Swami Dayanand Saraswati Quotes in Hindi, Swami Dayanand Saraswati In Hindi, Biography in Hindi
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी Dayanand Saraswati आधुनिक भारत के महान चिन्तक, देशभक्त व उच्च श्रेणी के समाज सुधारक थे। ज्ञान गुणवान सर्व सम्पन्न स्वामीजी का सम्पूर्ण जीवन समाज कल्याण कार्यों में बीता था।
वे मूर्तिपूजा में आस्था नहीं रखते थे। वैदिक धर्म के प्रबल समर्थक रहे स्वामी जी बाल्यकाल से ही सभी वेद और उपनिषदों का निरंतर अभ्यास करते रहे और प्रेरणा लेकर उन्होंने समाज के कई बुरी प्रथाओं (मूर्ति पूजा, सती प्रथा, विधवा पुनर्विवाह न होने देना, जाति भेदभाव, पशु बलि और महिलाओं को वेदों को पढने की अनुमति ना देना) को दूर करने का प्रचार-प्रसार शुरू किया था।
Swami Dayanand Saraswati : सक्षिप्त जीवन परिचय
महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती (12 फरवरी 1824 – 30 अक्टूबर 1883) का जन्म टंकारा में मोरबी (मुम्बई की मोरवी रियासत) के पास काठियावाड़ क्षेत्र (जिला राजकोट), गुजरात में हुआ था। उनका बचपन का नाम ‘दयाराम मूलशंकर‘ था, उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत आराम से बीता। उनके पिता एक बड़े जमींदार और सरकार के राजस्व विभाग में तहसीलदार होने के साथ ब्राह्मण परिवार के एक अमीर, समृद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति थे।
स्वामी दयानन्द सरस्वती के बोध ज्ञान के पीछे की कहानी
14 वर्ष की आयु में मूलशंकर को पिता ने शिवरात्रि की रोचक कथा सुनाई थी और बताया था कि शिवजी का व्रत रखने से मनोकामनाएं पूरी हो जाती है, पिता की बात मानते हुए मूलशंकर ने शिवरात्रि का व्रत रख लिया।
पिता मूलशंकर को शिव मन्दिर लेकर गये। शिवरात्रि पर मन्दिर में तीनो प्रहरों की पूजा करनी होती थी, इसलिए रात्रि जागरण किया जता था। मन्दिर में भजन कीर्तन होता रहा और भक्त लोग आनन्द उठाते रहे लेकिन जैसे जैसे रात होने लगी भक्तगण और स्वामी जी के पिता थकान के कारण झपकी लेने लगे, लेकिन मूलशंकर की आँखों में नींद नही थी। उसने तो सारी रात जागकर शिवजी को प्रसन्न करने की ठान ली थी।
शिवलिंग के आस पास मिठाई रखी हुयी थी और फल भी रखे हुए थे। भीनी भीनी महक आ रही थी तभी मूलशंकर ने देखा कि कुछ चूहे शिवलिंग पर चढकर उछल कूद कर रहे है और मिठाई खाते हुए इधर उधर दौड़ रहे है। मूलशंकर ने शिवजी की कथा सुनी थी, जिसमे बताया गया था कि शिवजी के पास पाशुपात्यास्त्र है, नन्दी उनका वाहन है और उनके अनेक गण है और शिवजी शक्तिशाली है। मूलशंकर सोचने लगा कि इतने शक्तिशाली शिवजी से चूहा नही हराया जा सकता है? जब ये खुद अपनी रक्षा करने में असमर्थ है तो मै इनके लिए क्यों जागूं।
अब अपने मन में उठ रहे प्रश्नों के उत्तर के लिए उसने पिता को जगा दिया और पुछा पिताजी !
क्या यही पुराणो में वर्णित शिवजी है। पिता ने कहा “हां, लेकिन तुम ये बात क्यों पूछ रहे हो?” मूलशंकर ने कहा आपने तो मुझे कथा में सुनाया था कि शिव दुष्टों का नाश करने वाले है, महाशक्तिशाली है, महापराक्रमी है इसलिए उन्ही महादेव कहते है परन्तु यहां तो शिवलिंग पर चूहे उछल कूद मचा रहे है।
तब पिता ने बालक मूलशंकर को समझाया वर्तमान में कलयुग में शिव का साक्षात् दर्शन कर पाना सम्भव नही है इसलिए पत्थर की मूर्ति बनाकर महादेव का पूजन किया जाता है जबकि वास्तविक महादेव तो कैलाश पर्वत पर रहते है और वो हमारे पूजन और भावना से प्रसन्न हो जाते है।
बालक मूलशंकर पिता के उत्तर से संतुष्ट नही हुआ। शंका के साथ साथ उसकी भूख बढती जा रही थी। नींद भी आने लगी थी इसलिए उसने पिता से घर जाने की अनुमति माँगी। घर जाते ही उसने व्रत तोड़ दिया और माता की दी हुई मिठाई खाने लगा।
खा पीकर जब मूलशंकर सोने के लिए लेटा तो उसकी आँखों में नींद नही बल्कि प्रश्न उठ रहे थे।
भगवान कौन है? यदि पत्थर में भगवान नही तो उसका स्वरुप क्या है ?
इन्ही सभी के बीच मूलशंकर युवा हो गए, माता-पिता ने उन्हें विवाह बंधन में बांधना चाहा, लेकिन मूलशंकर ने 21 वर्ष की अवस्था में घर को त्याग दिया, उन्होने भौतिक सुखों के ऊपर आध्यात्मिक उन्नति को अधिक कल्यांणकारी समझा। मूलशंकर ने मन में जिज्ञासा को शांत करने के लिए कठिन यात्राओं एवं साधना का मार्ग अपना लिया।
अक्टूबर 1860 ई में उन्हें मथुरा में गुरु विरजानंद जी मिले और 14 नवम्बर 1860 ई को उन्होंने गुरु विरजानंद के सम्मुख सहज समपर्ण कर दिया। यह समर्पण समस्त विश्व के लिए कल्याणकारी सिद्ध हुआ, जब उन्हें स्वामी दयानन्द सरस्वती का नाम मिला। लगभग तीन वर्ष तक गुरु के चरणों में बैठकर उन्होंने साधना के साथ ज्ञानार्जन किया।
1863 ई में धर्मोपदेश के लिए विदा करते हुए उन्हें गुरु ने संदेश दिया और गुरु दक्षिणा के रूप में वचन लिया कि देश का उपकार करो। सत शास्त्रों का उद्धार करो। मत मतान्तरो की अविद्या को मिटाओ और वैदिक धर्म फैलाओ।
गुरु के आदेशो और उपदेशो को लेकर स्वामी जी सम्पूर्ण देश की यात्रा पर निकले। वैदिक धर्म की रक्षा का प्रश्न उनके सामने सबसे अधिक प्रमुख था। वेदों को धर्म का मूलाधार सिद्ध करने और मूर्ति पूजा का विरोध करने के लिए उन्हें सनातनी पंडितो और अन्य धर्मगुरुओ से शास्त्रार्थ में भाग लेना पड़ा, बड़े-बड़े विद्वान और पंडित, स्वामी दयानंद सरस्वती के विरोध में खड़े हुए।
परंतु स्वामी जी के सटीक तार्किक ज्ञान और महान समाज कल्याण उद्देश की लहर के आगे विरोधाभासियों को भी नतमस्तक होना पड़ा।
स्वराज्य के प्रथम सन्देशवाहक
पराधीन आर्यावर्त (भारत) में यह कहने का साहस सम्भवत: सर्वप्रथम स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ही किया था कि “आर्यावर्त (भारत), आर्यावर्तियों (भारतीयों) का है”। सन 1857 की क्रान्ति की सम्पूर्ण योजना भी स्वामी जी के नेतृत्व में ही तैयार की गई थी और वही उसके प्रमुख सूत्रधार भी थे। वे अपने प्रवचनों में श्रोताओं को प्राय: राष्ट्रवाद का उपदेश देते और देश के लिए मर मिटने की भावना भरते थे।
आर्य समाज की स्थापना
धर्म प्रचार और यात्रा क्रम में अक्टूबर 1874 में स्वामी जी मुम्बई पहुचे और 10 अप्रैल 1875 के दिन गुड़ी पड़वा दिवस पर बम्बई में प्रथम आर्य समाज की स्थापना की। इसके लगभग दो वर्ष बाद लाहौर में आर्य समाज की स्थापना हुई।
इसी समय आर्य समाज का विधान बना और देश के विभिन्न भागो में आर्य समाज की शाखाए स्वत: स्थापित होने लगी। एक तरफ स्वामीजी का ध्यान आर्य समाजो के सन्गठन की तरफ केन्द्रित था दुसरी तरफ वे वैदिक धर्म और संस्कृति के प्रचार में भी पुरी शक्ति के साथ सलंग्न थे।
इस क्रम में वे देशी रियासतों के नरेशो के भोग के साथ त्याग और अपनी प्रजा के हित चिन्तन की शिक्षा देने में भी पीछे नही रहे।
सामाजिक कुरीतयों पर प्रहार
देश में प्रचलित सभी धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ स्वामी दयानंद सरस्वती ने बड़ा कदम उठाया उन्होंने जाति भेद, मूर्ति पूजा, सती-प्रथा, बहु विवाह, बाल विवाह, बलि-प्रथा आदि प्रथाओं का घोर विरोध किया।
दयानंद सरस्वती ने पवित्र जीवन तथा प्राचीन हिन्दू आदर्श के पालन पर बल दिया उन्होंने विधवा विवाह और नारी शिक्षा की भी वकालत की, सबसे ज्यादा उन्हें जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता से चिढ़ थी और इसे समाप्त करने के लिए उन्होंने कई कठोर कदम उठाए।
आर्य समाज के प्रमुख सिद्धांत
- ईश्वर एक है, वह सत्य और विद्या का मूल स्रोत है।
- ईश्वर सर्वशक्तिमान, निराकार, न्यायकारी, दयालु, अजर, अमर और सर्वव्यापी है, अतः उसकी उपासना की जानी चाहिए।
- सच्चा ज्ञान वेदों में निहित है और आर्यों का परम धर्म वेदों का पठन-पाठन है।
- प्रत्येक व्यक्ति को सदा सत्य ग्रहण करने तथा असत्य का त्याग करने के लिए प्रस्तुत रहना चाहिए।
- समस्त समाज का प्रमुख उद्देश्य मनुष्य जाति की शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक उन्नति होनी चाहिए तभी समस्त विश्व का कल्याण संभव है।
- अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए तथा पारस्परिक सम्बन्ध का आधार प्रेम, न्याय और धर्म होना चाहिए।
- प्रत्येक व्यक्ति को अपनी उन्नति और भलाई में ही संतुष्ट नहीं रहना चाहिए बल्कि सब की भलाई में अपनी भलाई समझनी चाहिए।
- प्रत्येक आदमी को व्यक्तिगत मामलों में आचरण की स्वतंत्रता रहनी चाहिए लेकिन सर्वहितकारी नियम पालन सर्वोपरि होना चाहिए।
उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य को प्रोत्साहन दिया, हिंदी भाषा में ग्रंथों की रचना कर इन्होंने राष्ट्रीय गौरव बढ़ाया। संस्कृत भाषा के महत्त्व को पुनः स्थापित किया गया। इन्होनें ब्रह्मचर्य और चरित्र-निर्माण की दृष्टि से प्राचीन गुरुकुल प्रणाली के द्वारा छात्रों को शिक्षित करने की प्रथा शुरू की।
स्वामी दयानंद सरस्वती की ग्रंथ संपत्ति – Books Written By Swami Dayanand
- सत्यार्थ प्रकाश
- ऋग्वेद भूमिका
- वेदभाष्य
- संस्कार निधि
- व्यवहार भानु
स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा बताए गए दर्शन के चार स्तंभ
- कर्म सिद्धान्त
- पुनर्जन्म
- सन्यास
- ब्रह्मचर्य
Swami Dayanand Saraswati के प्रेरणादायक विचार
Hindi Quotes 1: अगर आप पर हमेशा से उंगली उठाई जाती रहे तो आप भावनात्मक रूप से अधिक समय तक खड़े नहीं हो सकते।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 2: अगर मनुष्य का मन शांत है, चित्त प्रसन्न है, ह्रदय हर्षित है तो यह निश्चित ही उसके अच्छे कर्मो का फल है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 3: अज्ञानी होना गलत नहीं है लेकिन अज्ञानी ही बने रहना गलत है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 4: अपने सामने रखने या याद करने के लिए लोगों की तस्वीरें या अन्य तरह की पिक्चर लेना ठीक है परन्तु भगवान की तस्वीरें और छवियाँ बनाना गलत है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 5: अहंकार मनुष्य के अन्दर वो स्थिति लाता है जिससे वह आत्मबल और आत्मज्ञान को खो देता है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 6: आत्मा अपने स्वरुप में एक है परन्तु उसके अस्तित्व अनेक हैं।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 7: आत्मा, परमात्मा का ही एक अंश है, जिसे हम अपने कर्मों से गति प्रदान करते है फिर आत्मा हमारी दिशा तय करती है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 8: आप दूसरों को बदलना चाहते हैं ताकि आप आज़ाद रह सकें लेकिन यह कभी ऐसे काम नहीं करता, दूसरों को स्वीकार करिए और आप मुक्त हो जायेंगे।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 9: आपके पास जो सबसे अच्छी चीज है उसे दुनिया को देकर देखो आप देखोगे कि आपको भी दुनिया से सबसे अच्छी चीज मिल रही है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 10: हम इंसान को भगवान द्वारा दिया गया सबसे बड़ा संगीत यंत्र आवाज है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 11: इस नश्वर शरीर से प्रेम करने के बजाय हमे परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए, सत्य और धर्म से प्रेम करना चाहिए, क्योकि यह सब नश्वर नही हैं।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 12: ईश्वर पूर्ण रूप से पवित्र और बुद्धिमान है उसकी प्रकृति, गुण और शक्तियां भी पवित्र हैं वह सर्वव्यापी, निराकार, अजन्मा, अपार, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिशाली, दयालु और न्याययुक्त है वह दुनिया का रचनाकार, रक्षक है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 13: ईष्या से मनुष्य को हमेशा दूर ही रहना चाहिए क्योकि ये मनुष्य को अन्दर ही अन्दर जलाती रहती है और पथ से भटकाकर पथभ्रष्ट कर देती है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 14: उपकार बुराई का अंत करता है, सदाचार की प्रथा का आरम्भ करता है और लोक-कल्याण तथा सभ्यता में योगदान देता है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 15: उस सर्वव्यापक ईश्वर को योग द्वारा जान लेने पर हृदय की अविद्यारुपी गांठ कट जाती है, सभी प्रकार की शंका दूर हो जाती है और भविष्य में किये जा सकने वाले पाप कर्म नष्ट हो जाते है अर्थात ईश्वर को एकबार जान लेने पर व्यक्ति भविष्य में पाप नहीं करता।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 16: काम करने से पहले सोचना बुद्धिमानी, काम करते हुए सोचना सतर्कता और काम करने के बाद सोचना मूर्खता है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 17: काम-वासना मनुष्य के विवेक को भरमा कर उसे पतन के मार्ग पर ले जाता है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 18: किसी भी रूप में प्रार्थना प्रभावी है क्योंकि यह एक क्रिया है इसलिए इसका परिणाम होगा यह इस ब्रह्मांड का नियम है जिसमें हम खुद को पाते हैं।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 19: कोई भी मानव हृदय सहानुभूति से वंचित नहीं है कोई धर्म उसे सिखा-पढ़ा कर नष्ट नहीं कर सकता, कोई संस्कृति, कोई राष्ट्र, कोई राष्ट्रवाद, कोई भी उसे छू नहीं सकता क्योंकि ये सहानुभूति है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 20: कोई मूल्य तब मूल्यवान है जब मूल्य का मूल्य स्वयं के लिए मूल्यवान हो।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 21: क्योंकि मनुष्यों के भीतर संवेदना है इसलिए अगर वो उन तक नहीं पहुँचता, जिन्हें देखभाल की ज़रुरत है तो वो प्राकृतिक व्यवस्था का उल्लंघन करता है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 22: क्रोध का भोजन विवेक है, अतः इससे बचके रहना चाहिए क्योकि विवेक नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 23: क्षमा करना सबके बस की बात नहीं, क्योंकि ये मनुष्य को बहुत बङा बना देता है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 24: गीत व्यक्ति के मर्म का आह्वान करने में मदद करता है और बिना गीत के, मर्म को छूना मुश्किल है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 25: छात्र की योग्यता ज्ञान अर्जित करने के प्रति उसके प्रेम, निर्देश पाने की उसकी इच्छा, ज्ञानी और अच्छे व्यक्तियों के प्रति सम्मान, गुरु की सेवा और उनके आदेशों का पालन करने में दिखती है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 26: जब मनुष्य अपने क्रोध पर विजय पा ले, काम को काबू मे कर ले, यश की इच्छा को त्याग दे, माया जाल से विरक्त हो जाये, तब उसमे जो दिव्य विभुतियाँ आती है उसे ही कुण्डिलनी शक्ति कहते है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 27: जिस मनुष्य मे संतुष्टि के अंकुर फुट गये हों, वो संसार के सुखी मनुष्यों मे गिना जाता है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 28: जिसको परमात्मा और जीवात्मा का यथार्थ ज्ञान, जो आलस्य को छोड़कर सदा उद्योगी, सुख दुःख आदि को सहन, धर्म का नित्य सेवन करने वाला, जिसको कोई पदार्थ धर्म से छुड़ा कर अधर्म की ओर न खीच सके, वह पण्डित कहलाता है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 29: जीवन में मृत्यु को टाला नहीं जा सकता हर कोई ये जानता है, फिर भी अधिकतर लोग अन्दर से इसे नहीं मानते – ये मेरे साथ नहीं होगा, इसी कारण से मृत्यु सबसे कठिन चुनौती है जिसका मनुष्य को सामना करना पड़ता है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 30: जीह्वा(जीभ) से उसे व्यक्त करना चाहिए, जोकि मनुष्य के ह्रदय में है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 31: जो व्यक्ति सबसे कम ग्रहण करता है और सबसे अधिक योगदान देता है वह परिपक्कव है, क्योंकि जीने में ही आत्म-विकास निहित है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 32: दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ दीजिये और आपके पास सर्वश्रेष्ठ लौटकर आएगा।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 33: धन एक वस्तु है जो ईमानदारी और न्याय से कमाई जाती है इसका विपरीत है अधर्म का खजाना।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 34: निरीह सुख सदगुणों और सही ढंग से अर्जित धन से मिलता है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 35: नुकसान से निपटने में सबसे ज़रूरी चीज है उससे मिलने वाले सबक को ना भूलना वो आपको सही मायने में विजेता बनाता है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 36: मनुष्य की विद्या उसका अस्त्र, धर्म उसका रथ, सत्य उसका सारथी और भक्ति रथ के घोङे होते है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 37: मानव को अपने पल-पल को आत्मचिन्तन मे लगाना चाहिए क्योकि हर क्षण हम परमेश्वर द्वारा दिया गया समय खो ही रहे है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 38: मानव जीवन मे तृष्णा और लालसा है और ये दुखः के मूल कारण है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 39: मुझे सत्य का पालन करना पसंद है बल्कि, मैंने औरों को उनके अपने भले के लिए सत्य से प्रेम करने और मिथ्या को त्यागने के लिए राजी करने को अपना कर्त्तव्य बना लिया है अतः अधर्म का अंत मेरे जीवन का उदेश्य है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 40: मोक्ष पीड़ा सहने और जन्म-मृत्यु की अधीनता से मुक्ति है और यह भगवान की अपारता में स्वतंत्रता और प्रसन्नता का जीवन है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 41: मोह एक अत्यंन्त विस्मित जाल है जो बाहर से अति सुन्दर और अन्दर से अत्यंन्त कष्टकारी है जो इसमे फँसा हैं वो पुरी तरह उलझ ही गया हैं।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 42: यश और कीर्ति ऐसी विभूतियाँ है, जो मनुष्य को संसार के माया जाल से निकलने मे सबसे बङे अवरोधक होते है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 43: ये शरीर नश्वर है, हमे इस शरीर के जरीए सिर्फ एक मौका मिला है, खुद को साबित करने का।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 44: लोग कहते हैं कि वे समझते हैं कि मैं क्या कहता हूं और मैं सरल हूं, मैं सरल नहीं हूँ बल्कि मैं स्पष्ट हूं।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 45: लोगों को कभी भी चित्रों की पूजा नहीं करनी चाहिए, मानसिक अन्धकार का फैलाव मूर्ति पूजा के प्रचलन की वजह से है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 46: लोगों को भगवान को जानना और उनके कार्यों की नक़ल करनी चाहिए, पुनरावृत्ति और औपचारिकताएं किसी काम की नहीं हैं।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 47: लोभ वो अवगुण है, जोकि दिन प्रतिदिन तब तक बढता ही जाता है, जब तक मनुष्य का विनाश ना कर दे।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 48: वर्तमान जीवन का कार्य अन्धविश्वास पर पूर्ण भरोसे से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 49: वेदों मे वर्णित सार का पान करने वाले ही यह जान सकते हैं कि जिन्दगी का मूल बिन्दु क्या है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 50: संस्कार ही मानव के आचरण का नीव होता है, जितने गहरे संस्कार होते हैं, उतना ही अडिग मनुष्य अपने कर्तव्य पर, अपने धर्म पर, सत्य पर और न्याय पर होता है।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 51: सबकी उन्नति में ही अपनी उन्नति समझनी चाहिए।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 52: सबसे उच्च कोटि की सेवा ऐसे व्यक्ति की मदद करना है जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में असमर्थ हो।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Hindi Quotes 53: हमें पता होना चाहिए कि भाग्य भी कमाया जाता है और थोपा नहीं जा सकता, ऐसी कोई कृपा नहीं है जो कमाई ना गयी हो।
– स्वामी दयानंद सरस्वती Swami Dayanand Saraswati
Swami Dayanand Saraswati ने सर्वप्रथम और सबसे अधिक प्रमुख रूप से वेदों की ओर लौटो का संदेश दिया था। उन्होंने भारत और हिन्दू धर्म को नवजीवन प्रदान किया। उन्होंने भारत की खोई आत्मा को दूँढ लिया और उसे राष्ट्रीय जीवन की प्रमुख शक्ति बना दिया। उन्होंने हीनता की भावना से ग्रस्त और यूरोपियन विचारों में पागल बनी भारतीय जनता को अतीत का गौरव दिखाकर और हिन्दू धर्म को सर्वोत्तम बतलाकर उनमे अपूर्व आत्मविश्वास भर दिया।
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2 Comments
jAI VIVEKANAD JI KI
Good information sir
Thanks