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बच्चों में तनाव, परीक्षा और पैरेंट्स की जिम्मेदारी

जब हम छोटे होते हैं तो परीक्षा आने के 1 महीने पहले से ही कोई बच्चा सोचता है अब परीक्षाओं में क्या होगा? तो किसी के मन में यह डर रहता है कि मैं कहीं फेल ना हो जाऊं? तो किसी के दिमाग में सबसे अधिक अंक लाने का दबाव रहता है।

ये सब सोचकर बच्चे ज्यादा से ज्यादा तनाव में रहते हैं। अधिकांश बच्चे आजकल परीक्षा में पेरेंट्स की उम्मीदों के चलते दबाव महसूस करते है। जिस कारण वे तनाव से घिरे रहते हैं।

परंतु “तनाव” हमारे जीवन में सबसे खराब और खतरनाक चीज साबित होती है, इसके चलते इंसान के मस्तिस्क में कोई भी अच्छे विचार व जीवन जीने की कला समझ नहीं आती, उसे एहसास ही नहीं हो पाता है कि वह एक जीवन जी रहा है, उसका लक्ष्य क्या है और उसे क्या करना है?

तनाव शब्द खतरनाक बिमारियों में से ऐसी बिमारी है इसके चलते अच्छे-अच्छे लोग बर्बाद हो जाते हैं और उन्हें अपनी बर्बादी का कारण महसूस भी नहीं हो पाता कि वे लोग बिना किसी गलती के बुरी बीमारी के शिकार हो गए।

और स्कूली बच्चों में आने वाले इस तनाव का मुख्य कारण कई बार सिर्फ पेरेंट्स होते हैं। जो अक्सर अपने बच्चों की तुलना अन्य बच्चों से करके उनका आत्मविश्वास, आत्मसमर्पण कम कर देते हैं।

हमें अपने बच्चों की तुलना कभी भी अन्य बच्चों से नहीं करनी चाहिए क्योंकि बहुत सारे कारण होते हैं जिसके कारण प्रत्येक बच्चा एक समान शिक्षार्थ नहीं हो पाता। आइए विस्तार से समझते हैं

बच्चों में परीक्षा से होने वाले तनाव का कारण?

बच्चों के अंदर परीक्षा की वजह से पैदा होने वाले तनाव के मुख्यतः निम्न कारण होते हैं।

इसके अलावा माता-पिता भी अपने बच्चों को सिर्फ परीक्षा के समय ही पढ़ने के लिए मजबूर करते हैं, ना ही साल भर उनके माता-पिता अपने बच्चों में ध्यान देते हैं, उनका मानना होता है कि उनके बच्चे पढ़ लिखकर अच्छे नंबर लाएं और अपने माता-पिता का नाम रोशन करें।

परंतु उन्हें यह समझ नहीं आता है कि जिस बच्चे ने साल भर कुछ भी नहीं पढ़ा हो वह परीक्षा के समय पढ़कर ही किस प्रकार उनका नाम रोशन करेगा?

एक कारण यह भी बच्चों के तनाव का रहा है कि माता पिता अपने बच्चों की तुलना अन्य बच्चों के साथ कर बैठते हैं और अपने बच्चों को वे लोग स्वयं एक लक्ष्य बनाकर उसे करने के लिए मजबूर कर देते हैं, उनका लक्ष्य रहता है कि उन्हें अपने पड़ोसी के बच्चों से ज्यादा अंक लाने हैं तब जाकर वे अपने माता-पिता का नाम रख पाएंगे।

यह बात बिल्कुल भी गलत है कि एक माता पिता अपने बच्चों की तुलना अन्य बच्चों से करके उन्हें ज्यादा तनाव में डाल रहे है।

तो यह कुछ मुख्य कारण है जिनकी वजह से एक बच्चा तनाव का शिकार हो जाता है।

परीक्षा का तनाव बच्चे को महसूस न हों

हालांकि तनाव के जन्म लेने के पीछे अनेक कारण हो सकते हैं

जिसमें एक बड़ा कारण यह हो सकता है कि बच्चे साल भर स्कूल जाकर मौज करते हैं और परीक्षा के वक्त अपने हाथों में किताब लेते हैं इस कारण इतने कम समय में उन्हें अपनी स्कूल की पढ़ाई कुछ भी समझ नहीं आती।

आज प्रत्येक देश में न जाने कितने विद्यार्थी इस तनाव के कारण आत्महत्या जैसे घटनाओं को अंजाम दे देते हैं उनका मुख्य कारण सिर्फ तनाव ही रहता है और वे तनाव में आकर ऐसे ठोस कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाते हैं ।

अब हम सिर्फ समस्याओं पर गौर न करते हुए प्रॉब्लम के समाधान पर चलते हैं।

माता-पिता कैसे बच्चों के तनाव को कम करें ? 5 टिप्स

1. बच्चों पर अपनी इच्छाएं थोपें नहीं

एक माता-पिता की जिम्मेदारी बनती है कि वे लोग सर्वप्रथम अपने बच्चों को तनाव से दूर रखें एक माता पिता ही ऐसे कार्य कर सकते हैं क्योंकि वे ही अपने बच्चे की कमीयों व सद्गुणों को पहचानते हैं।

माता पिता को सिर्फ अपने बच्चों की कमियों पर गौर करने की बजाय उनकी खूबियों पर ध्यान देना चाहिए। यह पता लगाना चाहिए कि वे किस क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं।

प्रत्येक माता-पिता को अपने बच्चों के हुनर को जानना चाहिए और उन्हें उसी हुनर को साथ लेकर आगे बढ़ने के लिए कहे तो जरूर प्रत्येक बच्चा तनाव से मुक्त रहेगा।

और अपने पसंदीदा क्षेत्र में वह आसानी से आगे बढ़ पाएगा शायद ही ऐसे कार्यों को करके वे अपने माता-पिता का नाम भी अवश्य ही रोशन कर पाएगा,और एक भाग्यशाली आनंददायक जीवन जीने में सक्षम रहेगा।

इसलिए प्रत्येक माता-पिता को सबसे पहले अपने बच्चों के हुनर और प्रतिभा को जानने की कोशिश करनी चाहिए कि उनके बच्चे किस चीज में ज्यादा आनंद पाते हैं,और वे लोग किस क्षेत्र में बिना किसी समस्या के खुद का विकास कर सफल बन सकते है।

2. दूसरों के साथ तुलना न करें

माता-पिता की जिम्मेदारी सिर्फ यही नहीं रहती कि वे लोग अपने बच्चों को पढ़ने के लिए मजबूर करें और अच्छे नंबर लाने के लिए उनके ऊपर दबाव डालें।

माता पिता को कभी भी अपने बच्चों की तुलना अन्य बच्चों के साथ नहीं करनी चाहिए और ना ही उनके ऊपर यह दबाव डालना चाहिए कि वह पड़ोसियों के बच्चों से ज्यादा अच्छे नंबर लाएं ।

कहीं आप अपने बच्चे की तुलना बार-बार किसी अन्य बच्चे से तो नहीं कर रहे हैं?

माना कि पढ़ाई जिंदगी में सब कुछ है लेकिन तनाव के चलते कहीं कहीं वह जिंदगी में कुछ गलत कदम ना उठा ले जिसके लिए आपको बाद में पछताना पड़ सकता है यह बात आपको भूलनी नहीं चाहिए।

इसके बजाय माता पिता को अपने हालातों को देखते हुए अपने बच्चों को उस फील्ड में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। उनके अंदर आत्मविश्वास जगाना चाहिए कि हां तू यह कर सकता है।

उसे लगातार अच्छा करने के लिए प्रेरित करने चाहिए फिर चाहे वह जिंदगी में हो या फिर कैरियर में।

3. बच्चों के साथ वक्त बिताएं

एक माता-पिता को अपने बच्चों के साथ अधिक से अधिक समय व्यक्त करना चाहिए, ताकि उनसे बात करके उनके जीवन और कैरियर में आने वाली समस्याओं को सुलझाने में उनकी मदद कर सके या मार्गदर्शन कर सके।

आज ज्यादातर लोग व्यस्त होने के कारण अपने बच्चों की परेशानियों को समझ नहीं पाते इस कारण उनके बच्चे स्वयं को अकेला महसूस करते हुए बहुत कम समय में अत्यधिक तनाव में रहने लगते हैं।

उनके परिवार वालों का अपने बच्चों को वक्त न दे पाना, बच्चों के तनाव का कारण बन सकता है। क्योंकि जब भी बच्चे अपने माता-पिता के साथ खुद की परेशानियों को शेयर करते हैं तो वे अवश्य ही अपनी प्रत्येक समस्याओं का निवारण कर पाते हैं ।

आप चाहे जिंदगी में अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए कितने ही कामकाज में व्यस्त क्यों ना हो? लेकिन ध्यान रखें अगर उन्हें सही समय पर आप का वक्त नहीं मिलेगा तो आपके द्वारा इतनी की गई मेहनत बर्बाद जा सकती है।

4. रिजल्ट के बाद दें रिवॉर्ड

जब भी एक माता पिता के तौर पर पेरेंट्स अपने बच्चों को इनाम देते हैं तो बच्चों का आत्मविश्वास दोगुना हो जाता है

इसलिए परीक्षा के बाद आने वाला रिजल्ट हो, या कोई टेस्ट हो यदि बच्चा पास जाता है तो आप रिवॉर्ड देकर बच्चों को आगे भी बेहतर करने के लिए मोटिवेट कर सकते है।

आप बच्चों को कोई बढ़िया गिफ्ट दे सकते है, घुमाने ले जा सकते है।

इस तरह रिवॉर्ड प्राप्त करने की ख्वाहिश में बच्चा मन लगाकर पढ़ाई करेगा। हालांकि जब कभी परिणाम आपके मन के मुताबिक ना हो तब भी उसे छोटे-मोटे रिवॉर्ड जरूर दें।

बस आपको एक बात का ध्यान रखना है कि कहीं रीवार्ड देने से बच्चे को कोई बुरी आदत न लग जाए।

5. पढ़ाई का करें एक सही समय निर्धारित

चूंकि हमारे समाज में पढ़ाई लिखाई को बेहद महत्व दिया जाता है। यही कारण है कि हरदम माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं

दिन हो या रात, सुबह शाम किसी भी टाइम बस पढ़ाई करने के लिए कहते हैं।

परंतु उनके बार-बार कहने के बावजूद भी बच्चा पढ़ाई नहीं करता! क्यों? क्योंकि सभी बच्चों में पढ़ाई के प्रति एकाग्रता और मेमोरी का स्तर एक जैसा नहीं होता।

हर कोई 4-5 घंटे पढ़ाई नहीं करता, कुछ बालक सिर्फ एक घंटा फोकस के साथ पढ़ते हैं, और कई सारी चीजें सीख जाते हैं।

अतः माता-पिता यह समझें और बच्चों की पढ़ाई के लिए एक फिक्स टाइमिंग बनाएं, तो इससे वे दैनिक रूप से पढ़ेंगे साथ ही बोर भी नहीं होंगे।

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