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खास मित्र के साथ दो कप चाय : Hindi Moral Story

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दोस्तों, Life में सब कुछ एक साथ और जल्दी जल्दी करने की इच्छा लगभग हम सभी की ही होती हैं, सभी अच्छा पैसा कमाना चाहते हैं, घूमना चाहते हैं, बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि शरीर और ज़िन्दगी खत्म हो जाती हैं लेकिन इच्छाएं नहीं, एक चीज मिल जाती हैं तो मन दुसरे की कामना करने लगता हैं, यह भी चाहिए वह भी, इससे अच्छा और अच्छा, इससे बड़ा…. बस इन सभी को प्राप्त करते करते ही जिंदगी बीत जाती हैं।

इन सभी को जल्दी प्राप्त करने के लिए हमें अधिक मेहनत करनी पड़ती हैं और इसी बीच हमें दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ने लगते हैं।

अब सवाल?

क्या हमें इच्छाएँ नहीं रखनी चाहिए? क्या इच्छा रखना गलत बात हैं? और क्या इन इच्छाओं को सच में बदलना गलत बात हैं, इसके लिए मेहनत करना, क्या गलत हैं??

मेरी राय में तो नहीं, बिल्कुल नहीं, बिना इच्छाओं के जीवन भी कोई जीवन हैं? इस धरती पर मनुष्य रूप में जन्म लेकर इच्छाएं नहीं रखी, उनको साकार करने के लिए मेहनत नहीं करीं तो फिर मेरी राय में जीवन व्यर्थ ही व्यतीत हो रहा हैं, बिना संकल्प और आशा के जीना केवल टाइम पास करना हैं?

लेकिन…

केवल अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अन्य अति महत्वपूर्ण बातों को भूल जाना भी अच्छा नहीं हैं। याद रखे समय लौट कर नहीं आता, किसी के लिए भी और किसी भी कीमत पर नहीं, ऐसे में अगर आप अभी जिन चीजो को महत्वहीन समझ कर ऐसे ही जाने दे रहो हो, भविष्य में आप भूतकाल में आकर उन सभी चीजो और पलो का आनंद लेना चाहोगे, वही सब जो आप अपने लक्ष्य अपनी इच्छाओं को प्राप्त करते समय भूल गए थे या फिर यह कह लीजिए कि आपने उन सबको आपने उस समय महत्व नहीं दिया था और इससे आपको पश्चाताप होगा।

आइयें, इन सब बातों को एक बहुत ही सुन्दर कहानी के माध्यम से समझते हैं।

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आएं और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं।

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की एक बडी़ बरनी (जार) को टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे, जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची।

उन्होंने छात्रों से पूछा – क्या बरनी पूरी भर गई हैं?
हाँ.. सभी छात्रों ने मिलकर एक आवाज में कहा।

फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे जार को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी, समा गये, फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है?

छात्रों ने एक बार फ़िर सोचकर हामी भरी… हाँ जी सर, जार अब भर गया हैं।

अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हंसने लगे।

फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई हैं ना?
हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा।

सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें भरी चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई।

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –

इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो।

टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ है।

अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी।
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है।

यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय ही नहीं बचेगा।

मन के सुख के लिये क्या जरूरी है यह तुम्हें तय करना है। अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक – अप करवाओ आदि आदि।

टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र सबसे पहले करो, वही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।

 

पहले तय करो कि क्या जरूरी है? …बाकी सब तो रेत है जैसा कि आप सबने देखा वह तो जार भरने के बाद भी समां सकता हैं, प्रोफेसर ने हँसते हुए कहा।

छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे। तभी अचानक एक ने पूछा, श्रीमान लेकिन आपने यह नहीं बताया कि “चाय के दो कप” क्या हैं?

प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले ..मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया

इसका उत्तर यह है कि जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह और समय हमेशा होना चाहिये


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