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एक बार कानपूर शहर के छोटे से गांव में एक व्यापारी मोहनलाल रहता था। वह बहुत दयालु इंसान था और गरीबों की अक्सर मदद भी करता था। वह अपने व्यापार को और ज़्यादा विस्तृत करना चाहता था ताकि अधिक से अधिक धन कम सके, उसकी पत्नी का नाम रानी था। रानी ठाठ-बाट से अपनी ज़िन्दगी गुजारती थी, वह अपनी अमीरी का रौब पुरे गांव में झाड़ती थी।
कुछ गलत फैसलों की वजय से और एकाएक व्यापार को बड़ा करने के लिए मोहनलाल एक-दो महीने में ही अपने व्यापार में काफी घाटा होने लगा। मोहनलाल बड़ी परेशानी में आ गया था, अच्छे खासे फायदे के व्यापर से क़र्ज़ की ओर आ गया।
क़र्ज़ का पैसा भी काफी था, जिससे वह लगभग टूटने लगा और हर समय परेशान और चिंतित रहने लगा। मोहनलाल हनुमान जी का बड़ा भक्त था, उसे यह विश्वास था की बजरंग बली उसकी सहायता अवश्य करेंगे।
इन्ही सब कर्जो के बीच, बेखबर पत्नी महंगा हार खरीद लायी, मोहनलाल यह सब देखकर और सदमे में आ गया, हैरान और परेशान होकर वह नदी किनारे चला गया और रोने लगा।
मोहनलाल ने कहा –
“इतना कर्जा में कैसे चूका पाउँगा और रानी से क्या कहूंगा”
इतनी देर में नदी के पास एक अख़बार मिला, उसने वह अखबार उठाया। वह एक जादुई अखबार था
मोहनलाल ने एकाएक सोचा “कि आज सोमवार है तो मंगलवार का अखबार कहाँ से आया, जो दिनांक अभी आई ही नहीं उसका अखबार कैसे छाप लिया गया, यह कैसी माया हैं, या किसी मुर्ख ने ऐसा किया हैं?”
यह सब सोचते हुए मोहनलाल ने सारा अखबार और खबरे पढ़ डाली तभी वहां नदी के किनारे भगवान् जी प्रकट हुए।
दरअसल भगवान् जी उनकी परीक्षा लेना चाहते थे, मोहनलाल इस संकट की स्थिति में अपने आपको कैसे सँभालते
मोहनलाल ने कहा- “भगवन यह कैसा अखबार है, यह कैसा चमत्कार हैं“?
भगवान ने कहा- ” जादुई अखबार हैं यह, यह तुम्हारे पिछले कुछ पुण्य का फल हैं, इसमें अगले दिन (भविष्य) क्या होगा, व्यापर में तुम्हे सब पता चल जायेगा ”
मोहनलाल ने कहा- “भगवन यह मुझे नहीं चाहिए, यह तो अंन्याय ही होगा और प्रकृति के नियमो के प्रतिकूल होगा”
भगवान् ने कहा- ” वत्स, इसकी तुम्हे आवशयकता है, तुम अभी क़र्ज़ में डूबे हुए हो और एकाएक इससे उभरने का भी कोई रास्ता नहीं हैं तुम्हारे पास”
मोहनलाल ने फिर कहा- “नहीं भगवन”
भगवान ने कहा- “यह कुछ दिन अपने पास रखो और जब कर्जा उतर जाए तो यहीं नदी किनारे आकर आवाज़ लगाना, मैं प्रकट हो जाऊंगा और अखबार वापस ले लूंगा, मेरी बात याद रखना”
मोहनलाल ने दबे हुए स्वर में कहा- ठीक है भगवन! “मैं आपको वचन देता हूँ कि कर्जा समाप्त होते ही मैं यह अखबार वापस कर दूंगा”
भगवन अंतर्ध्यान हो गए, भगवान ने अंतर्ध्यान होने से पहले एक शर्त और रखी थी और वो यह थी कि अगर वह इस अखबार के बारे में किसी और को बताएगा तो यह अखबार अपने आप गायब हो जाएगा और उसके साथ आई हुई धनराशि भी गायब हो जाएगी।
मोहनलाल आश्वस्त होकर अपने घर की ओर चला दिया, मोहनलाल अखबार को अपने पास में रखता और उसने इसके बारे में किसी से कोई चर्चा नहीं की, जादूई अखबार भविष्यकाल में होने वाले व्यापार के सनसनी खबर पहले से मोहनलाल को सूचित कर देता और उस हिसाब से मोहनलाल व्यापार में पैसो का निवेश करता।
और उसी के अनुरूप उसे शीघ्र ही व्यपार में मुनाफा होने लगा। पति को व्यापार में फलता-फूलता देख रानी भी काफी खुश रहने लगी, कुछ ही दिनों में मोहनलाल को इतना मुनाफा हुआ कि जिसकी उसने उसकी कल्पना तक नहीं की थी। रानी ने अपने लिए कई गहने ख़रीदे और पहले से अधिक उसमे घमंड आ गया।
रानी ने मोहनलाल से पूछा कि मात्र एक महीने हम इतने धनवान कैसे हो गए? क्या आपको नहीं लगता कि यह एक चमत्कार हैं?
मोहनलाल तो यह सब जानता ही था, किन्तु वह यह भी जानता कि अगर उसने उस जादुई अखबार के बारें में किसी को भी बताया तो वह गायब हो जाएगा, वह उस अखबार को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था क्योकि वह जानता था कि इतना बड़ा कर्जा केवल भविष्य की बातो को जानकार और उसके अनुसार निवेश करके ही उतारा गया हैं।
यह सब ख्याल करके उसने पत्नी को बात को टाल दिया, मोहनलाल ने आदतन गरीबों की सेवा करना नहीं छोड़ा, जोकि उसके स्वभाव में था।
मोहनलाल एक ही अखबार को अक्सर अपने पास ही रखता था, न वह किसी को इस बारे में बताता था और न ही किसी को वह अखबार पढने के लिए देता था, यह सब रानी काफी दिनों से देख रही थी और उसको इस बात का शक हुआ। यहाँ तक की मोहनलाल अखबार को अपने सिराहने ही रखकर रात को सोता था, ताकि किसी को इस बात का पता लगे।
2 महीने बीत गए थे, और मोहनलाल ने सारा कर्जा तो चूका ही दिया था और बहुत सारा लाभ भी हो गया था व्यपार में, लेकिन वचन के अनुसार उसने जादुई अखबार वापस नहीं किया था, वह बहुत सारा पैसा कमाना चाहता था और रोजाना यही सोचता था कि थोडा सा और कमा लू फिर लौटा दूंगा, भगवान कहाँ भागे जा रहे हैं।
एक दिन सुबह होते ही मोहनलाल को सिराहने के पास अखबार नहीं मिला, वह रोजाना सुबह उठते ही अखबार पढता था, अखबार न पाकर वह हड़बड़ा गया।
वह देखता हैं रानी उस अखबार को पढ़ रही थी, जैसे ही मोहनलाल ने उससे अखबार लेने की कोशिश कि भगवान की शर्त के अनुसार अखबार गायब हो गया।
और अखबार के साथ सारी कमाई जो कि पिछले 2 महीनो में हुयी थी वह भी ग़ायब हो गयी। मोहनलाल ने अपनी पत्नी रानी को डांटा, रानी रोने लगी और पूरी बात सुनकर उसे अपनी द्वारा अनजाने में की गई गलती का अहसास हुआ और पछताने लगी।
मोहनलाल ने कहा- “अब अफ़सोस करने का क्या फ़ायदा?”
तभी भगवान् जी प्रकट हुए और कहा- “मोहनलाल तुम्हारा कर्जा बहुत पहले ही चूक गया था लेकिन तुमने अखबार वापस नहीं किया, मैंने यह अखबार केवल तुम्हारा कर्जा आसानी से चूक जाए, केवल इसलिए दिया था, परन्तु तुमने इस अनावश्यक धन कमाया हैं, यह पाप का धन हैं जो स्वत: ही लुप्त हो गया”
रानी ने कहा- “इन्हे माफ़ कर दीजिये, हमे फिर से धनवान बना दीजिये”
मोहनलाल ने कहा- “नहीं भगवन! मुझे माफ़ कीजिये, मैं अधिक से अधिक धन कमाने के लालच में पड़ गया था, इसलिए अखबार वापस नहीं किया, मैं इसी के लायक हूँ।
भगवन ने कहा- “लालच बुरी बला है और इससे व्यक्ति पाप के मार्ग को भी अपना सकता हैं और इसमें इसमें अच्छे खासे लोग भी फँस जाते है और समय बीत जाने पर पाप की सजा मिलती हैं तब विलाप करते हैं।
परन्तु तुम एक नेक दिल इंसान हो और नित्य गरीबो की सहायता करते हो, इसलिए मैं तुम्हारी सारी जादूई अखबार से की गयी कमाई मैं वापस लेता हूँ परन्तु तुम्हारा कर्जा माफ़ हो जायेगा, केवल अधिक कमाया हुआ धन (लालच में आकर) ही लुप्त होगा।
मोहनलाल ने कहा- “क्षमा प्रभु, आपका अंतर्मन से धन्यवाद करता हूँ, मैं आगे चलकर भी व्यापार में इसका ध्यान रखूँगा और लालच की राह पर कदापि नहीं चलूँगा”
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि
अत्यधिक लालच करना बुरी बात होती है, लालच की राह पर इंसान इतना अँधा हो जाता है कि सही और गलत का फ़र्क़ भी भूल जाता है।
जब इंसान के मन में लालच जन्म लेता है तो उसकी अंदर की संतुष्टि असंतुष्टि में बदल जाती है वह लालच के गहरे जाल में फंस जाता है जिससे निकलना नामुमकिन हो जाता है।
द्वारा- रीमा बोस
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