अमित एक बहुत ही होनहार लड़का था, जो हमेशा ही ईमानदारी के साथ अपनी पढ़ाई पर ध्यान देता और हमेशा अपने पिताजी के काम में मदद भी कर दिया करता था। ऐसे तो वह बस सिर्फ 12वीं कक्षा का छात्र था लेकिन फिर भी उसमे गजब का आत्मविश्वास था कि वह अकेले ही अपने पिता का काम संभाल लेता था और साथ मैं पढ़ाई पर भी ध्यान देता था।
अमित की मां का देहांत 2 साल पहले ही हो चुका था और उसकी एक छोटी बहन थी जो स्कूल जाती थी लेकिन कभी-कभी इसे भी स्कूल से छुट्टी लेनी पड़ती थी क्योंकि अमित के पिताजी सही समय पर उसके स्कूल की फीस जमा नहीं करवा पाते थे।
छोटी बहन को पढ़ाई का शौक नहीं था लेकिन फिर भी अपने भाई के कहने पर वह पढ़ाई करने लगती थी।
1 दिन छोटी बहन के पड़ोस में रहने वाली उसकी सहेली ने उसे अपने बर्थडे में आने के लिए कहा था साथ में उसे रेड कलर की ड्रेस पहनने को कहा क्योंकि उसकी बर्थडे पार्टी की थीम रेड कलर थी।
अमित की बहन इतनी समझदार नहीं थी और वह बार-बार अपने भाई से जिद करने लगी- भैया मुझे नई ड्रेस खरीद कर देना। कल मुझे अमृता के बर्थडे में जाना हैं, जहां Red कलर पहनना होगा। ऐसे में अगर मैं नहीं पहनूंगी तो लोग मेरी हंसी उड़ाएंगे और मुझसे कोई दोस्ती नहीं करेगा।
अमित- अरे ड्रेस से क्या लेना-देना हैं तू बस उस पार्टी में जाकर मजे करके आना।
बहन रोते हुए- नहीं भैया मुझे तो वही ड्रेस चाहिए नहीं तो मैं बर्थडे पार्टी मैं नहीं जा पाऊंगी।
अमित अपनी बहन से बहुत प्यार करता था और इसी वजह से उसने अपनी बहन के लिए नई ड्रेस ला कर दे दी जो लगभग 1500 रुपयों की थी और जिसके लिए उसने अपने दोस्त से उधार भी ले लिया था। ऐसे तो वह बहुत स्वाभिमानी था लेकिन अपनी बहन के आगे वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था।
अमित के पिताजी- तू अपनी बहन को बिगाड़ते जा रहा हैं। दिन-ब-दिन उसकी ख्वाहिश बढ़ती ही जा रही हैं। देख बेटा उसके अंदर भी तो यह समझदारी होनी चाहिए कि वह हमारी मजबूरी को समझ सके, हम इतने पैसे वाले नहीं हैंं।
यह सब बातें दूर से ही अमित की बहन सुन रही थी और उसे यह सुनकर अच्छा नहीं लगा कि उसके पिताजी ने उसे कुछ भी देने से मना किया और उसे समझदार होने की बात की हैं। उसके हिसाब से तो वही सबसे समझदार लड़की थी।
उसने अपने पिताजी और भाई की मजबूरी को भी सुनते हुए नजरअंदाज कर दिया था क्योंकि उसे तो अपनी मनमर्जी का हर वह सामान मिल जाता था, जो वह चाहती थी।
अमित दिन भर अपना काम करता और रात में पढ़ाई किया करता था। वह अपनी पढ़ाई को छोड़ना नहीं चाहता था। यूं ही 1 दिन वह पढ़ाई कर रहा होता हैं अचानक उसके दोस्त राजीव का फोन आता हैं, जो उससे कल होने वाली पार्टी में चलने के लिए कहता हैं।
राजीव- अरे चल ना यार वैसे भी तू रोज-रोज काम करता हैं। कभी हम दोस्तों के लिए भी समय निकाल लिया कर।
अमित- हां हां क्यों नहीं मैं भी तुम लोगों के साथ चलना चाहता हूं लेकिन क्या करूं मजबूरी हैं? मेरे पास तो पहनने के लिए अच्छे कपड़े भी नहीं हैं और ना ही मैं अपने पिताजी को ऐसी कोई ख्वाहिश करना चाहता हूं ताकि मेरे पिताजी परेशान हो जाए।
राजीव के बहुत कहने पर भी अमित तैयार नहीं होता और वह हमेशा पढ़ाई पर ही ध्यान लगाना चाहता हैं। यह सब बात सोते हुए अमित की बहन सुन लेती हैं जिसे थोड़ा थोड़ा अफसोस होने लगता हैं कि जो भाई उसके लिए सब कुछ करने को तैयार हैंं, वह खुद के लिए कभी कुछ कर ही नहीं पाता हैं।
ऐसे में अचानक ही अमित के पिताजी को किसी दूसरे शहर जाना पड़ा जहां पर कुछ जरूरी काम आ पड़ा था।
अमित की बहन- भाई मेरी सहेली बता रही थी कि शहर के मॉल में एक बहुत अच्छी प्रदर्शनी लगी हैं जहां पर बहुत तरह तरह के डिजाइनर कपड़े मिल रहे हैंं, वह भी सस्ते दामों में। मुझे भी वहां से कोई अच्छी सी ड्रेस लेकर दे दो ना जिसे मैं अपने बर्थडे में पहन सकूं और मेरी सहेलियों को नीचा दिखा सकूं।
अमित- तुम यह गलत सोच रही हो। हमें कभी किसी को नीचा नहीं दिखाना चाहिए बल्कि अपने कर्मों पर भरोसा रखना चाहिए।
बहन- भैया आप ही मुझे दिला सकते हैंं, नहीं तो पिताजी तो हमें लेने ही ना दें। दिनभर अपनी मजबूरी बताते रहते हैं और कभी मेरा ध्यान भी नहीं रखते हैंं।
अमित उस समय चुप हो जाता हैं क्योंकि उसे अपने पिताजी की मजबूरी अच्छे से मालूम हैं लेकिन छोटी बहन इन सब बातों से अनजान थी। तभी अमित को ख्याल आता हैं कि उस प्रदर्शनी में जाने के लिए महंगे पास की जरूरत पड़ती हैं, जो उसके पास नहीं हैं। ऐसे में वह दौड़ कर अपने गुल्लक को टटोलने लगता हैं और एक-एक करके पैसे जोड़ने लगता हैं ताकि वह अपनी बहन के लिए उस प्रदर्शनी के पास उपलब्ध करवा सकें।
यह सब देख कर अमित की बहन का कलेजा फट पड़ता हैं और उसे जोर से रोना आ जाता हैं उसे रोता हुआ देखकर अमित दौड़कर बहन के पास जाता हैं- क्या हुआ? तुम इस तरह से क्यों रो रही हो?
बहन रोते हुए- आज तक आपने हमेशा मेरी खुशियों का ख्याल रखा। हर वह चीज मुझे दिलाई जो मैं मांगती रही लेकिन कभी भी मैंने आपसे यह नहीं पूछा कि आखिर आप इन पैसों का इंतजाम कहां से करते हैंं? लेकिन आपको एक एक रुपए जोड़ते देखकर मुझे बहुत दुख हुआ कि आप मेरी खुशी के लिए इतना कुछ कर सकते हैं लेकिन मैं हमेशा स्वार्थी बनी रही।
अमित- अरे इतना सोचने की जरूरत नहीं हैं आखिर मैं तेरा बड़ा भाई हूं मैं नहीं करूंगा तो कौन करेगा?
बस उसी वक्त अमित की बहन दौड़ कर अपने बैग से एक चीज निकाल कर लाती हैं और अमित की आंखों में हाथ रखकर कहती – मैं आपके लिए कुछ लेकर आई हूं।
इस बात से अमित चौक जाता हैं और जैसे ही वह अपनी आंखों से बहन का हाथ हटाता हैं, तो देखता हैं उसकी बहन उसके लिए एक सुंदर सी शर्ट लेकर आई हैं।
अमित आश्चर्य से- यह तो बड़ी महंगी लगती हैं, पर तुम कहां से लेकर आई?
बहन- आपने जो मुझे थोड़े-थोड़े करके मेरे खर्चे के लिए पैसे दिए थे ना मैंने उसे ही जोड़ कर रखा था कि मैं उससे अपने लिए कोई अच्छी ड्रेस खरीद लूंगी लेकिन जब मैंने आपके दोस्त की बात सुनी और आपने उसे पार्टी में जाने के लिए मना कर दिया बस मैंने उसी समय ठान लिया था कि मैं आपको एक खूबसूरत सी शर्ट ले कर दूंगी।
उम्मीद करती हूं आपको यह शर्ट पसंद आएगी।
अमित खुश होते हुए- अरे यह तो बहुत ही अच्छी हैं। मैं तो सोच भी नहीं सकता कि मेरे लिए कोई इतना भी कर सकता हैं।
बहन भावुक होते हुए- यह तो मेरी तरफ से एक छोटा सा तोहफा हैं लेकिन आज तक आपने जो मुझे प्यार और सम्मान दिया हैं उसकी तो कोई भी तुलना नहीं की जा सकती। अब मैं हमेशा आपका और पिताजी का हाथ बटाऊंगी और कभी भी फिजूल खर्च नहीं करूंगी।वह बात सही हैं जितनी चादर होती हैं हमें पैर भी उतना ही फैलाना चाहिए।
बहन की समझदारी वाली बातों को सुनकर अमित की आंखों में भी आंसू आ जाते हैं और तभी पिताजी वहां खड़े होकर उन दोनों को देखने लगते हैं। अब पिताजी की आंखों में भी अमित के साथ साथ बहन के लिए भी गर्व के भाव आ जाते हैं और वे दोनों बच्चों को गले से लगा लेते हैं।
Final Word
खुशियां हमेशा छोटी छोटी घटनाओं, छोटे छोटे Moments में छुपे हुए होते हैं।
कभी भी लाइफ में किसी के लिए कुछ बड़ा प्लान करने के बजाए किसी के लिए एक छोटा सा प्रयास भी बहुत मायने रखता हैं।
किसी के लिए एक बड़ा महंगा उपहार खरीदने के बजाय किसी के साथ दो पल बैठ कर उससे बात कर लेना भी एक बहुत बढ़िया उपहार होता हैं।
लाइफ में कभी कभी ऐसा भी होता हैं कि किसी को हमारा महंगे लाखों के गिफ्ट्स में कोई रुचि नहीं होती हैं, उनके साथ सब एक शाम गुजार ले वो भी बहुत होता हैं।
लेकिन बदलते दुनिया और इस जीवन की आपाधापी में हम इतने मशगूल होते हैं कि किसी को अपना समय भी नहीं दे पाते हैं।
जहां तक मेरा मानना हैं कि किसी के लिए किसी का सबसे बड़ा उपहार किसी को वक़्त देना होता हैं कि कोई कोई भी किसी को जब अपना वक़्त देता हैं तो वह उसको सिर्फ अपना वक़्त नहीं दे रहा होता हैं, वह अपने जीवन का एक हिस्सा या ऐसे कहे तो वह अपना जीवन दे रहा होता हैं।
जीवन में सबसे जरूरी चार लोगों के साथ अपना समय बिताना और उनके सुख दुख में शामिल होना यही तो जीवन हैं इससे इतर और कहीं जीवन थोड़े हैं।
बस काफी लोग इसी खूबसूरत और अनमोल रिश्ते को सहेज नहीं पाते हैं, ये हमारे लिए किसी कीमती रिश्ते किसी महंगे गिफ्ट से कम नहीं होते।
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