आधुनिक भारत के निर्माता कहे जाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने हमारे देश को स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बाल गंगाधर तिलक को “लाल बाल पाल” के बाल के रूप में भी जाना जाता है। बाल गंगाधर तिलक को लोग लखनऊ समझौता के लिए भी स्मरण करते हैं।
केसरी अखबार में प्रकाशित की गई पत्रिकाओं के लिए बाल गंगाधर तिलक का नाम इतिहास के पन्नों पर अमर है। बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजो से भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए “ स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा ” का नारा दिया था। इस लेख में हम आपको बाल गंगाधर तिलक की जीवनी के द्वारा उनके जीवन के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी देंगे।
Bal Gangadhar Tilak: Punjab Kesari, Lokmanya
बाल गंगाधर तिलक को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक कहा जाता था। इन्होंने डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी का निर्माण किया था, साथ ही इन्होंने दो अखबारों को भी चालू किया था जिनके नाम “केसरी” और “मह्रात्ता” थे।
आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बाल गंगाधर तिलक अपने जीवन में गौरवशाली कार्यों को करने की वजह से आज भी देशवासियों द्वारा जाने जाते है।
बाल गंगाधर तिलक व्यक्तिगत परिचय
पूरा नाम | बाल गंगाधर तिलक |
जन्मतिथि | 23 जुलाई, 1856, रत्नागिरी, महाराष्ट्र |
पिता का नाम | गंगाधर तिलक |
माता का नाम | पार्वती बाई |
शिक्षा | बी.ए. एल.एल. बी |
पुरस्कार | लोकमान्य |
पत्नी का नाम | तापिबाई (सत्यभामा बाई) |
बच्चों के नाम | रमा बाई वैद्य, पार्वती बाई केलकर, विश्वनाथ बलवंत तिलक, रामभाऊ बलवंत तिलक, श्रीधर बलवंत तिलक और रमाबाई साणे |
मृत्यु | 1 अगस्त, 1920, मुंबई, महाराष्ट्र |
बाल गंगाधर तिलक का प्रारंभिक जीवन
एक ब्राह्मण परिवार में वर्ष 1856 में महाराष्ट्र के रत्नागिरी में 23 जुलाई को बाल गंगाधर तिलक का जन्म हुआ था। बाल गंगाधर के पिताजी रत्नागिरी मे संस्कृत भाषा के प्रचलित शिक्षक थे।
इनके पिताजी का नाम गंगाधर तिलक था। इसीलिए बाल शब्द इनके नाम के साथ जुड़ा है, अतः इनका पूर्ण नाम नाम बाल गंगाधर तिलक होता है। बाल गंगाधर की माता जी का नाम पार्वती बाई गंगाधर था, जब बाल गंगाधर जी के पिता का ट्रांसफर हुआ, तो तबादला होने के बाद वह महाराष्ट्र के पुणे शहर जाकर रहने लगे।
पुणे शहर में ही तापीबाई से साल 1971 में बाल गंगाधर की शादी उनके पिताजी ने करवाई और आगे चलकर उनकी पत्नी तपिबई सत्यभामा बाई के नाम से फेमस हुई।
बाल गंगाधर तिलक की शिक्षा
बाल्यकाल से ही बाल गंगाधर तिलक कुशाग्र बुद्धि के थे। उनका पसंदीदा विषय गणित था। उन्होंने अपनी शुरुआती एजुकेशन अपने पिताजी के घर से ही प्राप्त की थी और आगे की शिक्षा बाल गंगाधर तिलक ने ए़गलो-वर्नाकुलर स्कूल से प्राप्त की थी, जो कि पुणे शहर में स्थित है।
बाल गंगाधर के माता-पिता ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रह सके थे, जिसके कारण इन्हें अपनी जिंदगी में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था, परंतु उन्होंने कठिनाइयों से हार नहीं मानी और हर कठिनाई का सामना करते हुए अपनी जिंदगी में लगातार आगे बढ़ते रहें।
साल 1877 में बाल गंगाधर तिलक जी ने पुणे शहर में ही स्थित डेक्कन कॉलेज से गणित और संस्कृत सब्जेक्ट से बैचलर ऑफ आर्ट की डिग्री को प्राप्त करने में सफलता हासिल की।
इसके बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए बाल गंगाधर तिलक मुंबई चले गए, जहां पर उन्होंने मुंबई के एक कॉलेज में एलएलबी मे एडमिशन लिया और एलएलबी की पढ़ाई करते हुए साल 1879 में बाल गंगाधर तिलक बैचलर ऑफ लॉ की डिग्री प्राप्त करने में सफल हो गए।
बाल गंगाधर तिलक जी का कैरियर
अपनी ग्रेजुएशन के पश्चात् पुणे शहर में बाल गंगाधर तिलक ने एक प्राइवेट स्कूल में उन्होंने एक टीचर के पद पर जॉइनिंग प्राप्त की और कुछ दिनों तक छात्रों को अध्ययन करने के बाद उन्होंने स्कूल को छोड़ दिया और स्कूल छोड़ने के बाद वह जर्नलिस्ट यानी की पत्रकार बन गए।
जब बाल गंगाधर तिलक जी ने एक पत्रकार का पद संभाला, तो उस समय देश के जो हालात थे,उससे वह काफी ज्यादा दुखी थे। इसलिए वह देश के हालात के प्रति चिंता व्यक्त करने के लिए पुरजोर तरीके से अपनी आवाज को उठाना चाहते थे।
बाल गंगाधर तिलक जी पाशचात्य शिक्षा प्रणाली के खिलाफ थे,क्योंकि वह ऐसा मानते थे कि वेस्टर्न एजुकेशन सिस्टम में भारत और भारत की संस्कृति को नीचा दिखाने का काम किया जाता है और इस प्रकार वह इस नतीजे पर पहुंचे कि भारत के व्यक्ति तभी एक अच्छे भारतीय बन सकेंगे, जब उन्हें भारतीय इतिहास और भारतीयता से संबंधित अच्छी शिक्षा प्राप्त होगी।
इसलिए बाल गंगाधर तिलक ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर के “डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी” का निर्माण किया और उसी साल बाल गंगाधर तिलक जी ने दो न्यूज़पेपर का भी निर्माण आरंभ किया, जिनमें से एक का नाम था “केसरी” जोकि मराठी लैंग्वेज में पब्लिश होता था और दूसरे का नाम था “मह्रात्ता” जोकि अंग्रेजी लैंग्वेज में पब्लिश होता था।
बाल गंगाधर तिलक जी के द्वारा शुरू किए गए यह दोनों न्यूज़पेपर काफी कम समय में भारतीय लोगों के बीच अच्छे खासे लोकप्रिय होने लगे, क्योंकि बाल गंगाधर तिलक जी इन समाचार पेपरों में भारत की दुर्दशा पर काफी अच्छे और ज्ञानवर्धक आर्टिकल लिखते थे।
वह भारत के लोगों की दिक्कतों को इस पेपर में छापने का काम करते थे।
इसलिए अपनी स्तिथि से मेल खाते अखबार को पढ़ना लोगों की बेहद पसंद आता था। बाल गंगाधर तिलक जी अपने अखबार में ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते थे, ताकि लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो।
बाल गंगाधर जी का राजनीतिक कैरियर
राजनीति में इंटरेस्ट होने के कारण साल 1890 में बाल गंगाधर तिलक जी ने कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन कर लिया। कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के बाद बाल गंगाधर तिलक ने स्वशासन पर पार्टी के उदारवादी मतों का काफी जोरदार तरीके से विरोध करना शुरू कर दिया, जिसके बाद गोपाल कृष्ण गोखले के खिलाफ पार्टी ने उन्हें खड़ा कर दिया।
बाल गंगाधर तिलक थोड़े क्रोधी स्वभाव के थे। इसीलिए लोग उन्हें गरम दल का नेता कहते थे। बाल गंगाधर तिलक जल्द से जल्द अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए एक हथियारबंद विद्रोह को चाहते थे, इसलिए उन्होंने जब बंगाल का बंटवारा हुआ, तब ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार करने का निर्णय लिया और इसके लिए लोगों को समझाया तथा लोगों को यह भी बताया कि उन्हें स्वदेशी वस्तुओं का इस्तेमाल करने पर ज्यादा जोर देना है।
कांग्रेस पार्टी और बाल गंगाधर तिलक की विचारधारा आपस में मेल नहीं खाती थी। इसलिए कई लोग बाल गंगाधर तिलक को चरमपंथी विंग के तौर पर जानते थे।
कांग्रेस पार्टी में जुड़े रहने के दौरान ही एक दिन बाल गंगाधर तिलक की मुलाकात पंजाब के लाला लाजपत राय और बंगाल के राष्ट्रवादी बिपिन चंद्र पाल से हुई और आगे चलकर इन तीनों की ही जोड़ी को लाल-बाल- पाल कहा जाने लगा और यह काफी ज्यादा इसी नाम से प्रसिद्ध होने लगे।
बाल गंगाधर तिलक की जेल यात्रा
बाल गंगाधर तिलक अक्सर अपने अखबारों के द्वारा अंग्रेज गवर्नमेंट के खिलाफ लेख लिखते थे। और उनके द्वारा लिखे गए लेख से ही मोटिवेशन प्राप्त करके साल 1897 में चाफेकर बंधुओं ने 22 जून को अंग्रेजी अधिकारी कमिश्चनर रैंड औरो लेफ्टडिनेंट आयर्स्ट का मर्डर कर दिया।
चाफेकर बंधुओं द्वारा इस मर्डर को करने के बाद इसका सारा इल्जाम बाल गंगाधर तिलक पर आ गया और उनके ऊपर राष्ट्रद्रोह का केस पंजीकृत किया गया और बाल गंगाधर तिलक को तकरीबन 6 साल के लिए देश से निकालने का आर्डर अदालत ने सुनाया।
इस प्रकार साल 1908 से लेकर सन 1914 तक बाल गंगाधर तिलक को वर्मा की मांडले जेल में रखा गया, जहां पर कई भारतीय कैदी पहले से ही मौजूद थे। हालांकि जेल जाने के बाद भी उन्होंने लिखने के काम को बंद नहीं किया और उन्होंने जेल में रहते हुए ही “गीता रहस्य” नाम की किताब को लिखा।
होम रुल लीग की स्थापना
साल 1908 से लेकर साल 1914 तक बर्मा की मांडले जेल में सजा काटने के बाद बाल गंगाधर तिलक जब साल 1915 में वापस अपने देश लौटे, तो उनके लौटने पर उनके समर्थकों ने काफी खुशी मनाई।
1915 में भारत लौटने के बाद एक बार फिर से बाल गंगाधर तिलक कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। जिसके बाद बाल गंगाधर तिलक ने एनी बेसेंट, मोहम्मद अली जिन्ना और यूसुफ तथा अन्य लोगों के साथ मिलकर साल 1916 में 28 अप्रैल के दिन पूरे इंडिया भर में होमरूल लीग को स्थापित किया।
बाल गंगाधर समाज सुधारक के तौर पर
अंग्रेजों का विरोध करने के साथ-साथ बाल गंगाधर समाज सुधार के काम भी करते थे। उन्होंने अपने स्तर से समाज में फैली हुई जाति प्रथा और बाल विवाह तथा अन्य बुराइयों का काफी खुलकर विरोध किया और वह महिलाओं को अच्छी एजुकेशन देने के भी पक्षधर थे।
बाल गंगाधर तिलक जी को प्राप्त सम्मान
महाराष्ट्र राज्य के पुणे सिटी में तिलक रंगा मंदिर नाम का एक थिएटर ऑडिटोरियम इनके नाम पर मौजूद है।
साल 2007 में इंडियन गवर्नमेंट ने बाल गंगाधर तिलक जी की याद में एक सिक्का भी जारी किया था।
बाल गंगाधर तिलक जी की जीवन गाथा के ऊपर “लोकमान्य: एक युगपुरुष” नाम से फिल्म भी बन चुकी है।
बाल गंगाधर तिलक जी की मृत्यु
जलियांवाला बाग कांड के बाद बाल गंगाधर तिलक जी की तबीयत काफी ज्यादा खराब रहने लगती थी और वह डायबिटीज की बीमारी की गिरफ्त में भी आ गए थे, जिसके बाद साल 1920 में 1 अगस्त को इनकी मृत्यु हो गई।
बाल गंगाधर तिलक ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय लोगों में एकता लाने के लिए गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव जैसे कार्यक्रम को आरंभ किया था।
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