मैं रुकना नहीं चाहती पर रुक जाना चाहती हूं
मैं वहांँ रुकी थी
कुछ पल,
जहां मुझे बस
कुछ पल से थोड़ा कम रुकना था
अब मैं भाग आई हूँ
वहांं से जहां
मुझे कुछ और पल रुकना था
मैं नितांत भाग रही हूँ
यथार्थ से
मैं भाग रही हूंँ फिर भी
भूल जाने के लिए
इस बीच मेरे मध्य
संवेदनशीलताओं का एक चौड़ा बांध हैं
वहां आकर मैं रुक जाती हूँ
बार-बार
मैं रुकना नहीं चाहती
पर रुक जाना चाहती हूं यहांँ
यहां मुझे सब याद हैं
जो मैं कभी भूलना नहीं चाहती
मैं फिर वहीं रुक जाती हूँ
पर क्या यह सही हैं
शायद भूल जाना भाग जाने से बेहतर हैं
पर क्या भाग जाना भूल जाना नहीं हैं?
~ आयुषी
“कविता”
मैंने पहली बार उसे वही देखा था
वो एक तूफ़ान का दिन था
और वो उस नाव में बैठी थी
अकेली नितांत अकेली
और इतनी में आवाज आई देखो वो नाव पलट गई
किसी ने कहा “संभालो उसे कहीं, कहीं वो डूब ना जाये”
अगले दिन वो समुद्र के किनारे पड़ी मिली
लोगों ने कहा लगता है मर गई
देखा तो सांसे चल रही थी उसकी
इतनी ही देर में उसने आंखें खोली
मैंने उसे घूर कर देखा
और पूछा क्या नाम है तुम्हारा?
उसने जवाब में कहा “कविता”।
~ आयुषी
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