राजा जी कहकर संबोधित किए जाने वाले चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भारत के एक महान लेखक, दार्शनिक, राजनीति व वकील थे। राजा जी ऊर्फ चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जी प्रथम भारतीय जनरल थे।
राजा गोपालाचारी जी ने पहले कांग्रेस का नेतृत्व किया था लेकिन बाद में वे कांग्रेस के विरोध में खड़े हो गए और उन्होंने एक स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी और गांधीजी के मध्य काफी अच्छे संबंध थे।
देश को स्वतंत्र करवाने में राजगोपालाचारी ने गांधी जी की बढ़-चढ़कर सहायता की थी। राजगोपालाचारी के बारे में अगर आप विस्तार पूर्वक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं और उनके बारे में जानना चाहते हैं तो आपको उनकी जीवनी जरूर पढ़नी चाहिए।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी: राजा जी जीवनी
देश की आज़ादी के पश्चात वर्ष 1955 में इंडियन गवर्नमेंट के द्वारा एक सम्मानित वकील, राज नेता, दार्शनिक और लेखक चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को भारत के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी आजाद भारत के दूसरे गवर्नर जनरल और सबसे पहले इंडियन गवर्नर जनरल थे। अपने जीवनकाल में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने विभिन्न प्रकार के महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी संभाली। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को आधुनिक भारत के इतिहास का चाणक्य भी कहा जाता है।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का व्यक्तिगत परिचय
पूरा नाम | चक्रवर्ती राजगोपालाचारी |
अन्य नाम | राजाजी, सीआर |
जन्म तिथि | 10 दिसंबर, 1878 |
पत्नी का नाम | अलमेलु मंगम्मा |
बेटों के नाम | सी आर नरसिम्हा, सी आर कृष्णास्वामी और सी आर रामास्वामी |
बेटियों के नाम | लक्ष्मी गाँधी सी आर और नामागिरी अम्मल सी आर |
जन्म स्थान | थोरापल्ली, कृष्णागिरी जिला मद्रास प्रेसीडेंसी |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
पेशा | राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सैनानी, वकील, लेखक और राजनेता |
धर्म | हिन्दू |
प्रसिद्धि | राजनेता के रूप में एवं इंडियन मैन |
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का प्रारंभिक जीवन
हिंदू धर्म की अयंगर जाती में साल 1878 में सेलम जिला जोकि तमिलनाडु राज्य में पड़ता है के होसुर के पास धोरापल्ली नाम के गांव में 10 दिसंबर को चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म हुआ था।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का परिवार बेहद धार्मिक प्रवृत्ति का था, क्योंकि इनके पिता श्री चक्रवर्ती वेंकट आर्यन और इनकी माता जी श्रीमती सिंगारम्मा धार्मिक विचारों की महिला थी। इसीलिए इनके घर में धार्मिक माहौल था।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के पिताजी सेलम की अदालत में न्यायाधीश का काम करते थे, वहीं इनकी माताजी गृहणी का काम करती थी। जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी छोटे थे, तब यह बॉडी से बहुत ही कमजोर थे,जिसके कारण कोई भी काम करने में इन्हें काफी ज्यादा थकान महसूस होती थी।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की शिक्षा
अपनी प्रारंभिक पढ़ाई चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने अपने गांव में ही स्थित स्कूल से पूरी की। इसके बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए इन्होंने आरवी गवर्नमेंट बॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल में एडमिशन लिया।
यहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद यह बेंगलुरु गए और वहां पर जाकर इन्होंने सेंट्रल कॉलेज में एडमिशन लिया और सेंट्रल कॉलेज से इन्होंने अपनी बारहवीं की एग्जाम को अच्छे अंकों के साथ और अच्छे परसेंटेज के साथ पास किया।
इसके बाद ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के लिए यह मद्रास चले गए। मद्रास जाने के बाद इन्होंने बैचलर ऑफ आर्ट के कोर्स में प्रेसिडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया और बैचलर ऑफ आर्ट का कोर्स पूरा किया। इसके बाद उन्होंने इसी कॉलेज से वकालत की एग्जाम को भी पास किया।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का वकालत का कार्य
मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज से वकालत की पढ़ाई कंप्लीट करने के बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने सेलम में वकालत करने का काम स्टार्ट किया और धीरे-धीरे अपनी योग्यता और काबिलियत के दम पर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी काफी ज्यादा फेमस होने लगे और उनकी गिनती एक अनुभवी वकील के तौर पर आसपास के इलाकों में होने लगी।
वकालत का काम करने के दौरान ही चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को बाल गंगाधर तिलक के बारे में जानने को मिला और वे उनसे काफी प्रभावित हुए और इसके बाद उन्होंने पॉलिटिक्स में आने का निर्णय लिया और उन्होंने पॉलिटिक्स में एंट्री की, जिसके बाद वह सेलम नगरपालिका के मेंबर बने और उसके बाद उन्होंने सेलम नगर पालिका के अध्यक्ष का पद भी संभाला।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का पोलिटिकल कैरियर
पॉलिटिक्स में एंट्री कर लेने के बाद कांग्रेस के मेंबर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी बने और धीरे-धीरे वह राष्ट्रवादी गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे। जब साल 1919 में रोलेट एक्ट के खिलाफ गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन चालू किया, तो इसी टाइम चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को गांधीजी के बारे में जानने को मिला और उन्होंने गांधीजी से अपनी नजदीकिया बढाई और वह गांधी जी के विचारों से काफी ज्यादा प्रभावित हुए।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी से पहली मुलाकात में ही भेंट करने के दौरान गांधी जी ने उनके अंदर छुपे हुए राष्ट्रवादी को पहचान लिया और गांधी जी ने चक्रवर्ती राजगोपालाचारी से मद्रास के सत्याग्रह आंदोलन को संभालने के लिए कहा, जिसके बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने गांधी जी को यह वचन दिया कि वह पूरी जिम्मेदारी के साथ मद्रास सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व करेंगे।
इसके बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने मद्रास सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व किया और आंदोलन करने के कारण ब्रिटिश गवर्नमेंट के द्वारा चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को गिरफ्तार करके उन्हें जेल भेज दिया गया।
जब अंग्रेजों की कैद से चक्रवर्ती राजगोपालाचारी आजाद हुए तो उन्होंने तमाम प्रकार की सुख सुविधा और अपनी वकालत से भी इस्तीफा दे दिया और फिर उन्होंने अपनी जिंदगी को पूर्ण रूप से भारत देश को आजाद कराने के लिए समर्पित कर दिया।
साल 1921 में जब गांधी जी ने नमक सत्याग्रह चालू किया, तो उसी वर्ष चक्रवर्ती राजगोपालाचारी कांग्रेस के सचिव के पद पर सिलेक्ट हुए और जब गांधीजी स्वाधीनता आंदोलन में एक्टिव हुए, तो राजगोपालाचारी भी उनके साथ आ गए।
चक्रवर्ती काफी होशियार और चालाक व्यक्ति थे। इसका उदाहरण तब देखने को मिला, जब साल 1931-32 में हरिजनों के अलग मताधिकार को लेकर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच विवाद हो गया और इस विवाद में कोई भी व्यक्ति पीछे हटने को तैयार नहीं था।
ऐसी परिस्थिति में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने अपनी चालाकी का इस्तेमाल करते हुए बड़ी ही चतुराई से महात्मा गांधी और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के बीच के विवाद को बातचीत के जरिए हल करवा दिया। इस प्रकार उनके बीच का विवाद खत्म हो गया।
साल 1937 में मद्रास प्रेसीडेंसी में इलेक्शन हुए,जिसमें कांग्रेस गवर्नमेंट की राजगोपालाचारी के नेतृत्व में विजय हुई। इसके बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने एग्रीकल्चर डेट रिलीफ एक्ट कानून को साल 1938 में क्रिएट किया, जिसका उद्देश्य किसानों को कर्ज से राहत देना था।
जब दुनिया में दूसरा युद्ध चल रहा था, तब उसमें भारत को शामिल होने के लिए कहा जा रहा था, परंतु चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का कहना था कि भारत को दूसरे विश्व युद्ध में शामिल नहीं होना चाहिए, परंतु जब उनकी बात नहीं मानी गई तो उन्होंने गुस्से में आकर अपने पद से रिजाइन कर दिया।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को साल 1940 में अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया था और उसके बाद उन्हें तकरीबन 1 साल तक जेल में रखा गया था। 1 साल के बाद जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जेल से छूटे, तो जेल से छूटने के बाद जनरल सेक्रेटरी का पद उन्हें कांग्रेस में दिया गया।
माउंटबेटन के रिटायर होने के बाद राजगोपालाचारी इंडिया के पहले गवर्नर बने। इसके बाद जब हमारा देश आजाद हो गया और साल 1950 में नेहरू गवर्नमेंट बनी, तो नेहरु जी ने चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को अपने मंत्रिमंडल में गृह मंत्री का पद दिया।
इसके बाद साल 1952 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने मद्रास के चीफ मिनिस्टर की शपथ ली। इसके अलावा बता दें कि पश्चिम बंगाल के पहले राज्यपाल भी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी बने थे।
इसके बाद उनका प्रधानमंत्री नेहरू के साथ विवाद होने लगा और यह विवाद काफी समय तक चला, जिसके कारण चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और अपने पद से इस्तीफा देने के बाद वह मद्रास जाकर रहने लगे।
मद्रास में जाकर इन्होंने अपनी खुद की एक अलग पार्टी बनाई, जिसका नाम इन्होंने ‘एंटी कांग्रेस स्वतंत्र पार्टी” रखा, हालांकि इस पार्टी का निर्माण करने के कुछ ही समय के बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने पॉलिटिक्स से संन्यास की घोषणा कर दी और उसके बाद वह एक लेखक बन गए और अपना अधिकतर समय लिखने में ही बिताने लगे।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी द्वारा जाति प्रथा का विरोध
पॉलिटिक्स में काफी वर्षों तक कार्य करने वाले चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भारतीय समाज में फैले जात पात के भी काफी ज्यादा विरोधी थे।
इसीलिए जब उन्हें यह पता चलता था कि, किसी मंदिर में दलितों के जाने पर प्रतिबंध लगा हुआ है, तब वह उस का खुलकर विरोध करते थे।अपने विरोध के कारण उन्होंने कई बार अलग-अलग मंदिरों में दलितों को प्रवेश करवाया।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को प्राप्त अवार्ड
इंडियन गवर्नमेंट के द्वारा साल 1955 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को भारत के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की मृत्यु
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की हेल्थ वर्ष 1972 में काफी ज्यादा बिगड़ने लगी थी जिसके बाद उन्हें 17 दिसंबर को मद्रास के गवर्नमेंट हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया था। परंतु हॉस्पिटल में एडमिट करने के सिर्फ 8 दिन बाद ही 25 दिसंबर को चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने इस धरती पर आखिरी सांस ली और उनका निधन हो गया।
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