Hindi Poems, Hindi Poetry, Hindi Kavita, Poem By Rajkumar Yadav
## मैं सोचता हूं
ठंडी ठंडी बहती हवा
और पेड़ों की नरम छाया में
तुम होती तो कितना अच्छा होता
हवा के झोंके तुम्हारे जुल्फों
को बिखेर जाते और मैं
अपनी उँगुलियों से उसे सुलझाता
पमछी सुरमय माहौल बनाते
और तेरी मेरी धड़कनें शोर करती
## मैं सोचता हूं
मैं तुम्हारे साथ भींग जाता
तेरे मेरे दरमियां के फासले मिट जाते
बूंदों की छमछम की आवाज
और हला हमाके बदन को सिहरा जाती
और आसमान में बिजली चमकती
तुम मेरे सीने से लग जाती।
## मैं सोचता हूं
जब रात को तुम्हारा मिस्ड काॅल आता
मैं चुपके से छत पे चढ़ जाता
और घंटों तुम से बात करता रहता।
जब तुम सहेलियों से बात कर रही होती
तब मैं डर डर के कोई इशारा करता
तुम थोड़ी शर्माती हुई मेरी ओर देखती
फिर धीरे से मुस्काती और नजरें चुरा लेती।
## मैं सोचता हूं
जब मैं बाजार में तेरा हाथ थामे चलता
आता जाती निगाहें हमें घूरती
और तुम कहती “छोड़ो जाने भी दो”
किसी चाट के दुकान पे ठहरते
किसी जगह आईसक्रिम खाते
हमारे रिश्तों में नजदिकियों की मिठास घुल जाती
किसी नुक्कड़ पे हम खूब सारी बाते करते।
## मैं सोचता हूं
जब तुम मुझे हासिल ही नहीं हो
तब मेरे सोचने से क्या फायदा
मैं तो बेवजह सोचता रहता हूं।
आजतक तुम से खुल कर बात तक नहीं हुई
मैं तुझे दूर से देखकर चला आता हूं
तुम भी मुझे समझती नहीं,नजरअंदाज कर देती हो
यह सोचकर ये तो बस यूं ही घूरता रहता हैं।
– राजकुमार यादव (Raj Kumar Yadav)
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2 Comments
nice poem
waah yadav ji maza aagaya kamal ki lines hai bahut shandaar