Inspirational Hindi Story about life, प्रेरणादायक हिन्दी kahnai – आहार का असर
व्यक्ति जैसा आहार लेता हैं, उस पर वैसा ही असर पड़ता हैं।
पुरानी कहावत हैं कि “जैसा खावे अन्न वैसा, होए मन“। भोजन का शरीर पर अर्थात् तन-मन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। हम जैसा आहार लेते हैं उसका स्वास्थ्य पर भी वैसा ही प्रभाव पड़ता हैं।
ईमानदारी और मेहनत से अर्जित आहार का गुण भी वैसा ही होता हैं, जबकि चोरी, बेईमानी और ठगी के माध्यम से आने वाला पैसा अपने साथ कई प्रकार के ऐब, बीमारियाँ तथा कष्ट लेकर आता हैं। इसके बावजूद भी लोग इस बात को समझने का प्रयास नहीं करते और जो इस बात को समझते हैं वे अपने आप को सुधारने के लिए तैयार नहीं होते।
ऋषियों ने भी कहा हैं “धनाद्धर्मस्ततः सुखम्” अथार्थ धर्म और अर्थ के सामंजस्य में ही चरितार्थ होता है।
शास्त्रों के अनुसार भी दूसरों को दुःख देकर प्राप्त किया हुआ धन कभी भी सुख नहीं पहुँचा सकता। कठोर परिश्रम, अध्यवसाय, पुण्य भाव और सेवाभाव रखकर ही कमाया हुआ धन मनुष्य के पास टिककर उसे स्थायी लाभ पहुँचाता है। बेईमानी की कमाई से कोई फलता-फूलता नहीं बल्कि वह उसे किसी न किसी रूप में नुकसान ही पहुचाता हैं।
महानिर्वाण तंत्र में लिखा है कि “जो गृहस्थ धन कमाने के लिए पुरुषार्थ नहीं करता, वह अधर्मी है।”
एक बहुत बड़े संत थे। उनके बहुत से शिष्य हुआ करते थे। एक बार वो एक शहर में गए, वह जातें ही उनके शिष्यों का ताँता लग गया। उन्ही शिष्यों में से एक शिष्य हुआ करता था गोपाल, वह भी संत के दर्शनों के लिए गया उसका चेहरा काफी लटका हुआ था और वह काफी उदास था। बुरी तरह से परेशान लग रहा था। संत ने चेहरा देखते ही भाप लिया, गोपाल से परेशानी का कार पूछा। उसने बताया मैं वास्तव मैं बहुत परेशान हूँ, संत के पूछा, “बात क्या हैं? बात तो बताओ?”।
गोपाल बताने लगा घर में एक जवान लड़का हैं और लड़की हैं वो काफी उद्द्दंड हो गए हैं। पत्नी हमेशा कर्कश बनी रहती हैं। घर में किसी न किसी बात पर कलह हमेशा बनी ही रहती हैं। संत ने धीमें से कहा, इसका मतलब यह हैं कि तू आजकल गलत तरीके से धन कमाने में लगा हुआ हैं और यही धन अपने दुष्प्रभाव तुम्हारे घर में फैला रहा हैं।
संत की बात सुनकर गोपाल चोंका और बोला, नहीं, नहीं ऐसी कोई बात नहीं हैं मैं कोई गलत धंधा नहीं कर रहा हूँ। संत के कहा मैं इस बात पर कोई बहस नहीं करना चाहता। मैं केवल इतना कहना चाहता हूँ कि जो व्यक्ति गलत प्रकार से धन कमाता हैं, वह किसी न किसी रूप में परेशान रहता हैं। क्योकि गलत प्रकार से आयें धन से जो भोजन आयेंगा, बनेगा और खाया जायेगा, उसका प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार और व्यक्तित्व पर पड़ता हैं।
इसलिए यदि ऐसा कोई काम करता हैं तो छोड़ दे सुखी रहेगा। यह सुन कर गोपाल घर चला गया। संत भी कुछ दिन बाद अपने आश्रम लौट गए।
लगभग एक साल बाद संत को गोपाल का पत्र प्राप्त हुआ, “अब मैं सुखी हूँ“।
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