चौदहवीं सदी में अमीर ख़ुसरो का नाम हर किसी के जुबान पर था! अमीर ख़ुसरो एक बहुत ही मशहूर कवि, लेखक, गायक और संगीतकार थे। अमीर ख़ुसरो का परिवार राजघरानों के दरबार से ताल्लुक रखता था। हिंदी शब्दों का प्रयोग अपनी कविताओं में सबसे ज्यादा करने वाले मुस्लिम कवि अमीर ख़ुसरो थे।
अमीर ख़ुसरो ने खड़ी बोली हिंदी भाषा का भी आविष्कार किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि अमीर ख़ुसरो ज्यादातर पहेलियों और मुकरियों से बातें करते थे। अमीर ख़ुसरो ने सर्वप्रथम अपने भाषा का उल्लेख करने के लिए हिन्दवी शब्द का प्रयोग किया था।
अमीर ख़ुसरो हिंदी में लिखने के साथ-साथ फारसी में भी लिखते थे। इस लेख में आप को अमीर ख़ुसरो के बारे में गहन जानकारी प्राप्त होगी।
अमीर ख़ुसरो जीवनी
1235 ईसवी में उत्तर प्रदेश के एटा जिले के पटियाली गांव में पैदा हुए अमीर ख़ुसरो को तूती ए हिंद के नाम से भी पहचाना जाता है। अमीर ख़ुसरो मुख्य तौर पर अपनी सूफी रचनाओं, पहेलियों और सूफी गीतों के लिए जाने जाते है इनका पूरा नाम अमीर खुसरो देहलवी था और इनका असली नाम जो इनके पिताजी ने रखा था वह अबुल हसन था। अमीर ख़ुसरो लाचन जाति से संबंध रखते थे।
अमीर ख़ुसरो का व्यक्तिगत परिचय
नाम | कवि अमीर खुसरो |
जन्म | सन् 1235 |
जन्म स्थान | उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | तुर्क सैफुद्दीन |
माता का नाम | बलबनके |
पत्नी का नाम | ज्ञात नहीं |
पेशा | कवि, संगीतकार |
बच्चे | ज्ञात नहीं |
मृत्यु | अक्टूबर 1325 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
भाई-बहन | ज्ञात नहीं |
अवार्ड | ज्ञात नहीं |
अमीर ख़ुसरो का प्रारंभिक जीवन
एक संगीतकार के रूप में प्रख्यात अमीर ख़ुसरो का जन्म देश के उत्तर प्रदेश राज्य के एटा जिले के पटियाली नाम के कस्बे में 1253 ईस्वी में हुआ था।
अमीर ख़ुसरो जब पैदा हुए थे तब उनके पिताजी ने इनका नाम अमीर ख़ुसरो नहीं बल्कि “अबुल हसन” रखा था, परंतु बाद में प्रसिद्धि पाने के कारण इनका नाम अमीर ख़ुसरो के तहत ही जाना गया।
अमीर ख़ुसरो के पिता का नाम सैफुद्दीन था, जो कि मध्य एशिया की लाचन नाम की जाति से तालुकात रखते थे।
जब चंगेज खान ने लगातार आक्रमण करके कई राज्यों को जीत लिया था, तो आक्रमण करते करते वह लाचन जाति के डेरे के पास भी पहुंचे और वहां पर भी चंगेज खान ने काफी ज्यादा लूटपाट की, जिसके कारण लाचन जाति के लोग परेशान होकर बलबन राज्य(1266-1286) में शरणार्थी के तौर पर आकर इंडिया में रहने लगे और फिर उन्होंने इंडिया को ही अपना ठिकाना बना लिया।
अमीर खुसरो के जन्म स्थान के बारे में एकमत नहीं है, अलग-अलग लोगों की इनके जन्म स्थान के बारे में भिन्न भिन्न राय है। कई लोग ऐसा कहते हैं कि, अमीर ख़ुसरो का जन्म देश के उत्तर प्रदेश राज्य के पटियाली नाम के गांव में हुआ था, जो कि उत्तर प्रदेश के एटा जिले में आता है, वही कई लोग ऐसा मानते हैं कि इनका जन्म वहां पर नहीं हुआ था।
हुमायूं शहंशाह के राज के दौरान हामिद बिन फजलुल्लाह जमाली ने सबसे पहले अपनी रचना ‘तज़किरा’ सैरुल आरफ़ीन’ मे अमीर ख़ुसरो के पैदा होने की जगह को पटियाली बताया था और उसी के आधार पर आगे चलकर के कई लोगों ने अमीर ख़ुसरो का जन्म स्थान पटियाली ही माना।
इसके अलावा हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी भाषा की भी कई किताबों में अमीर ख़ुसरो का जन्म पटियाली में ही माना गया है।
अमीर ख़ुसरो का परिवार
अमीर ख़ुसरो के पिताजी का नाम सैफुद्दीन था और इनकी माता जी का नाम बलबनके था। अमीर ख़ुसरो की माता जी से जुड़ा एक दिलचस्प तथ्य यह है कि इनकी माताजी मुसलमान नहीं बल्कि हिंदू थी परंतु शादी करने के बाद उन्होंने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया।
इनकी माता जी की मातृभाषा हिंदी थी। इस प्रकार अमीर ख़ुसरो को भी हिंदी भाषा की बढ़िया जानकारी आगे चलकर प्राप्त हुई। अमीर ख़ुसरो के नाना का नाम एमादुलमुल्क था। अमीर ख़ुसरो के नाना जी भी पहले हिंदू ही थे और उनके घर में सारे हिंदू त्यौहार मनाए जाते थे और हिंदू परंपरा का भी पालन किया जाता था।
उनका परिवार दिल्ली में रहता थे। कई लोगों के अनुसार यह कुल तीन भाई थे, जिन्होने बाद में आगे चलकर इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था।
अमीर ख़ुसरो का बचपन
जब अमीर ख़ुसरो पैदा हुए थे,तो 5 साल की उम्र आते आते इनकी कविता में रुचि होने लगी थी। वे कविता कहने में भी इंटरेस्ट रखते थे और कविता लिखने में भी इंटरेस्ट रखते थे।
अमीर खुसरो की नानी के घर में संगीत मय माहौल रहता था और उनके नाना जी को खाने पीने का बहुत ही ज्यादा शौक था, जिसके कारण अमीर ख़ुसरो की जिंदगी में अपने नानी के घर के माहौल का काफी ज्यादा असर पड़ा।
अमीर ख़ुसरो के नाना और अमीर ख़ुसरो के पिता दोनों इस्लाम धर्म के महान सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया के बहुत ही बड़े भक्त थे और वह उनका सच्चे दिल से सम्मान करते थे और उनकी सेवा करते थे।
अमीर ख़ुसरो की पूरी फैमिली ने हजरत निजामुद्दीन औलिया साहब से धर्मदीक्षा प्राप्त की थी।
जब अमीर ख़ुसरो की फैमिली ने हजरत निजामुद्दीन औलिया से धर्म दीक्षा प्राप्त की थी, तब अमीर ख़ुसरो की उम्र सिर्फ 7 साल की थी। 7 साल की उम्र मे हीं अमीर ख़ुसरो के पिताजी का निधन हो गया था, परंतु उनके निधन के बावजूद भी इनकी शिक्षा में किसी भी प्रकार की कोई भी समस्या उत्पन्न नहीं हुई।
जब अमीर ख़ुसरो 8 साल के हुए, इन्होंने हजरत निजामुद्दीन औलिया को अपना गुरु बनाया और खुद उनके शिष्य बन गए। उसके बाद ऐसा माना जाता है कि हजरत निजामुद्दीन औलिया की प्रेरणा से ही अमीर ख़ुसरो ने काव्य साधना शुरू की थी।
ऐसा भी माना जाता है कि हजरत निजामुद्दीन औलिया गुरु साहब के प्रभाव के कारण ही राज दरबार में रहने के बावजूद भी अमीर ख़ुसरो के मन से कभी भी हजरत निजामुद्दीन औलिया के प्रति सम्मान में कमी नहीं आई।
जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि जब अमीर ख़ुसरो किशोरावस्था में पहुंचे तो ही उन्होंने काव्य लिखना स्टार्ट कर दिया तभी से उन्होंने 20 साल की उम्र को पार करते करते विभिन्न प्रकार के काव्य की रचनाएं करनी शुरू कर दी थी।
अमीर ख़ुसरो का संगीत में योगदान
बता दें जितना लगाव अमीर ख़ुसरो को साहित्य से था, उतना ही लगाव अमीर ख़ुसरो को संगीत से भी था और इसीलिए उन्होंने भारतीय संगीत के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान भी दिया था।
अमीर ख़ुसरो ने ईरानी राग और भारतीय राग का सुंदर मिश्रण तैयार किया था और उन्होंने एक नए राग शैली इमान, जिल्फ़, साजगरी को पैदा किया। आज के टाइम में हम और आप जो कव्वाली और सितार सुनते हैं, उसके बारे में भी ऐसा कहा जाता है कि अमीर ख़ुसरो की ही यह देनदारी है।
अमीर ख़ुसरो ने गाने की तर्ज पर अरबी ग़ज़ल और फारसी भाषा की ग़ज़ल को मिलाकर कई पहेलियां और दोहे लिखने का काम भी किया था।
अमीर ख़ुसरो और तबला
वैसे तो कई लोगों का यह कहना है कि तबला यंत्र का आविष्कार हजारों साल पहले ही हो गया था, परंतु कुछ जानकारियों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि अमीर ख़ुसरो ने 13वीं शताब्दी में पखावज के दो टुकड़े करके तबला बनाने का काम किया था।
अमीर ख़ुसरो के कौशल
अमीर ख़ुसरो को सिर्फ हिंदी भाषा ही नहीं बल्कि उन्हें अरबी, संस्कृत,फारसी, तुर्की भाषा का भी काफी अच्छा ज्ञान था। इसके अलावा उन्हें इतिहास, युद्ध रणनीति, व्याकरण, ज्योतिस संगीत, धर्म शास्त्र और दर्शन की भी काफी अच्छी नॉलेज थी, क्योंकि उन्होंने इन सभी वस्तुओं की काफी अच्छे से स्टडी की थी।
अमीर ख़ुसरो का विवाह और संतान
वैसे तो अमीर ख़ुसरो की शादी के बारे में कहीं पर भी किसी भी प्रकार का जिक्र नहीं है, परंतु ऐसा निश्चित तौर पर कहा जाता है कि, उनकी शादी अवश्य हुई थी।
अमीर ख़ुसरो के द्वारा लिखी गई पुस्तक “लैला मजनू” से इस बात की जानकारी प्राप्त होती है कि उनकी शादी हुई थी और शादी होने के बाद उन्हें अपनी पत्नी से एक पुत्री की प्राप्ति भी हुई थी, जिसका उन्हें काफी दुख था।
उन्होंने अपने उस ग्रंथ में यह बताया था कि या तो तुम इस धरती पर आती नहीं और अगर आती तो तुम पुत्र बन करके आती।
अमीर ख़ुसरो की बेटी होने के अलावा उनके तीन बेटे भी थे, जिनमें से एक बेटे का नाम मलिक अहमद था, जो कि कवि थे और कविता लिखने का काम करते थे। वह सुल्तान फिरोज शाह के दरबार से संबंध रखते थे।
अमीर खुसरो के फारसी ग्रंथ
- तुहका-तुस-सिग्र
- गुर्र-तुल-कमाल
- बकिया नकिया
- निहातयुल कमाल
अमीर खुसरो की मसनवियाँ
- किरान-उस-सादैन
- मिफ्ताहुल-फुतूह
- देवल रानी खिज्र खाँ या इश्किया या खिज्रनामा
- नुह सिपेहर
- तुगलक नामा
- खम्सा-ए-खुसरो
- क.हश्त-बहिश्त
- ख.मतला उल अनवार
- ग.शीरी व खुसरो
- घ.मजनू व लैला
- ञ.आइने-सिकन्दरी
- मसनवी शिकायत नामा मोमिन परु पटियाली।
अमीर खुसरो की गद्य रचनाएं
- एज़ाजे खुसरवी
- खजाइन-उल-फुतूह या तारीखे-अलाई
- अफजलुल फ़वायद
- किस्सा चार दरवे
- राहतुल मुहिब्बीन
- इनशाए खुसरो
- मकाल: तारीखुल खुलफा
अमीर खुसरो की हिन्दी रचनाए
- खालिक बारी
- दीवाने हिन्दवी
- हालात-ए-कन्हैया
अमीर ख़ुसरो की मृत्यु
मान्यता है अमीर ख़ुसरो की मृत्यु दिल्ली में 1325 ईस्वी में हुई थी।
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