क्रम विकास का सिद्धांत देने वाले चार्ल्स डार्विन का नाम विज्ञान के क्षेत्र में अमर है। चार्ल्स डार्विन प्रकृतिवादी, भूविज्ञानी और जीवविज्ञानी थे। चार्ल्स डार्विन ने अपनी समुद्री यात्रा के दौरान क्रमविकास के सिद्धांत पर शोध करना शुरू किया था।
मनुष्य, घोड़े, सांप का उदाहरण देकर चार्ल्स डार्विन ने बताया कि कैसे सभी जीव अपने आसपास के वातावरण के अनुसार स्वयं को ढालते हैं। चार्ल्स डार्विन का मानना था कि प्रकृति क्रमिक परिवर्तन द्वारा अपना विकास करती है। चार्ल्स डार्विन के विषय में कई सारी ऐसी बातें हैं जो शायद आप नहीं जानते होंगे और उन बातों को जानने के लिए आपको उनकी जीवनी पढ़नी होगी।
चार्ल्स डार्विन जीवनी
इंग्लैंड में जन्मे महान साइंटिस्ट चार्ल्स डार्विन का दुनिया को देखने का नजरिया वाकई भिन्न था। चार्ल्स डार्विन ही वह साइंटिस्ट है, जिन्होंने इंसानों के विकासक्रम की जानकारी दी। इन्होंने इस बारे में बताया कि इंसानों के पूर्वज बंदर थे। हालांकि जब इन्होंने यह कहा तब कई रूढ़िवादी लोगों ने इनका काफी पुरजोर तरीके से विरोध किया, परंतु ऐसा होने पर भी चार्ल्स डार्विन को कुछ भी फर्क नहीं पड़ा और आगे चलकर के कई लोगों ने इनके इस सिद्धांत को स्वीकार किया
चार्ल्स डार्विन का व्यक्तिगत परिचय
पूरा नाम | चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन |
जन्म | 1809, 12 फरवरी |
जन्म स्थान | इंग्लैंड |
मृत्यु | 19 अप्रैल,1882 |
मृत्यु का कारण | हार्ट में इन्फेक्शन |
पेशा | वैज्ञानिक |
मृत्यु स्थान | यूनाइटेड किंगडम |
नागरिकता | ब्रिटिश |
क्षेत्र | भूविज्ञान नेचुरल हिस्ट्री |
प्रसिद्धि | दि वॉयज ऑफ़ दि बीगल, जीवजाति का उद्भव, क्रमविकास, प्राकृतिक वरण |
सम्मान | FRS (1839), Royal Medal (1853), Wollaston Medal (1859), Copley Medal (1864) |
चार्ल्स डार्विन का प्रारंभिक जीवन
ब्रिटिश नागरिक चार्ल्स डार्विन का जन्म साल 1809 में इंग्लैंड के शोर्पशायर के श्रेव्स्बुरी में 12 फरवरी के दिन हुआ था। इनका पूरा नाम चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन था। चार्ल्स डार्विन के पिताजी पेशे से एक डॉक्टर थे।
चार्ल्स डार्विन की माता-पिता की कुल 6 संतानें थी, जिसमें से चार्ल्स डार्विन पांचवें नंबर की संतान थे। बचपन से ही चार्ल्स डार्विन को प्रकृति में काफी ज्यादा रुचि थी, क्योंकि उन्हें प्रकृति के नजदीक रहना बहुत ही ज्यादा अच्छा लगता था। वह एक स्वतंत्र विचारक भी थे।
चार्ल्स डार्विन का स्कूल में एडमिशन
जब साल 1817 में चार्ल्स डार्विन ने 8 साल की उम्र को पार कर लिया, तब इन्होंने धर्मोपदेशक के द्वारा चलाए जा रहे स्कूल में एडमिशन प्राप्त किया और इसके पश्चात चार्ल्स डार्विन ने प्रकृति के इतिहास के बारे में काफी कुछ जानने का प्रयास चालू कर दिया और उन्हें इसमें सफलता भी मिली।
लेकिन इसी दौरान साल 1817 में चार्ल्स डार्विन की माता जी का निधन जुलाई के महीने में हो गया। अपनी मां की मृत्यु हो जाने के बाद चार्ल्स डार्विन अपने बड़े भाई के पास जाकर रहने लगे और यह एंग्लिकन श्रेव्स्बुर्री स्कूल में पढ़ने लगे। चार्ल्स डार्विन के बड़े भाई का नाम इरेस्मस था।
वर्ष 1825 में गर्मीयों का महीना चार्ल्स डार्विन ने ट्रेनिंग प्राप्त करने वाले एक डॉक्टर के साथ बिताई थी, क्योंकि यह अपने पिता का गर्मियों के मौसम में हाथ बंटाने का काम करते थे। साल 1825 में एडिनबर्ग मेडिकल स्कूल में एडमिशन लेने से पहले चार्ल्स डार्विन अपने भाई के साथ यहीं पर काम करते थे।
हालांकि चार्ल्स डार्विन को मेडिकल कॉलेज में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं था। इसीलिए वह अक्सर मेडिकल कॉलेज जाने में आनाकानी करते थे। बाद में तकरीबन 40 घंटे की ट्रेनिंग लेने के बाद चार्ल्स डार्विन ने जॉन एड्मोंस्टोन से चर्म प्रसाधन सीखा।
चार्ल्स डार्विन द्वारा वैज्ञानिक रोबर्ट एडमंड ग्रांट की सहायता
चार्ल्स डार्विन ने वर्ष 1827 में 27 मार्च को बॉडी साइंस पर रिसर्च करने वाले एक विख्यात वैज्ञानिक रोबर्ट एडमंड ग्रांट की सहायता भी की थी। चार्ल्स डार्विन हमेशा से ही विश्वविद्यालय में नेचर की हिस्ट्री जानने की कोशिश करते रहते थे। इसके अलावा वह अलग-अलग प्रकार के पौधों के नाम जानने में भी उत्सुक रहते थे,साथ ही वह पौधों की कार्यप्रणाली को भी ध्यानपूर्वक समझने का प्रयास करते थे।
वह अक्सर विभिन्न प्रकार के पौधों के टुकड़े को इकट्ठा करने का काम भी करते थे। ऐसा करते-करते चार्ल्स डार्विन को नेचर में और नेचर साइंस में बहुत ज्यादा इंटरेस्ट हो गया और इसके बाद धीरे-धीरे उन्होंने प्रकृति की जानकारी इकट्ठा करना प्रारंभ कर दिया और आगे चलकर के चार्ल्स डार्विन ने पौधों के विभाजन की जानकारी भी लेनी चालू कर दी।
जब चार्ल्स डार्विन के पापा जी ने उन्हें मेडिकल की स्टडी करने के लिए कैंब्रिज के Christ कॉलेज में भेजा,तब वहां पर जाकर उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई नहीं की, क्योंकि चार्ल्स डार्विन की प्रकृति में ही रुचि थी, इसीलिए अक्सर जब प्रोफेसर क्लास में आकर के लेक्चर देते थे, तब वह लेक्चर नहीं सुनते थे और लेक्चर को छोड़कर के वह बाहर जाकर के विभिन्न प्रकार के पौधों का अध्ययन इकट्ठा करने की कोशिश करते थे।
अपनी पढ़ाई के दरमियान ही चार्ल्स डार्विन प्रोफेसर जॉन स्टीवन के संपर्क में आए और बाद में यह दोनों आपस में काफी अच्छे फ्रेंड बन गए। इसके अलावा चार्ल्स डार्विन ने नेचर साइंस के कई वैज्ञानिकों से भी मीटिंग अरेंज की और उनसे मुलाकात की। पौधों के बारे में जानकारी हासिल करते करते चार्ल्स डार्विन की परीक्षा का समय भी नजदीक आ गया, जिसमें वर्ष 1821 में उन्होंने अपनी आखिरी परीक्षा में 178 छात्रों में से 10वां नंबर हासिल किया था।
चार्ल्स डार्विन वर्ष 1831 तक कैंब्रिज में ही रहे, वहां पर उन्होंने पाले की नेचुरल टेक्नोलॉजी की पढ़ाई की और स्टडी में उन्हें जो भी बातें पता चली, उन सभी बातों को चार्ल्स डार्विन ने अपने लेख में पब्लिश भी किया।
चार्ल्स डार्विन की किताब: ऑन दी ओरिजिन ऑफ़ स्पिसेस
साल 1859 में चार्ल्स डार्विन ने एक किताब लिखी, जिसका नाम उन्होंने “ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पेस” रखा। इस किताब में चार्ल्स डार्विन ने मानवीय विकास की प्रजातियों के बारे में काफी गहराई से वर्णन किया।
चार्ल्स डार्विन ने इस किताब में जिन प्रजातियों का जो वर्णन किया था, उस वर्णन को साल 1870 से वैज्ञानिकों के मुताबिक सामान्य लोग भी मानने लगे थे।
मानवीय प्रजाति और उनके लैंगिक सिलेक्शन को टेस्ट करने का काम भी चार्ल्स डार्विन ने वर्ष 1871 में किया था। उन्होंने अलग-अलग प्रकार के पौधे पर जो भी रिसर्च की थी, उन सभी को चार्ल्स डार्विन ने एक किताब में पब्लिश भी किया था, ताकि उनकी रिसर्च के बारे में लोग जान सके।
चार्ल्स डार्विन के द्वारा लिखी गई आखिरी किताब में चार्ल्स डार्विन ने सब्जियों में पाए जाने वाले फफूंद के क्रिएशन की प्रोसेस के बारे में बताया था। इसके अलावा चार्ल्स डार्विन ने केचुए का भी टेस्ट किया और तेल पर होने वाले उनके इफेक्ट के बारे में जाना।
चार्ल्स डार्विन को बहुत सारे पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे, जिसके पीछे की मुख्य वजह थी चार्ल्स डार्विन के द्वारा मानवीय हिस्ट्री के सबसे प्रभावी भाग की व्याख्या देना।
चार्ल्स डार्विन की मृत्यु
एंजाइना पेक्टरिस नाम की बीमारी के कारण साल 1882 में 19 अप्रैल को दिल में इंफेक्शन फैलने के कारण चार्ल्स डार्विन की मौत हो गई और उन्होंने इस प्रकार इस धरती पर अपनी आखिरी सांसें ली।
चार्ल्स डार्विन के आखिरी शब्द
अपनी मौत होने से पहले चार्ल्स डार्विन ने अपने परिवार से कुछ शब्द कहे थे, जो इस प्रकार हैं:
“मुझे मृत्यु से जरा भी डर नही है – तुम्हारे रूप में मेरे पास एक सुंदर पत्नी है – और मेरे बच्चो को भी बताओ की वे मेरे लिये कितने अच्छे है।”
चार्ल्स डार्विन की आखिरी इच्छा
मरने से पहले चार्ल्स डार्विन की आखिरी इच्छा यह थी कि उन्हें चर्च यार्ड में दफनाया जाए। चार्ल्स डार्विन की मृत्यु के बाद इनकी अंतिम यात्रा निकालने के लिए 26 अप्रैल के दिन को तय किया गया और 26 अप्रैल को चार्ल्स डार्विन की अंतिम यात्रा निकाली गई, जिसमें लाखों लोग, चार्ल्स डार्विन के दोस्त, इनके साथ काम करने वाले वैज्ञानिक, दर्शन शास्त्री और शिक्षक भी मौजूद थे।
इस प्रकार चार्ल्स डार्विन अपने पीछे लाखों लोगों को रोता हुआ छोड़ कर इस दुनिया से विदा हो गए।
चार्ल्स डार्विन के कार्य
चार्ल्स डार्विन ने मुख्य तौर पर पौधों के विकास और उनके विविधीकरण से संबंधित विभिन्न प्रकार के कार्य किए थे।
जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि चार्ल्स डार्विन प्रकृति प्रेमी थे, साथ ही वह मौका मिलने पर पौधों पर रिसर्च करने का काम भी करते थे। इसीलिए पौधों पर रिसर्च करते करते उन्हें पौधों के बारे में काफी अच्छी इंफॉर्मेशन हासिल हो गई थी और पौधों पर रिसर्च करने के दौरान उन्हें जो भी इंफॉर्मेशन हासिल हुई थी़, अपने ज्ञान और अनुभवों को दुनिया तक पहुंचाने के लिए चार्ल्स डार्विन ने किताबें भी पब्लिश की थी।
चार्ल्स डार्विन के द्वारा प्रकाशित की गई किताबों का सम्मान कई वैज्ञानिकों और सामान्य लोगों ने किया था और चार्ल्स डार्विन को अपने द्वारा लिखी गई किताबों के लिए बहुत सारे पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे।
निष्कर्ष
तो साथियों इस महान प्रकृतिवादी के बारे में पढ़कर आपको कैसा लगा? हमें कमेंट बॉक्स में बताना ना भूलें, साथ ही इस जानकारी को अधिक से अधिक सांझा करके अन्य पाठकों तक भी अवश्य पहुंचाएं।
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