भारतीय राजनीति के पितामह के रूप में प्रचलित दादाभाई नौरोजी का नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे शब्दों में देखने को मिलता है। बता दें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखने वाले दादा भाई नौरोजी के व्यक्तित्व और उनके श्रेष्ठ विचारों से प्रभावित होकर भारतीय जनता ने उन्हें राष्ट्र पितामह का उपनाम दिया था।
अपने बेहतरीन कार्यों और सम्माननीय छवि की वजह से दादा भाई नौरोजी को भारतीय अर्थशास्त्र का जनक और भारत का ग्रैंड ओल्ड मैन भी कहा जाता है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना होने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन बार अध्यक्ष के पद पर भी रहे थे।
दादा भाई नौरोजी के अंदर राष्ट्रप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। अतः इन्होंने स्वराज की मांग भी की थी और अपनी पूरी जिंदगी देश सेवा में समर्पित कर दी।
इतिहास में दादा भाई नौरोजी जैसे लोग विरले ही होते हैं। आज हम इस महान शख्सियत के जीवन से जुड़ी कई अनसुनी और खास बातें आपको उनकी बायोग्राफी के माध्यम से पहुंचा रहे हैं। अतः लेख के अंत तक बने रहें।
दादा भाई नौरोजी का जीवन परिचय
पूरा नाम | दादाभाई नौरोजी |
जन्म | 4 सितम्बर, 1825 |
जन्म स्थान | बॉम्बे, भारत |
माता – पिता | मानेक्बाई – नौरोजी पलंजी दोर्दी |
मृत्यु | 30 जून, 1917 |
पत्नी | गुलबाई |
राजनैतिक पार्टी | लिबरल |
अन्य पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
निवास | लन्दन |
दादा भाई नौरोजी व्यक्तिगत परिचय
वर्ष 1825 में देश के महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर में 4 सितंबर को दादा भाई नौरोजी का जन्म एक बहुत ही गरीब पारसी फैमिली में हुआ था।
दादाभाई नौरोजी की उम्र जब सिर्फ 4 साल के थे, तभी इनके पिता नौरोजी पलंजी दोर्दी की मौत हो गई थी, पिता की मौत होने के बाद दादा भाई नौरोजी की माता श्री मानेकबाई ने काफी मेहनत करके इनका पालन पोषण किया।
दादा भाई नौरोजी के पिता की मृत्यु हो जाने के बाद इनकी फैमिली को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। दादा भाई की जो माताजी थी वह अनपढ़ थी, परंतु उन्होंने दादा भाई नौरोजी को अंग्रेजी माध्यम से एजुकेशन दिलाने का वादा किया था, इसीलिए दादा भाई नौरोजी की पढ़ाई में इनकी माता का विशेष योगदान माना जाता है।
दादा भाई नौरोजी विवाह
क्योंकि उस समय देश में बाल विवाह का चलन काफी था सिर्फ 11 साल की उम्र में अपने से 7 साल बड़ी गुलबाई के साथ दादा भाई नौरोजी की शादी हो गई थी। शादी के बाद दादा भाई नौरोजी की कुल तीन संताने हुई जिनमें से दो बेटी और एक बेटा थे।
दादा भाई नौरोजी शिक्षा
दादा भाई नौरोजी की प्रारंभिक शिक्षा “नेटिवएजुकेशन स्कूल सोसाइटी” से हुई थी। यहां से प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद दादा भाई नौरोजी ने एलफिंस्टन इंस्टिट्यूशन मुंबई से अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी।
इन्होंने इस इंस्टिट्यूट से साहित्य की पढ़ाई की थी। साहित्य के अलावा दादा भाई अंग्रेजी और गणित के भी काफी अच्छे जानकार थे। दादा भाई नौरोजी को क्लीयरेंस के द्वारा सिर्फ 15 साल की उम्र में स्कॉलरशिप प्राप्त हुई थी।
दादाभाई नौरोजी करियर
एलफिंस्टन इंस्टीट्यूशन से पढ़ाई करने के बाद दादा भाई नौरोजी ने यहीं पर हेड मास्टर की नौकरी कर ली थी।
1851 में 1 अगस्त को दादा भाई नौरोजी ने ‘रहनुमाई मज्दायास्नी सभा’ का गठन किया था, जिसका मुख्य उद्देश्य पारसी धर्म के लोगों को आपस में इकट्ठा करना था।
बता दें वर्तमान के समय में भी यह सोसाइटी मुंबई शहर में चल रही है। सामान्य जनता की पारसी अवधारणा को साफ करने में सहायक होने के लिए साल 1853 में फोर्थनाईट पब्लिकेशन के अंतर्गत दादा भाई नौरोजी ने ‘रास्ट गोफ्तार’ बनाया।
दादा भाई नौरोजी को एलफिंस्टन इंस्टिट्यूट में फिलॉसफी और गणित का प्रोफेसर सिर्फ 30 साल की उम्र में साल 1855 में बनाया गया था, उस टाइम यह पहले ऐसे इंडियन थे, जो किसी कॉलेज में प्रोफेसर की पोस्ट पर पोस्टेड हुए थे।
उसी वर्ष ‘कामा एंड को’ जो कि, पहली इंडियन कंपनी थी जो अंग्रेजों के राज में स्थापित हुई थी, उसके पार्टनर दादा भाई नौरोजी बने।
हालांकि कुछ समय बाद इन्होंने इस कंपनी से इस्तीफा दे दिया क्योंकि इन्हें कंपनी के काम करने के तरीके पसंद नहीं आए थे।
दादा भाई नौरोजी ने साल 1859 में अपनी खुद की कपास ट्रेडिंग फर्म स्थापित की थी, जिसका नाम उन्होंने “नवरोजी एंड को’ रखा था।
बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड तृतीय के अंतर्गत दादा भाई नौरोजी साल 1874 में काम करने लगे। कहा जाता है बाद में उन्हें सयाजीराव गायकवाड तृतीय का दीवान बना दिया गया था।
फिर नौरोजी ने मुंबई की विधान परिषद में एक सदस्य के तौर पर साल 1885 से लेकर 1888 तक कार्य किया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष इस साल 1886 में दादा भाई को बनाया गया। इसके अलावा साल 1893 और साल 1906 मे फिर से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर कांग्रेस के मेंबर ने दादा भाई नौरोजी को सिलेक्ट किया।
कांग्रेस के नरमपंथी दल से दादा भाई नौरोजी संबंध रखते थे, वहीं कांग्रेस में एक अलग दल भी था जिसे गरमपंथी दल कहा जाता था।
इस प्रकार जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गर्म पंथी और नरमपंथी समर्थक दो अलग अलग विचारधारा उत्पन्न हुई, तो नरमपंथियों का समर्थन दादा भाई नौरोजी ने किया, क्योंकि उनका ऐसा मानना था कि हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है, वे मानते थे हम अहिंसक होकर भी अपना हक ले सकते हैं।
दादाभाई नौरोजी राजनैतिक सफर
इंडियन पॉलिटिक्स में साल 1852 में कदम रखने के बाद दादा भाई नौरोजी ने साल 1853 में पुरजोर तरीके से ईस्ट इंडिया कंपनी के नवीनीकरण का डटकर सामना किया। इस मामले में दादा भाई नौरोजी ने अंग्रेजी सरकार को बहुत सी चिट्ठीयां भी भेजी थी परंतु ब्रिटिश सरकार ने दादा भाई नौरोजी की किसी भी चिट्ठी का जवाब नहीं दिया और नहीं उनके फैसले का समर्थन किया।
दादा भाई नौरोजी ने वयस्क लोगों की एजुकेशन के लिए “ज्ञान प्रसारक मंडली” को स्थापित किया था।
30 साल की उम्र में दादा भाई नौरोजी साल 1855 में इंग्लैंड चले गए।
दादा भाई नौरोजी का इंग्लैंड में सफर
इंग्लैंड में मौजूद विभिन्न प्रकार की अच्छी सोसाइटी को दादा भाई नौरोजी ने इंग्लैंड जाने के बाद ज्वाइन किया और वहां पर उन्होंने भारत की व्यथा और भारत की दुर्दशा के बारे में इंग्लैंड के नागरिकों को बताने के लिए कई प्रकार के भाषण दिए, विभिन्न प्रकार के आर्टिकल लिखे।
वहीं रहकर दादा भाई नौरोजी ने साल 1866 में 1 दिसंबर को “ईस्ट इंडियन एसोसिएशन” की स्थापना की दादा भाई नौरोजी के द्वारा स्थापित ईस्ट इंडियन एसोसिएशन में काफी उच्च अधिकारी और ब्रिटिश संसद के मेंबर भी शामिल हुए थे।
साल 1880 में दादा भाई एक बार फिर से लंदन चले गए और लंदन जाने के बाद लंदन के सामान्य चुनाव के दरमिया सेंट्रल फिन्स्बरी द्वारा दादा भाई नौरोजी को लिबरल पार्टी के कैंडिडेट के तौर पर प्रेजेंट किया गया।
इस चुनाव को जीतने के बाद वह पहले ब्रिटिश इंडियन मेंबर ऑफ पार्लियामेंट बने। इसके बाद दादाभाई नौरोजी ने इंग्लैंड और भारत में ICS की प्रारंभिक परीक्षा के संचालन के लिए भी एक बिल ब्रिटिश पार्लियामेंट में पेश किया और उसे पास करवाया।
दादाभाई नौरोजी सम्मान
दादा भाई नौरोजी ने अपना पूरा जोर लगाकर अंग्रेजों की खिलाफत की थी जिसके लिए उन्होंने विभिन्न प्रकार के लेख लिखे और अंग्रेजो के बुरे व्यवहार की कड़ी निन्दा की।
दादा भाई नौरोजी को इंडियन हिस्ट्री में महान स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर जाना जाता हैं जिन्होंने अंग्रेजों की गुलामी से भारत को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
इसके अलावा देश की सेवा के लिए किए गए कार्य, उनकी त्याग की भावना से प्रेरित होकर सरकार ने मुंबई की एक रोड का नाम दादाभाई नरोजी रोड रखा गया है, जो उन्हें सम्मान देने के लिए रखा गया है।
इंडियन हिस्ट्री में दादा भाई नौरोजी को इंडिया का ग्रैंड ओल्ड मैन कहा जाता है।
दादा भाई नौरोजी की मृत्यु
दादा भाई नौरोजी अपने जीवन के आखिरी दिनों में भी अंग्रेजी गवर्नमेंट के द्वारा भारतीय लोगों पर किए जा रहे अत्याचार और शोषण के खिलाफ विभिन्न प्रकार के लेख लिखकर अपना असंतोष जाहिर करते थे।
इसके साथ ही दादा भाई नौरोजी अंग्रेजों द्वारा भारतीय लोगो के किए जा रहे शोषण पर अलग-अलग जगह पर भाषण भी दिया करते थे। दादाभाई नौरोजी ने ही देश में भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन की नींव को स्थापित करने का काम किया था।
स्वास्थ्य में गड़बड़ी के चलते साल 1917 में 91 साल की उम्र में दादा भाई नौरोजी इस दुनिया को अलविदा कह गए। उनकी मृत्यु देश के महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर में हुई थी।
निष्कर्ष
तो साथियों हमें आशा है दादा भाई नौरोजी की जीवन पर आधारित इस लेख में आपको उनके जीवन से जुड़ी कई विशेष बातों को जानने का अवसर मिला होगा। अगर आप इस जानकारी से संतुष्ट हैं तो इसे दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर शेयर जरुर करें।
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