भारत और पाकिस्तान की दुश्मनी के पीछे असल कारण क्या हैं?
अंग्रेजों ने भारत की पवित्र और ऐतिहासिक सरजमीन पर 1858 में पदार्पण के बाद व्यापार का बहाना लेकर कदम तो रख दिया था लेकिन सोने की चिड़िया के नाम से मशहूर इस मुल्क पर उनका असल लक्ष्य और इरादा सत्ता एवं शासन के आसन पर विराजमान होना था जिसके लिए वह किसी भी हद से गुजरने को तैयार थे।
दरअसल, सत्ता और शासन की मलाई एक बार जिसके मुंह लग जाए, वह बार बार इसका स्वाद चखने पर आमादा रहा करता है। उसके मन को कुछ ऐसी लालच घेर लेती है कि एक बार सत्ता का सुख भोग लेने के बाद वह दोबारा इस किस्म के सुख से वंचित होना कभी गंवारा नहीं करता।
जब अंग्रेज़ भारत आए थे तो उनके मन में भारत की उपजाऊ सरजमीन पर अपने व्यापार की फसल तैयार करने का दृढ़ निश्चय और विश्वास था। उन्होंने तत्कालीन शासकों से इस बात की इजाज़त चाही जिस पर हमारे शासक अपनी उदारता और सहानुभूति की फितरत के चलते उनकी मांग को स्वीकार कर लिए।
अंग्रेज विकसित और शिक्षित लोग थे। हमारे शासकों ने सोचा कि इसी बहाने राष्ट्रहित में उन्नति एवं विकास के कुछ नेक काम भी हो जाएंगे। लेकिन उनकी सोच उल्टी पड़ गई और अंग्रेज़ों ने कुछ समय पश्चात् ही अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया।
उन्होंने अपनी चालों को इस्तेमाल में लाकर कुछ दिनों बाद ही इस सरजमीन को अपने सम्पूर्ण अधिकार, अख्तियार और कब्जे में ले लिया। भारत के शासक और जनता उनके इस साजिशी काम से हैरत में पड़ गए।
यह उनके लिए आश्चर्यजनक और दुखदायक बात थी क्योंकि देश की जिस आजाद फिजा में वह चैन और सुकून की सांस ले रहे थे, वही हवा अब उनके जहरीली हो गई थी जहां उनका सांस लेना तक दूभर हो गया था।
फिर हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने राष्ट्रप्रेम, अदम्य साहस बल और रणनीतियों से अंग्रेजी साम्राज्य का मुकाबला किया और उसे नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया। तब भारत और पाकिस्तान एक ही राष्ट्र थे।
1947 में जब भारत आजाद हुआ तो उसी समय अंग्रेजों के भारत से रुखसत हो जाने के बाद दोनों देशों के बीच अपरिहार्य कारणों की वजह से बंटवारा अमल में आया।
विभाजन के बाद से ही कश्मीर के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच तीखी नोकझोंक और युद्ध जारी रहे। जिसने पाकिस्तान का दावा रहता है कि कश्मीर उसके साम्राज्य का हिस्सा है जबकि भारत कश्मीर को अपना अभिन्न और अटूट अंग मानता है।
इस मसले का संयुक्त राष्ट्र की दखल अंदाजी के बाद भी अब तक कोई हल या समाधान नहीं निकाला जा सका जिसके चलते दोनों देशों के बीच दुश्मनी की दीवार मजीद मजबूत होती चली गई और आज दुनिया की नजरों में यह दोनों देश एक दूसरे के परम शत्रु माने जाते हैं।
आइए! इन दोनों देशों के बीच पनप रही दुश्मनी के कुछ और कारणों पर ध्यान देते हैं:
बंटवारा है दुश्मनी की वजह
जब किसी घर में दो सगे भाइयों का परिवार एक साथ मिलकर हंसी खुशी गुजारा करता है तो उस घर का माहौल भी शान्तिपूर्ण और सुखदायी होता है। फिर जब किसी गलतफहमी की जद में आकर दो भाई अलग होते हैं तो उनके बीच रिश्तों में कुछ ऐसी कड़वाहट और खटास पैदा हो जाती है जिसे दूर करने में बरसों गुजर जाते हैं।
भारत और पाकिस्तान भी आजादी से पहले दो सगे भाई की तरह एक साथ रहते थे। फिर इनमें नफरत का बीज पनपा और दोनों देश अलग अलग हो गए। बंटवारे के दौरान लगभग सवा करोड़ लोगों को अपने देश और प्रदेश को छोड़कर इधर उधर की राह लेनी पड़ी जिसमें तकरीबन एक लाख लोग सीधे मौत के घाट उतर गए और लाखों जख्मी हो गए थे।
बंटवारे के बाद भारत एक बहुसंख्यक आबादी वाला धर्मनिरपेक्ष देश बनकर उभरा जिसके आंचल के साए में सैकड़ों धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग, नस्ल, रंग और भाषाओं ने पनाह ले रखी थी।
वहीं पाकिस्तान एक मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी वाले देश के रुप में निर्मित हुआ जहां लोकतांत्रिक मूल्यों को मद्देनजर रखकर साम्राज्य स्थापित किया गया जिसके संविधान में सभी धर्म और जाति के लोगों को समानता का अधिकार दिया गया था। यहां हिंदुओं की थोड़ी बहुत आबादी भी मौजूद है।
विभाजन के दौरान भी पनप रहा था तकरार का बीज
भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे का बीज 1942 से ही पनपना शुरू हो गया था।
इस सिलिसिले में प्रसिद्ध इतिहासकार मृदुला मुखर्जी लिखती हैं… “यह कहना सही नहीं होगा कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत पाक के विभाजन के समर्थन में थे और जिन्ना के साथ मिलकर उन्होंने भारत को दो टुकड़ों में विभाजित कर दिया था।
नेहरू के मुताबिक, विभाजन उनकी राजनैतिक मजबूरी बन चुकी थी और इस बात को उन्होंने 1947 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की एक अहम बैठक में भी स्वीकार किया था।
सिंधु नदी भी है भारत पाक विवाद का कारण
भारत और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी की दीवार जहां अनेक कारणों की वजह के चलते दिन गुजरने के साथ और अधिक मजबूत होती चली जा रही है। यह दीवार जब कभी ऐसा महसूस होता है कि कुछ कमजोर हुई है तो अचानक कोई न कोई प्राकृतिक या मानव निर्मित कारण इन दोनों देशों की दोस्ती की राह में रुकावट बन जाता है।
1960 में सिंधु नदी भी भारत-पाक विवाद का कारण बन गई। सिंधु नदी समझौते के मुताबिक सिंधु, झेलम और चेनाब को पाकिस्तान की नदी जबकि सतलुज, रावी और व्यास नदी को भारत की नदी करार दिया गया था। इस समझौते के तहत भारत को पाकिस्तान की नदियों पर उसके पानी की सीमित उपयोग की इजाजत दी गई थी जिस पर दोनों देशों के बीच विवाद भी हुए हैं।
इस विवाद में पाकिस्तान अक्सर आरोप लगाया करता है कि भारत उसके हिस्से के पानी का बेजा इस्तेमाल कर रहा है जबकि इस सिलसिले में भारत का तर्क यह है कि ग्लेशियर कम होने और बरसात में कमी के चलते सिंधु नदी में पानी का स्तर और बहाव बेहद कम हो गया है। उसे इस नदी के पानी की सख्त जरूरत है।
भारत का मानना है कि इस मुद्दे को बेवजह तूल देकर पाकिस्तान सीमा पार के आतंकवाद से भारत का ध्यान भटकाना चाहता है।
चीन भी है दरार की वजह
चीन को विश्व की सबसे बड़ी और मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में जाना जाता है। कुछ खास कारणों की बिना पर चीन की भारत दुश्मनी जग जाहिर है। कहते हैं कि दुश्मन का दोस्त भी दुश्मन होता है।
चीन की पाकिस्तान के साथ मजबूत आर्थिक एवं व्यापारिक सम्बन्ध हैं और इन दिनों भारत के साथ चीन का सीमा विवाद चल रहा है जिसमें पाकिस्तान और चीन भी कभी कभार एक दूसरे का समर्थन करते नज़र आते हैं। चीन अपनी एक खास रणनीति के तहत मीडिया में कड़े बयान जारी कर अपने कदम खींच लेता है।
उधर, संयुक्त राष्ट्र में भारत ने हाल ही में पाकिस्तान पर झूठा प्रोपेगेंडा करने का कोशिश करने के लिए उसे अपनी कड़ी आलोचनाओ का निशाना बनाया और उसे भारत के आंतरिक मामलों में दखल अंदाज़ी ना करने की सलाह दी थी।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को जवाबदेह बनाए जाने पर भी बल दिया। भारत ने कहा कि वह एक ज़िम्मेदार राष्ट्र की हैसियत से अंतरराष्ट्रीय समझोतों के तहत अपने कर्तव्यों का सख्ती के साथ निर्वहन करता है और इस बीच उसे ऐसे किसी भी देश के मशवरे की ज़रूरत नहीं है जिसके पास परमाणु हथियार और तकनीक रखे जाने का गैर कानूनी रिकॉर्ड है और जो संयुक्त राष्ट्र के नियमों का सम्मान भी नहीं करता।
ईर्ष्या भी है कारण
भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद भारत विकास के पथ पर तेजी के साथ कदम बढ़ाए और उसने विज्ञान और तकनीक के मामले में अपने से अलग हुए पाकिस्तान को काफी पीछे छोड़ दिया। कुछ लोगों का मानना है कि विकास, तरक्की, उन्नत, जीवन स्तर में उठान और अर्थव्यवस्था की मजबूती से पाकिस्तान को बेवजह दिक्कत उठानी पड़ रही है। कुछ लोग इसे ईर्ष्या का नाम भी दे रहे हैं।
आतंकवाद भी है विवाद का कारण
अक्सर भारत पाकिस्तान पर यह आरोप लगाता रहा है कि वह कश्मीर में आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवादी संगठनों को पनाह देने के साथ भारत के खिलाफ छद्म युद्ध भी चला रहा है जिसमें 2001 में भारतीय संसद पर हमला, 2008 में मुंबई हमला और हाल ही में पठानकोट आतंकी हमले शामिल किए गए हैं।
खराब संबंधों के चलते व्यापार में आई बाधा
जब दो देशों के बीच सम्बन्ध खराब हो जाते हैं तो सबसे पहले दोनों देशाें के व्यापारिक गतिविधियों पर उसका बुरा असर जाहिर होता है। दोनों देश एक दूसरे से व्यापारिक लेनदेन बर्खास्त कर लेते हैं और इस तरह व्यापारिक लाभ से वंचित हो जाते हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच भी यही असर देखने में आया। दोनों देशों के बीच की तल्खियां एक दूसरे के साथ व्यापारिक रूप से अलग होने जाने का इशारा साबित हुईं और अब यह इशारे साफतौर पर दिखाई भी देने लगे।
इन दोनों के बीच अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ठहराव आ गया और वित्तीय वर्ष 2018/19 में पाकिस्तान को भारत से निर्यात में मिलने वाला 2.17 बिलियन डॉलर का निर्यात दोनों देशों की कटुता और कड़वाहट की भेंट चढ़कर अब केवल 0.83 प्रतिशत तक सीमित रह गया है।
इस बड़े आर्थिक नुकसान से जाहिर है कि पकिस्तान और भारत के बीच रिश्तों में मजीद खटास पैदा होगी। यह व्यापारिक क्षति भी दोनों देशों के बीच संबंध खराब होने के खास कारणों में शुमार की जाती है।