AchhiBaatein.com

आपने मेरे लिये किया ही क्या हैं? क्या कमाकर रखा मेरे लिये?

पिता बच्चे के लिए धरती पर साक्षात भगवान रूप होते हैं। संतान को सुख देने के लिए अपने सुखों को भुला देते हैं रात-दिन अपने बच्चों के लिए ही मेहनत करते हैं उन्हें वो हर सुविधा देना चाहते है जो उन्हें भी कभी नहीं मिली।

कई बार छोटी सी तनख्वाह में भी बच्चों को अच्छी शि‍क्षा देने के लिए पिता कर्ज में भी डूब जाते हैं परन्तु बच्चों के सामने कभी कोई परेशानी जाहिर नहीं करते.. शायद इसीलिए पिता, दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण होते हैं।

पिता कभी भी अपनी कोई तकलीफ किसी को नहीं बताते बल्कि वे घर के लोगों की हर जरूरत और तकलीफ का पूरा ध्यान रखते हैं। इन्हीं सब विशेषताओं के कारण पिता की महानता और अधि‍क बढ़ जाती है और उनकी तुलना दुनिया में किसी से भी नहीं की जा सकती।

बच्चे कोई बड़ी से बड़ी गलती भी क्यों न कर दें, पिताजी हमेशा कुछ देर गुस्सा दिखाने के बाद उसे माफ कर देते हैं।

आइए पढ़ते हैं एक बहुत मर्मस्पर्शी कहानी

“अजी सुनते हो? राहुल को कम्पनी में जाकर टिफ़िन दे आओगे क्या?”

“क्यों आज राहुल टिफ़िन लेकर नहीं गया?”

शरदराव ने पुछा।

आज राहुल की कम्पनी के Chairman आ रहे हैं, इसलिये सुबह सात बजे ही निकल गया और इतनी सुबह खाना नहीं बन पाया था।”
“ठीक हैं, दे आता हूँ मैं”

शरदराव ने हाथ से अखबार रख दिया और वो कपडे बदलने के लिये कमरे में चले गये।
पुष्पाबाई ने एक उदासी और परेशानी छोडकर राहत भरी साँस ली।

शरदराव तैयार हुए मतलब उसके और राहुल के बीच हुआ विवाद उन्होंने नहीं सुना था।

विवाद भी कैसा? हमेशा की तरह राहुल का अपने पिताजी पर दोषारोपण करना और पुष्पाबाई का अपनी पति के पक्ष में बोलना।

विषय भी वही! हमारे पिताजी ने हमारे लिये क्या किया? मेरे लिये क्या किया हैं मेरे बाप ने? ऐसा गैरसमझ उसके मन में समाया हुआ था।

“माँ! मेरे मित्र के पिताजी भी शिक्षक थे, पर देखो उन्होंने कितना बडा बंगला बना लिया और एक ओर ये हमारे पापा (पिताजी) जिसके कारण अभी भी हम किराये के मकान में ही रह रहे हैं।”

“राहुल, तुझे मालूम हैं कि तुम्हारे पापा घर में बडे हैं और दो बहनों और दो भाईयों की शादी का खर्चा भी उन्होंने उठाया था। सिवाय इसके तुम्हारी बहन की शादी का भी खर्चा उन्होंने ही किया था। अपने गांव की जमीन की कोर्ट-कचहरी भी लगी ही रही। ये सारी जवाबदारियाँ किसने उठाई? जरा यह सोच कर भी देखो।”

“आखिर क्या उपयोग हुआ उसका? उनके सारे भाई-बहन बंगलों में रहते हैं। कभी भी उन्होंने सोचा कि हमारे लिए, जिस भाई ने इतने कष्ट उठाये उसने, एक छोटा सा मकान भी नहीं बनाया, तो हम ही उन्हें एक मकान बना कर दे दें?”

एक क्षण के लिए पुष्पाबाई की आँखें भर आईं।

पिता और पुत्र की रोचक कहानी

परेशानी और दुखी सी वह क्या बताएं अपने ही जन्म दिये पुत्र को “बाप ने क्या किया मेरे लिये” पूछ रहा हैं?

फिर बोली ..

“तुम्हारे पापा ने अपना कर्तव्य निभाया हैं। भाई-बहनों से कभी कोई आशा नहीं रखी।”

राहुल मूर्खों जैसी बात करते हुए एक और तर्क देकर बोला – “अच्छा वो ठीक हैं। उन्होंने हजारों बच्चों को ट्यूशन्स दी, यदि उनसे ही फीस ले लेते तो आज पैसो में खेल रहे होते, कम से कम घर का मकान को बनवा ही लिया होता।

आजकल के क्लासेस वालों (ट्यूशन्स देने वालो) को देखो। Imported गाड़ियों में घुमते हैं।”

“यह तुम सच बोल रहे हो। परन्तु, तुम्हारे पापा (पिताजी) का तत्व और आदर्श था कि ज्ञानदान का पैसा नहीं लेना।

उनके इन्हीं तत्वों के कारण उनकी कितनी प्रसिद्धि हुई और कितने पुरस्कार मिलें। उसकी कल्पना हैं क्या तुझे?”

ये सुनते ही राहुल एकदम नाराज हो गया।

“क्या चाटना हैं उन पुरस्कारों को माँ? उन पुरस्कारों से घर थोडे ही बन जाएगा। पडे-पडे ही धूल ही खा रहे हैं। कोई नहीं पुछता उनको।”

इतने में दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी। राहुल ने दरवाजा खोला तो शरदराव खडे थे।

पापा ने उनका बोलना तो नहीं सुना, इस डर मात्र से राहुल का चेहरा उतर सा गया। परन्तु, शरदराव बिना कुछ बोले ही अन्दर चले गये और यह वाद वहीं खत्म हो गया।

ये था पुष्पाबाई और राहुल का कल का झगड़ा, पर आज …

शरदराव ने टिफ़िन साईकिल को अटकाया और तपती धूप में औद्योगिक क्षेत्र की राहुल की कम्पनी के लिये निकल पडे।

सात किलोमीटर दूर कंपनी तक पहूचते-2 उनका दम फूल गया था। कम्पनी के गेट पर Security Guard ने उन्हें रोक दिया।

“राहुल पाटील साहब का टिफ़िन देना हैं। अन्दर जाँऊ क्या?”

“अभी नहीं बड़े साहब आये हुए है, आपको थोडा Wait करना पड़ेगा।” गार्ड बोला।

“Chairman साहब आये हुए हैं। उनके साथ मीटिंग चल रही हैं। किसी भी क्षण वो मीटिंग खत्म कर आ सकते हैं। आप बाजू में ही खड़े रहिये। Chairman साहब को आप दिखना नहीं चाहिये।”

शरदराव थोडी दूरी पर धूप में ही खडे रहे। आसपास कहीं भी छांव नहीं थी।

थोडी देर बोलते बोलते एक घंटा निकल गया। पांवों में दर्द उठने लगा था।

इसलिये शरदराव वहीं एक तपते पत्थर पर बैठने लगे तभी गेट की आवाज आई। शायद मिटिंग खत्म हो गई होगी।

Chairman साहेब के पीछे पीछे कई अधिकारी और उनके साथ राहुल भी बाहर आया।

उसने अपने पिताजी को वहाँ खडे देखा तो मन ही मन नाराज हो गया।

Chairman साहब कार का दरवाजा खोलकर बैठने ही वाले थे तो उनकी नजर शरदराव की ओर उठ गई।

कार में न बैठते हुए वो वैसे ही बाहर खडे रहे।

वो सामने कौन खडा हैं?” उन्होंने सिक्युरिटी गार्ड से पुछा।

“अपने राहुल सर के पिताजी हैं। उनके लिये खाने का टिफ़िन लेकर आये हैं।”
गार्ड ने कंपकंपाती आवाज में कहा।

बुलवाइये उनको

जो नहीं होना था वह हुआ।

राहुल के तन से पसीने की धाराऐं बहने लगी। क्रोध और डर से उसका दिमाग सुन्न हुआ जान पडने लगा।

गार्ड के आवाज देने पर शरदराव पास आये।

Chairman साहब आगे बढे और उनके समीप गये।

आप पाटील सर हैं ना आप? D. N. Highschool में शिक्षक थे आप?

“हाँ लेकिन आप कैसे पहचानते हो मुझे?”

कुछ समझने के पहले ही Chairman साहब ने शरदराव के चरण छूये। सभी अधिकारी और राहुल वो दृश्य देखकर अचंभित रह गये

“सर, मैं अतिश अग्रवाल, आपका विद्यार्थी। आप मुझे घर पर भी पढ़ाने आते थे।”

हाँ.. हाँ.. याद आया। बाप रे बहुत बडे व्यक्ति बन गये आप तो..

Chairman हँस दिये। फिर बोले, “सर आप यहाँ धूप में क्या कर रहे हैं। आईये अंदर चलते हैं। बहुत बातें करनी हैं आपसे।

Security तुमने इन्हें अन्दर क्यों नहीं बिठाया?”

गार्ड ने शर्म से सिर नीचे झुका लिया।

वो देखकर शरदराव ही बोले – “इनकी कोई गलती नहीं हैं दरसल आपकी मीटिंग चल रही थी। आपको तकलीफ न हो, इसलिये मैं ही बाहर रूक गया था

“ओके… ओके…!”

Chairman साहब ने शरदराव का हाथ अपने हाथ में लिया और उनको अपने आलीशन चेम्बर में ले गये।

“बैठिये सर। अपनी कुर्सी की ओर इंगित करते हुए बोले।

“नहीं, नहीं। वो कुर्सी आपकी हैं।” शरदराव सकपकाते हुए से बोले।

“सर, आपके कारण वो कुर्सी मुझे मिली हैं।
तब पहला हक आपका हैं।”

Chairman साहब ने जबरदस्ती उन्हें अपनी कुर्सी पर बिठाया।

“आपको मालूम नहीं होगा पवार सर..”

जनरल मैनेजर की ओर देखते हुए बोले,

“पाटिल सर नहीं होते तो आज ये कम्पनी नहीं होती और मैं मेरे पिताजी की अनाज की दुकान ही संभाल रहा होता।”

राहुल और General Manager दोनों आश्चर्य से उनकी ओर देखते ही रहे।

“स्कूल समय में मैं बहुत ही डब्बू विद्यार्थी था। जैसे तैसे मुझे नवीं कक्षा तक पहुचांया गया। शहर की सबसे अच्छी क्लासेस में मुझे एडमिशन भी दिलवाया गया। परन्तु मेरा ध्यान कभी पढाई में नहीं लगा। उस पर अमीर बाप की औलाद, दिन भर स्कूल में मौज मस्ती और मारपीट करना, बस यहीं काम था मेरा, चेयरमैन साहब हँसते हुए बोले।

शाम की क्लासेस से बंक मार कर फिल्म देखना यही मेरा शौक था। माँ को वो सहन नहीं होता था। उस समय पाटिल सर कडे अनुशासन और उत्कृष्ट शिक्षक के रूप में प्रसिद्ध थे। माँ ने उनसे मुझे पढ़ाने की विनती की। परन्तु सर के छोटे से घर में बैठने के लिए जगह ही नहीं थी। इसलिये सर ने पढ़ाने में असमर्थता दर्शाई।

माँ ने उनसे बहुत विनती की और हमारे घर आकर पढ़ाने के लिये मुँह मांगी फीस का बोला। सर ने फीस के लिये तो मना कर दिया। परन्तु अनेक प्रकार की विनती करने पर घर आकर पढ़ाने को तैयार हो गये

पहले दिन सर आये। हमेशा की तरह मैं शैतानी करने लगा। सर ने मेरी अच्छी तरह से धुनाई कर दी। उस धुनाई का असर ऐसा हुआ कि मैं चुपचाप बैठने लगा। तुम्हें सच कहता हूँ राहुल, पहले हफ्ते में ही मुझे पढ़ने में रूचि जागृत हो गई। तत्पश्चात मुझे पढ़ाई के अतिरिक्त कुछ भी सूझता था। सर इतना अच्छा पढ़ाते थे, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान जैसे विषय जो मुझे कठिन लगते थे वो अब सरल लगने लगे थे।

सर कभी आते नहीं थे तो मैं व्यग्र हो जाता था। नवीं कक्षा में मैं दुसरे नम्बर पर आया। माँ-पिताजी को खुब खुशी हुई। मैं तो, जैसे हवा में उडने लगा था। दसवीं में मैंने सारी क्लासेस छोड दी और सिर्फ पाटिल सर से ही पढ़ने लगा था और दसवीं में मेरिट में आकर मैंने सबको चौंका दिया था।”

“माय गुडनेस…! पर सर फिर भी आपने सर को फीस नहीं दी?”
जनरल मैनेजर ने पुछा।

“मेरे माँ – पिताजी के साथ मैं सर के घर पेडे लेकर गया था। पिताजी ने सर को एक लाख रूपये का चेक दिया। सर ने वो नहीं लिया। उस समय सर क्या बोले वो मुझे आज भी याद हैं।

सर बोले – “मैंने कुछ भी नहीं किया। आपका लडका ही बुद्धिमान हैं। मैंने सिर्फ़ उसे रास्ता बताया और मैं ज्ञान नहीं बेचता। मैं वो दान देता हूँ। बाद में मैं सर के मार्गदर्शन में ही बारहवीं मे पुनः मेरीट में आया।

बाद में इंजीनियरिंग करने के बाद अमेरिका जाकर M.S किया और अपने शहर में ही यह कम्पनी शुरु की। एक पत्थर को तराशकर सर ने हीरा बना दिया और मैं ही नहीं, सर ने ऐसे अनेक असंख्य हीरे बनाये हैं। सर आपको कोटि कोटि प्रणाम…!!”
Chairman साहब ने अपनी आँखों में आये अश्रु रूमाल से पोंछे

“परन्तु यह बात तो अदभूत ही हैं कि, बाहर शिक्षा का और ज्ञानदान का बाजार भरा पडा होकर भी सर ने एक रूपया भी न लेते हुए हजारों विद्यार्थियों को पढ़ाया, न केवल पढ़ाये पर उनमें पढ़ने की रूचि भी जगाई। वाह सर मान गये आपको और आपके आदर्श को।”
शरदराव की ओर देखकर General Manager ने कहा।

“अरे सर! ये व्यक्ति तत्त्वनिष्ठ हैं। पैसों और मान सम्मान के भूखे भी नहीं हैं। विद्यार्थी का भला हो यही एक मात्र उद्देश्य था।” Chairman बोले।

“मेरे पिताजी भी उन्हीं मे से एक। एक समय भूखे रह लेंगे, पर अनाज में मिलावट करके बेचेंगे नहीं।”

ये उनके तत्व थे। जिन्दगी भर उसका पालन किया, ईमानदारी से व्यापार किया। उसका फायदा आज मेरे भाईयों को हो रहा हैं।”

बहुत देर तक कोई कुछ भी नहीं बोला।

फिर Chairman ने शरदराव से पुछा – “सर आपने मकान बदल लिया या उसी मकान में हैं रहते हैं।”

“उसी पुराने मकान में रहते हैं सर! ”
शरदराव के बदले में राहुल ने ही उत्तर दिया।

उस उत्तर में पिताजी के प्रति छिपी नाराजगी तत्पर Chairman साहब की समझ में आ गई।

‌”तय रहा फिर। सर आज मैं आपको गुरू दक्षिणा दे रहा हूँ। इसी शहर में मैंने कुछ फ्लैट्स ले रखे हैं। उसमें का एक 3 B.H.K. का मकान आपके नाम कर रहा हूँ…”

“क्या?”
शरदराव और राहुल दोनों आश्चर्य चकित रूप से बोलें। “नहीं नहीं इतनी बडी गुरू दक्षिणा नहीं चाहिये मुझे।” शरदराव आग्रहपूर्वक बोले।

Chairman साहब ने शरदराव के हाथ को अपने हाथ में लिया। “सर, प्लीज…. ना मत करिये और मुझे माफ करें। काम की अधिकता में आपकी गुरू दक्षिणा देने में पहले ही बहुत देर हो चुकी हैं।”

फिर राहुल की ओर देखते हुए उन्होंने पुछ लिया, राहुल तुम्हारी शादी हो गई क्या?”

‌”नहीं सर, जम गई हैं और जब तक रहने को अच्छा घर नहीं मिल जाता तब तक शादी नहीं हो सकती। ऐसी शर्त मेरे ससुरजी ने रखी होने से अभी तक शादी की डेट फिक्स नहीं की तो फिर हाॅल भी बुक नहीं किया।”

Chairman ने फोन उठाया और किसी से बात करने लगे। समाधान कारक चेहरे से फोन रखकर, धीरे से बोले “अब चिंता की कोई बात नहीं। तुम्हारे मेरीज गार्डन का काम हो गया। “सागर लान्स” तो मालूम ही होगा”

“सर वह तो बहूत महंगा हैं…”

“अरे तुझे कहाँ पैसे चुकाने हैं। सर के सारे विद्यार्थी सर के लिये कुछ भी कर सकते हैं। सर के बस एक आवाज देने की बात हैं।

परन्तु सर तत्वनिष्ठ हैं, वैसा करेंगे भी नहीं। इस लान्स का मालिक भी सर का ही विद्यार्थी हैं। उसे मैंने सिर्फ बताया। सिर्फ हाॅल ही नहीं तो भोजन सहित संपूर्ण शादी का खर्चा भी उठाने की जिम्मेदारियाँ ली हैं उसने… वह भी स्वखुशी से। तुम केवल तारिख बताओ और सामान लेकर जाओ।
“बहुत बहुत धन्यवाद सर।”

राहुल अत्यधिक खुशी से हाथ जोडकर बोला। “धन्यवाद मुझे नहीं, तुम्हारे पिताश्री को दो राहुल! ये उनकी पुण्याई हैं। और मुझे एक वचन दो राहुल! सर के अंतिम सांस तक तुम उन्हें अलग नहीं करोगे और उन्हें कोई दुख भी नहीं होने दोगे।

मुझे जब भी मालूम चला कि, तुम उन्हें दुख दे रहे होतो, न केवल इस कम्पनी से लात मारकर भगा दुंगा परन्तु पुरे महाराष्ट्र भर के किसी भी स्थान पर नौकरी करने लायक नहीं छोडूंगा। ऐसी व्यवस्था कर दूंगा।”
Chairman साहब कठोर शब्दों में बोले।

“नहीं सर। मैं वचन देता हूँ, वैसा कुछ भी नहीं होगा।” राहुल हाथ जोडकर बोला।

शाम को जब राहुल घर आया तब, शरदराव किताब पढ रहे थे। पुष्पाबाई पास ही सब्जी काट रही थी।

राहुल ने बैग रखी और शरदराव के पाँव पकडकर बोला — “पापा, मुझसे गलती हो गई। मैं आपको आज तक गलत समझता रहा। मुझे पता नहीं था पापा आप इतने बडे व्यक्तित्व लिये हो।”

‌शरदराव ने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया।

अपना लडका क्यों रो रहा हैं, पुष्पाबाई की समझ में नहीं आ रहा था, परन्तु जरुर कुछ अच्छा ही घटित हुआ हैं।

इसलिये पिता-पुत्र में प्यार उमड रहा हैं। ये देखकर उनके नयनों से भी कुछ बुन्दे गाल पर लुढक आई।


दोस्तों, कैसी लगी यह हैं कहानी, इस बारे में हमे अपने विचार नीचे comments के माध्यम से अवश्य दे। हमारी पोस्ट को E-mail से पाने के लिए आप हमारा फ्री ई-मेल Subscription प्राप्त कर सकते है।

अन्य प्रेरणादायी विचारो वाली (Inspirational Hindi Post) POST भी पढ़े।

Exit mobile version