Story of Blind Entrepreneur Srikanth Bolla, Success Story of Blind CEO श्रीकांत बोला Entrepreneur in Hindi
Hindi Inspirational Success Story of Visually impaired Srikanth Bolla श्रीकांत बोला (CEO, Hyderabad-based Bollant Industries)
दोस्तों, हौसला हो तो क्या नहीं पाया जा सकता। इंसान में सच्ची प्रतिभा और लगन होनी चाहिए, बस फिर कोई भी कठिनाई चाहे वो शारीरिक हो, पारिवारिक या फिर आर्थिक हो, उसका रास्ता और उसके बुलंद हौसलों को मात नहीं दे सकती। कुछ लोग इन परिस्थितयो में सारा दोष अपनी किस्मत पर मढ देते हैं और यह भूल जाते हैं कि
किस्मत भी उन्हीं का साथ देती है, जो खुद पर भरोसा और अपनी मेहनत से कुछ कर दिखाने का जज्ज्बा और दम-ख़म रखते हैं।
यहां हम बात कर रहे हैं ऐसे ही हौसले की मिसाल और उनकी सफलता की कहानी श्रीकांत बोला, जिसने अपने जज़्बे को कायम रखा और अपनी मंज़िल को पाने का केवल रास्ता ही नहीं बनाया और उसे हासिल भी किया।
हैदराबाद के श्रीकांत बोला जो कि बचपन से ही ब्लाइंड(blind) हैं पढ़ने में काफी होशियार थे और पढ़ने का खूब शौक था। जब श्रीकांत का जन्म हुआ, तो उनके कुछ रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने श्रीकांत के अंधेपन के कारण उनके माता-पिता को अनाथालय में दान करने या फिर मार डालने तक की सलाह दे डाली थी।
आज मात्र 24 वर्ष के श्रीकांत बोला 80 करोड़ रुपए की कंज्यूमर फूड पैकेजिंग कंपनी बौलेंट इंडस्ट्रीज के CEO के पद पर नियुक्त हैं। उन्होंने यह कंज्यूमर फूड पैकेजिंग कंपनी बनाकर कई लोगों के लिए एक मिसाल कायम की है।
- उनकी कंपनी कंज्यूमर फूड पैकेजिंग, प्रिंटिंग इंक और ग्लू का बिजनेस कर रही है और काफी progress कर रही हैं।
- उनके पांच प्लांट में 450 लोग सीधे काम कर रहे हैं और साथ ही साथ, अप्रत्यक्ष रूप से उनकी कंपनी के द्वारा कई हजार लोगों को काम मिला हुआ है, छठवां प्लांट आंध्र प्रदेश के नेल्लोर के पास श्रीसिटी में बन रहा है।
- छह महीने बाद इस प्लांट के शुरू होने के बाद 800 से अधिक लोगों को वे सीधे रोजगार देंगे।
- ये हुई सीधे रोजगार की बात, लेकिन उनकी कंपनी से आठ हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। अभी चार हजार से अधिक को मिल रहा है।
- उसकी कम्पनी की खास बात यह है कि कंपनी में उनके जैसे दृष्टिहीन और अशक्त लोगों की संख्या 60 से 70 फीसदी है। इन लोगों के साथ ही वे खुद भी रोज़ाना 15-18 घंटे काम करते हैं।
श्रीकांत के माता-पिता ने समाज की बातों को ठुकराते हुए उनको पाला और बेहतर शिक्षा भी उपलब्ध करवाई, बावजूद इसके कि उनके परिवार की मासिक आय 1600 रूपये प्रति महिना थी जो कि जरूरतों के अनुसार बहुत कम थी। और उनकी यह कोशिश रंग लाई। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बावजूद श्रीकांत ने 10वीं अच्छे मार्क्स से पास किया।
उनके दृष्टिहिनता के कारण बचपन से ही उसने समाज द्वारा भेदभाव किया गया।
श्रीकांत बोला के अनुसार –
“स्कूल में कोई भी मेरी मौजूदगी को स्वीकार नहीं करता था। मुझे हमेंशा कक्षा के अंतिम बेंच पर बिठाया जाता था। मुझे PT की कक्षा में शामिल होने की मनाही थी। मेरे जीवन में वह एक ऐसा क्षण था, जब मैं यह सोचता था कि दुनिया का सबसे गरीब बच्चा मैं ही हूं, और वो सिर्फ इसलिए नहीं कि मेरे पास पैसे की कमी थी, बल्कि इसलिए कि मैं अकेला था।”
उनकी मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुई। उनके जीवन में फैला अंधेरा हर वक्त उनके आड़े आ रहा था। इसी कारण उनकी पढ़ाई में भी दिक्कत आ रही थी, क्योंकि वो जो विषय पढ़ना चाह रहे थे उसमें admission नहीं मिल पा रहा था। Science पढ़ने की चाह लिये वो हर स्कूलों की ठोकर खा रहे थे।
कहते हैं जब आप एक इमानदार कोशिश पुरे हौंसले और जज्बे के साथ की जाती हैं तो पूरी कायनात आपको आपकी मज़िल से मिलवाने की कोशिश में लग जाती हैं।
और श्रीकांत के साथ भी ऐसा ही हुआ-
वे खुद ईमानदार थे इसलिए उन्हें एक ईमानदार मददगार भी मिल गईं ऐसे में उनके रास्ते को आसान करने के लिये उनकी टीचर स्वर्णलता ने उनकी मदद की और कोर्ट में आवेदन किया।
काफी मेहनत करने के बाद आखिरकार court ने अपने फैसले में श्रीकांत को science से admission लेने की अनुमति दे ही दी, लेकिन इस कोशिश ने छह महीनो का लम्बा समय ले लिया। exams नजदीक आ गए थे, इसके लिए उनकी teacher ने पूरे नोट्स का ऑडियो अपनी आवाज में बनाकर उन्हें दिया। एक टीचर की मेहनत उस समय रंग लाई जब परीक्षा में उन्हें 98 percent marks मिले। वे science विषय से 11वीं करने वाले देश के पहले दृष्टिहीन बने। यहां से हिम्मत और बढ़ी और श्रीकांत ने दुनिया के सर्वेश्रेष्ठ संस्थान में पढ़ने की ठानी।
श्रीकांत बोला ने साल 2009 में आईआईटी में प्रवेश के लिए परीक्षा दी, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। उनका आवेदन यह कह कर लौटा दिया कि –
आप दृष्टिहीन है। इसलिए आप IIT की प्रतियोगी परीक्षा में नहीं बैठ सकते।
उसके बाद श्रीकांत बोला ने आगे के रास्ते को बड़े ध्यान पूर्वक चुना और internet के माध्यम से यह पता लगाने का प्रयास करने लगे कि क्या उनके जैसे लड़कों(blind) के लिए कोई Engineering Programs उपलब्ध हैं?
इसी क्रम में उन्हें मेसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में प्रवेश मिल ही गया इसी के साथ ही श्रीकांत देश के पहले और MIT के पहले गैर-अमेरिकी ब्लाइंड स्टूंडेंट बने, जिन्होंने MIT से शिक्षा प्राप्त की। यहां 2009 से 2013-14 तक श्रीकांत पढ़े और ग्रेजुएट हुए।
एमआईटी से लंबा अवकाश लेकर अपना करोबार वर्ष 2012 के अंत में कुल आठ लोगों के साथ श्रीकांत ने हैदराबाद में अपनी कंपनी की शुरुआत की। श्रीकांत ने लोगों के खाने-पीने के समान की पैकिंग के लिए कंज्यूमर फूड पैकेजिंग कंपनी का गठन किया। उनकी कंपनी आंध्र प्रदेश, तेलांगना और कर्नाटक में मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों के साथ मिल कर प्राकृतिक पत्ती और बेकार कागज को फिर से उपयोग में लाकर पर्यावरण के अनुकूल, disposable packaging का निर्माण करती हैं।
इस कंपनी की शुरुआत श्रीकांत ने 8 लोगों की एक टीम से की, business शुरू करने के लिए उनके पास पूंजी बहुत कम थी। इसमें उनकी टीचर स्वर्णलता ने अपने गहने गिरवी रखकर उन्हें पैसे दिए।
उन्होंने इस कंपनी में सबसे पहले आस-पास के बेरोजगार लोगों को जोड़ा। जिसमें श्रीकांत ने ब्लाइंड लोगों को काम दिया। जब श्रीकांत की कंपनी अच्छी रफ़्तार पकड़ने लगी तो funding की problem आना शुरू हुई।
लेकिन श्रीकांत जिद्दी थे और इससे पीछे हटने वाले नहीं थे, उन्होंने कई फंडिंग कंपनियों से और निजी बैंकों से फंड जुटाकर अपने काम को आगे बढ़ाया और फर्श से अर्श तक का सफर तय किया।
श्रीकांत के साहस को सलाम करते हुए रतन टाटा ने उनकी कंपनी में invest किया है हालांकि रतन टाटा ने यह disclose नहीं किया हैं कि उन्होंने बोला की कंपनी में कितनी पैसा invest किया है।
श्रीकांत की कंपनी के बोर्ड में पीपुल कैपिटल के श्रीनिराजू, डा. रेड्डी लैबोरेटरीज के सतीश रेड्डी और रवि मंथा जैसे बड़े दिग्गज शामिल हैं।
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को अपना रोल मॉडल मानने वाले श्रीकांत बोला उनके साथ ‘लीड इंडिया प्रोजेक्ट’ में काम भी कर चुके हैं।
श्रीकांत बोला शतरंज और क्रिकेट जैसे खेलों के भी दृष्टिहीन श्रेणी के राष्ट्रीय खिलाड़ी रहे हैं। हाल ही में उन्हें ब्रिटेन के यूथ बिजनेस इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन ने बेस्ट सोशल एंटरप्राइजेस ऑफ ग्लोब का अवार्ड दिया है।
श्रीकांत कहते हैं-
दया, traffic signal पर किसी भिखारी को सिक्का देना बिलकुल नहीं है, बल्कि किसी को जीने का तरीका दिखाना और कुछ कर दिखाने का मौका देना है।
श्रीकांत कहते हैं कि जब सारी दुनिया उनसे कहती थी कि वह कुछ नहीं कर सकते तो वह उनसे कहते थे कि वह सब कुछ कर सकते हैं। और आज जिस मुकाम पर श्रीकांत हैं, उन्होंने अपनी इस बात को साकार भी कर दिखाया है।
अगर आपको अपनी जिंदगी की जंग जीतनी है, तो याद रखे, सबसे बुरे समय में धैर्य बनाकर रखने से और लगातार प्रयास करने से सफलता जरूर मिलेगी।
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