यूं तो हर कोई कह देता है मेरी मर्जी, मै जैसा चाहूं वैसे जिऊंगा!
पर बहुत सारे लोग अपनी मर्जी से नहीं बल्कि मजबूरियों में दूसरों की मर्जी से जीते है। लोग दूसरों की मर्जी को ही अपनी मर्जी समझ बैठते हैं।
भगवद्गीता के अनुसार (अध्याय 2 श्लोक 47) के अनुसार कर्म पर हमारा अधिकार है फल पर नहीं, लेकिन ये भी सच है जैसे कर्म होता है जैसे आप कर्म करते हो वैसा ही फल की प्राप्ति होती है, फल पर आपका अधिकार न होने के बावजूद भी फल को कर्म करने की दिशा ही तय करती हैं। इसलिए हमेशा याद रखे
ईश्वर की मर्जी तभी कुछ अच्छा देने की होगी जब आप अच्छा कर्म करेंगे
इस छोटे से जीवन में अपनी जिम्मेदारियों के कारण मजबूर तो हर कोई होता है। परंतु हमें फिर भी हमेशा वही कार्य करने चाहिए जिन कार्यों को करने में हमारा मन लगे, क्योंकि जब हम अपनी मर्जी के कार्य करते हैं वही मर्जी ईश्वर (GOD) की भी होती है ।
कई बार हम दूसरे लोगों के मन के कार्यों को करते हैं, हमें लगता है कि हमें ऐसे कार्य नहीं करने चाहिए। पर उस वक्त ईश्वर हमें दूसरों के कार्य को करने के लिए मजबूर कर देता है।
कई बार हम उन कुछ कार्यों को करने में निराश हो जाते है, उस कार्य को करने में हमारा मन नहीं लगता। फिर भी हमें उस कार्य से कुछ न कुछ फायदा जरूर होता है।
इसलिए हमें उस कार्य को ईश्वर की मर्जी समझकर खुशी-खुशी कर लेना चाहिए। जिस कार्य को करने में हमारा मन नही लगता परन्तु उसे करना हमारी मजबूरी होती है।
हम आपको कुछ ऐसी ही चीजें आज इस लेख में बताने जा रहे हैं। जिन्हें पढ़कर आपको लगेगा कि ईश्वर की क्या मर्जी है? ईश्वर की मर्जी ऐसी क्यों होती है? ईश्वर की मर्जी कब होती?और ईश्वर हमसे यह सब कार्य क्यों कराता है? यह सब जानने का मौका मिलेगा।
1. ईश्वर की मर्जी क्या है?
ईश्वर हमेशा वही चाहता है जो हम नहीं चाहते क्योंकि हम हमेशा अपने लिए एक सही निर्णय नहीं ले सकते। हमें पता ही नहीं रहता, कि हम इस निर्णय को लेकर, इस कार्य को करना प्रारंभ करेंगे तो इस कार्य से हमें कितना नुकसान या फायदा हो सकता है?
परंतु ईश्वर को हमेशा पता रहता है कि जब हम इस कार्य को करेंगे हमें क्या नुकसान और क्या फायदे हो सकते हैं।
यही कारण है कि कई बार ऐसा पल आता है जब हमें किसी कार्य को करने के बाद नुकसान होने की संभावना रहती है, अतः ईश्वर हमें अपनी महिमा के बल पर उस कार्य को करने से रोक देता है।
परंतु जब हम रोके जाने के बाद भी नहीं पाते रुक पाते तो हमें अवश्य ही इस कार्य के अंत में बहुत सारा नुकसान उठाना पड़ता है।
इसलिए हमें किसी कार्य को करने से पहले ईश्वर की मर्जी अर्थात अपनी अंतरात्मा से एक सवाल जरूर कर लेना चाहिए।
कहे तो हमारा मन ही हमारा ईश्वर है, हमारा मन हमें हमेशा कुछ गलत होने से पहले एक संकेत दे देता है परंतु हम उस संकेत में ध्यान देते।
आज तक जिसके साथ भी कुछ गलत हुआ उसके साथ गलत होने से पहले उसके मन में एक बार यह विचार जरूर आता है कि यह कार्य उसके लिए सही नही है परंतु वह यह बात समझ नहीं पाता ।
अर्थात ईश्वर की मर्जी हमेशा हमारे मन की मर्जी सी होती है। जब हमारा मन खुश रहता है तो हमारा मानना होता है कि ईश्वर की मर्जी होगी इस कारण हम आज खुश हैं।
जब हमें किसी कार्य के पश्चात दुख होता है तो हमें यह महसूस होता है, शायद ईश्वर की मर्जी नहीं थी जिस कारण हम आज दुखी है।
अर्थात इसका मतलब यह है कि हम जो भी कार्य करते हैं हमें उसे ईश्वर की मर्जी समझकर हमेशा ही खुश रहने की आदत डालनी चाहिए।
यह एक साधारण सा जीवन है,और प्रत्येक जीवन में सुख-दुख आना एक नियम ही है। इसलिए जब भी हमें सुख और दुख मिलते है। हमें उस समय को धैर्य के साथ ईश्वर की मर्जी समझकर गुजार लेना चाहिए।
हमारा भाग्य ईश्वर द्वारा पहले ही अपनी भाग्य रूपी पुस्तक में लिखा हुआ है। अतः इसे हम चाहकर भी बदल नहीं सकते परंतु हम अपने जीवन में कर्मों को सही ढंग से जरूर कर सकते हैं।
2. ईश्वर की मर्जी ऐसी क्यों होती हैं ?
ईश्वर की मर्जी हमेशा वह होती हैं जिस चीज की आवश्यकता हमें होती है। हम जिस चीज को देखकर आकर्षित हो जाते हैं और उसे अपना बनाना चाहते हैं भले ही वह हमारे लिए उपयोगी ना हो परंतु हम उसे देखकर आकर्षित हो तब हमारी मर्जी सिर्फ यह रहती है, कि उस चीज को हमें अपना बनाना है।
परंतु ईश्वर की मर्जी सिर्फ अच्छी उपयोगी चीजों को हमें दिलाना होती है। भले ही ईश्वर की मर्जी हमें पसंद ना हो परंतु उसकी मर्जी हमारे लिए बहुत ही उपयोगी और फायदेमंद होती है।
कभी-कभी हमें वह चीजें भी पसंद आने लगती हैं जो हमारे लिए उपयोगी होती हैं और जब वह चीज जब हमें मिल जाती है तो हम उसे ईश्वर की मर्जी समझते हैं, कि उसने हमें उस चीज को दिला दिया ।
लेकिन जब कोई बुरी चीज हमें पसंद आ जाती है और ईश्वर की मर्जी से वह हमें नही मिल पाती। तो हम अत्यधिक दुखी हो जाते हैं परन्तु हमें यह समझ नहीं आता कि वह चीज हमारे लिए हानिकारक है। भगवान सबके लिए एक समान होते हैं इसलिए वे उस चीज को हमें नहीं दिलाते।
परंतु कुछ लोग अपनी जिंदगी के साथ खेल कर भी उस चीज को हासिल करना चाहते हैं। तो यहां पर ईश्वर भी एक कदम पीछे हट जाते हैं (उनका मन नही मानता) और उस व्यक्ति को वे बुरी चीज दिला देते हैं जो उसके लिए नुकसानदायक होती है।
इसलिए हम वहां पर अपने मन को नियंत्रित नहीं कर पाते और हम किसी तरह उस नुकसानदायक चीज को हासिल कर लेते हैं। परंतु बाद हमें उसके किए पछताना पड़ता है।
हम जिसे पाना चाहते हैं भले ही उस वक्त ईश्वर की मर्जी उस चीज को हमें दिलाना ना हो परंतु वक्त के साथ ईश्वर भी वे हर चीज हमें दिलाना चाहता है जिसकी हमें आवश्यकता होती है।
इसलिए हमें ईश्वर पर हमेशा विश्वास रखना चाहिए और उसकी मर्जी पर हमेशा गर्व होना चाहिए। ईश्वर हमेशा ही अपनी मर्जी के साथ हमारे जीवन में हमारा सहयोग करता हैं।
3. ईश्वर की मर्जी कब होती है?
किसी कार्य को हमारे द्वारा करने में ईश्वर की मर्जी सिर्फ तब होती है जब हमें उस की आवश्यकता होती है। ईश्वर भी उस कार्य को हमारे हाथों करवाता है और हमारा मन उस कार्य को करने के लिए तैयार हो जाता है। मतलब हमारी आवश्यकताएं पूरी हो जाती है।
अर्थात जब हम किसी कार्य को करना चाहते हैं तभी ईश्वर भी उस कार्य को अपनी मर्जी से हम से करवा पाता है। कुछ कार्य ऐसे भी होते हैं जिन्हें करने की हमारी मर्जी तो नहीं होती पर ईश्वर अपनी मर्जी के द्वारा हम से करवा लेता है।
वह कार्य हमारे लिए लाभदायक हो या हानिकारक परंतु उन्हें हम ही कर पाते हैं। जैसे- एक विद्यार्थी सिर्फ अपने होमवर्क को करता है परंतु उसे करना नहीं चाहता लेकिन शिक्षकों से डांट खाने के भय से ईश्वर उसे उस कार्य को उसके द्वारा मजबूरन करवा देते हैं।
ऐसे बहुत सारे काम होते हैं जिन्हें हम करना नहीं चाहते परंतु हम उन कार्यों को करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। हो सकता है कि उस कार्य से हमें कुछ भी लाभ ना हो।
हमें प्रत्येक कार्य को ईश्वर की मर्जी समझकर सफलतापूर्वक करना चाहिए। हम भले ही किसी कार्य को करने में असफल रहे जाएं।इसलिए हमें प्रत्येक कार्य के परिणामों को ईश्वर की मर्जी समझकर खुश रहना चाहिए।
हमारा मन ही ईश्वर की मर्जी है जब हम किसी कार्य को करना चाहते हैं तो उस कार्य को करने में और जब हमारा मन किसी कार्य को करने से मना कर देता है। यह सब ईश्वर की मर्जी से होता है।
4. ईश्वर हमसे कार्य क्यों करवाते हैं?
ईश्वर द्वारा हमसे जितने भी कर्म करवाए जाते हैं। वह हमारी भाग्य पुस्तिका में दर्ज होते हैं अतः हम वही कार्य अपने जीवन में कर पाते हैं जो हमारी किस्मत में लिखे रहते हैं। कई बार ऐसा होता है,हम मेहनत करते हैं किसी और लक्ष्य के लिए परंतु हमे हासिल कोई और हो जाता है।
इसलिए हमें प्रत्येक लक्ष्य को प्राप्त होने पर खुशी होनी चाहिए। क्योंकि ईश्वर की मर्जी ही होगी उस लक्ष्य को हम तक पहुंचाने में और हमें उस लक्ष्य तक पहुंचाने में।
जब भी हम अपने मन के कार्यों को नहीं कर पाते तो हमें ज्यादा दुख नहीं होना चाहिए l ईश्वर प्रत्येक व्यक्ति के भविष्य के बारे में कुछ न कुछ पहले ही सोच कर रखता है परंतु उसे उस लक्ष्य तक पहुंचने में एक संघर्षपूर्ण मार्ग तय करना पड़ता है। उस संघर्ष शाली मार्ग में भी ईश्वर हमेशा हमारे साथ रहता है अर्थात ईश्वर हमारे जीवन को सफल बनाने के लिए हमारे हाथों कार्य करवाते है।
सीख-
हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है। कि हमें अपने जीवन में प्रत्येक छोटे-मोटे कार्यों से प्रसन्न रहना चाहिए। असफलताओं को अस्वीकार कर डरने की बजाय उन्हें खुद के जीवन में एक छोटा सा हिस्सा मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए, असफलता के बाद ही सफलता प्राप्त होती है। अतः हमारे द्वारा किए गए प्रत्येक कार्य को ईश्वर की मर्जी समझकर हमेशा खुश रहने का प्रयास करना चाहिए