Best Inspirational Story in Hindi – एक सड़क पर घूमते हुए एक आलसी व्यक्ति ने एक बूढ़े व्यक्ति को अपने मकान के दरवाजे पर बैठे हुए देखा। उसने ठहरकर उस बूढ़े से एक ग्राम का पता-ठिकाना पूछा।
उसने पूछा, “अमुक-अमुक ग्राम यहाँ से कितनी दूर हैं”। बुड्ढा मौन रहा, उस आदमी ने कई बार उसी प्रश्न को दोहराया तब भी उसे कोई ज़बाब नहीं मिला। इससे झुंझलाकर व्यक्ति चलने के लिए जैसे ही मुड़ा, तभी बूढ़े के खड़े होकर कहा “अमुक ग्राम यहाँ से केवल एक मील दूर हैं”।
क्या यात्री के कहा तुमने यहाँ बात जब मैंने पूछा तब क्यों नहीं बताई। बूढ़े ने कहा क्योकि, “तब तुम जाने के बारें में काफी उदासीन और ढीले दिखायीं दे रहे थे और अब तुम पक्के इरादे के साथ जाने के लिए तैयार देखते हो इसलिए तुम उत्तर पाने के अधिकारी हो गए हो।“
इस कहानी को याद रखों? कार्य में जुट जाओ, शेष साधन अपने आप पूरे हो जायेंगे भगवान ने श्रीमद भगवद्गीता में भी कहा हैं-
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।।
“जो अनन्य प्रेमी और भक्त जन मुझ परमेश्वर को निरन्तर चिन्तन करते हुए निष्काम भाव से भजते हैं, उन नित्य-निरन्तर मेरा चिन्तन करने वाले पुरुषों का योगक्षेम की चिंता मैं स्वयं करता हूँ ।”
….ईसा के शब्दों को स्मरण रखो, “मांगों और वह तुम्हे मिलेगा, खोजो और तुम पा जाओगे थपथपाओ और द्वार तुम्हारे लिए खुल जायेंगे” ये शब्द सत्य हैं इनमें केवल रूपक या कल्पना नहीं हैं।
क्या कोई ऐसी वस्तु हैं जिसकी तुमने सच्चे अंत:करण से कामना की हो और न मिली हो ऐसा कभी नहीं हो सकता। इच्छा ने ही शरीर को पैदा किया हैं, प्रकाश ने ही तुम्हारे मस्तक पर दो छेद पैदा किये हैं जिन्हें तुम आँख कहते हो।
यदि प्रकाश न होता तो तुम्हारे पास आँखे नहीं होती। शब्द ने कानों को बनाया। विषय पहले आयें और उन्हें ग्रहण करने वाली इन्द्रियां बाद में।
मांगों और तुम्हे मिलेगा
लेकिन ये बात तम्हे समझनी होगी कि इच्छा-इच्छा में भी अंतर होता हैं।
Inspirational Story in Hindi
एक शिष्य अपने गुरु के पास गया और बोला – “श्रीमान मैं ईश्वर को पाना चाहता हूँ।” गुरु ने उस युवक की और देखा एक शब्द भी नहीं बोले और मुस्कुरा दिए। युवक प्रतिदिन आता था और आग्रह करता था, कि उसको ईश्वर चाहिए किन्तु, वृद्ध को युवक की अपेक्षा अधिक ज्ञान था।
एक दिन जब बहुत गर्मी पड़ रही थी, गुरु ने उस युवक को अपने साथ चल कर नदी में स्नान करने को कहा। युवक ने जैसे ही नदी में डुबकी लगाई, वृद्ध ने पीछे से आकर उसे बलपूर्वक पानी में ही दबा लिया। जब युवक कुछ देर तक मुक्ति के लिए झटपटा चूका तब उन्होंने उसे छोड़ दिया और पूछा कि जब तुम पानी के अन्दर थे, तब तुम्हारी एकमेव इच्छा क्या थी?
शिष्य ने उत्तर दिया “हवा की केवल एक सांस।” तब गुरु ने कहा क्या तुम्हारी ईश्वर को प्राप्त करने की इच्छा भी इतनी ही तीव्र हैं यदि हो तो वह तुम्हे एक क्षण में ही मिल जायेगा। जब तक तुम्हारी भूख तुम्हारी इच्छा इतनी ही तीव्र नहीं हैं, तब तक तुम परमात्मा को कदापि नहीं पा सकते, चाहे तुम कितना ही बौद्धिक व्यायाम अथवा कर्मकांड कर लो।
स्वामी विवेकानन्द जी ने भी कहा हैं, एक लक्ष्य अपनाओ उस लक्ष्य को ही अपना जीवन कार्य समझो हर क्षण उसी का चिंतन करों, उसी का स्वप्न देखो उसी के सहारें जीवित रहो, मस्तिष्क, मांसपेशिया, नसें आदि शरीर के प्रत्येक अंग उसी विचार से ओतप्रोत हों और अब तक अन्य प्रत्येक विचार को किनारें पड़ा रहने दो। सफलता का यहीं राजमार्ग हैं, इसी मार्ग पर चल कर आध्यत्मिक महापुरुष पैदा हुए हैं जो अपने लक्ष्य के प्रति पागल हो गयें हैं, उसे ही प्रकाश के दर्शन होते हैं जो इधर-उधर ध्यान बांटते हैं वो कोई लक्ष्य पूर्ण नहीं कर पातें। वे कुछ समय के लिए तो बड़ा जोश दिखातें हैं, किन्तु वह शीघ्र ठण्डा हो जाता हैं।
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1 Comment
बहुत अच्छा लेख है। जब किसी चीज को पाने की चाह बढ़ जाती है तो वह चीज मिलकर ही रहती है , यानी जहाँ चाह वहां राह !