गणेश चतुर्थी ( Ganesh Chaturthi ) हिन्दू धर्म में देवी-देवताओ का बहुत बड़ा स्थान हैं और इन देवी-देवताओ में सबसे अग्रणी हैं भगवान श्री गणेश। भगवान श्री गणेश को हिन्दू धर्म में सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता का स्थान प्राप्त हैं।
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेशजी की मूर्ति कि स्थापना घर-घर में धूमधाम से की जाती हैं। इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ एवं पूर्ण उत्साह के साथ भारतीय जनमानस मनाता हैं एवं कई जगहे पर तो अन्य धर्मो के लोग भी इसमें शामिल होते हैं एवं इसको पुरे आनंद के साथ मनाते हैं।
गणेशजी के जन्म के साथ इस पर्व को मनाने की प्रथा जुडी हैं। शिवपुराण में भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को माना गया हैं, किन्तु अन्य ग्रन्थों में भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष को ही इसे मनाया जाता हैं।
इस दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं किया जाता हैं, पुराणों के अनुसार गणेशजी के हाथी जैसे मुख को देखकर चंद्रमा को हसीं आ गई थी। इससे रुष्ट होकर गणेशजी ने उसे श्राप दिया था कि आज के दिन से अनंतकाल तक जो तुम्हे देखेगा उसको अनर्ल्गल आरोपों का सामना करना पड़ेगा।
इस दिन पूर्ण काली या पीली मिटटी से बनी मूर्ति को घर में स्थापना करनी चाहिए जो पुर्णतः ठोस हो प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बनी एवं खोखली मूर्ति पूजन हेतु मान्य नहीं हैं। इस पदार्थ से बनी मुर्तिया जल में विसर्जित करने पर गलती नहीं हैं और जलस्त्रोतो की गहराई को कम करती हैं।
मूर्ति में प्रयोग किया गया कृत्रिम रंगों का केमिकल भी नदियों में विसर्जित के समय प्रकर्ति एवं पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता हैं। प्रकर्ति साक्षात् माता पार्वती का ही रूप हैं।
गणेशजी की 2 पत्निया हैं। रिद्धी एवम सिद्धि तथा 2 पुत्र लाभ और क्षेम। गणेश का पूजन अथार्थ गणेशजी के गुणों को अपनाने से बुद्धि शुद्ध होती हैं और सिद्धि की प्राप्ति होती हैं।
गणेशजी का गुण हैं – सतत प्रयास करना, माता-पिता का आज्ञाकारी होना, सद्कार्य करना, उपलब्ध वस्तुओ का सावधानी से प्रयोग करना ऐसा करना वाला व्यापार, नौकरी एवं जीवन में लाभ प्राप्त करता हैं तथा उस लाभ की रक्षा करने की शक्ति अथार्थ क्षेम की भी प्राप्ति होती हैं।
गणेशजी इन चारो को साथ लेकर आते हैं वह जो गणेश के गुणों को अपनाते हैं उनका पूजन भक्ति करते हैं, वह निरंतर अपनी बुद्धि को शुद्ध रखकर ज्ञान, सुख, धन, वैभव, ऐश्वर्य प्राप्त करते हैं गणेश दर्शन हमें काम, क्रोध, माया एवं लोभ से बचाने वाला होता हैं यह सभी मनुष्य के भीतर के शत्रु हैं।
गणेशजी ने इन सभी को समाप्त करने के लिए अंकुश का प्रयोग किया हैं।
पौराणिक गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे।
देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेशजी से पूछा कि तुममें से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेशजी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया।
इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा।
भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए। परंतु गणेशजी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा।
तभी उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा।
तब गणेश ने कहा – ‘माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।’
यह सुनकर भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे।
भगवान श्रीगणेश का हमारे जीवन में कितना धार्मिक महत्व हैं यह इस बात से समझा जा सकता हैं कि किसी भी शुभ कार्य के प्रारंभ में उनका स्मरण किया जाता हैं। इसका कारण हैं उन्हें भगवान शिव तथा अन्य देवताओ द्वारा दिया गया वह वरदान, जो उनको उनके बुद्धि-कौशल के कारण मिला था।
भगवान गणेश का रूप हमें अनेक सन्देश देता हुआ प्रतीत होता हैं।
निराले रूप का अर्थ
बड़ा सिर – बड़ी सोच
छोटी आँखे – एकाग्रता
बड़े कान – अधिक सुनने को
बड़ा पेट – जीवन में अच्छाई और बुराई को पचाने कि क्षमता
एक दन्त – अच्छाई को रखने व् बुराई को हटाने का परिचायक
छोटा मुहं – कम बोलना
सूंड – उच्च श्रेणी कि दक्षता
वाहन के रूप में चूहा – इच्छाओं पर नियंत्रण करने का सन्देश
बड़ा ललाट – विकसित बुद्धि
हाथों में चार वस्तुएं/मुद्राओं का अर्थ
अंकुश – मन पर नियंत्रण का परिचायक
मोदक – साधना का प्रसाद
पाश – सभी बन्धनों को काटने के लिए
आशीर्वाद – मानवता के सैदव भले के लिए
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