निकल आता, चाहे वह इलाज की शक्ल में हो या फिर आर्थिक और सामाजिक समाधान के रूप में हो।
कैसे बिगड़े हालात?
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में आपसी सहयोग, समन्वय और संपर्क कायम कर वह अपने दुखों को बांटता और उनका कारगर हल तलाश करता है। अगर उसे सही और सकारात्मक माहौल न मिले तो वह मानसिक रूप से बीमार हो जाता है जिसका असर उसके दैनिक जीवन के आर्थिक एवं व्यापारिक कार्यों पर पड़ता है।
ज़ाहिर है, जब जिंदगी के लाले पड़ जाएं तो किसी भी शख्स या समाज के लिए भौतिक, सामाजिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से चिंता और संकट के बादल अपने आप मंडराने लगते हैं। अस्पतालों में भारी भीड़, चीखो पुकार, बिलखते परिजन, ऑक्सीजन की कमी और जलती लाशें वह भयानक मंज़र थे जो मीडिया और सोशल मीडिया में बिल्कुल आम हो चुके थे।
इन खबरों का बुरा असर यह हुआ कि यह मानसिक तौर पर लोगों को बीमार और भयभीत करने लगीं। क्योंकि लॉकडाउन के चलते लोग घरों में कैद होकर अपना ज्यादातर समय टीवी और मोबाइल के साथ ही बिताते लगे थे।
टीवी और मोबाइल पर नज़र आने वाले बहुत से भयानक दृश्य उनके दिमाग को और अधिक प्रभावित कर रहे थे जिससे उनका दुख गहरा और जख्म हरा हो जाता था।
मिसाल के तौर पर, दिल्ली की निवासी कविता बिष्ट का जनरलाइज्ड एंजाइटी का उपचार चल रहा था। कोरोना काल में अनेक छोटी घटनाओं पर भी वह भयभीत हो जाती थीं। इस तरह वे शारीरिक तौर पर बीमार तो थी हीं, लेकिन कोरोना के दौर में खौफ और दहशत ने उन्हें दिमागी तौर पर भी सख्त बीमार कर दिया था। इन्हीं डरावने हालात के चलते इस समय उनका मानसिक इलाज चल रहा है।
बहुत से मरीज जिन्हें कोरोना वायरस ने अभी तक अपना निशाना नहीं बनाया था, वे भी बेवजह के खौफ में पड़कर परेशान रहने लगे। उन्हें यह डर सताता रहता कि कहीं उनके साथ कोई अप्रत्याशित या खौफनाक घटना ना घट जाए। क्योंकि वे लगातार हो रही मौतों और अस्पताल के बाहर मरीजों की भीड़ से मानसिक तौर पर आतंकित होकर पूरी तरह कमज़ोर हो चुके थे।
लोगों ने कर्ज़ लेकर काम चलाए
इसके अलावा कोरोना काल में अपनी अर्थव्यवस्था की गाड़ी को आगे बढ़ाने और परिवार चलाने के लिए बहुत से लोगों ने मजबूर होकर इधर उधर से कर्ज़ लेने शुरू कर दिए थे। यह कर्ज कभी वे सरकारी या प्राइवेट बैंकों से लेते तो कभी किसी व्यक्ति विशेष से।
लेकिन कभी ना कभी तो इस कर्ज़ को चुकाने के लिए उन्हें बिल्कुल तैयार होना ही था। जब इंसान किसी से कर्ज लेता है तो समय सीमा बीत जाने पर अपने आप मानसिक दबाव में आकर उलझन का शिकार हो जाता है।
सरकार और बैंकों से कर्ज लेने वालों में केवल आम लोग ही नहीं बल्कि बड़े बड़े व्यापारी भी शामिल हैं जिनमें से अक्सर लोगो ने अभी तक अपने कर्ज को अदा भी नहीं किया है।
छात्रों के लिए भी लॉकडाउन में तकरीबन साल डेढ़ साल तक स्कूल और कॉलेज के दरवाजे बंद रखे गए थे जिससे उनकी शैक्षिक क्षतिपूर्ति अब तक नहीं हो पाई है और इस तरह वह मानसिक दबाव महसूस कर रहे हैं कि उनके डेढ़ साल के शिक्षा के नुकसान की भरपाई आखिर कैसे होगी?
जबकि समाज के मजदूर तबके की हालत से हर शख्स वाकिफ है कि रोज कुआं खोदने और पानी पीने वाला यह वर्ग जब आम दिनों में ही किसी तरह अपने परिवार का भरण पोषण कर लिया करता है तो कोरोना के इस आर्थिक संकट में उसकी क्या हालत हुई होगी? इस तरह किसी न किसी तरह समाज का हर वर्ग कोरोना काल में मानसिक कष्ट झेल रहा है।
आपदा से मिलते हैं गहरे सबक
उल्लेखनीय है कि जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आसमान से ज़मीन पर उतरती है तो न सिर्फ़ ये कि मानव जीवन, संपत्ति और अर्थव्यवस्था बुरी तरह टूट कर बिखर जाती है, बल्कि इसी के साथ वह आपदा मानव जाति के लिए अनेकों गहरे और सकारात्मक सबक भी छोड़ जाती है।
ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंसेंट चर्चिल ने अपने एक ऐतिहासिक भाषण के दौरान कहा था कि किसी भी संकट को कभी भी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए।
उनके कहने का मतलब यह था कि दुनिया का हर संकट इंसानों को कुछ सकारात्मक सबक ज़रूर सिखाता है, अगर इन्सान चाहे तो उस आपदा में ही कोई बेहतर अवसर तलाश कर सकता है।
आइए जानते हैं कोरोना महामारी ने दुनियावालो को क्या सकारात्मक सबक दिए हैं
1. वायरस ने इंसानों को रिश्ते के बंधन को मजबूत करना सिखाया
लॉकडाउन से पहले हम कारोबार में इतने व्यस्त हो गए थे कि परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए समय निकालना बेहद मुश्किल हो गया था। भारी तबाही मचाने के बावजूद, कोविड ने निश्चित रूप से हमें अपने जीवन में रिश्तों का महत्व सिखा दिया है।
2. आजादी का महत्व
लॉकडाउन के चलते लोग अपने ही घरों में बंदियों की तरह रहने को मजबूर हो जाते हैं। लंबे समय तक, कोरोना ने लोगों को आज़ादी के साथ घूमने का कोई मौका ही नहीं दिया। अब जबकि हालात कुछ सामान्य हो गए हैं, लोग भी आजादी की अहमियत को बाखूबी समझने लगे हैं।
3. बड़ी कंपनियों ने सीखा उत्पादकता बढ़ाने का हुनर
जब दुनिया की बड़ी कंपनियों ने देखा कि यह वायरस दैनिक दिनचर्या और गतिविधियों पर पूर्ण विराम लगाकर उन्हें और नुकसान पहुंचाएगा, तो अपने लिए व्यापार के दरवाजे बंद होता देख कंपनियों ने कर्मियों को आफिसों के ताले खोले बिना ही अपनी सेवा जारी रखने के कड़े निर्देश दिए।
बड़ी कंपनियों ने कर्मचारियों को स्पेशल प्रोजेक्ट देकर वर्क फ्रॉम होम शुरू किया। COVID 19 ने कंपनियों को सिखाया है कि अपने कर्मचारियों को सड़कों पर उतारे बिना और समय लेने वाले कष्टदायक ट्रैफिक जाम में फंसाए बिना भी व्यवसाय के किसी क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
4. वायरस ने तोड़ा इंसानों का घमंड
कोविड-19 ने दुनिया को कड़ा संदेश दिया है कि मनुष्य आधुनिक विज्ञान और तकनीक की मदद से विकास की कितनी भी हदें पार कर जाए, वह प्राकृतिक शक्ति (आपदाओं) से टकराने के काबिल नहीं हो सकता।
इस वायरस ने सिखाया कि इंसानों को भी अपने स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के बारे में थोड़ी चिंता तो ज़रूर व्यक्त करनी चाहिए, अन्यथा परिणाम भयानक हो सकते हैं और स्थिति कभी भी उनके हाथ से निकल सकती है। इस तरह मनुष्य का अहंकार टूट गया।
मनुष्य अब प्रकृति की शक्ति और क्षमता के प्रति पहले के मुकाबले कुछ ज़्यादा सम्मान दिखा रहा है। आपके पास दुनियाभर के संसाधन और दौलत के खजाने हो सकते हैं, लेकिन आप इस तरह की महामारियों से अपनी जान की हिफाज़त नहीं कर सकते।
इसके लिए आपको जरूरी कदम उठाते हुए कड़ी सावधानियां बरतनी होंगी वरना आपके अस्तित्व के लिए भीषण खतरा उत्पन्न हो सकता है।
5. कोरोना वायरस ने सिखाया समानता का कड़ा संदेश
इस वायरस ने दुनियाभर के देशों में कहर बरपा कर लोगों को एक गहरा संदेश यह दे दिया है कि कोई भी देश चाहे जितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, दैवीय आपदाओं के खतरों से अछूता नहीं रह सकता।
इस वायरस ने अमीरों और गरीबों को समान रूप से अपना निशाना बनाया है। कोरोना वायरस यह नहीं देखता कि कोई व्यक्ति दलित है या सवर्ण, मालिक है या मज़दूर, हिंदू है या मुस्लिम, सिख है या ईसाई, बल्कि यह केवल धरती की पीठ पर रेंगने वाले प्राणियों को देखता है।
अपने इस बरताव से कोविड-19 ने इन्सानों को समानता का कड़ा संदेश दिया है।
1 Comment
Bhot achha lekh hai bhai