Hindi Kahani on Time management, Best Story in Hindi, या तो दिन आपके अनुसार चलता है या आप दिन के अनुसार चलते है
लेखक के शब्द
हम सभी के पास 24 घंटे होते हैं। कोई इन्हीं 24 घंटों का उपयोग करके दुनिया में एक अलग मुकाम बना लेता हैं। तो कोई इन 24 घंटे में कुछ नहीं कर पाता और अपने समय को सिर्फ बर्बाद करता रहता हैं। वैसे तो अपने समय को मैनेज करने की चाहत हर किसी के मन में होती है। लेकिन इस चाहत को सिर्फ कुछ ही लोग हकीक़त में पूरा कर पाते हैं।
और वही दूसरे लोग सारा दिन बस समय की बर्बादी ही करते हैं। इसलिए कहते हैं या तो दिन आपके अनुसार चलता है या आप दिन के अनुसार चलते है। जिन लोगों को समय की कीमत का एहसास हो जाता है वे अपने समय का सही तरह से प्रयोग करने लगते हैं। हमारी इस कहानी में आपको इस कथन का स्पष्टीकरण साफ देखने को मिलेगा।
हमारी कहानी के मुख्य किरदार का नाम शिवा है। शिवा दिल्ली में एक छोटे से अपार्टमेंट में रहता है और एक आईटी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर का काम करता है। शिवा अपने काम में बहुत माहिर हैं और वह मुश्किल से मुश्किल प्रोग्रामिंग भी आसानी से कर लेता है। और उसके द्वारा बनाए गए सॉफ्टवेयर की बात ही अलग होती है।
हाल ही में उसने एक Firewall बनाया था और अच्छे से अच्छे हैकर भी उसके द्वारा बनाए गए इसकी सिक्योरिटी को तोड नहीं पा रहे हैं। जिसकी वजह से कंपनी को काफी फायदा हुआ है। शिवा कंपनी में काम करने के साथ-साथ Hustling भी करता था। वह अपने 24 घंटे का पूरा इस्तेमाल करता था। 8 घंटे कंपनी में काम करने के बाद शिवा रात में घर पर भी काम करता था। उसने हाल ही में एक नए प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया था।
लेकिन शिवा हमेशा से ही ऐसा नहीं था। पहले वह बहुत ही आलसी, निठल्ला और बेकार था। उसे कोई चीज की परवाह नहीं थी। ना ही उसे काम करना अच्छा लगता था। वह किसी भी काम से बहुत जल्दी बोर हो जाता था। हां यह बात अलग थी कि दिमाग तेज होने की वजह से किसी भी चीज को काफी जल्दी सीख लेता था।
और उसके आलसी होने के पीछे कहीं ना कहीं यह कारण भी था। फिर ऐसा क्या हुआ कि शिवा इतना बदल गया। समय की परवाह ना करने वाला शिवा अब समय का इतना पाबंद हो गया।
यह जानने के लिए हमें वक्त में थोड़ा पीछे जाना होगा। डेढ़ साल पहले की बात है शिवा अपने मां पापा के साथ यूपी में एक बड़े से घर में रहता था। शिवा के पापा की एक ग्रोसरी दुकान थी। सड़क के पास होने के कारण शिवा के पापा की दूकान अच्छी चलती थी। शिवा अपने माता-पिता का इकलौता संतान होने की वजह से उसके माता पिता उसे बहुत लाड करते थे। उसकी हर छोटी बड़ी ख्वाहिश पूरी करते थे।
इतना लाड प्यार पाने की वजह से शिवा बहुत बदमाश हो गया था। वैसे तो शिवा 20 साल का था लेकिन उसे अपनी जिम्मेदारियों का कोई एहसास नहीं था। पढ़ाई में अच्छे होने की वजह से उसने साइंस लेकर पढ़ाई की और अब कॉलेज में कंप्यूटर साइंस की सब्जेक्ट लेकर पढ़ रहा है। वैसे तो उसे कोडिंग और प्रोग्रामिंग काफी पसंद थी। लेकिन उसे गेम खेलना भी काफी पसंद था। वह सारा दिन गेम खेलता था। इतना ज्यादा कि वह Call of Duty का चैंपियन बन गया था।
उसका पूरा दिन गेम खेलते हुए और सोशल मीडिया इस्तेमाल करते हुए ही जाता था। उसे समझ ही नहीं आता था कि कब उसका दिन निकल गया। शिवा कभी-कभी कॉलेज जाता था। इसीलिए कॉलेज में भी शिवा का कोई खास अटेंडेंस नहीं था और टीचर हमेशा उसके कंप्लेंट करते रहते थे।
कोरोना के आने के बाद जब से लॉकडाउन शुरू हुआ था। तब से शिवा और भी ज्यादा बदमाश हो गया सारा दिन बस लेटा रहता और समय बर्बाद करता रहता था। उसे किसी भी चीज की कोई फिकर नहीं थी। वह बस खाता पीता और सोता था। ऐसा करते-करते कई महीने बीत गए।
लॉकडाउन जब चल ही रही थी। तब अचानक एक दिन शिवा के मम्मी पापा को बुखार आ गया और टेस्ट करवाने पर पता चला कि वे कोविड पॉजिटिव है। जब शिवा को इस बात का पता चला तो काफी डर गया। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या करना चाहिए।
कोविड पॉजिटिव होने की वजह से शिवा के मां-बाप को क्वॉरेंटाइन कर दिया गया था। लेकिन क्वॉरेंटाइन होने के बाद भी शिवा के मां-बाप कोरोना से नहीं बच पाए और मारे गए।
एक ही दिन में शिवा के माता और पिता दोनों ही उसे छोड़ कर चले गए। अब ना तो शिवा के पास पिता का साथ था और ना ही मां की ममता। अब शिवा पूरी तरह अकेला हो गया था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था उसे क्या करना चाहिए क्या नहीं।
क्योंकि देखते ही देखते उसकी पूरी दुनिया बदल गई थी। कुछ दिन तो शिवा सिर्फ रोता रहा और गुमसुम कमरे में ही रहता था। उसने तो बाहर निकलना तक छोड़ दिया था। लेकिन जैसे जैसे दिन बीतते गए वैसे वैसे से समझ आ गया था फिर ऐसे रो-रो कर कुछ नहीं होने वाला। उसके मम्मी पापा वापस नहीं आएंगे। उसे अपनी जिंदगी खुद ही जीनी होंगी।
उसने घर छोड़ दिया और होस्टल में रहने का फैसला किया। उसके मम्मी पापा ने उसके लिए जो पैसे बचाए थे उसकी मदद से उसने अपना दाखिला होस्टल में करवाया। होस्टल में भर्ती होने के बाद शिवा पूरी तरह बदल गया। वह अब अपना सारा काम खुद करता था। पढ़ाई करने के साथ-साथ वह कोडिंग प्रैक्टिस भी करता था। उसने गेम खेलना सोशल मीडिया चलाना सब कुछ करना छोड़ दिया था।
अब शिवा सिर्फ दिल लगाकर पढ़ाई करने लगा और दिन भर मेहनत करता था। बहुत मेहनत करने के बाद शिवा की प्रोग्रामिंग में अच्छी पकड़ बन गई थी। शिवा छोटे-मोटे गेम की प्रोग्रामिंग सिर्फ आधे घंटे में ही कर देता था। गेम खेलने में दिलचस्पी होने की वजह से उसने सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने का निश्चय किया।
शिवा पढ़ाई में बहुत अच्छा था इसलिए उसने कॉलेज के एग्जाम को बहुत अच्छे नंबरों से पास किया। जिस वजह से शिवा को कॉलेज की तरफ से एक अच्छी कंपनी में इंटर्नशिप करने का मौका मिला। इंटर्नशिप करते हुए शिवा ने कंपनी में बहुत अच्छा परफॉर्म किया।
परिणाम स्वरूप एक IT कम्पनी ने शिवा को सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के तौर पर नौकरी पर रख लिया गया। साथ ही उसे कंपनी के तरफ से एक छोटा सा अपार्टमेन्ट भी दिया गया और ऑफिस जाने के लिए एक गाड़ी भी दी गई।
जहां पहले शिवा सिर्फ टाइम पास करता था। वहीं उसके माता पिता की मृत्यु के बाद जिम्मेदार हो गया और अब वह समय को बहुत अहमियत देता था। क्योंकि वह समझ गया था कि समय से बड़ी और कोई चीज नहीं होती है। इसीलिए वह बदल गया।
शिवा अब एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था जिसके पूरे होने पर लोगों की जान बच सकती थी। शिवा हमेशा न्यूज़ से जुड़ा रहता था और न्यूज़ में आए दिन सड़क दुर्घटना की खबरें आती रहती थी। और दिल्ली जैसे शहर में तो सड़क दुर्घटना होना आम बात है। लेकिन दुर्घटना होने के बाद एंबुलेंस के आते-आते लोगों की मौत हो जाती थी।
सड़क हादसे से मरने वाले लोगों की संख्या को कम करने के लिए शिवा के मन में एक बहुत अच्छा ख्याल आया। उसने एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाने के बारे में सोचा जो एंबुलेंस गाड़ियों को सड़क पर होने वाले दुर्घटना की जानकारी देगा।
उसने आईडिया तो सोच लिया था लेकिन इस पर काम करने के लिए उसे बहुत मेहनत करना पड़ता था। शिवा दिन के 15-16 घंटे काम करता था। पहले कंपनी में काम और फिर घर आकर इस प्रोजेक्ट पर काम करते हुए ही उसका दिन गुजरता था।
लेकिन अपने दृढ़ संकल्प से शिव ने प्रोजेक्ट का एक अच्छा ब्लूप्रिंट तैयार कर लिया था और इस प्रोजेक्ट के नमूने बनाने में लग गया। दिन रात काम करते हुए उसने इस प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया और पूरा करने के बाद जब शिवा ने इस प्रोजेक्ट कंपनी को दिखाया तो उन्हें प्रोजेक्ट कॉफी पसंद आया।
इस प्रोजेक्ट में तो मानो शिवा की जिंदगी बदल दी। इस सॉफ्टवेयर को मोबाइल डिवाइस के लिए बनाया गया और सभी लोग इसका इस्तेमाल करने लगे।
शिवा के इस सॉफ्टवेयर को एक बहुत बड़े कंपनी ने अच्छे खासे रुपए में खरीद लिया था। जिसके बाद शिवा ने अपनी खुद की कंपनी शुरू कर दी और वह काफी अमीर भी हो गया था। पहले समय को बर्बाद करने वाला शिवा अब एक बड़ा Entrepreneur और Businessman बन गया। यह सब हो पाया क्योंकि शिवा समय के महत्व को समझ चुका था।
Moral – इसलिए तो कहते हैं ना कि हर दिन को इस तरह जीना चाहिए जैसे वह जिंदगी का आखरी दिन हो। लेकिन फिर भी लोग समय को बर्बाद करते हैं। हर दिन हमारे पास दो रास्ते होते हैं या तो दिन आपके अनुसार चलता है या आप दिन के अनुसार चलते है।