एक समय ऐसा था जब विद्याचरण जी को खुद पर गर्व महसूस होता था कि आज उनके दोनों बेटे बहुत बड़े पोस्ट पर हैं और उन्हें किसी बात की कमी नहीं है। बड़ा बेटा सुरेश और छोटा बेटा रमेश दोनों ही अपने परिवार के साथ व्यस्त और मस्त हैं और विद्याचरण जी अपनी पत्नी सावित्री के साथ खुश हैं।
विद्याचरण जी का जब भी मन होता अपनी पत्नी सावित्री से मन की बात किया करते हैं और दोनों घंटों बैठकर पुरानी यादों को ताजा करते हैं। कभी वह अपने दोस्तों की बात करते तो कभी रिश्तेदारों की, कभी खाने की बात करते तो कभी खिलाने की।
विद्याचरण जी को खाने का बहुत शौक था और उनकी पत्नी तरह-तरह के व्यंजन बनाकर उन्हें खिलाती रहती थी।
2 दिन के लिए सावित्री अपनी बहन के यहाँ चली गई थी जिस वजह से विद्याचरण जी को बहुत ही अकेलापन महसूस हुआ। तब उन्हें समझ आया कि मन की बात के लिए किसी एक इंसान की बहुत जरूरत होती है।
1 साल बाद नियति की मार ऐसी पड़ी कि सावित्री जी का निधन हो गया और विद्याचरण जी बिल्कुल अकेले रह गए। अकेलेपन की वजह से उन्हें अब गांव में मन नहीं लगता और किसी से वे अपने दिल की बात भी नहीं कर पाते बार-बार अपनी पत्नी सावित्री को याद करते और रोने लगते।
ऐसे में विद्याचरण जी अकेले क्या करते तो वे अपने बड़े बेटे सुरेश के यहाँ चले जाते हैं। वैसे तो सुरेश का घर बहुत बड़ा था लेकिन जो कमरा उन्हें दिया गया था वह तो किचन से भी छोटा था। एक छोटा पलंग और उसके अलावा वहां कुछ भी नहीं था फिर भी विद्याचरण जी जैसे तैसे अपना दिन गुजार ही लेते थी।
सुरेश की पत्नी सुधा खाने में उन्हें वही सब देती जो 1 दिन पहले बच जाता था।
एक दिन विद्याचरण जी सुधा के पास जाकर कहते हैं- बहू आज मुझे कुछ चटपटा खाने का मन हो रहा है।
तभी सुधा तुनक कर कहती है- इस उमर में आप चटपटा नहीं बल्कि उबला खाना खाइए वही आपकी सेहत के लिए अच्छा रहेगा। रोज-रोज की फरमाइश करना बंद करिए और चुपचाप अपने कमरे में जाकर सो जाइए।
विद्याचरण जी को बहू की इस बात से बहुत दुख होता है और वह चुपचाप कमरे की ओर चले जाते हैं तभी सुरेश का बेटा सोनू वहां जाता है और दादा जी से कहता है- दादाजी आपको जो भी चाहिए आप मुझसे कहिए। मैं आपको लाकर दूंगा।
सोनू की मासूमियत वाली बातें सुनकर दादाजी खुश हो जाते हैं और उसे वहां से जाने के लिए कहते हैं। सोनू भी शांति से वहां से चला जाता है। एक दिन विद्याचरण जी हॉल में बैठकर पेपर पढ़ रहे होते हैं तभी उन्हें आवाज आती है- तुम्हारा एक भाई और भी तो है अपने पिताजी से बोलो वहीं चले जाएं।
यहां रहते हुए उन्हें एक महीना तो हो ही गया है। अरे हमारी भी तो कोई प्राइवेसी है। यह बात सुधा अपने पति से कह रही थी जिसे सुनकर विद्याचरण जी की आंखों में आंसू आ गया और वह पत्नी सावित्री को याद करने लगे।
कुछ ही दिनों में विद्याचरण जी को उनके छोटे बेटे रमेश के यहां पहुंचा दिया गया जहां उनकी छोटी बहू उनका बहुत ध्यान रखती थी और बेटा भी बहुत प्यार करता था।
एक दिन रमेश की पत्नी लता आकर कहती है- पिताजी आज खाने में क्या बनाऊं आपको जो पसंद होगा मैं वही सब बनाऊंगी।
विद्याचरण जी- बेटा जो भी तुम प्यार से बनाओगी मैं उसे जरूर खाऊंगा। तुम्हारी बातों से तो मुझे अब सावित्री की याद आ गई वह भी मुझसे इसी तरह पूछ पूछ कर खाना बनाती थी।
रमेश- आज से आप इसे अपना ही घर समझिए।
विद्याचरण जी खुश थे कि चलो कम से कम छोटा बेटा तो उन्हें प्यार करता है और उसके बड़े से घर में उनके लिए बड़ा कमरा भी है।
कुछ ही दिनों में विद्याचरण जी का जन्मदिन आने वाला था और उन्हें तो यह बात याद भी नहीं थी। जब सावित्री जिंदा थी तब उनके लिए तरह-तरह के पकवान बनाकर घर को सजाया करती थी लेकिन अब उन्हें अपने बेटे और बहू से खास उम्मीद नहीं थी कि वह कुछ अच्छा करेंगे।
शाम को जब विद्याचरण जी टहल कर आते हैं तो पूरे घर में अंधेरा होता है और जैसे ही उन्होंने लाइट ऑन की तो अपने पूरे परिवार को देखकर खुश हो गए।
पूरे घर में लता ने सजावट की थी साथ में उसने सुरेश और सुधा को भी बुलाया था। सामने एक बड़ा सा केक रखा हुआ था जिसे देखकर विद्याचरण जी सोच में पड़ गए क्योंकि आज से पहले उन्होंने तो कभी केक काटा ही नहीं था।
लता- आइए पिताजी केक काट लीजिए।
विद्याचरण जी खुशी खुशी केक काटते हैं और सभी मिलकर डिनर करने लगते हैं। आज विद्याचरण जी बहुत खुश थे क्योंकि छोटी बहू ने वह सब कर दिया था जिसकी उन्होंने कभी कामना की थी।
लता किचन में काम कर रही होती है, उसी समय सुधा आकर कहती है- तुम्हें पिताजी का जन्मदिन मनाने की क्या जरूरत थी? इस उमर में भला उन्हें जन्मदिन की क्या जरूरत? क्या कभी उन्होंने इतनी अच्छी पार्टी इंजॉय भी की है। तुम उन्हें बिगाड़ रही हो?
तभी लता कहती है- मैं जो उनके लिए कर रही हूं यह सब तो आपको करना चाहिए था भाभी। जब पिताजी आपके यहां से आए थे तो बहुत दुखी होकर आए थे क्योंकि आपके यहां मन की बात करने वाला कोई था ही नहीं।
आज हम उनके साथ हैं और यह घर भी उन्हीं का ही है। बड़ों को पहले अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए वह भी तो आपके पिता की ही तरह है। याद करिए जब आपके पिताजी का जन्मदिन था, तब तो आपने बहुत शानदार पार्टी होटल में की थी तो भला इनका जन्मदिन आप कैसे भूल सकती हैं?
यह सारी बात सुरेश खड़े होकर दूर से सुन रहा था और उसे भी अपनी गलती का एहसास हुआ कि जब उसके पिताजी को उसकी जरूरत थी तब उसने ध्यान नहीं रखा साथ ही साथ सुधा को भी इस बात का बुरा लगा।
विद्याचरण जी के पास जाकर सुरेश और सुधा रोते हुए कहते हैं- हमें माफ कर दीजिए पिताजी बहुत बड़ी गलती हो गई। हमने आपके मन की बात को नहीं समझा और आप को अकेला ही छोड़ दिए।
विद्याचरण जी- तुम लोगों ने जो किया वो सही तो नहीं था लेकिन अब मुझे अपने छोटे बेटे बहू पर गर्व है। उन्होंने मुझे किसी प्रकार की कमी नहीं होने दी और बहू ने भी पूरा ख्याल रखा।
मैं जानता हूं मैं तुम लोगों पर बोझ था लेकिन एक बात हमेशा याद रखना जिन माता पिता ने तुम्हें इस काबिल बनाया कि तुम इस दुनिया की मुसीबतों का सामना कर सके और आगे बढ़ सके उन्हें बस तुम्हारा प्यार चाहिए। वे हमेशा तुमसे अपने मन की बात करना चाहते हैं, ऐसे में उनका साथ दो, उन्हें अकेला ना छोड़ो।
विद्याचरण जी की इस बात से बड़े बेटा बहू को अफसोस हुआ कि उन्होंने अपने पिताजी का ख्याल नहीं रखा तो वही छोटे बेटे बहू ने उन्हें सर आंखों पर बिठाया। अब विद्याचरण जी अपने छोटे बेटे के घर ही रहते हैं और वह भी खुशी से।
जिन्हे अपने मन की बात करने वाले मिल गए हैं जिनके साथ बैठकर वह चाय की चुस्कियां लेते हुए पुरानी यादों को ताजा कर सकते हैं।
Final word
जब से दुनिया ग्लोबल village के रूप में तब्दील हुई है, इसके सबसे बड़ा असर घर परिवार पर पड़ा है।
एक परिवार के लोगो को जॉब के अलग अलग जगह पर relocate करना पड़ता है, जिससे एक परिवार टूट जाता है और परिवार टूट छोटा हो जाता है। पहले ऐसा था कि एक फैमिली के सभी लोग एक ही पेशे में रहते थे, तो फैमिली बहुत बड़ी होती थी।
अब सबका काम भी अलग है और सब लोग अलग अलग शहर में भी रहते है।
तो सबसे बड़ा दिक्कत आती है, माता पिता पर, उनका तो बुढ़ापा आ गया होता है, उनको एक सहारा की जरूरत होती है।
ऐसे में बहुत जरूरी है कि अपने माता पिता का भी ख्याल रखा हो। बशर्तें यह दुनिया बदल गई हो लेकिन रिश्ते तो नहीं बदले है। भावनाएं और इमोशन तो वहीं है, वैसे में अपने माता पिता की कद्र करना भी जरूरी है, उनको अपने से अलग क्यों रखना, उनको भी अपने पास रखीए।