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भारत का सबसे बुद्धिमान और पढ़ा लिखा व्यक्ति Shrikant Jichkar

मोस्ट क्वालिफाइड पर्सन – श्रीकांत जिचकर के बारें में Hindi में जाने,

डिग्रीयो का पिटारा, Dr. Shrikant Jichkar ऐसा व्यक्ति जिसकी डिग्रीयो ने उसको दुनिया में सबसे अलग पहचान दिलाई, 1973 से 1990 के बीच डॉ श्रीकांत जिचकर ने 42 यूनिवर्सिटीज के exams दिए और 20 से ज्यादा डिग्रीयाँ प्राप्त की। ध्यान रहे श्रीकांत जिचकर ने ज्यादातर Degree प्रथम श्रेणी में अर्जित की और 28 में तो गोल्ड मैडल भी प्राप्त किए।

Generally एक व्यक्ति कि‍तनी डि‍ग्रि‍यां ले पाता हैं? Bachelor Degree या ज्यादा से ज्यादा कोई Masters या उससे ज्यादा रिसर्च कर एमफि‍ल या पीएचडी।

एक व्यक्ति अपने जीवन में किसी एक ही प्रोफेशन को चुन पाता है और उसमें सफल हो पाता हैं, लेकि‍न यह शख्स ऐसा बिल्कुल नहीं था इन्होने न सि‍र्फ कई डिग्रीयां लीं, बल्कि डॉक्टर, वकील(बैरिस्टर) से लेकर आईएएस और आईपीएस जाने क्या‍-क्या‍ बन गया।

इनके अलावा यह विधायक भी रहे थे। मंत्री, सांसद भी रहे। चित्रकार और फोटोग्राफर भी थे। वे मोटिवेशनल स्पीकर भी रहे। पत्रकार भी और कुलपति भी बने। संस्कृत, गणित, इतिहासकार, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र का भी ज्ञान रखते थे और इन्होने कविताएं भी लि‍खीं, हैं न आश्चर्य?

श्रीकांत जिचकर का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है उन्हें इतनी सारी डिग्रियों की वजह इन्हें भारत का ‘मोस्ट क्वालिफाइड पर्सन (सबसे अधिक पढ़ा-लिखा आदमी)’ कहा जाता हैं।

Shirikant Jichkar का जन्म 14 सितंबर 1954 को नागपुर में एक संपन्न मराठा परिवार में हुआ था। श्रीकांत जिचकर ने कई विषयों में MA किया था। उनके पास MBA, MBBS, PHD, एमडी और डी लिट जैसी डिग्रीया भी थी।

कुछ Regular(नियमित) और कुछ Correspondence(पत्राचार) के माध्यम से उन्होंने इतनी साड़ी डिग्रीयां हासिल की थी, कुछ डिग्रियां तो उच्च शिक्षा में नियम ना होने के कारण उन्हें मिल ही नहीं पाई जबकि उनके exams इन्होने दिए थे।

जानिए इस करिश्माई शख्सियत के बारे में और भी चौंकाने वाली बातें

Shrikant-Jichkar-in-Hindi
श्रीकांत जिचकर (बाएँ से तीसरे)

Dr. Shrikant Jichkar 1986 से 1992 तक महाराष्ट्र विधान परिषद और 1992 से 1998 तक राज्यसभा सांसद भी रहे तथा संसद की बहुत सी समितियों के सदस्य रहे, वहाँ भी अति महत्वपूर्ण कार्य किये।

जिस इंसान के पास इतनी सारी डिग्रियां हों वह पढ़ता तो खूब होगा यह तो सभी मानते ही होंगे। किताबों से उन्हें कितना लगाव था, इसका पता इसी बात से चलता है कि उनकी अपनी एक Personal Library थी, जिसमें 52 हजार से भी अधिक किताबें रखी थीं।

उनका पुस्तकालय किसी व्यक्ति का निजी सबसे बड़ा पुस्तकालय था।

डॉ श्रीकांत गीता, उपनिषद, वेद-पुराण आदि ग्रन्थों का भी गहरा ज्ञान रखते थे।

डिग्री की संख्या देखकर ऐसा लगा रहा होगा कि डॉ जिचकर सिर्फ एक किताबी कीड़ा थे, अगर ऐसा सोच रहे हैं तो आप गलत हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. जिचकर एक Painter, Professional Photographer, स्टेज एक्टर के अलावा एक शिक्षाविद भी थे।

कहा जाता है कि 1999 में उन्हें कैंसर हुआ और दुर्भाग्य से यह अंतिम स्टेज तक पहुंच गया। डॉक्टर ने कहा आपके पास केवल एक महीना ही है।

अस्पताल पर मृत्यु शैया पर पड़े हुए थे परन्तु उनके आध्यात्मिक विचारों ने आस नहीं छोड़ी उसी दौरान कोई सन्यासी अस्पताल में मिलने आया और उसने उन्हें ढांढस बंधाया संस्कृत भाषा, शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया, कहा तुम अभी नहीं मर सकते, अभी तो तुम्हें बहुत काम करना है।

और कुछ ही दिनों में चमत्कारिक तौर से श्रीकांत जिचकर पूर्ण स्वस्थ हो गए

स्वस्थ होते ही राजनीति से सन्यास लेकर संस्कृत में डी.लिट. की उपाधि अर्जित की और संस्कृत में ही अपने आगे के जीवन लगाने की सोची, शास्त्रों का अध्ययन किया।

डॉ श्रीकांत कहा करते थे संस्कृत भाषा के अध्ययन के बाद मेरा जीवन परिवर्तित हो गया है। मेरी ज्ञान-पिपासा अब जाकर सच्चे अर्थो में पूर्ण हो पायी हैं।

उसके बाद उन्होंने पुणे में संदीपनी स्कूल की स्थापना भी की।

और उसके बाद नागपुर में कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की जिसके पहले कुलपति भी बने।

उनका एक ही सपना था, भारत के प्रत्येक घर में कम से कम एक संस्कृत भाषा का विद्वान व्यक्ति अवश्य हो तथा कोई भी परिवार मधुमेह जैसी जीवनशैली और उससे जुड़ी बीमारियों का शिकार ना हो।

YouTube पर उनके केवल 3 ही मोटिवेशनल Health Fitness संबंधित वीडियो उपलब्ध हैं।

  1. Dr. Shrikant Jichkar’s Speech Nagpur Fitness Movement part 1
  2. Dr Shrikant Jichkar’s Speech Nagpur Fitness Movement Part 2
  3. Dr Shrikant Jichkar Health Speech Part 3

ऐसे असाधारण प्रतिभा के लोग, कम आयु ही प्राप्त कर पाते हैं इस बात का इतिहास गवाह हैं अति मेधावी, अति प्रतिभाशाली व्यक्तियों का जीवन ज्यादा लंबा नहीं होता, स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी विवेकानंद भी अधिक उम्र नहीं जी पाए थे।

2 जून 2004 को नागपुर से 60 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र में ही भयंकर सड़क हादसे में श्रीकांत जिचकर जी का निधन हो गया।

संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार और Holistic health(समग्र स्वास्थ्य) को लेकर उनका सपना अधूरा ही रह गया।

इतना याद रहे, इतने ज्ञानी और प्रतिभावान व्यक्ति होने के बावजूद भी डॉ श्रीकांत जिचकर ने India को ही अपनी कर्मभूमि बनाया और देशवासियों की सेवा करने का फैसला किया था, यह हम सबके लिए बहुत गर्व की बात है। आशा हैं आप सभी डॉक्टर श्रीकांत जिचकर से प्रेरित हुए होंगे और सफलता प्राप्त करने के लिए पूर्ण प्रयास करेंगे।

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