हम जिस माहौल में वास करते हैं वहां के माहौल को साफ सुथरा बनाए रखने की चिंता करते रहना भी हमारा परम कर्तव्य है क्योंकि इसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से फायदा या नुक्सान हम तक ही पहुंचता है। इसलिए पर्यावरण की तबाही सीधे तौर पर हमारी तबाही के समान है।
हम जब अपने पर्यावरण के प्रति जागरूक और जिम्मेदार होते हैं तो इसका सीधा और सकारात्मक असर हमारे आसपास या दूरदराज के माहौल पर पड़ता है। क्योंकि जिस सरजमीन पर आप रिहायशी हैं, उसके प्रति हरेक नागरिक की अपनी एक अलग ही नैतिक जिम्मेदारी है।
इसलिए पर्यावरण संरक्षण (Environmental Protection) सिर्फ सरकार या किसी संस्था विशेष की जिम्मेदारी नहीं बल्कि यह दुनिया के हर एक इंसान की नैतिकता पर आधारित जिम्मेदारियों में शुमार की जाती है।
जब से औद्योगिकरण और शहरीकरण ने दुनिया में अपने पांव पसारने शुरू किये, तबसे हम अपने माहौल को अजीबोगरीब दिशाओं में करवट बदलकर खौफनाक रुख अख्तियार करते देख रहे हैं।
हम विकास की गंगा बहाने में इस कदर लीन हो गए कि हमें अपने पर्यावरण की कोई चिंता ही न रही। इस तरह इन दिनों जमीन पर मौसम की मार के चलते कोहराम मचा हुआ है। कहीं सैलाब का खौफनाक मंज़र है तो कहीं जमीन सूखे से ग्रस्त होकर बूंद बूंद पानी के लिए तरस रही है।
कहीं आसमान अपने दरवाजे खोल कर इस कदर बरसता है कि लोगों को सूरज का चेहरा देखे हफ्तों बीत जाते हैं तो कहीं हवाएं ऐसा लगता है कि बदले की भावना लिए हमारे अस्तित्व को लील जाने की कोशिश कर रही हों। कुदरत की हरेक रचना विचित्र और हैरतअंगेज रहकर हमारे लिए किसी बड़े तोहफे और अमानत से कम नहीं थी।
लेकिन इन तोहफों का इंसानों ने कोई मोल न समझा और आज हालत यह है कि तबाही के द्वार पर खड़े हो चुके हैं।
वृक्ष धरा के भूषण करते दूर प्रदूषण
दुनिया में बहुत से ऐसी संस्थाएं हैं जो पर्यावरण संरक्षण के प्रति गंभीर रहकर लोगों को जागरूक बनाने का प्रयास अमल में लाती हैं। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि उनका प्रयास रंग नहीं ले आता लेकिन इन संगीन परिस्थितियों में भी बहुत कम ऐसे लोग हैं जो उनके जागरूकता अभियान या विचारधारा से प्रभावित हुआ करते हैं।
पर्यावरण से जुड़ी बहुत सी संस्थाएं लोगों को यह संदेश देती रही हैं कि वे कुदरत के करीब जाएं और अपने सबसे गहरे दोस्त यानी वृक्षों को रोपने की अपनी नैतिक जिम्मेदारी को समझें। उनके कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए बहुत से लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा भी लिया करते हैं।
लेकिन उसका कोई वैसा खास असर हमें नज़र नहीं आता जो आज हमारे पर्यावरण और समय की मांग है। दरअसल इंसानों का पेड़ों से बिल्कुल तरह संबंध है जैसे आत्मा का शरीर से रिश्ता होता है। ईश्वर ने इस संसार में जितनी भी रचनाएं की हैं, वे सभी हैरतअंगेज और हम इंसानों के हितों की संरक्षक हैं।
इन्हीं हितकारी ईश्वरीय रचनाओं में पेड़ पौधे और वनस्पतियाँ भी शामिल जो दिन भर से धूप की सख्ती को बरदाश्त कर हमारे लिए घनेसायों का बंदोबस्त करते हैं। पेड़ हमारी धरती का खूबसूरत परिधान और हमारे पर्यावरण का अभिन्न अंग है जिनके बिना वातावरण की शुद्धि असंभव है। इसलिए हमारे हाथों हो रही इनकी तबाही अप्रत्यक्ष रूप से हमारी तबाही है।
वृक्षों की महत्ता और उसके सकारात्मक प्रभावों से लोगों को बावर कराना ही पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी संस्थाओं की मूल मंशा होती है जिसका हमें भरपूर सहयोग और समर्थन करना चाहिए।
दरअसल, आमतौर पर पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण को चौतरफा हरियाली से जोड़ा जाता है। यह अच्छे इशारे हैं लेकिन इसके विस्तृत पहलुओं पर अगर नज़र की जाए तो इस संरक्षण में पेड़ पौधों और वनस्पतियों के साथ वायु, जल और पशु आदि सब शामिल रहा करते हैं जिनके संरक्षण और सुरक्षा के प्रति जागरूक रहकर अपने फर्ज निभाते रहना हम सभी मनुष्यों का परम कर्तव्य है।
जब हम अपने आंगन में एक नन्हा सा पौधा लगाते हैं और उसे हर दर्जा प्यार कर सुब्हो शाम उसकी सेवा करते हैं तो उस समय हम सिर्फ और सिर्फ अपना ही भला कर रहे होते हैं। यह पौधा एक दिन घने पेड़ का रूप धरकर अपना फर्ज अंजाम देता है और सिर्फ हमें ही नहीं बल्कि आम लोगों को भी अपनी घनी छांव में रखकर आजीवन फायदा पहुंचाता रहता है।
वह नन्हा पौधा जो अब छायादार वृक्ष का रूप धर चुका है, बदले में हमसे कुछ लेना भी पसंद नहीं करता। उसे केवल प्यार और सम्मान की आवश्यकता होती है। किसी भी तरीक़े से वातावरण को सुरक्षित रखना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि पर्यावरण और जीवन में गहरा रिश्ता है। अगर पर्यावरण महफूज़ न रहे तो निरोग और सेहतमंद जिन्दगी की कभी कामना नहीं की जा सकती।
इन दोनों के बीच अगाढ़ लगाव उस दौर से है, जब पृथ्वी पर जीवन का आगाज हुआ था। हमारा अन्त और विनाश भी तभी आएगा जब पृथ्वी पर जीवन के लिए हमारा पर्यावरण नाराज़ होकर प्रतिकूल और नकारात्मक हो जाएगा।
पर्यावरण का मिजाज तभी बिगड़ता है जब इंसान उसके साथ दोस्ती का हाथ चुरा लेता है। हमारे पर्यावरण की हमेशा से यही मानसिकता रही है कि जब वह इंसानों के लिए इतना कुछ कुर्बान करता है तो इंसानों के भी उसके संरक्षण या देखभाल के कुछ दायित्व होने चाहिए। जब हम इस दायित्व से खुद को बरी समझने लगते हैं तो पर्यावरण भी हम पर अपना विनाशकारी रूप दिखाकर बुरी तरह बरस पड़ता है।
कैसे बदलेगा पर्यावरण का मिजाज़?
जब कभी हमें इस बात का एहसास होने लगे कि पर्यावरण हम इन्सानों पर अपने ज़बरदस्त गुस्से और आक्रोश का इजहार कर रहा है तो हमें उसी समय सजग होकर उसके प्रति कृतज्ञता और समर्पण भाव व्यक्त करना चाहिए और उसकी सेवा में लीन होकर उसे हर हाल में खुश रखने की कोशिश करनी चाहिए।
याद रहे कि कोई भी दोस्ती आपसी सहयोग, प्रेम और समन्वय के बिना गहरी और अगाढ़ नहीं हो सकती। इस बात को मद्देनजर रखते हुए हमें पर्यावरण की सेवा और संरक्षण में व्यस्त रहना चाहिए।
गौरतलब हो कि पर्यावरण प्रदूषण के तीन महत्वपूर्ण स्रोत माने जाते हैं जिसमें वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण शामिल हैं।
हम एक झटके में तो इन तीनों किस्म के प्रदूषण पर काबू नहीं पा सकते लेकिन अगर प्रदूषण को दूर करने में हमारी मेहनत, लगन और निरंतरता शामिल हो जाए तो पर्यावरण संरक्षण को काफी हद तक आसान बनाया जा सकता है।
कैसे दूर हो हवा का प्रदूषण
हवा के प्रदूषण को दूर करने के लिए उसके कारक और कारक की जानकारी और उसे दूर करने वाले उपायों पर गंभीरता से ध्यान देना ज़रूरी होता है। वायु प्रदूषण से ग्रीन हाउस गैसों में भारी वृद्धि दर्ज की जा रही है जो ज़मीन पर जीवन और हालात के लिए अत्यंत घातक साबित हो रही है।
यह सब हमारी अपनी करतूत का नतीजा है। हमने विकास के नाम पर विनाश को दावत दे दी है। हमने शहर बसाने या फैक्ट्रियां या कल कारखानों की स्थापना के लिए घने जंगल के पेड़ों को काट कर धराशाई कर दिया।
वास्तव में, हमने जमीन पर अपने सबसे वफादार दोस्तों से ही दुश्मनी मोल ली है। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए हमारे पास ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने के अलावा दूसरा कोई प्रभावशाली विकल्प नहीं है।
इसके अलावा हम अपने स्तर पर गाड़ियों की तादाद कम कर सकते हैं जिसे निकलने वाले काले धुएँ ओजोन परत को गहरा नुकसान पहुंचा रहे हैं जो सूरज के खतरनाक रेडिएशन को रोकने में हमारी भरपूर मदद करती है।
हम अपनी दैनिक जरूरतों की पूर्ति के लिए बिजली का इस्तेमाल करते हैं। विद्युत निर्माण के लिए जीवाश्म का प्रयोग किया जाता है। अगर इसके स्थान पर सोलर पैनलो का इस्तेमाल किया जाने लगे तो वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव कम होगा और इस तरह हम वायु प्रदूषण से निजात पा सकते हैं।
जल संरक्षण पर देना होगा ध्यान
जल प्रदूषण दुनिया भर में हमारे पर्यावरण को गहरा नुकसान पहुंच रहा है। हमारा पानी गन्दा हो रहा है जिससे हम नई-नई लाईलाज और गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।
फैक्ट्रियों और कल कारखानों से निकलने वाले गाढ़े काले पदार्थ के कुछ खतरनाक तत्व भी पानी पीने के दौरान हमारे शरीर में दाखिल हो जाते हैं। हमारे घरों के गंदे पानी को निकास करते हुए स्थानीय नदियों में मिला दिया जाता है। इस तरह पानी जहरीला हो जाता है और यह केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि जानवरों के अस्तित्व के लिए भी भारी खतरे उत्पन्न कर देता है।
जल प्रदूषण से इन्सानी शरीर में रुनमा होने वाली कुछ गंभीर बिमारियों में टाइफाइड, खुजली, त्वचा का कैंसर, पेचिश और मलेरिया आदि शामिल हैं। इसके अलावा गन्दे पानी से कृषि के क्षेत्र में पैदावार में भी भारी कमी दर्ज की जाती है।
पानी को साफ सुथरा रखने के लिए हमें कूड़े कचरों को नदियों में मिलाने से बाज़ आना चाहिए जिसके विकल्प के तौर पर किसी प्रभावी और किफायती तरीके पर गौर करना चाहिए। लोगों को जल प्रदूषण के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है कि वे सार्वजनिक जल प्रणाली से छेड़छाड़ करने की कोशिश ना करें और नदियों नालों एवं कुओं की निगरानी कर उन्हें साफ सुथरा बनाए रखने का प्रयास करते रहें।
कैसे लगेगी ध्वनि प्रदूषण पर लगाम?
इस आधुनिक युग में हम देखते हैं कि मशीनों ने हमारा काम आसान तो कर दिया है लेकिन यह आधुनिक यंत्र बहुत ज्यादा आवाज करते हैं जो इंसानी सेहत और उसके मानसिक क्षमता के लिए काफी खतरनाक है।
सड़कों पर चलने वाली गाड़ियों की चिल पो, फैक्ट्रियों में लगी बड़ी-बड़ी मशीनों की आवाज, डीजे और तेज़ लाउडस्पीकर से निकलने वाली ध्वनि इंसान पर कहर बनकर टूट रही है। याद रहे कि किसी भी इंसान की श्रवण क्षमता 80 डेसिबल मानी जाती है और इसके ऊपर अगर कोई आवाज आए तो वह उसकी सेहत पर विपरीत असर डालती है।
आमतौर पर आजकल ध्वनि यंत्र 80 डेसिबल से ऊपर ही आवाज किया करते हैं। शून्य से 25 डेसिबल तक की आवाज को शांति की अवस्था में रखा जाता है। अगर इसके ऊपर कोई शख्स आवाज सुनने लगे तो वह बहरा भी हो सकता है।
इसके अलावा उसे सिर दर्द, थकान, अनिद्रा, मानसिक कमजोरी और बेचैनी के साथ दिल की बीमारी और कोलेस्ट्रॉल की शिकायत भी हो सकती है। किसी भी समस्या के समाधान के लिए हमें सबसे पहले उसकी भयावहता से लोगों को आगाह करना जरूरी होता है।
ध्वनि प्रदूषण के प्रति लोगों को जागरूक करना और उसके नुकसानदेह प्रभावों को लोगों में आम करना जरूरी है। बहुत से लोग आवाज़ के प्रदूषण की ओर ध्यान नहीं देते जबकि यह इतना खतरनाक है कि दीवारों में भी दरार डाल सकता है तो फिर भला बताइए कि इंसानी जिस्म का क्या हाल होगा?
मशीनों को अगर साउंडप्रूफ कमरों में रखा जाए तो दूसरे लोग इसके दुष्प्रभाव से बच सकते हैं। इसके अलावा फैक्ट्रियों और कल कारखानों को शहर से दूर किसी एकांत स्थान में ही स्थापित करना चाहिए ताकि आम लोग इसके बुरे असर से सुरक्षित रह सकेंl
लाउडस्पीकरों और गाड़ियों से निकलने वाले तेज हॉर्न पर भी लगाम लगानी चाहिए और मशीनों की सही देखभाल करनी चाहिए क्योंकि जब अमूमन देखा जाता है कि जब वे किसी गड़बड़ी से दोचार होती हैं तो और ज़्यादा आवाज करने लगती हैं।