आधुनिक समाज द्वारा औरत को दिया जाने वाले सम्मान पर Hindi Kahani, Story in Hindi
मधु जिसकी शादी एक महीना पहले ही हुई थी लेकिन उसे देखकर ऐसा लगता नहीं क्योंकि घर में मिलने वाली डांट फटकार की वजह से वह बहुत परेशान हो चुकी थी।
इस बारे में वह किसी को बता भी नहीं सकती थी लेकिन उसकी सबसे बड़ी हमदर्द कोई और नहीं बल्कि उसकी सास थी। वैसे तो कई बार सास को सही नहीं माना जाता लेकिन इस बार मधु की सास ने उसका बखूबी साथ दिया।
एक दिन मधु खाना बना रही थी-
मधु का पति सुमित – तुमने खाना बनाना सीखा भी है या नहीं? कोई भी खाना सही से नहीं बना पाती हो एकदम स्वाद नहीं आता। शर्मा जी की पत्नी को देखो एक से एक डिश बना लेती हैं।
मधु- क्या कमी रह गई है खाने में, आप मुझे बता दीजिए मैं ठीक कर दूंगी? [प्यार से]
सुमित- तुम्हें खाना बनाना ही नहीं आता, तुम्हारे खाने में बहुत कमियां रहती हैं ना नमक सही से डालती हो ना मिर्च।
ऐसा बोलकर सुमित खाना छोड़ कर खड़ा हो जाता है और अपने कमरे में चला जाता है। दूर से ही मधु की सास यह सब देख रही थी और मन ही मन उन्हे पश्चाताप हो रहा था कि आखिर उन्होंने अपने बेटे को औरत की इज्जत करना क्यों नहीं सिखाया?
लगभग 1 हफ्ते के बाद रात को सुमित और उसके पापा बैठकर ड्रिंक करते हैं, जिसे देखकर मां कहती है- आप लोग क्या कर रहे हैं? पहले की बात और थी लेकिन अब तो घर में बहू आ गई है यह करके घर की शांति भंग ना करें।
सुमित के पापा- [गुस्सा करते हुए] तुम्हें कौन सा घर संभालना आता है कि तुम चली घर की जिम्मेदारी उठाने। चुपचाप यहां से चली जाओ।
यह बातें सुमित की मां को अच्छी नहीं लगती क्योंकि अब घर में बहू के आने से माहौल सही रहना जरूरी है।
कई बार ऐसा होता था कि ड्रिंक करने के बाद सुमित और उसके पिताजी को होश ही नहीं रहता और दोनों अस्त व्यस्त पड़े रहते। दूसरे कमरे से ही छिपकर कर मधु यह सब देख रही थी और अब वह समझ चुकी थी कि इस घर में औरतों की कोई इज्जत नहीं है।
एक दिन जब मधु के पति और ससुर अपने अपने काम की वजह से घर से निकले हुए थे उस समय धीरे से मधु, सास के पास बैठकर बोलती है- आज के समय में औरतों को भी इज्जत मिलनी चाहिए जो मर्दों को मिलती है लेकिन कभी-कभी ऐसा हो नहीं पाता।
सास- तुम कहना क्या चाहती हो बहू, मैं कुछ समझी नहीं?
मधु- देखिए मम्मी जी मैंने भी देखा है कि पापा जी का व्यवहार आपके प्रति बिल्कुल अच्छा नहीं है और वही सुमित का व्यवहार भी मेरे प्रति सही नहीं हैं, इसलिए मैंने आपसे यह बात की है क्योंकि मुझे ऐसा ही लगता है कि इस घर में औरतों की कोई इज्जत नहीं है।
दोनों बातें कर कर रही होती हैं कि उसी समय सुमित और उनके पिताजी घर में बड़ा सा सोफा लेकर आते हैं।
जिसे देखकर सास कहती है- अरे आप यह क्या लेकर आ गए? हमारे घर में तो पहले से ही सोफा रखा हुआ है और एक नया सोफा लेकर आए हैं, वह भी इतना बड़ा।
सुमित के पिता जी- तुम से किसी ने पूछा है क्या?
इसके बाद सुमित और पिताजी दोनों मिलकर सोफे को हॉल में सेट करने लगते हैं जिसे देखकर मधु सास से कहती है- देखा मम्मी जी मैं यही तो कह रही थी, हम चाहे उनके लिए कुछ भी कर ले लेकिन कभी भी इनके दिल में हमारे लिए इज्जत नहीं हो पाएगी क्योंकि यह कभी भी हमें खुद के बराबर समझते ही नहीं हैं।
मधु की सास अब समझ चुकी थी की मधु क्या बात करना चाहती है? मधु की सास को अपना समय याद आ गया जब वह नई नई बहू बनकर आई थी और तभी उनकी सास ने भी उन्हें ताना मारते हुए कहा था कि पता नहीं यह कैसे हमारा घर संभालेगी इसे तो कोई काम करना आता ही नहीं है? मां बाप ने इसे ऐसे ही भेज दिया।
हालांकि मधु की सास पढ़ी लिखी थी और शादी के पहले वह कहीं टीचिंग करती थी लेकिन शादी के बाद उनकी नौकरी छुड़वा दी गई और तभी से उन्होंने सोचा था कि जब भी उनके घर में उनकी बहू आएगी तो उसके साथ कभी भी गलत व्यवहार नहीं होने देंगी।
मधु भी पढ़ी लिखी है उससे भी बीएड किया है। अगर वह चाहे तो नौकरी कर सकती है लेकिन उसको अच्छी तरीके से पता है कि ससुर और सुमित कभी भी मधु को नौकरी करने नहीं देंगे।
मधु भी रोज-रोज के झगड़ों से तंग आ चुकी थी, वह सुमित के लिए कितना भी अच्छा काम क्यों ना कर ले कभी भी वह खुश नहीं होता और हमेशा उसकी तुलना अपने दोस्तों की पत्नियों से करता।
वह छुप छुप के रोया करती लेकिन अपनी परेशानी ज्यादा किसी को नहीं बताती। एक बार उसने सुमित से नौकरी करने की भी बात की थी लेकिन उसने तो मना ही कर दिया था तब से मधु भी चुप्पी साध रखी थी।
एक दिन मधु की सास- बेटा, तुमने तो B.Ed किया है, तो क्या तुम नौकरी करना नहीं चाहती?
मधु घबराते हुए- हां मम्मी जी मैंने B.Ed इसीलिए किया था ताकि मैं नौकरी कर सकूं और अपने परिवार का ख्याल भी रख सकूं। मेरे पापा मम्मी भी यही चाहते थे लेकिन सुमित को यह अच्छा नहीं लगता।
2 दिन बाद मधु की सास – बेटा तुम काम छोड़ दो मैं कर लूंगी? कॉलोनी के बाहर जो स्कूल है ना तुम वहां चली जाओ। वहां तुम्हारी नौकरी लग गई है मैंने वहां बात की है वह मेरी सहेली का ही स्कूल है।
मधु- लेकिन मम्मी जी मैं ऐसे कैसे जा सकती हूं? सुमित ने तो मुझे साफ-साफ कहा है कि मैं नौकरी नहीं कर सकती।
तभी उन लोगों की बात सुमित सुन लेता है और चिल्लाते हुए कहता है- क्या बोल रही हो तुम नौकरी करोगी?
मधु- जी वो मम्मी जी…
सुमित- क्या मम्मी जी? बिना मुझसे पूछे तुमने इतना बड़ा फैसला ले लिया और तुम्हें किस बात की कमी है जो तुम नौकरी करना चाहती हो?
उसी वक्त मधु की सास आगे आ जाती हैं और वह कहती हैं- क्या बुराई है अगर मधु नौकरी करें तो? तुम नहीं चाहते लेकिन मैं चाहती हूं कि वह जाकर नौकरी करें।
कमी सिर्फ पैसे की नहीं होती मान सम्मान और इज्जत की भी होती है, जो तुम उसे कभी दे नहीं सकते।
सुमित के पिता जी- अच्छा तो तुम ही हो जो उसे हवा दे रही हो, जानती नहीं यहां औरतों को फैसला लेने का कोई अधिकार नहीं है।
सास – आज तक जो मेरे साथ हुआ है मैं अपनी बहू के साथ नहीं होने दूंगी। मैंने अपने सपनों को दरकिनार कर दिया लेकिन मैं अपनी बहू को कभी ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं करूंगी जिसके लिए उसे अपना मन मारना पड़े।
मैं देखती हूं उसे नौकरी पर जाने से कौन रखता है?
और मधु नौकरी करने लगी और उसके अंदर आत्मविश्वास पैदा हो गया। धीरे धीरे उसके पास पैसे आने लगे जिसको वह अपनी सास को देने लगी क्योंकि आखिरकार सास की वजह से ही वह नौकरी कर सकी।
कुछ ही दिनों के बाद सुमित का बिजनेस सही तरीके से नहीं चल रहा था जिससे वह परेशान रहने लगा और उसकी परेशानी की वजह से वह ठीक से खाना भी नहीं खाता था। मधु घर आकर तरह-तरह के पकवान बनाती लेकिन सुमित का मन नहीं लग रहा था।
1 दिन सुमित ने मधु से कहा- मैंने हमेशा तुम्हारा अपमान किया। कभी भी तुम्हारा साथ नहीं दिया इसीलिए आज मेरे साथ ऐसा हो रहा है कि अब मेरा काम ठप पड़ चुका है। समझ में नहीं आता कि कैसे घर संभालू?
बस उसी समय सुमित की मां पैसे लेकर आती है और उन्हें सुमित को देती है। यह वही पैसे होते हैं जो मधु अपनी सैलरी के रूप अपनी सास को देती है। जिसे देखकर सुमित के आंखों में आंसू आ जाते हैं और सुमित के पिताजी भी भावुक हो जाते हैं।
पिता जी- सुमित की मां तुम भी कभी नौकरी करना चाहती थी लेकिन मैंने कभी साथ नहीं दिया और आज वही सब मैंने अपने बेटे को भी दिखाया लेकिन तुम्हारी बदौलत हमारी बहू आज अपने पैरों पर खड़ी है और हमारे लिए मेहनत कर रही है जो वह कर सकती है। मुझे अपनी बहू पर गर्व है।
मधु- मुझे तो इस बात की खुशी है कि आज आप दोनों की नजरों में मेरी और मम्मी जी की भी इज्जत बराबरी से हो रही है जिसके हम हकदार हैं।
पिता जी- हां बहू तुमने और तुम्हारी सास ने हमेशा घर की परिस्थिति के अनुसार खुद को ढाल लिया लेकिन हमने तुम्हें कभी भी सही नहीं माना हो सके तो हम दोनों को माफ कर देना।
ऐसा सुनते ही मधु की आंखों में आंसू आ जाते हैं और अब वह खुशी-खुशी खाना परोसने लगती है क्योंकि आज उसने सभी के पसंद का खाना बनाया है और दिल से वह बोझ उतर चुका है, जिसकी वजह से वह परेशान थी।
दोस्तों, हमें हमेशा हर इंसान को बराबरी का हक देना चाहिए फिर चाहे औरत हो या आदमी।
जीवन के संघर्ष में कब किसका समय बदल जाए यह कोई नहीं जानता? ऐसे में बेहतर यही है कि तालमेल बैठाकर कार्य किया जाए और कभी किसी को नीचा ना दिखाया जाए, तो इंसान का सर्वांगीण विकास हो सकता है।