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चाणक्य नीति Chapter 8 In Hindi

Chanakya Niti in Hindi  Chapter 8, Chanakya Success Tips 

आचार्य चाणक्य एक महान राजनीतिज्ञ थे और यह बात सारी दुनिया के लोग मानते हैं। चाहे प्राचीन काल हो या आज का युग, आज भी लोग एक महान राजनीतिज्ञ बनने के लिए आचार्य चाणक्य द्वारा बताए गए उसूलों पर चलना चाहते हैं। आचार्य चाणक्य ने जीवन के हर क्षेत्र में सफल होने के सूत्र चाणक्य नीति में बताए हैं। व्यक्ति अपने रिश्तों को कैसे सफल बनाए, सगे- संबंधियों के साथ कैसे बना कर रखे।

Chanakya Niti : Eight Chapter

अधम, नीच व छोटे व्यक्ति इस संसार में धन को ही महत्व देते हैं बीच के, मध्यम स्तर के व्यक्ति धन के साथ मान-सम्मान को भी महत्व देते हैं, इन दोनों के विपरीत उत्तम पुरुष धन की अपेक्षा सम्मान-प्राप्ति को ही अधिक महत्व देते हैं उनके जीवन का लक्ष्य सम्मान प्राप्त करना होता हैं और इसे ही वे सबसे बड़ा धन समझते हैं।

Low class men desire wealth; middle class men both wealth and respect; but the noble, honor only; hence honor is the noble man’s true wealth.

गन्ना और गन्ने का रस, पानी, दूध, जड़ी-बूटी, पान, फल तथा औषध आदि का सेवन करने के उपरान्त भी संध्यापुजन, दान-तर्पण आदि नित्यकर्म किये जा सकते हैं।

One can do charitable work and bathing even after having care, water, milk edible roots, pan fruits and medicine.

दीपक अँधेरा खाता हैं अथार्त उसे दूर करता हैं और उससे काजल पैदा होता हैं इसी प्रकार उत्तम सन्तान को जन्म देने के लिए मनुष्य को ईमानदारी से कमाया हुआ शुद्ध और सात्विक अन्न ही खाना चाहिए।

Light of lamp destroys darkness but produces soot. Similarly whatever, one eats its good or bad qualities reproduced in one’s children.

यवन से बढ़कर अथार्थ धर्मविरोधी व्यक्ति से बढ़कर संसार में कोई और बड़ा नीच नहीं हैं इसलिए उससे तो सवर्था दूर ही रहना चाहिए।

Sages say a yavan (foreigner) is equal to thousands of scavengers.

समुंद्र ने गुणी मेघ को जल का दान करके एक ओर अपने खारे जल को मीठा बना दिया, दूसरी और जड़-चेतन को जीवन प्रदान करने का पुण्य भी अर्जन किया तथा दिए गए जल से अधिक परिणाम में जल पुन: प्राप्त कर लिया इस प्रकार स्पष्ट हैं कि गुणी को दिया गया दान ही सफल होता हैं अतः गुणवान को ही दान देना चाहिए।

Give your wealth only to the worthy and never to others. The water of the sea received by the clouds is always sweet. The rainwater enlivens all living beings of the earth both movable (insects, animals, humans, etc. ) and immovable (plants, trees, etc. ), and then returns to the ocean where its value is multiplied a million fold.

तेल की मालिश करने पर, चिता का धुआं लगने पर, सम्भोग करने तथा हजामत बनवाने के बाद व्यक्ति जब तक स्नान नहीं कर लेता, तब तक वह अस्पर्श्य अथार्थ अपवित्र रहता हैं इन स्थितियों में स्नान से ही व्यक्ति की शुद्धि होती हैं यह स्वास्थ्य का नियम भी हैं परन्तु सम्भोग के तुरंत बाद स्नान करने में हानि होती हैं।

After oil massage, after attending a funeral, after sex, and after hair cut, one is dirty until one has take a bath.

अपच में, भोजन पच जाने पर तथा भोजन के बीच तो जल का सेवन लाभप्रद हैं, परन्तु भोजन समाप्त करते ही अधिक जल पीना हानिकारक हैं अत: ऐसा नहीं करना चाहिए।

Water is the medicine for indigestion; it is invigorating when the food that is eaten is well digested; it is like nectar when drunk in the middle of a dinner; and it is like poison when taken at the end of a meal.

यदि व्यक्ति ज्ञान के अनुरूप आचरण नहीं करता तो वह ज्ञान व्यर्थ हैं, अज्ञानी मनुष्य का जीवन व्यर्थ हैं सेनापति के बिना सेना व्यर्थ हैं और पुरुष अथार्थ पति के बिना स्त्री का जीवन व्यर्थ हैं।

Knowledge is lost without putting it into practice; a man is lost due to ignorance; an army is lost without a commander; and a woman is lost without a husband.

बुढ़ापे में पत्नी का मर जाना, भाई बन्धुओ द्वारा धन का हड़प लेना तथा भोजन के लिए दुसरे के अधीन रहना – ये तीनो बातें पुरुषो के लिए अत्यंत दुःखदायक होती हैं।

A man who encounters the following three is unfortunate; the death of his wife in his old age, the entrusting of money into the hands of relatives, and depending upon others for food.

लकड़ी, पत्थर और धातु-सोना, चांदी, तांबा, पीतल आदि की बनी देवमूर्ति में देव-भावना, अथार्थ देवता को साक्षात् रूप से विधमान समझ कर ही श्रदासहित उसकी अर्चना पूजा करनी चाहिए, जो मनुष्य जिस भाव से मूर्ति का पूजन करता हैं, श्री विष्णुनारायण की कृपा से उसे वैसी ही सिद्धि प्राप्त होती हैं।

Chanting of the Vedas without making ritualistic sacrifices to the Supreme Lord through the medium of Agni, and sacrifices not followed by bountiful gifts are futile. Perfection can be achieved only through devotion (to the Supreme Lord) for devotion is the basis of all success.

शान्ति अथार्थ आवेग-उद्वेग पर काबू पाने के समान दूसरा कोई उत्कष्ट तप नहीं, सन्तोष अथार्थ सहज में प्राप्त वस्तु से प्रसन्नता जैसा कोई दूसरा सुख नहीं, तृष्णा अथार्थ अधिक से अधिक पाने से चाह जैसा दूसरा कोई घटिया और दुःख देने वाला रोग नहीं तथा दया अथार्थ दूसरों के दुःख से द्रवित होने जैसा कोई बढ़िया दूसरा कोई धर्मं नहीं।

There is no austerity equal to a balanced mind, and there is no happiness equal to contentment; there is no disease like covetousness, and no virtue like mercy.

रूप की शोभा गुणों से होती हैं, कुल की शोभा शील अथार्थ अच्छे आचरण से होती हैं विधा की शोभा धन प्राप्ति से होती हैं इसी प्रकार धन की शोभा उसके भोगने से होती हैं।

Moral excellence is an ornament for personal beauty; righteous conduct, for high birth; success for learning; and proper spending for wealth.

गुणहीन पुरुष की सुन्दरता, दुराचारी पुरुष का उच्चकुल में उत्पन्न होना, आजीविका सुलभ न कराने वाली विधा और उपभोग में न आने वाला धन व्यर्थ ही हैं इनकी न कोई उपयोगिता हैं और न इनका कोई महत्व ही हैं।

Beauty is spoiled by an immoral nature; noble birth by bad conduct; learning, without being perfected; and wealth by not being properly utilized.

पृथ्वी के गर्भ से निकलने वाला जल शुद्ध-पवित्र होता हैं, पतिव्रता स्त्री शुद्ध-पवित्र होती हैं, प्रजा का कल्याण करने वाला राजा पवित्र अथवा श्रेष्ठ माना गया हैं और सन्तोषी यानी सहज प्राप्ति में प्रसन्न-ब्राहमण शुद्ध-पवित्र होता हैं सन्तोष सभी के लिए उत्तम हैं।

Water seeping into the earth is pure; and a devoted wife is pure; the king who is the benefactor of his people is pure; and pure is the Brahman who is contented.

ब्राह्मण को सन्तोषी, राजा को महत्वकांक्षी, वेश्या को निर्लज्ज और परिवार की सद्गृहस्थ स्त्री को शील-संकोच की देवी होना चाहिए।

Discontented Brahmanas, contented kings, shy prostitutes, and immodest housewives are ruined.

महत्व विद्या का हैं, वंश का नहीं, हाँ यदि वंश भी श्रेष्ठ हो और व्यक्ति विद्वान और चरित्रवान भी हो तो वह निश्चित रूप से उत्कष्ट और आदरणीय होता हैं शास्त्रों ने कहा भी हैं कि विधाहीन व्यक्ति पशु के समान हैं।

Of what avail is a high birth if a person is destitute of scholarship? A man who is of low extraction is honored even by the demigods if he is learned.

चाणक्य कहते हैं कि इस संसार में विद्वान की ही प्रशंसा और विद्वान की ही सब कहीं पूजा होती हैं वस्तुत: विधा से संसार की सभी दुर्लभ वस्तुए भी प्राप्त हो सकती हैं यही कारण हैं कि इस संसार में विधा का और विधावान का सब कहीं आदर-सम्मान होता हैं।

A learned man is honored by the people. A learned man commands respect everywhere for his learning. Indeed, learning is honored everywhere.

भक्ष्याभक्ष्य का विचार त्याग कर मासं खाने वाले, मदिरा पीने वाले, निरक्षर, अनपढ़, काला अक्षर भैस बराबर व्यक्ति पुरुष के रूप में पशु हैं क्योकि इनकी चेष्टाएं बिना विवेक के होती हैं इस प्रकार के विधा और विवेकरहित मनुष्यो-पुरुष-रूपधारी पशुओ के भार से ही यह धरती दुखी हैं, अथार्थ ऐसे लोग भूमि का भार हैं।

The earth is encumbered with the weight of the flesh-eaters, wine-bibblers, dolts (dull and stupid), and blockheads, who are beasts in the form of men.

मानव-समाज के लिए यज्ञ जहाँ महान उपकारक हैं, बादलो को जन्म देकर अन्न और धन-धान्य की बढ़ोतरी करता हैं, वही यदि उसमे सावधानी न बरती जाएँ, उसे ठीक ढंग से न किया जाए और उसके संपादन में त्रुटिया रह जाए तो वह शत्रु के समान हानिकारक भी होता हैं उसी तरह यदि पुरोहित यज्ञ में ठीक से उच्चारण ना करे तो यज्ञ उसे खत्म कर देता है और यदि यजमान लोगो को दान एवं भेंट वस्तु ना दे तो वह भी यज्ञ द्वारा खत्म हो जाता है।

There is no enemy like a yajna (sacrifice) which consumes the kingdom when not attended by feeding on a large scale; consumes the priest when the chanting is not done properly; and consumes the yajaman (the responsible person) when the gifts are not made.

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Friends, चाणक्य नीति के उसी क्रम में “Chanakya quotes in Hindi and English: eight-chapter” share कर रहा हूं। आशा है आपको बहुत सी बातें सीखने को मिलेगी।

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