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आपको गुस्सा बहुत आता है, कहीं ये अहंकार तो नहीं ?

अहंकार का शुमार इंसानों के उन बड़े दुर्गुणों में होता है जो अगर एक बार किसी व्यक्ति के दिलो दिमाग में दाखिल हो जाए तो उससे निकलने की राह बेहद मुश्किल हो जाती है।

अहंकार का मतलब अपने आपको दूसरों के मुकाबले सर्वश्रेष्ठ या महान समझना है।

अहंकारी अपने अहंकार(attitude) के चलते अपने वस्त्र, समाजिक स्तर, विचारधारा, ज्ञान एवं प्रतिभा या दुनिया के अन्य मैदानों में दूसरे लोगों को नीचा समझता है और उन्हें हीन भावना से देखता है। वह जमीन पर अकड़ कर चलता है और लोगों को अपने सामने हकीर (तुच्छ) और छोटा समझता है। हालांकि अहंकार की फितरत राक्षसों की फितरत मानी जाती है और इसका भोगी कहीं भी सम्मान नहीं पाता लेकिन ये जान लेने के बावजूद भी हमारे समाज में बहुत से लोग इस बड़ी सामाजिक बुराई से ग्रस्त मिलते हैं और उससे निजात पाने के लिए कोई खास प्रयास भी अमल में नहीं लाते।

कहा जाता है कि अहंकार(Ego) ईश्वर की चादर है जो इन्सानों पर नहीं बल्कि केवल ईश्वर की महान हस्ती पर ही शोभा देती है। जिस किसी ने ईश्वर की इस चादर को उससे छीनने का प्रयास किया तो वह उसे हर हाल में जलील कर देता है और उसके हर कार्य को इतना कठिन एवं दुश्वार बना देता है कि वह उसे अंजाम तक पहुंचाने में असमर्थ हो जाता है।

True self and false self

आपने भी देखा होगा कि अहंकारी के हाथ अगर सफलता लग जाए तो वह किस प्रकार अपने आप में नहीं रहता और बहुत जल्द किस तरह उससे वह सफलता छीन ली जाती है।

क्या गुस्सा अहंकार का लक्षण है

वैसे देखा जाए तो इंसान के अंदर अगर अहंकार(False Ego) और गुस्से (Anger) जैसे दो दुर्गुण इकठ्ठा हो जाएं तो वह उसके अच्छे खासे जीवन को तबाह कर देने के लिए काफी हो जाते हैं। दुनिया में ज्यादातर अपराध भी इसी गुस्से की हालत में ही अंजाम दिए जाते हैं।

गुस्से से केवल व्यक्ति ही नहीं बल्कि उसके परिवार का सुख, शांति और सुकून भी लुट जाता है। बहुत से लोग तो छोटी छोटी बातों पर ही क्रोधित हो जाते हैं। अगर गहराई से जायज़ा लिया जाए तो गुस्सा और अहंकार एक दूसरे के पूरक हैं।

क्रोध से अहंकार बढ़ता है और कहा जाता है कि गुस्सा अहंकार की आग को भड़काने में घी का काम करता है।

इसकी एक मिसाल ये है कि मान लीजिए कि आपसे आपके दोस्त से किसी विषय पर बहस या कहासुनी हो गई। आपने गुस्से में आकर उसे कुछ अनाप शनाप कह दिया जिसे वह दिल में लेकर बैठ गया। अब यहां दोनों दोस्तों के बीच जब गुस्से की वजह से खार पैदा हो गई तो अब जहां उस गुस्से को शांत होकर दोनों के बीच एक बार फिर खुशगवार रिश्तों की बुनियाद पड़नी चाहिए थी, वहीं अब अहंकार ने आकर बेड़ागर्क करना शुरू कर दिया।

मतलब ये कि गुस्से के बाद अहंकार ही वह विचाराधारा है जो संबंधों को लंबे समय तक खराब किए रहती है।

गुस्से पर पाएं नियंत्रण

कुछ लोग अपने दोस्तों या सहयोगियों की हल्की फुल्की बातों को भी वजनदार समझ कर उन पर बुरी तरह बरस पड़ते हैं।

उनके इस आचरण पर उनके बहुत से दोस्त उन्हें समझाते भी हैं कि ज़्यादा गुस्सा अहंकार की अलामत (Sign) है और यह कि गुस्से में इंसान की अक्ल काम करना बन्द कर देती है और ऐसे आलम में वह कोई भी निर्णय सही नहीं ले पाता लेकिन चूंकि ये आदत ऐसी है कि बड़े बड़े महारथी भी गुस्से और अहंकार के सामने टिक नहीं पाए और किसी न किसी तरह ये दुर्गुण उन्हे अपना निशाना बना कर ही छोड़ता है।

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बातचीत के दौरान केवल अपनी बातों को ही महत्व देने के चक्कर में पड़े रहते हैं और दूसरे लोगों की बातों पर कोई ध्यान नहीं देते जिससे सामने वाला उन पर गुस्सा हो जाता है। बातचीत के दौरान केवल अपनी बात करना ही अहंकार माना जाता है।

हमें दूसरे लोगों की बातों को भी सुनकर उन्हें तरजीह (महत्त्व) देनी चाहिए वर्ना सामने वाले के साथ आपके संबंध खराब हो सकते हैं। हर आदमी की मंशा होती है कि उसकी कही हुई बात को गौर से सुना जाए।

कुछ लोग केवल अपने तर्क को ही सही मानकर सबको गलत सिद्ध करने की जुगत में लगे रहते हैं। यह भी एक प्रकार का अहंकार ही है। कहा जाता है कि जब इंसान के अंदर गुरूर या घमंड आ जाता है तो वह ईश्वर से दूर होने लगता है और स्वयं को ही ईश्वर समझने लगता है। वह समझता है कि वह जो कुछ कर रहा है, केवल वही सही है और बाकी सब लोग ग़लत रह कर उसके सामने बौने के समान हैं।

अहंकार और क्रोध सब कुछ बरबाद कर सकता है

गुस्सा और अहंकार आपके भीतर के सौंदर्य को उसी तरह तबाह कर देता है जैसे दीमक लकड़ी को। हर दौर के महापुरुष अपने युग के लोगों को वर्षों तक यह समझाने का प्रयास करते रहे कि वे विनम्रता और व्यवहार कुशलता को कभी अपने हाथ से जाने ना दें क्योंकि उन्हें इस बात का पुख्ता एहसास रहा करता है कि क्रोध और अहंकार किस तरह एक साथ मिलकर इंसान की जिंदगी और उसके मान, सम्मान और प्रतिष्ठा को गहरा नुक्सान पहुंचाते हैं।

मिस्र में फिरौन नामक एक बेहद क्रूर बादशाह गुजरा है जिसका साम्राज्य दूर दूर तक फैला हुआ था।

वह इतना अहंकारी और क्रूर था कि उसने सजा के तौर पर नयी-नयी मौतों के तरीक़े इजाद किए थे। उसने अपनी रिआया (जनता) पर जीवन के रास्ते तंग करके उनका बुनियादी अधिकार तक छीन लिया था।

उसके शासनकाल में लोग गुलामों जैसा जीवन गुजार रहे थे। वह उनसे कठिन से कठिन काम लेता और काम में गलती होने पर कठोर दण्ड दिया करता था। छोटी छोटी बातें अपने खिलाफ पड़ जाने पर वह अपनी जनता पर जुल्म, अन्याय और उत्पीड़न के पहाड़ तोड़ देता।

यहां तक कि अपने साम्राज्य में उसने लड़कों को केवल इसलिए मारना शुरू कर दिया कि कहीं वे निकट भविष्य में क्रान्ति लाकर उसका उत्तराधिकारी न बन जाएं। उसके इसी स्वाभिमान और गुरूर को तोड़ने के लिए ईश्वर ने अपने एक संदेष्टा (Messenger) मूसा को उसके पास भेजा ताकि वह सीधे रास्ते पर आ जाए लेकिन मूसा पैगम्बर की बातों का भी उस पर कोई असर नहीं हुआ क्योंकि वह सिर से पांव तक अहंकार में डूबा हुआ था और बात बात पर भड़क कर अपने ही लोगों पर जुल्म और सितम करता रहता।

आखिरकार, एक दिन जब वह मिस्र की नील नदी पार कर रहा था तो उसी दौरान नदी ने ईश्वर के आदेश के तहत फ़िरऔन और उसकी क्रूर सेना को निगल लिया और इस प्रकार उसके क्रूर साम्राज्य का अंत हो गया।

अगर वह पैगम्बर मूसा की बात मान लेता तो उसे इतना बुरा दिन न देखना पड़ता। मगर उसने मूसा की नसीहत और उपदेश पर कोई ध्यान न दिया और उसका हाल ये हुआ कि न केवल उसका साम्राज्य हाथ से निकल गया बल्कि उसे अपनी जान तक से हाथ धोना पड़ा। ये सिर्फ इसलिए कि सम्राट फिरऔन अपने लोगों पर बात बात पर भड़क उठता और अहंकार में आकर उन्हें तरह तरह की सजाएं दिया करता था।

क्रोध पर भी पाएं नियंत्रण

बहुत से लोग ये समझते हैं कि उनके अंदर अगर गुस्सा ज्यादा है और वे बात बात लोगों पर चढ़ दौड़ते हैं तो इसका कोई खास नुकसान नहीं है।

वे यह भी समझते हैं कि अगर उन्होंने क्रोध का दामन छोड़ दिया तो समाज के कमज़ोर लोगों पर से उसका रुआब और दबदबा खतम हो जायेगा। लेकिन यह केवल एक मनोवैज्ञानिक भ्रम है जिसे कोई व्यक्ति जितनी जल्दी दूर कर ले, उसके हक में उतना ही बेहतर होगा वरना आने वाले दिनों में इसके भयानक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

उनके अनुसार वे गुस्सा तब जाहिर करते हैं जब उन्हें किसी की गलती का एहसास कराना होता है। लेकिन सवाल ये है कि किसी को उसकी गलती का एहसास कराने के और भी तरीक़े हैं तो वह केवल क्रोध प्रदर्शन को ही क्यों इस्तेमाल में ला रहा है?

तो इसका जवाब यह है कि उस व्यक्ति के भीतर अहंकार का माद्दा मौजूद है जो उसे अपने रुआब और वर्चस्व की स्थापना के लिए प्रेरित करता रहता है। यदि यह कहा जाए कि गुस्सा और अहंकार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं तो कुछ भी बेजा न होगा।

अगर व्यक्ति के भीतर गुस्सा है तो यह कहना बिल्कुल भी गलत न होगा कि उसकी शख्सियत के भीतर अहंकार का तत्व मौजूद है जिसके चलते वह बार बार लोगों को जबरदस्ती या फिर ऐसे ही गलत साबित करने और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता है।

ईर्ष्या (Envy) पर भी पाएं काबू

ईर्ष्यालु व्यक्ति जब किसी आदमी को संपन्न या खुशहाल देखता है तो उसके सीने में हसद और जलन की आग भड़क उठती है।

वह किसी भी नेमत या उपहार को जो ईश्वर ने उसे प्रदान किया है, पचा नहीं पाता और चाहता है कि वह व्यक्ति किसी तरह उससे महरूम हो जाए।

सम्मान भी बहुत बड़ी दौलत है जो हर व्यक्ति के भाग्य में नहीं लिखी जाती बल्कि केवल उन्हीं के भाग्य रेखा के तहत आती है जो सर्व गुण संपन्न हों, कुशल व्यवहारी हों, लोगों से मुस्कुराकर मिलते हों और उनके दुख दर्द में हरदम शरीक होते हों।

अब जब इतने आकर्षक और भव्य गुण जिस किसी व्यक्ति में इकठ्ठा हो जाएं तो उसे समाज में सम्मान मिलना लाजिमी है। इसलिए अगर आपके मन में सम्मान प्राप्ति की चाहत हो तो ईर्ष्या, क्रोध और अहंकार जैसे दुर्गुणों से जितना हो सके दूरी बनाकर रखें वरना ये जहरीले बीज आपके व्यक्तित्व में यदि शामिल हो गए तो बचा खुचा सम्मान भी लुट जाएगा और आप लोगों की नजरों में भी गिर जायेंगे।

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