World’s Most Inspirational Letters in Hindi, Abraham Lincoln letter to his son’s teacher in Hindi, GD Birla letter to son BK Birla in Hindi
विश्व में जो दो सबसे सुप्रसिद्ध और आदर्श पत्र माने गए है उनमें एक है
‘अब्राहम लिंकन का… पुत्र के शिक्षक के नाम पत्र’ और दूसरा है
‘घनश्यामदास बिरला का पुत्र के नाम पत्र’
इन दोनों पत्रों को इतना समय बीत जाने के बाद भी आज भी उतना ही महत्व हैं जितना की उस समय था, ये दोनों अत्यंत प्रेरक पत्र जो हर एक व्यक्ति को जरूर पढ़ना चाहिए, आशा हैं आप भी इनको पढ़कर इससे लाभान्वित होंगे।
“अब्राहम लिंकन का पत्र……. पुत्र के शिक्षक के नाम…”
अब्राहम लिंकन अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति थे। उन्होने अमेरिका को उसके सबसे बड़े संकट गृहयुद्ध (अमेरिकी गृहयुद्ध) से पार लगाया। अमेरिका में दास प्रथा के अंत का श्रेय लिंकन को ही जाता है इन्हें गुलामों का मुक्तिदाता भी कहा जाता है। लिंकन प्रारंभ से ही मेहनती, सरल स्वभाव के और बुद्धिमान थे। आजीविका चलाने और पढ़ाई के लिए उन्हें शुरू से ही काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
राष्ट्रपति लिंकन ने यह पत्र अपने बेटे के स्कूल प्रिंसिपल को लिखा था, यह पत्र एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। लिंकन ने इसमें वे तमाम बातें लिखी थीं जो वे अपने बेटे को सिखाना चाहते थे। इस पत्र को आदर्श शिक्षक होने की कसौटी की नजीर के रूप में सालों से प्रस्तुत किया जाता रहा है। यह केवल एक छात्र व शिक्षक के सीखने-सिखाने तक सीमित नहीं हैं बल्कि इसका दायरा बहुत बड़ा है। पढि़ए…
सम्माननीय महोदय,
मैं अपने पुत्र को शिक्षा के लिए आपके हाथों में सौंप रहा हूँ। आपसे मेरी अपेक्षा यह है कि इसे ऐसी शिक्षा दें जिससे यह सच्चा इंसान बन सके।
मैं जानता हूँ कि इस दुनिया में सारे लोग अच्छे और सच्चे नहीं हैं। यह बात मेरे बेटे को भी सीखनी होगी पर मैं चाहता हूँ कि आप उसे यह भी बताएँ कि हर बुरे आदमी के पास भी अच्छा हृदय होता है। हर स्वार्थी नेता के अंदर अच्छा लीडर बनने की क्षमता होती है। मैं चाहता हूँ कि आप उसे सिखाएँ कि हर दुश्मन के अंदर एक दोस्त बनने की संभावना भी होती है। ये बातें सीखने में उसे समय लगेगा, मैं जानता हूँ। पर आप उसे सिखाइए कि मेहनत से कमाया गया एक रुपया, सड़क पर मिलने वाले पाँच रुपए के नोट से ज्यादा कीमती होता है।
आप उसे बताइएगा कि दूसरों से जलन की भावना अपने मन में ना लाएँ। साथ ही यह भी कि खुलकर हँसते हुए भी शालीनता बरतना कितना जरूरी है। मुझे उम्मीद है कि आप उसे बता पाएँगे कि दूसरों को धमकाना और डराना कोई अच्छी बात नहीं है। यह काम करने से उसे दूर रहना चाहिए।
आप उसे किताबें पढ़ने के लिए तो कहिएगा ही, पर साथ ही उसे आकाश में उड़ते पक्षियों को धूप, धूप में हरे-भरे मैदानों में खिले-फूलों पर मँडराती तितलियों को निहारने की याद भी दिलाते रहिएगा। मैं समझता हूँ कि ये बातें उसके लिए ज्यादा काम की हैं।
मैं मानता हूँ कि स्कूल के दिनों में ही उसे यह बात भी सीखनी होगी कि नकल करके पास होने से फेल होना अच्छा है। किसी बात पर चाहे दूसरे उसे गलत कहें, पर अपनी सच्ची बात पर कायम रहने का हुनर उसमें होना चाहिए। दयालु लोगों के साथ नम्रता से पेश आना और बुरे लोगों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए। दूसरों की सारी बातें सुनने के बाद उसमें से काम की चीजों का चुनाव उसे इन्हीं दिनों में सीखना होगा।
आप उसे बताना मत भूलिएगा कि उदासी को किस तरह प्रसन्नता में बदला जा सकता है। और उसे यह भी बताइएगा कि जब कभी रोने का मन करे तो रोने में शर्म बिल्कुल ना करे। मेरा सोचना है कि उसे खुद पर विश्वास होना चाहिए और दूसरों पर भी। तभी तो वह एक अच्छा इंसान बन पाएगा।
ये बातें बड़ी हैं और लंबी भी। पर आप इनमें से जितना भी उसे बता पाएँ उतना उसके लिए अच्छा होगा। फिर अभी मेरा बेटा बहुत छोटा है और बहुत प्यारा भी।
आपका,
अब्राहम लिंकन
और दूसरा जो ऐतिहासिक पत्र हैं वह हैं..
घनश्यामदास जी बिड़ला का अपने पुत्र बसंत कुमार जी बिड़ला के नाम
आइये पहले घनश्याम दास जी बिड़ला का संक्षिप्त परिचय जान लेते हैं यदि कोई मित्र इनके बारें में नहीं जानता हैं तो अच्छा होगा कि पत्र पढने से पहले उनके बारें में जान ले।
श्री घनश्यामदास बिड़ला (जन्म-1894, पिलानी, राजस्थान, भारत, मृत्यु.- 1983) भारत के अग्रणी औद्योगिक समूह बी. के. के. एम. बिड़ला समूह के संस्थापक थे। इस समूह का मुख्य व्यवसाय कपड़ा, विस्कट फ़िलामेंट यार्न, सीमेंट, रासायनिक पदार्थ, बिजली, उर्वरक, दूरसंचार, वित्तीय सेवा और एल्युमिनियम क्षेत्र में है, जबकि अग्रणी कंपनियाँ ‘ग्रासिम इंडस्ट्रीज’ और ‘सेंचुरी टेक्सटाइल’ हैं। ये स्वाधीनता सेनानी भी थे तथा बिड़ला परिवार के एक प्रभावशाली सदस्य थे। वे गांधीजी के मित्र, सलाहकार, प्रशंसक एवं सहयोगी थे। भारत सरकार ने सन 1957 में उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया। घनश्याम दास बिड़ला का निधन जून, 1983 ई. हुआ था।
आइये अब पढ़ते हैं बिड़ला ग्रुप के संस्थापक घनश्याम दास जी बिड़ला (G.D. Birla) द्वारा अपने पुत्र बसंत कुमार जी बिड़ला (B.K. Birla) के नाम 1934 में लिखित एक अत्यंत प्रेरक पत्र..
चि. बसंत,
यह जो लिख रहा हूँ उसे बड़े होकर और बूढ़े होकर भी पढ़ना, अपने अनुभव की बात कहता हूँ। संसार में मनुष्य जन्म दुर्लभ है और मनुष्य जन्म पाकर जिसने शरीर का दुरुपयोग किया, वह पशु है। तुम्हारे पास धन है, तन्दुरुस्ती है, अच्छे साधन हैं, अगर उनको सेवा के लिए उपयोग किया, तब तो साधन सफल है अन्यथा वे शैतान के औजार हैं। तुम इन बातों को ध्यान में रखना।
धन का मौज-शौक में कभी उपयोग न करना, ऐसा नहीं कि यह धन सदा रहेगा ही, इसलिए जितने दिन पास में है उसका उपयोग सेवा के लिए करो, अपने ऊपर कम से कम खर्च करो, बाकी जनकल्याण और दुखियों का दुख दूर करने में व्यय करो। धन शक्ति है, इस शक्ति के नशे में किसी के साथ अन्याय हो जाना संभव है, इसका ध्यान रखो कि अपने धन के उपयोग से किसी पर अन्याय ना हो।
अपनी संतान के लिए भी यही उपदेश छोड़कर जाओ। यदि बच्चे मौज-शौक, ऐश-आराम वाले होंगे तो पाप करेंगे और हमारे व्यापार को चौपट करेंगे। ऐसे नालायकों को धन कभी न देना, उनके हाथ में जाये उससे पहले ही जनकल्याण के किसी काम में लगा देना या गरीबों में बाँट देना। तुम उसे अपने मन के अंधेपन से संतान के मोह में स्वार्थ के लिए उपयोग नहीं कर सकते। हम भाइयों ने अपार मेहनत से व्यापार को बढ़ाया है तो यह समझकर ही कि वे लोग धन का सदुपयोग करेंगे।
भगवान को कभी न भूलना, वह अच्छी बुद्धि देता है, इन्द्रियों पर काबू रखना, वरना यह तुम्हें डुबो देगी। नित्य नियम से व्यायाम-योग करना। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी सम्पदा है। स्वास्थ्य से कार्य में कुशलता आती है, कुशलता से कार्यसिद्धि और कार्यसिद्धि से समृद्धि आती है सुख-समृद्धि के लिए स्वास्थ्य ही पहली शर्त है मैंने देखा है की स्वास्थ्य सम्पदा से रहित होने पर करोड़ों-अरबों के स्वामी भी कैसे दीन-हीन बनकर रह जाते हैं। स्वास्थ्य के अभाव में सुख-साधनों का कोई मूल्य नहीं। इस सम्पदा की रक्षा हर उपाय से करना। भोजन को दवा समझकर खाना। स्वाद के वश होकर खाते मत रहना। जीने के लिए खाना हैं, न कि खाने के लिए जीना हैं।
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घनश्यामदास बिड़ला
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2 Comments
अपनी औलाद को संस्कारित करने के लिए इससे बड़ा प्रेरणादायक उदाहरण संसार कहीं नहीं मिल सकता।
So nice to know these inspirational letters and we now need to give such things ro our wards too to make our country rich in morale