सच्ची दोस्ती
स्कूल में सभी लोगों को अपने दोस्त बनाने का पूरा हक होता है लेकिन पाखी और शिप्रा की दोस्ती पूरे स्कूल में मशहूर थी। दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करती और हमेशा एक दूसरे का साथ देती हैं।
पाखी एक छोटे से गांव से आई हुई लड़की है, जो शहर में हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करती है। पाखी की मां अब इस दुनिया में नहीं और इस बात की कमी उसे हर पल होती है। जब पाखी नए स्कूल में एडमिशन लेती है तब उसकी दोस्ती शिप्रा से होती है।
बातों ही बातों में शिप्रा को पता चलता है कि पाखी की मां अब इस दुनिया में नहीं और इसीलिए वह पाखी को अपने घर लेकर जाती है जहां शिप्रा की मां पाखी के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करती है जिसे देखकर पाखी की आंखों में आंसू आ जाते हैं।
शिप्रा की मां- क्या हुआ बेटा तुम्हारी आंखों में आंसू आ गए?
पाखी- आपको देखकर मुझे मेरी मां याद आ गई। [दुखी होते हुए]
शिप्रा की मां- अरे इसमें रोने की क्या बात है? मैं भी तो तुम्हारी मां जैसी हूं। तुम्हारा जब मन करे, तुम शिप्रा के साथ यहां आ सकती हो।
बस फिर क्या था दोनों की दोस्ती बिल्कुल पक्की हो गई। दोनों एक दूसरे की मदद पढ़ाई में कर देती थी जिससे स्कूल में भी उन्हें किसी प्रकार की समस्या नहीं हो पाती थी।
एक बार की बात है जब दोनों ने मिलकर स्कूल में बंक मारा था और जिसका पता उनके केमेस्ट्री टीचर को हो गया था। दूसरे दिन जब पाखी को क्लास ना अटेंड करने की सजा दी जाने लगी तो उसी समय
शिप्रा- सर आप उसे सजा नहीं दे सकते।
टीचर- तो क्या अब तुम मुझे बताओगी की सजा किसे देना है और किसे नहीं?
पाखी- शिप्रा तुम चुप रहो मुझे मेरी सजा मिलनी ही चाहिए।
शिप्रा- लेकिन गलती हम दोनों की थी इसीलिए हम दोनों को सजा मिलनी चाहिए।
दोनों की इमानदारी देखकर टीचर को अच्छा लगता है और उन्हें अगली बार ऐसी गलती ना करने की बात कह कर सजा देने से रुक जाते हैं।
इसी बीच स्कूल में कुछ ऐसे लोगों का भी ग्रुप बन चुका था जिन्हें दोनों की दोस्ती बिल्कुल पसंद नहीं थी और हमेशा वे लोग कोशिश करते जिससे पाखी और शिप्रा की दोस्ती में दरार आ सके।
धीरे-धीरे समय बीत गया और शिप्रा और पाखी अब अलग-अलग कॉलेज में एडमिशन ले चुके थे। दोनों अपने अपने जिंदगी में व्यस्त हो गए और वह समय भी दूर हो गया जब दोनों की दोस्ती लोगों की चर्चा का विषय बना हुआ था।
अब तो दोनों को एक दूसरे से मिलने का समय ही नहीं रहता था। आज शिप्रा एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रही है और वही पाखी एक स्कूल में टीचर है। जीवन में ऐसे कई मोड़ आए जहां पर उन्हें अपनी ना कामयाबी को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ना पड़ा।
कभी-कभी पाखी को शिप्रा की याद आ जाती क्योंकि शिप्रा ने उन दिनों में उसे अपनापन दिया था जब उसे सबसे ज्यादा किसी अपने की जरूरत थी।
एक बार की बात है जब सालों बाद पाखी उसी शहर में आती है जहां पर उसने बचपन में शिप्रा के साथ मिलकर ना जाने कितनी शरारती की थी। वह शहर में अपना कोई जरूरी काम करने आई थी अचानक रास्ते में उसे शिप्रा का पुराना घर नजर आ गया और वह खुद को रोक नहीं सकी।
जैसे ही वह घर के अंदर जाती है, तो वहां पर उसे शिप्रा की दादी एक पलंग पर लेटे हुए नजर आती है जिन्हें देखकर पाखी कहती है
पाखी- दादी नमस्ते
दादी- कौन हो बेटा?
पाखी- अरे दादी आपने मुझे नहीं पहचाना मैं शिप्रा की बचपन की दोस्त हूं। अरे वही दोस्त जिसके साथ मिलकर शिप्रा बेर तोड़ने जाया करती थी।
दादी [रोते हुए] – हां बेटा मुझे याद आ गया। लेकिन आज तेरी दोस्त को तेरी बहुत जरूरत है।
पाखी को कुछ समझ नहीं आता और वह दादी का चेहरा देखने लगती है।
दादी- बेटा शिप्रा का बहुत बड़ा एक्सीडेंट कल रात को हो गया है और वह हॉस्पिटल में एडमिट है। उसकी हालत बहुत ही गंभीर है और डॉक्टरों ने बोला है कि उसे कुछ भी हो सकता है।
ऐसा बोलते हुए दादी रोने लगती है और पाखी का भी बुरा हाल हो जाता है और वह दादी से पूछ कर हॉस्पिटल की तरफ जाती है।
हॉस्पिटल पहुंचने पर उसे शिप्रा की मम्मी दिखाई देती है दौड़ कर उनके पास जाती है और उनके गले लग जाना चाहती है अगले ही पल डॉक्टर आकर बताते हैं कि शिप्रा की हालत और भी खराब हो रही है और उसे जल्द से जल्द ओ नेगेटिव ब्लड की जरूरत है।
ऐसा सुनते ही सब की हालत खराब हो जाती है क्योंकि उसके परिवार में ओ नेगेटिव ब्लड किसी का भी नहीं यहां तक कि ब्लड बैंक में भी ओ नेगेटिव ब्लड मिलना मुश्किल हो जाता है। तब पाखी आगे बढ़ते हुए कहती है- डॉक्टर मेरा ब्लड ओ नेगेटिव है और मैं अपनी दोस्त को ब्लड देने के लिए बिल्कुल तैयार हूं।
यह बात सुनकर शिप्रा की मम्मी पाखी को प्यार से देखती है और उसे गले लगाते हुए कहती हैं – बेटा मेरी बच्ची को बचा लो।
डॉक्टर- आप बिल्कुल सही समय पर आई है जल्दी चलिए हम आपका ब्लड टेस्ट कर देते हैं।
जल्द ही पाखी शिप्रा को ब्लड डोनेट करती है इसकी वजह से शिप्रा की हालत में सुधार नजर आता है और डॉक्टर आकर बताते हैं- इनके सही समय पर ब्लड डोनेट करने से अब शिप्रा की हालत में सुधार नजर आ रहा है। उम्मीद करते हैं अब जल्द से जल्द शिप्रा ठीक हो जाएगी।
शिप्रा की मां- तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद बेटा।
पाखी- आंटी आपने ही तो कहा था कि मैं आपकी बेटी जैसी हूं तो क्या मैं अपनी दोस्त को ऐसे समय में भी अकेला छोड़ कर चली जाऊं। यह तो मेरा सौभाग्य है कि मुझे अपनी दोस्ती निभाने का मौका मिला।
उसके बाद शिप्रा की मां खुश हो जाती है और जल्द ही शिप्रा की हालत में सुधार आने लगता है। जैसे ही शिप्रा को होश आ जाता है। सबसे पहले उसके सामने पाखी नजर आती है जिसे देखकर शिप्रा बहुत खुश होती है और उसे अपने पुराने बिताए गए सारे खुशनुमा पल याद आते हैं।
दोस्तों, कई बार ऐसा होता है कि हम अपनी जिम्मेदारियों को संभालने के चक्कर में अपनों को भुला बैठते हैं, जिनकी वजह से आज हम एक सफल इंसान बन पाए हैं।
दोस्ती का रिश्ता ऐसा होता है जिसे हम खुद चुनते हैं और उसे अपनी मर्जी के अनुसार आगे बढ़ा सकते हैं। सच्चा दोस्त तो वही होता है, जो हमेशा अपने दोस्त के लिए आगे आए और उसके बुरे समय में भी मदद से पीछे न हटे।
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