हिटलर के जमाने में जर्मनी पर पूर्ण रुप से हिटलर का अधिकार था तो वही उस समय इटली पर मुसोलिनी की तानाशाही चल रही थी। अपनी खूंखार तानाशाही की बदौलत मुसोलिनी ने इटली पर लगभग 20 सालों तक जबरदस्ती शासन किया था।
उस समय ऐसा कहा जाता था कि मुसोलिनी हिटलर के जैसा क्रूर नहीं था फिर भी उसने अपनी तानाशाही के दम पर लोग का जीना मुहाल कर रखा था।
बेनिटो मुसोलिनी की तानाशाही आखिरकार उसके मौत के साथ ही समाप्त हुई। आइए हम आपको विश्व के इतिहास में लिखित क्रूर तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी की जीवनी को विस्तार रूप से बताते हैं।
बेनिटो मुसोलिनी का जीवन परिचय
नाम | बेनिटो मुसोलिनी |
जन्म | 29 जुलाई 1883 |
जन्म स्थान | इटली |
शिक्षा | अध्ययन डिप्लोमा |
पिता | अलेसांद्रो मुसोलिनी |
माता | रोसा मुसोलिनी |
राष्ट्रीयता | इटली |
बेनिटो मुसोलिनी का प्रारंभिक जीवन
बेनिटो मुसोलिनी का जन्म साल 1883 में 29 जुलाई को इटली के ही उत्तरी पूर्व क्षेत्र में हुआ था। बेनिटो मुसोलिनी के पिताजी अलेसांद्रो मुसोलिनी थें, जो की पेशे से एक लोहार थे। और बेनिटो मुसोलिनी की माताजी रोसा मुसोलिनी किसी स्कूल में अध्यापिका के पद पर कार्यरत थी।
बेनिटो मुसोलिनी के पिता अलेसांद्रो मुसोलिनी ने अपने बेटे का नाम बेनिटो मैक्सिकन राष्ट्रपति बेनिटो जुआर्जे के नाम पर रखा हैं। बेनिटो मुसोलिनी अपने तीनों भाई बहन में सबसे बड़े थे। बचपन में बेनिटो मुसोलिनी ज्यादातर समय अपने पिताजी के साथ लोहार के काम में मदद के तौर पर बिताते थे।
मुसोलिनी के जीवन पर बचपन से उनके पिताजी का प्रभाव था जो काफी सुधारवादी लोगों से ताल्लुक रखते थे। बचपन जैसे-जैसे बीतता गया मुसोलिनी को एक बोर्डिंग स्कूल में शिफ्ट कर दिया गया।
बेनिटो मुसोलिनी के बारे में कहा जाता है कि उनका बचपन बहुत ही कठिनाइयों से भरा हुआ था। और इन्हीं कठिनाई भरे स्थितियों में उन्होंने परीक्षा उत्तीर्ण कर अध्ययन में डिप्लोमा हासिल किया।
अध्ययन में डिप्लोमा की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी वे कई वर्षों तक अध्यापन का कार्य करते रहे। फिर बाद में उन्हें इस पद से भी हटा दिया गया।
इसके बाद वर्ष 2002 में बेनिटो मुसोलिनी एक समाजवादी विचारधारा का व्यक्तित्व बन गया था। और वह स्वीटजरलैंड में जाकर बस गया। स्विट्जरलैंड में बेनिटो मुसोलिनी ने कई तरह के कामों में हाथ आजमाए पर उन्हें कहीं भी स्थाई रूप से काम नहीं मिल पाया।
फिर बाद में उन्होंने किसी तरह पत्रकारिता में ख्याति हासिल कर ली थी।
इटली में जन आंदोलन के दौरान वो सक्रिय रुप से अपनी पत्रकारिता के कारण एक कुशल वक्ता के तौर पर भी जन आंदोलन में प्रभावी होने लगे थे।
साल 1930 में उन्हें इन्हीं सब कारणों के चलते एक बार गिरफ्तार भी कर लिया गया था। और उस समय उन्हें कुछ समय कारागार में भी बिताने पड़े थे। लगभग 2 सप्ताह से भी अधिक का समय कारागार में बिताने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।
और रिहा होते ही उन्होंने अपने स्वदेश इटली लौटने का निश्चय कर लिया। यहां आने के बाद बेनिटो मुसोलिनी ने सेना में भर्ती होने का फैसला किया। उस समय सेना में भर्ती होने की 2 वर्ष की एक अनिवार्य सेवा होती थी।
परंतु बेनिटो मुसोलिनी तो बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव का था। इसलिए जब वह 2 वर्ष के अनिवार्य सैन्य सेवा करके वापस लौटा तो फिर से आंदोलनों और राजनीति में इंटरेस्ट लेने लगा और अपनी पत्रकारिता जारी रखी।
इस दौरान बेनिटो मुसोलिनी को एक बार फिर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और इस बार उसे काफी लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा।
यह भी उसके जीवन की अंतिम जेल नहीं थी, बल्कि इसके बाद भी वह कई बार कई मामलों में अपनी पत्रकारिता के चलते जेल में आता जाता रहा हालांकि अब तक वह पूरे इटली में एक व्यापक सोशलिस्ट के तौर पर फेमस हो चुका था।
बेनिटो मुसोलिनी एक जर्नलिस्ट के तौर पर
बेनीतो मुसोलिनी में पत्रकारिता की अद्भुत कला थी। मुसोलिनी के संपादन काल में समाचार पत्रों की प्रसार की संख्या लगभग दोगुनी हो गई थी। बेनिटो मुसोलिनी एक समाचार पत्र जिसका नाम “अवंती” था, उसके लिए क्रांतिकारी संपादकीय लिखता था।
किसी समाचार पत्र के दम पर बेनिटो मुसोलिनी ने इटली के विदेश नीति तक का भी विरोध किया था। और इसी विरोध के आधार पर इटली ने खुद को प्रथम विश्वयुद्ध के बीच शामिल किया था।
परंतु फिर बाद में इटली ने खुद के विचारों में परिवर्तन किया और अब उसे विश्वास हो गया पूंजीवाद नीति को समाप्त करके ही सामाजिक परिवर्तन किया जा सकता है।
यही कारण था कि ऐसी स्थिति को परिवर्तित कर बेनेटों मुसोलिनी ने इटली के प्रथम विश्वयुद्ध में शामिल होने का समर्थन किया था।
इटालियन समाज से मुसोलिनी का निष्कासन
मुसोलिनी के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह एक खुले विचारों वाला व्यक्तित्व था। यही कारण था कि उसने सोशलिस्ट पार्टी के अलावा उसके अखबार से भी त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद वह अपने देश के सैन्य सेवा में भर्ती हो गया और भर्ती होने के उपरांत ट्रेनिंग के दौरान वह घायल हो गया।
जिस कारण उसकी सेवाएं प्रतिबंधित हो गई। इसके बाद साल 1918 में जब बेनिटो मुसोलिनी युद्ध की समाप्ति पर लौटा तो उसके विचारों में काफी बदलाव हो चुका था। और अब वह पूरी तरह से समाजवाद का विरोधी हो चुका था।
अब यही समझता था कि एक सर्वशक्तिमान सरकार ही जो एक शक्तिशाली व्यक्ति द्वारा संचालित हो। वही साफ सुथरा और सही शासन दे सकती है। जिसमें शासन करने वाला व्यक्ति निर्मोही और ऊर्जावान हो।
बेनिटो मुसोलिनी द्वारा राष्ट्रीय फासीवादी पार्टी का निर्माण
साल 1919 के मार्च महीने में मुसोलिनी ने समाजवादी युद्ध में भाग लेने वाले अनेक क्रांतिकारियों को और सैनिकों को संगठित किया। जिसका नाम Italian combat squad league था।
इस टीम का लक्ष्य पूरे विश्व में फासिस्म लाना था। इटली की राजनीति में मुसोलिनी ने एक प्रभावशाली और शक्ति के तौर पर एक नया प्रयोग इस टीम के माध्यम से किया। इस टीम का लक्ष्य इटली की हर जनमानस तक फासिसम का विचार पहुंचाना था।
इटली के जनमानस में सारे समर्थक काले रंग की शर्ट पहनते थे। और राष्ट्रवादी एंटी लाइब्रेरियन समाजवाद विरोधी गतिविधियों को अपनाते थे।
वह छोटे छोटे दस्ते बनाकर साम्यवादियों आंदोलनकारियो और यूनियन हड़ताल करने वालों को रोकने का काम करते थे। इस प्रकार कुछ समय पश्चात ही मुसोलिनी के विचारों को ताकत मिली। और अब उसके संगठन ने एक विशाल रूप धारण कर लिया था।
विशेषकर मुसोलिनी ग्रामीण क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय हो गया था। उसकी भाषण देने की कला असाधारण थी।
जिसके दम पर वह अब एक जन नायक बन चुका था। मुसोलिनी के नेतृत्व में ही इटली में राष्ट्रवाद अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका था। मुसोलिनी को खासकर मध्यम वर्गीय समाज और ग्रामीण किसान वर्ग से पूरा पूरा समर्थन था।
सन 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ने के उपरांत ही मुसोलिनी ने इससे साफ इंकार कर दिया कि इटली को अब निष्पक्ष रहना चाहिए। मुसोलिनी अब एक फासीवादी था। और उसने इटली के अराजक स्थिति और आर्थिक संकट का लाभ उठाने हेतु इटली के मिलान शहर में एक फासीवादी दल की स्थापना कर दी।
जिसका नाम National fascist party रखा। प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत भी इटली में अकुशल सरकार की शासन कायम थी। सरकार की अज्ञानता और योग्यता की कमी के कारण इटली के संपूर्ण जनमानस में असंतोष का भावना और क्षोभ की भावना व्याप्त हो चुकी थी।
इटली की बिगड़ते हुई इस दशा का फायदा उठाकर मुसोलिनी ने इटली में फाइटिंग बैंड की स्थापना कर दी। हालांकि फाइटिंग बैंड की टीम कुछ ज्यादा शक्तिशाली नहीं हो पाई और असफल हो गई।
फासिस्ट दल की स्थापना करके मुसोलिनी ने देश के असंतोष और पूंजी पतियों को अपनी और मिलाकर उनकी सहानुभूति प्राप्त कर ली। और “साम्यवादी दूर करो” जैसे नारे लगवाए।
सरकार पूंजीपतियों की सहायता करना शुरू कर देती हैं इससे उनके हजारों समर्थक भी हो चुके थे। इस दल के निर्माण के समय इसमें सिर्फ 17000 सदस्य थे परंतु निर्माण के 3 साल बाद 1921 में इसकी सदस्यों की संख्या 5,00000 से भी अधिक हो गई।
मुसोलिनी इटली के प्रधानमंत्री के रूप में
ऐसा कहा जाता है कि इटली में कुछ ऐसे हालात बने थे जिसके चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री लुइगी फैटा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। तब मुसोलिनी इस मौके का फायदा उठाकर प्रधानमंत्री बन गया।
इसके बाद साल 1935 में मुसोलिनी ने ही अबिनिया पर हमला कर दिया। और यहां से द्वितीय विश्वयुद्ध का मार्ग तैयार होता चला गया। विश्वयुद्ध में हार के बाद 23 जुलाई 1942 को मुसोलिनी ने अपने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
द्वितीय विश्वयुद्ध में मुसोलिनी का प्रभाव
इटली के प्रधानमंत्री बनने के बाद मुसोलिनी ने अपने पद का फायदा उठाते हुए अबिनिया पर हमला कर दिया। और इसके बाद ही द्वितीय विश्वयुद्ध की जमीन तैयार हो गई।
द्वितीय विश्वयुद्ध में मुसोलिनी हिटलर का साथ देने लगा था और हिटलर के सहयोगी के तौर पर इसने अब तक के इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी।
इस युद्ध में सबसे पहले इटली और जर्मनी एक तरफ तो दूसरी तरफ ब्रिटेन और फ्रांस थे, जैसे-जैसे लड़ाई आगे बढ़ती गई बाकी देश भी शामिल होते गए। पहले तो इसमें हिटलर की जीत हुई परंतु बाद में हिटलर को ही शिकस्त मिली।
बेनिटो मुसोलिनी का मौत
जब साल 1945 के अप्रैल में द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने को चला था। इस वक्त सोवियत संघ और पोलैंड ने मिलकर बर्लिन पर कब्जा जमा लिया। जैसे ही मुसोलिनी को पता चला कि जर्मन सेना ने हथियार डाल दिया है तो वह अपनी गर्लफ्रेंड क्लारेटा और बाकी के 16 साथियों संग स्विट्जरलैंड की ओर भाग चला।
इसी दौरान डोगो नामक कस्बे के पास वह विद्रोहियों के हत्थे चढ़ा। इसके बाद मुसोलिनी और उसकी गर्लफ्रेंड क्लारेटा के साथ उसके बाकी के 16 साथियों को भी कोमो झील के किनारे गोलियों से भून दिया गया।
इसके बाद अगली सुबह 29 अप्रैल 1945 को इन सभी की लाशों को मिलान शहर के लोरेटो चौक पर लाकर फेंक दिया गया।
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