अपने ऊपर ध्यान केंद्रित करें परन्तु अपने आपको दुसरों के सामने अच्छा साबित करने में समय व्यर्थ (Time Waste) न करें।
इंसानी फितरत है कि जब भी वह कोई बड़ा कारनामा अंजाम देता है तो उसका झुकाव अपने व्यक्तिगत फायदों से कहीं ज़्यादा अपनी शोहरत और लोकप्रियता की ओर रहा करता है।
इंसान अपनी इसी प्रवृत्ति के चलते अपने कान से स्वयं अपनी तारीफ सुनना पसंद करता है। जब भी वह कोई बड़ा सामाजिक या व्यक्तिगत कार्य करता है तो उसके मन में यही चाहत होती है कि ज़्यादा से ज़्यादा लोग उसके काम के बारे में जानकर उसकी शख्सियत पर अपनी चर्चाओ का बाज़ार गर्म करते रहें।
वह चाहता है कि जो काम उसने किया है, लोग उसके बारे में लगातार बेहतर और सकारात्मक राय कायम करते रहें। दरअसल इस किस्म की सोच इंसानी प्रवृत्ति का हिस्सा है जिसे खुद से अलग कर पाना बेहद मुश्किल और दुश्वार होता है। आदमी जब कुछ करता है तो वह अपने कारनामों पर लोगों की सकारात्मक प्रतिक्रिया सुनने, देखने या जानने की ख्वाहिश करता है, Don’t Expect Praises.
इसी सकारात्मक प्रतिक्रिया की लत लग जाने के कारण वह ज़िन्दगी के हर मैदान में खुद को साबित करने की पुरजोर कोशिश करता रहता है। दूसरे लोगों की नकारात्मक प्रतिक्रिया सामने आने पर उसका हौसला और आत्मविश्वास डगमगाने लगता है और कभी कभार वह इस हद तक परेशान हो जाता है कि अपनी मंजिल तक पहुंचने से पहले ही अपने कदम पीछे खींचने की फ़िराक में रहने लगता है।
बड़े-बड़े विद्वान, ज्ञानी और दार्शनिक भी इस मानसिकता से अपना दामन बचा नहीं पाए।
लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इस तरह की सोच पर मुकम्मल काबू नहीं पाया जा सकता बल्कि यह तो एक तरह की गम्भीर वैचारिक समस्या है जिससे आज हमारे समाज के बहुत से लोग दोचार हैं। हर बार खुद को बेहतर साबित करने की इस मानसिकता से मुक्ति की राह पाने के लिए कुछ और नहीं बल्कि केवल निम्न बातों पर गौर और अमल करना होता है
1. अपने लक्ष्य पर दें ध्यान
जब भी आप जीवन में कोई लक्ष्य निर्धारित करें तो उस लक्ष्य को पाने के लिए अपने जी जान, अदम्य साहस और उत्साह के साथ से जुट जाएं। आप दुनिया के किसी भी क्षेत्र या पेशे में चले जाएं, लोग आपके काम पर अपनी अलग अलग प्रतिक्रियाएं (Compliments and Criticisms) जरूर देते रहेंगे।
आप लोगों की सोच और मानसिकता को चाह कर अपनी मर्जी के मुताबिक नहीं कर सकते।
इसलिए विश्व के सफलतम लोगों की मानसिकता और प्रवृत्ति पर अगर ध्यान दिया जाए तो यह तथ्य सामने आयेंगे कि वे अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने के दौरान इतने गम्भीर और तल्लीन हो जाते हैं कि उनके जेहन में औरों की नकारात्मक प्रतिक्रिया का खयाल ही नहीं गुजरता।
वे यह जानते हैं कि अगर उन्होंने अपने मकसद को पाने के दौरान सामाज की प्रतिक्रिया के बारे में जरा भी सोचा तो गुमराह होकर अपने लक्ष्य से पीछे हटने पर मजबूर हो सकते हैं।
अगर आप का ध्यान अपनी मंजिल और लक्ष्य पर मजबूती के साथ टिका हुआ है और आप अपने भविष्य या व्यक्तित्व पर सामाजिक प्रतिक्रियाओं को तरजीह (Importance) नहीं देते तो मुमकिन है कि बहुत जल्द आप अपनी मंजिल तक पहुंच कर कामयाबी का परचम लहरा आएं।
इसके अलावा अगर आपने अपने जीवन के निर्धारित लक्ष्य के विपरीत कदम बढ़ाना शुरू कर दिया तो इसका साफ मतलब ये है कि आप लोगों की प्रतिक्रियाओं से खुद को बुरी तरह भयभीत महसूस कर रहे हैं।
इसी डर और खौफ को जिसने मार दिया वह जीवन में सफलता प्राप्त कर सुख, शांति और समृद्धि के मार्ग प्रशस्त कर लेता है क्योंकि इस ज़माने में कुछ लोगों की मानसिकता कुछ ऐसी हो चुकी है कि आपके अच्छे कर्मों पर भी वे अपनी नकारात्मक प्रतिक्रिया देना आवश्यक महसूस करते हैं।
मिसाल के तौर पर अगर आपने नेकनीयती के साथ किसी गरीब या बेसहारे की सहायता कर दी तो कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो आपके इस पुनीत कार्य पर आपका दिल से सम्मान करेंगे।
वहीं दूसरे छोर पर कुछ लोग यह प्रतिक्रिया भी व्यक्त कर सकते हैं कि आपने उस गरीब की मदद केवल अपनी ज़ाती शोहरत या लोकप्रियता के लिए की है और आपका उस पुनीत या नेक काम से दूर दूर तक कोई वास्ता तक नहीं है।
अगर आपने लोगों के नकारात्मक दृष्टिकोण पर जरा भी फोकस किया तो इस बात की प्रबल संभावना है कि आप आने वाले दिनों में कभी किसी गरीब की मदद नहीं करेंगे और जिन लोगों ने आपका सम्मान किया है, आप मुमकिन है कि बहुत जल्द इस तरह के नकारात्मक लोगों की बातों में आकर उनके प्यार और सम्मान से भी महरूम हो जाएं जो आपके काम की निरंतर सराहना कर आपका उत्साहवर्धन करते चले आ रहे थे।
2. अपने भविष्य की परवाह करें
इंसान जब अपने भविष्य की चिंता करने लगता है तो स्वाभाविक तौर पर वह लोगों के सामने खुद को साबित करने की नहीं बल्कि अपने भविष्य के बारे में ही ज्यादा फिक्रमंद रहने लगता है। इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि इस किस्म की चिंताओं को खुद पर इतना हावी कर लिया जाए कि हमें दूसरों से सम्बंध और रिश्ते नातों की कोई परवाह ही न रह जाए।
भविष्य की चिंता करने में कुछ लोग इस कदर आगे निकल पड़ते हैं कि अपने वर्तमान में जीना तक छोड़ देते हैं जबकि हकीकत ये है कि दुनिया का हर वास्तविक सुख आपके वर्तमान समय से ही जुड़ा हुआ है।
अगर आपने अपने वर्तमान में जीना छोड़कर मात्र जीवन में आने वाली (संभावित) कठिनाइयों के बारे में ही सोचना शुरू कर दिया तो मुमकिन है कि इससे आपका वर्तमान और भविष्य दोनों खतरे में पड़ जाए। इसलिए हमें चाहिए कि हम अपने वर्तमान में जी कर अपने भविष्य की तैयारियों में लीन रहें।
इसका लाभ यह होगा कि हम एक सुगम और समृद्ध भविष्य के निर्माण में अपने कदम मजबूती के साथ आगे बढ़ा पाएंगे।
3. विपरीत सोच और गलत अनुमान से बचते रहें
कहा जाता है कि विपरीत सोच और गलत अनुमान ज़िन्दगी में इंसान को हमेशा किसी ऐसे दोराहे पर ला खड़ा करते हैं कि उसे समझ नहीं आता कि वह अपने लिए मुक्ति के मार्ग आखिर किस तरह निकाले।
जब आप खुद को दूसरों के सामने अच्छा साबित करने का बार बार प्रयास करने लगते हैं तो उसी बीच आप अपनी विपरीत सोच के चलते लोगों को कमतर (Inferior) समझने का गलत अनुमान भी लगाने लगते हैं।
यह एक प्रकार का अहंकार है जिससे इंसानी रिश्तों में खटास पैदा होती है। अहंकार या गुरूर करने के बुरे नतीजों से यहां कौन वाकिफ नहीं है? कोई शख्स अगर गलत है और खुद को सही साबित करने के चक्कर में अगर गलत तर्क या प्रमाण पेश कर रहा है तो इसका मतलब ये हुआ कि उसके भीतर अहंकार और घमंड का बीज पनप रहा है जिसके चलते वह अपनी गलती और कमजोरी को स्वीकार नहीं कर रहा।
जो शख्स अपनी गलती को स्वीकार नहीं करता तो जाहिर है कि वह अपनी गलती में सुधार पैदा करने की कोशिश भी कभी नहीं करेगा। जो लोग अपनी गलती को मान लेते हैं तो वह किसी न किसी हरबे को इस्तेमाल में लाकर अपनी गलती में सुधार कर लिया करते हैं।
हर बार और हर हाल में अपनी अच्छाई का सुबूत देने वालों के लिए कुत्ते और चीता की उस दौड़ वाली आदर्शपूर्ण कहानी को याद रखना चाहिए जिसमें चीते ने दौड़ लगाने से इंकार कर दिया था। जब रेफरी ने उससे दौड़ में शामिल न होने का सबब (Cause) पूछा तो उसने ऐतिहासिक जवाब देते हुए कहा था कि कभी कभार किन्हीं हालात में खुद को साबित करने में अपने आप में तौहीन (Insult) महसूस होती है।
कहने का मतलब ये कि इंसान को जिन्दगी के हर मोड़ पर अपने आपको साबित करने की जुगत में रहने से कभी कभार जिल्लत, रुसवाई और असम्मान हाथ आते हैं क्योंकि जब आप हर बार किसी को अपने मुकाबले में खड़ा करके सर्वश्रेष्ठ घोषित करने की कोशिश करते हैं तो सम्भव है कि आप कभी उस शख्स से मुकाबले में खड़े हो जाएं जो आपकी टक्कर और स्तर का ही ना हो।
लोग जानते हैं कि फलां आदमी आपके मुकाबले या टक्कर का नहीं है। आप उसी समय स्वयं का मुकाबला उससे करवा कर उसे अपने समानांतर बना रहे होते हैं।
4. खुद को अकेला कभी ना समझें
जिंदगी के किसी भी पड़ाव पर जब आप लोगों के जरिए आर्थिक, सामाजिक या व्यक्तिगत तौर पर चोटिल होकर शोषण या उत्पीड़न का शिकार हों जाएं तो ऐसे आलम में आप उस जबरदस्त आध्यात्मिक शक्ति को याद करें यानी सृष्टि के निर्माता अर्थात ईश्वर को जिसने इस कायनात (Universe) के कण कण की अपने बेपनाह कुदरत, असाधारण विवेक और जबरदस्त हिकमत (Wisdom) से रचना की है।
अगर आपने ऐसे आलम में आध्यात्मिक संसार में कदम रख कर उसे पुकारा और किसी ऐसी चीज की उससे मांग कर दी तो वह जरूर आपको उस चीज से नवाजने या प्रदान करने की क्षमता रखता है क्योंकि वही इस ब्रह्माण्ड का एकमात्र रचयिता है और संभव और असंभव तो हमारी डिक्शनरी के अल्फाज हैं, उसकी डिक्शनरी में इन शब्दों का कोई मोल भाव नहीं है।
वह आपकी भावनाओं को समझते हुए हर चीज आपको आसानी के साथ प्रदान कर देने की भरपूर ताकत रखता है। इसलिए जब कभी लोग आपको कोई मानसिक पीड़ा या हार्दिक कष्ट दें, तो आप आध्यात्मिक संसार में कदम रखकर सीधे तौर पर उस एक ईश्वर को पुकारें क्योंकि वही हर दुखिहारे और बेसहारे की पुकार सुनकर उनकी दुख दर्द के भयानक भंवर में फंसी कश्तियों को अपनी कुदरत से निकालने वाला है।
इसी के साथ यह बात भी ज़ेहन में रखें कि हर बार खुद को अच्छा साबित करना ही किसी मर्ज का इलाज नहीं होता
बल्कि इसके लिए लोगों से अलग होकर अपने निर्धारित लक्ष्य की ओर अदम्य साहस, जबरदस्त उत्साह और मुकम्मल हौसले के साथ के आगे बढ़ते हुए लोगों की आलोचना या शिकवे शिकायत से ध्यान हटाना पड़ता है और पूरे साहस और हिम्मत के साथ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।