हर कोई अपने जीवन में कुछ ना कुछ बड़ा करने का सपना देखते हैं और (हर कोई) हम अपने सपनों के लिए जीते है और हम अपने सपने के लिए सब कुछ करने को तैयार रहते है। इस यूनिवर्स में जितनी भी रचनाएं है, वो सभी किसी ना किसी रूप में अद्भुत और सबसे अलग होती है।
इस यूनिवर्स में जो इंसान है, वो सबसे हट के और सबसे Complex Creation Of Universe है। बाकी जितनी भी सजीव है, उन सभी में इंसान शारीरिक दृष्टि से देखे तो बहुत कमजोर प्राणी है। हम इंसानों के पास शेर जितनी ताकत नहीं है, हम इंसान हाथी जितने मजबूत नहीं है, हम इंसान पक्षियों की तरह उड़ नहीं सकते है।
इतनी कमजोरियों के बावजूद इस यूनिवर्स में इंसान को ईश्वर ने एक ऐसा अनोखा पॉवर दिया है कि हम शेर को अपने कब्जे में कर सकते है, हाथी को अपने इशारों पर नचा सकते है। चिड़िया की तरह आसमान में उड़ सकते है। ये सब कुछ हम कर सकते है, अपने दिमाग की सहायता से।
प्रकृति ने जो हमें पॉवर दिया है, वो पॉवर है, इंसानी दिमाग और विवेक शक्ति।
इंसान ने बाकी रचनाओं से खुद को अलग और मजबूत तो कर दिया है, लेकिन यही इंसान, इंसानों(अपने ही जैसो) के बने बनाए जाल में आकर फंस जाता है।
हम शुरू में जिस सपनों की बात कर रहे थे, उन सपनों को पूरा करने के लिए, सपनों को साकार करने के लिए, हमें एक मजबूत Belief System चाहिए होता है, जिसे हम आत्मविश्वास भी कह सकते हैं। माइंड को एक दिशा में ट्रेंड करने की जरूरत होती है।
Mind के बारे में कहा जाता है कि जो आप अपने माइंड में create कर सकते है, उसे आप हकीकत में कर सकते है।
फिर भी हम एक जगह पर जाकर रुक जाते है कि हमनें जो सपना देखा है उसे पूरा करेंगे, उसके के लिए काम करेंगे तो लोग क्या कहेंगे?
जी हां, आपने सही पढ़ा, और ऐसा प्रश्न अगर आप कुछ अलग करने की कोशिश कर रहे हो, या Past में की होगी तो आपने दिमाग में भी आई होगी, कि
लोग क्या कहेंगे?
कुछ अलग करना चाह रहे हैं और क्या आप भी सोचते है कि लोग क्या कहेंगे?
हमारे आस पास कई सारे ऐसे भी लोग है, ये आपके परिवार में ही मिल जाएंगे, जो अपने लाइफ में करना तो बहुत कुछ चाहते थे, लेकिन इसलिए वो कुछ कर नहीं पाते है, क्योकि वो सोचते है कि लोग क्या कहेंगे? ऐसा विचार सबसे पहले असफलता के बाद लोगो के आशातीत reaction के कारण सोचते हैं, मैं स्वयं भी इस Phase से गुजर चुका हूँ।
ये जो हमारे अंदर विचार है, लोग क्या कहेंगे?
ये इसका Impact हमारे काम, एक्शन पर इतना ज्यादा पड़ता है कि हम पूरी लगन और निष्ठा से कुछ कर ही नहीं पाते। वो एक्शन जिसको लेने से हमारी जिंदगी की दिशा Change हो सकती थी, जिसको लेने से हम कुछ करने के काबिल हो सकते है, जिस एक्शन को लेने से हमारा Future अच्छा बन सकता था, उस एक्शन को बस इसलिए नहीं लेते है कि लोग क्या कहेंगे, या फिर लेकर एक अजीब डर के साथ काम कर पाते हैं जिससे सफलता का प्रतिशत स्वयं ही कम हो जाता हैं?
आइए अब जानने का प्रयास करते है कि हम क्यों सोचते है कि लोग क्या कहेंगे?
ये जो विचार है, या इसे हम स्पीड ब्रेकर कह सकते है,
ये जो स्पीड ब्रेकर है, ये ऐसे ही नहीं है, इसके पीछे बहुत सारे रीजन, बहुत सारे फैक्टर शामिल है, ये कोई किसी एक आदमी की प्रॉब्लम नहीं है, ये पूरी Humanity की प्रॉब्लम है। बहुत सारे लोग इसके चपेट में है।
Imagesbajar.com के फाउंडर और सीईओ संदीप माहेश्वरी इसे दुनिया का सबसे बड़ा रोग मानते है।
वो अपने सेमिनार और सेशन में अक्सर इस पर चर्चा करते है और युवाओं को इससे बाहर निकलने के रास्ता बताते है और एक सही माइंडसेट तैयार कर के देते है, जिससे व्यक्ति इस डर से बाहर निकल कर पूरी लगन से कार्य कर पाता हैं।
आइये, अब हम इस सोच के पीछे के कारण एक एक करके जानते है
इसका सबसे पहला कारण हमारे विकास से जुड़ा है, जो हमारे जीन(DNA) में है, जब किसी सभ्यता का विकास नहीं हुआ था, इंसान आदि मानव के रूप में था, उस समय आदि मानव को हमेशा खतरा का आभास होता रहता था।
शिकारी और खूंखार जानवरों से बचने के लिए आदि मानव ग्रुप बना के रहते है और ये जो ग्रुप होता था, यह एक तरह का सुरक्षा कवच होता था, क्योकि अगर बाहर से कोई हमला होता था, तो उस समय वो मिल कर सामना कर लेते थे। उस समय होता यह था कि आपको ग्रुप के नियम को Strictly मानना होता था। मानते है, तो ठीक है, उस नियम कानून के बाहर अगर कोई व्यक्ति सोचता था, तो उसको ग्रुप से बाहर निकाल दिया जाता था और एक बार ग्रुप से बाहर निकल जाने पर उस व्यक्ति को भोजन के लाले पड़ जाते थे और शिकारी और खूंखार जानवर मार कर खा जाते थे। ज्यादातर केस में ग्रुप से बाहर निकाले जाने पर मौत निश्चित थी।
इसलिए कोई भी नया काम करने के पहले एक बार जरूर सोचा जाता था, कि ग्रुप के लोगों की इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी।
परन्तु अब इंसान सभ्य हो गया है, सभ्यता भी विकसित हो गई, लेकिन यह तो आदिम भावनाएं है, ये अभी तक बाकी है। लोग क्या कहेंगे, इसका एक कारण एक यह भी है।
दूसरा कारण है। हम इंसान एक सोशल animal (सामाजिक प्राणी) है और हम समाज में रहते है। हमारी एक Individual Identity तो होती ही है, इसके साथ साथ हमारी एक Social Identity भी होती है। हमारे फैसलों और कार्यों का असर समाज पर भी पड़ता है। समाज के भी फैसलों और विचार का असर हम पर पड़ता है।
हम इंसान की कोडिंग इस प्रकार से की गई है कि हम अपने कामों और एक्शन के लिए सोशल Approval चाहते है। इसलिए कुछ करने से पहले एक बार जरूर हमारे अंदर एक विचार आ ही जाता है कि लोग क्या कहेंगे?
अब इसका जो तीसरा कारण है जो थोड़ा सांइटिफिक है, इसको समझने के लिए थोड़ा फिजिक्स और थोड़ी केमिस्ट्री के कॉन्सेप्ट कर बारे में पता होना चाहिए।
साइंस में एक Duality का कॉन्सेप्ट है, जो हमको समझाता है कि जो इलेक्ट्रॉन होते है, वो एक समय पर पार्टिकल भी होते है, वो तरंग भी होते है। जब डुअल शीट एक्सपेरिमेंट किया गया, उस देखा गया कि जब इलेक्ट्रॉन को Observe किया जा रहा था, उस समय वो पार्टिकल का प्रॉपर्टीज शो करता, और जब उसे Observe नहीं किया जा रहा है, तब वो तरंग का प्रॉपर्टीज शो करता है।
वैज्ञानिकों के बीच अभी कौतूहल का विषय है कि आखिर इलेक्ट्रॉन को पता कैसे चलता है कि उसे Observe किया जा रहा है कि नहीं किया जा रहा है। ये तो विज्ञान की बात रही।
इंसानों का व्यवहार भी उसी इलेक्ट्रॉन की तरह कुछ कुछ होता है। एक सामाजिक अध्ययन में पाया गया कि जब किसी इंसान को ये बात पता चलता है कि को उसे देख रहा है तब वो कुछ ज्यादा ही जागरूक हो जाता है, और उसका व्यवहार Change हो जाता है।
लोग क्या कहेंगे? वाले केस में भी ऐसा ही होता है और यह बात बार दिमाग में आती है कि लोग क्या कहेंगे।
लोग क्या कहेंगे इसका कारण जानने के बाद यह भी जान लेना जरूरी है। ये जो दुनिया का सबसे बड़ा रोग है, क्या कहेंगे लोग।
इससे बचने का उपाय क्या है?
दुनिया में कहा जाता है कि जितने भी रोग है, उन सबके इलाज भी होते है। चाहे हमें पता हो चाहे हमें ना पता हो। ये जो रोग है, क्या कहेंगे लोग वाला। ये उतना भी असर कारी नहीं है, जितना इसे हमने बना दिया।
इसके मूल कारण समझने के बाद हमको ये समझना आसान हो गया है कि हम इससे कैसे बच सकते है?
यहां पर इसी प्रसंग से संबंधित एक कहानी लेते है, जिसके द्वारा उसके उपायों को समझने का प्रयास करते है।
इसी वर्तमान समय की ही बात लेते हैं, एक स्वामी जी इंडिया टूर पर निकले थे, वो इंडिया के गांवों में घूमते है और दिन के समय डॉक्यूमेंट्री बनाते है, गांव के लोगों का जीवन कैमरे में कैद करते है, उनसे मिलते उनसे बात करते।
क्योकि स्वामी जी का फुलफिलमेंट सोसाइटी नाम का एक Organization है। वो अपने वीडियो को सोशल मीडिया पर Share करते है। उनके पीछे उनकी टीम भी चलती थी। वो Village to village tour करते थे। कभी इस गांव में कभी उस गांव में, दिन में तो लोगों से मिलते लेकिन, रात में वो सेशन करते। लोगों के सवालों के जवाब देते।
इसी प्रकार एक रात में स्वामी सेशन कर रहे थे, उस सेशन में दौरान एक व्यक्ति ने पूछा,
“स्वामी जी, मैं अपने लाइफ में ठहर सा गया हूं, मेरी लाइफ की गाड़ी रुक सी गई है, मैं कुछ भी नहीं कर पाता हूं, और हमेशा कुछ भी करने जाता हूं, तो यही सोच ठहर जाता हूं, लोग क्या कहेंगे? और आज मैं जो करना चाहता था, वो नहीं कर पाया और अब मुझे काफी Regret Feel होता है।”
इस सज्जन का सवाल सुन कर स्वामी जी सबसे पहले मुस्कुराए, उसके बाद बोले,
“लोग क्या सोचेंगे, ये तुम सोचोगे, तो लोग क्या सोचेंगे”
इतना सुन कर वो सज्जन व्यक्ति सकपका गया, धीरे से बोला, कुछ समझें नहीं
पर स्वामी जी बोले, पहले आप अपने माइंड को शांत कीजिए,
“इस पूरे यूनिवर्स(संसार) में प्रकृति ने सबको अलग अलग काम दिया है, जिसको जो काम मिला, उसे वो काम करने दो। तुम अपना काम करो। तुम जो भी करना चाहते हो, उस काम के बारे में सोचो, सोचो कैसे जो काम आप कर रहे हो या करने की सोच रहे हो, उसे सबसे बेस्ट तरीके से किया जा सकता है?
लोग क्या कहेंगे ये सोचने से बजाय ये सोचो कि इस काम कैसे सबसे कम समय में किया जा सकता है?
अपनी Thinking को डायवर्ट करो, इसको एक नया डायरेक्शन दो।
और Regret की भावना से बचो। अपने काम में Meaning Add करो, तब देखो लाइफ कैसे आसान बन जाती है।
और इसके बाद भी जब भी अगर खयाल आए कि लोग क्या सोचेंगे…बस अपने मन को एक बार याद दिला देना…
” कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना”
सब ठीक हो जाएगा
इस कहानी में स्वामी जी ने काफी Deeply और सटीक और कम शब्दों में अपनी बात समझ दी है। लोग क्या कहेंगे..ये बस हमारे दिमाग का क्रिएशन है, वास्तव में हम कुछ करे, ज्यादातर मामले में लोग उतना ध्यान भी नहीं देते है, और उनको इससे उतना ज्यादा फर्क भी नहीं पड़ता है।
इसलिए हमको जो करना है करना चाहिए..
अपने काम पर फोकस करना चाहिए, अगर काम दौरान भी एक दो नेगेटिव Comments मिल भी जाते है, तब भी उस नेगेटिव कॉमेंट का ज्यादा Seriously नहीं लेना चाहिए और रही बात आलोचना कि उसके लिए आप यह “आलोचना प्रबंधन” वाला पोस्ट पढ़े।
बस इस बॉलीवुड गीत को ध्यान में रखिये और अपना काम पूरी लगन से करते रहिए
“कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना”
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