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लोग बुरा मत मानना कहकर बुरी बात कह देते हैं?

बड़ा ही अजीब है ना यह हमारा छोटा सा जीवन, अजीब है जीवन में हमारे रिश्ते, नाते, प्रेम-प्रसंग।

यहां लोग जीते तो हमेशा खुद के लिए हैं और अहसास दिला देते हैं दूसरों को कि वे दूसरों के लिए जी रहे हैं।

इस संसार में लोग भले एक दूसरे से कितना ही प्रेम क्यों न करने लग जाए, लेकिन वे लोग कभी भी एक दूसरे की बातों, विचारों से संतुष्ट होते ही नहीं।

लोग अक्सर मुहं से कह तो देते हैं कि हम सदा दूसरों का अच्छा करते हैं और करते रहेंगे, पर उनका व्यवहार उनके कर्म उनकी वाणी से मेल नहीं खाते।

वास्तव में एक परिवार का सदस्य ही अपने परिवार के अन्य लोगों की भावनाओं को समझ पाता है परिवार में मां बाप का हक तो बनता ही है कि वे अपने बच्चों से भला बुरा कहें और उन्हें अच्छी राह पर चलना सिखाए।

अगर मां-बाप के ऐसा कहने पर भी बच्चे बिगड़ जाए तो फिर इस बुरे भले कहने का क्या फायदा।

क्योंकि अक्सर बुरा तो बाहर वाले भी हमसे कह देते हैं, परंतु कोई भी बाहर का व्यक्ति हमें बुरा सिर्फ तब कहता है जब हमारे कार्य उसको पसंद नहीं आते।अगर कार्य हमारे अच्छे हो तो वे लोग फिर भी बुरा मत मानना कहकर हमारे उस कार्य की कमी बता ही देंगे।

उनके नजरिए से हमारे द्वारा वह किया गया कार्य पूरी तरीके से ठीक नहीं है शायद उनकी नजर से वह कार्य और भी ठीक हो सकता है।

परंतु उसी कार्य को अगर कोई उनका प्रिय/अपना करता है तो वे लोग उस कार्य से प्रसन्न होकर उसकी प्रशंसा करेंगे और उसे ही सबसे बेहतर समझेंगेI

अच्छे लोग हमेशा ही सभी के कार्यों से संतुष्ट होते हैं और उन कार्यों में कमी ढूंढने से अच्छा, वे लोग यह समझते हैं कि पूर्ण समर्पण से किये गए कार्य में गलती तो कभी हो ही नहीं सकती अगर है भी तो उसे वे स्वयं दूर करने की सोचते हैं या उसे अवगत करवाते हैं, बजाय आलोचना करने के

ज्यादातर लोग बुरा मत मानना कहकर बुरी बातें कह देते हैं, हां यह बुरी बातें उन लोगों के लिए अच्छी भी होती हैं जिन्हें अपनी कमियां पता नहीं होती।

उन लोगों को इस कारण अपनी छोटी-छोटी कमियों का आभास हो जाता है और वे आने वाले समय में अपनी उन कमियों को पूरी करके और भी बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं।

लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने किए गए कार्य को ही सबसे बेहतर समझते हैं चाहे उन कार्यों में कितनी ही गलतियां क्यों ना हो फिर भी वे लोग अपनी गलतियों को मानने के लिए राजी नहीं होते।

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और दूसरों द्वारा कही गई बुरी बातों से उन्हें बहुत जल्दी बुरा महसूस होता है वे उस बुरा कहने वाले को बुरा भला कहकर उसकी बेज्जती कर देते हैं।

यहां कहने का मतलब यही है कि हमें हमेशा हर किसी से बुरी बात नहीं कहनी चाहिए क्योंकि बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपनी कमियों का आभास स्वयं ही होता है।

वे दूसरों द्वारा कही गई बातों को सहन नहीं कर पाते इस कारण वे लोग बहुत जल्दी ही अपना संतुलन खो देते हैं और दूसरों पर हावी होने लगते हैं।

अक्सर मां-बाप और शिक्षक बच्चों को अच्छे तरीके से समझते हैं और वे लोग सीधे किसी भी बुरी बात को बच्चों तक नहीं पहुंचाते हमेशा मजाक-मजाक में ही बच्चों से बुरी बातें कह जाते हैं।

उसके बाद बच्चों को समझाते हैं कि तुम हमारी बातों से स्वयं को निराश मत करना ऐसी बातों से बच्चे अपने आप में नियंत्रण भी कर लेते हैं। उन्हें इन बातों से कोई भी निराशा नहीं मिलती।

और विद्यार्थी आसानी से इन बुरी बातों को अपने आप में परख कर खुद की कमियां दूर निकाल फेंकते हैं और आने वाले समय में खूब अच्छा प्रदर्शन दिखाने के लिए तैयार हो जाते हैं।

जब यही बुरी बात किसी बच्चे को उसके दोस्त द्वारा कही जाती हैं तो वह उन बातों से कुछ भी नहीं सीख पाता।

ज्यादातर बच्चों का यही मानना होता है कि हमारे दोस्त हमारे साथ अक्सर मजाक की बातें ही किया करते हैं और वह अच्छी बुरी सब बातों को ही मजाक समझ बैठते हैं।

लेकिन कुछ अच्छे दोस्त जो अपनी दोस्ती बड़ी सफलता के साथ निभाना चाहते हैं, अपने दोस्तों को मजाक से हटकर उनकी कमियां बताने के लिए उन्हें सुझाव देते हैं।

एक दोस्त ही ऐसा इंसान होता है जो सबसे पहले अपने दोस्तों की कमियों को दूर करने में मदद करता है,क्योंकि तभी कहा जाता है “जैसा संग वैसा रंग “इससे हमें ये भी पता चलता है।

कि हमें दोस्त हमेशा ही अच्छे बनाने चाहिए जो हमारी कमियों को हमें बता सके। न कि हमारी कमी से फायदा उठाकर हमारी मजाक बना पाए।

लेकिन ज्यादातर दोस्त भी ऐसे ही होते हैं जो “बुरा मत मानना” वाक्य का उपयोग कर अपने दोस्तों की छोटी-छोटी गलतियां उन्हें बता देते हैं।

एक दोस्त दूसरे दोस्त से बुरा तभी कह सकता है जब उसके दूसरे दोस्त में कुछ कमियां नजर आती होंगी बुरा कहने का कारण सिर्फ कमियां ही हैं।

जब तक हम में कमियां नहीं होती तब तक हम से कोई भी व्यक्ति बुरा नहीं बोल सकता जिस व्यक्ति में कमियां नहीं होती उस व्यक्ति से बुरा बोलने का कोई मतलब ही नहीं होता।

इसलिए हमसे जब भी कोई व्यक्ति बुरा बोलता है सबसे पहले हमें खुद की कुछ कमियों को झांकना चाहिए जिसके कारण वह हमसे यह सब कुछ बोलने में सक्षम हो जाता है।

उन कमियों को ढूंढने के बाद ही हमें उस व्यक्ति की बातों में ध्यान देना चाहिए हो सकता है कि हम मैं कुछ भी कमी ना हो परंतु उसे हमारी कमी नजर आ रही है।इसलिए हमें बहस भी हमेशा सोच समझकर ही करनी चाहिए।

हम आज आपको एक छोटी सी कहानी का उदाहरण देकर समझाएंगे की एक दोस्त दूसरे दोस्त को हमेशा बुरा मत मानना कह कर उसकी बुराइयों को उजागर करता है।

और यही कहते कहते एक दिन उसके दोस्त में मौजूद सभी बुराइयां अच्छाइयों में तब्दील हो जाती हैं। और लोगों के लिए भी उसकी बुराई करने का साहस खत्म हो जाता है।

एक लड़का जिसका नाम रोहित था। वह एक ग्रीन परिवार में अपना जीवन यापन कर रहा था। जिससे उसे अन्य छात्रों की तुलना में पढ़ाई करने में भी काफी कठिनाइयां होती थी।

आर्थिक तंगी भले ही उसके सामने थी, परंतु वह संस्कारों का धनी था

रोहित अपने माता- पिता द्वारा दिए गए निर्देशों पर हमेशा चलता था। कम उम्र में ही जिम्मेदारियों का दबाव सिर पर आने की वजह से रोहित एक अच्छे भविष्य की खोज में था।

वह अपनी जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभाता। ऐसा लगता जैसे वह लगभग सभी गुणों से संपन्न था। विद्यालयी शिक्षा पूरी करने के बाद रोहित अपनी डिग्रियों के लिए एक कॉलेज में प्रवेश लेता है।

लेकिन कॉलेज के पहले सत्र में ही रोहित कॉलेज के माहौल से भली – भांति परिचित हो गया वह जिस माहौल में पढ़ाई करना चाहता था। वह उससे बिल्कुल विपरीत था।

उसकी उम्र की छात्र-छात्राएं कॉलेज में गप्पे मारते, मस्ती करते, घूमते। परन्तु घर की जिम्मेदारीयों के तले दबे रोहित को उसकी जिंदगी स्वयं को अनुशासन हीन करने के लिए आजादी नहीं देती थी।

इसलिए लंबे समय तक वह किसी को भी कॉलेज में अपना मित्र नहीं बना पाया। लेकिन एक दिन रोहित को एक ऐसा शख्स मिल ही गया जो रोहित से बात करने, उससे पढ़ाई के विषय में चर्चा करने में दिलचस्पी रखता था।

और इस तरह रोजाना घुलने मिलने के कारण वह लड़का रोहित का अब अच्छा मित्र बन चुका था।

हालांकि उस लड़के में कई कमियां थी। वह अक्सर रोहित को भी पढ़ाई के समय परेशान कर दिया करता। परंतु रोहित उसकी बातों का बुरा नहीं मानता

हालांकि राज दिल से उसकी भलाई जाता था और अक्सर अपने दोस्त को एक अच्छा स्टूडेंट बनने में उसकी मदद करने के लिए सदैव प्रयास करता।

वक्त बीता गया और रोहित अपने मित्र को हमेशा मेरी बातों का बुरा ना मानना कहकर उसकी कमियों को सुधारने की कोशिश करता

जैसे-

मेरी बात का बुरा मत मानना, पर राज समय की बर्बादी करना इस उम्र में सही नहीं है तुम्हें मेरी बातें बाद में जरूर याद आएंगी।

वह मित्र रोहित द्वारा कहां गया वाक्य ”बुरा मत मानना” इससे संतुष्ट हो जाता है और अपने बारे में बुरी बुरी बातें भी सुन लेता।

जिसके कारण अब रोहित के दोस्त में वक्त के साथ सुधार होने लगा,उसे लोगों के बीच बात करने का तरीका आने लगा।

रोहित अपने उस मित्र को अन्य विद्यार्थियों के साथ बात करने का तरीका और उनके साथ,उनके बीच में किस प्रकार रहा जाए यह सिखाने की कोशिश कर रहा था।

इस कारण “बुरा मत मानना” यह कहकर रोहित ने अपने मित्र को उसकी सारी कमियां बता कर उसे आज एक अच्छा विद्यार्थी बना ही दिया।

आज रोहित का दोस्त भी अन्य विद्यार्थियों के साथ घूल- मिलकर रहना सीख गया।इस प्रकार रोहित ने अपने दोस्त को बुरा मत मानना कहकर वह सारी बुरी बातें बता डाली जो उसकी दोस्त की कमियां थी

सीख- हमें इस लेख से यह पता चलता है कि अगर हमें किसी को बुरा कहना भी है तो शायद ही उसे बुरा कहने से पहले बुरा न मानने की सलाह दी जाए जिस कारण व्यक्ति का लगभग 90% गुस्सा पहले ही नियंत्रण हो जाता है। जिससे आपके द्वारा किसी को कही गई बुरी बात पर भी, दूसरा व्यक्ति गुस्सा नहीं हो पाता।

अतः कोशिश करनी चाहिए कि बुरी बातें सिर्फ वही हो जो व्यक्ति की कमियां हैं और वह उन कमियों को सुधार सकें इससे ज्यादा हमें कोई भी फालतू बुरी बात नही कहनी चाहिए जिससे लोगों का दिल ना दुखे।

क्योंकि बुरी बातों से अक्सर लोग रूठ जाते हैं और उनका आत्मविश्वास स्वयं के प्रति कम हो जाता है।

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