मार्टिन लूथर किंग का जन्म स्थल 1929 में अमेरिका है। वह मूलतः एक अमेरिकी नागरिक थे जिनका रंग अश्वेत था अर्थात यह अमेरिका के काले यानी कि नीग्रो समुदाय में पैदा हुए थे और बड़े होकर के इन्होंने नीग्रो समुदाय को अमेरिका में अधिकार दिलाने के लिए काफी संघर्ष किया और इन्हें अधिकतर संघर्ष में सफलता भी हासिल हुई।
मार्टिन लूथर किंग ने अमेरिका के एक चर्च में पादरी का काम भी किया था। इन्हें अमेरिका का गांधीजी भी कहा जाता था। मार्टिन लूथर किंग ने अपनी जिंदगी में भारत की यात्रा भी की थी। साल 1968 में जब यह अमेरिका के एक होटल में ठहरे थे तभी कुछ अज्ञात लोगों ने उनकी गोली मारकर की हत्या कर दी। इस प्रकार अमेरिका के काले लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले एक महान व्यक्ति का अंत हो गया।
मार्टिन लूथर किंग का व्यक्तिगत परिचय
पूरा नाम | डॉ॰ मार्टिन लूथर किंग जूनियर |
जन्म दिनांक | 15 जनवरी, 1929 |
जन्म स्थान | एटलांटा अमेरिका |
मृत्यु तिथि | 4 अप्रैल, 1968 मेम्फिस, अमेरिका |
मृत्यु स्थान | कलकत्ता |
नागरिकता | अमेरिकन |
माता – पिता | मार्टिन लूथर किंग सीनियर, अल्बर्टा विल्लियम्स किंग |
पत्नी | क्रेटा स्कॉट |
कार्यक्षेत्र | समाज सेवा |
मार्टिन लूथर किंग का प्रारंभिक जीवन
दुनिया के प्रसिद्ध समाज सुधारक मार्टिन लूथर किंग जूनियर का जन्म यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका के अटलांटा शहर में साल 1929 में 15 जनवरी को हुआ था। मार्टिन लूथर किंग की त्वचा का रंग काला था और इसीलिए बचपन में इन्हें कई लोग अलग-अलग नामों से चिढा करके परेशान करते थे और तभी से मार्टिन लूथर किंग ने यह निश्चय कर लिया कि वह श्वेत और अश्वेत के बीच होने वाली लड़ाई में कठोरता के साथ खड़े रहेंगे।
जब मार्टिन लूथर किंग पैदा हुए थे, तभी यह बचपन से ही अमेरिका में गोरे लोगों के द्वारा काले लोगों का शोषण करते हुए देखते आ रहे थे, इसलिए बड़े होकर के मार्टिन लूथर किंग ने अमेरिका में नीग्रो समुदाय के लोगों के खिलाफ होने वाले भेदभाव के विरुद्ध कई सफल आंदोलन किए। साल 1955 मार्टिन लूथर किंग की जिंदगी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हुआ।
इसी वर्ष मार्टिन लूथर किंग की शादी क्रेटा स्कॉट से हुई।
मोंटगोमरी बस बॉयकोट
शादी होने के बाद एक दिन साल 1954 में मार्टिन लूथर किंग को अमेरिका के एल्बामा शहर में स्थित एक चर्च में प्रवचन देने के लिए बुलाया गया था और इसके अगले ही साल यानी कि वर्ष 1955 में उनकी जिंदगी में एक बहुत ही महत्वपूर्ण मोड आया।
साल 1955 में अमेरिका की बसों में जो काले लोगों के बैठने के लिए अलग सीट और गोरे लोगों के लिए बैठने के लिए अलग सीट का प्रावधान था, उसके खिलाफ एक महिला श्रीमती Rose Parks ने आवाज उठाई और उन्होंने अपनी गिरफ्तारी दी, जिसके बाद मार्टिन लूथर किंग ने अमेरिका में बड़े पैमाने पर बस आंदोलन चलाया।
जिसके परिणाम स्वरूप तकरीबन 381 दिनों के बाद अमेरिका में काले और गोरे लोगों के लिए बस में अलग सीट का प्रावधान खत्म कर दिया गया। इस प्रकार काले लोग बस में किसी भी सीट पर बैठ सकते थे।
दक्षिणी ईसाई नेतृत्व सम्मेलन
मार्टिन लूथर किंग को दक्षिणी ईसाई नेतृत्व सम्मेलन का अध्यक्ष साल 1957 में बनाया गया। इस ग्रुप का मुख्य उद्देश्य काले लोगों को अमेरिका में अधिकार दिलाना और उनके अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। इसके लिए मार्टिन लूथर किंग ने अहिंसक आंदोलन स्टार्ट किया और सफलतापूर्वक उसका संचालन किया।
बर्मिंघम अभियान
साल 1963 में मार्टिन लूथर किंग अपने पिताजी के साथ चर्च में सह पादरी का काम संभालने के लिए अमेरिका के अटलांटा शहर चले गए, वहां पर जाने के बाद उन्होंने आगे चलकर के वोट डालने का अधिकार, श्रम अधिकार और दूसरे बुनियादी नागरिक अधिकारों के लिए साल 1963 में अलबामा में बर्मिंघम अभियान चालू किया।
जिसके अंतर्गत मार्टिन लूथर किंग ने कई प्रकार के विरोध प्रदर्शन और जुलूस निकाले जिसमें बड़ी संख्या में काले लोगों ने भाग लिया।अलबामा शहर में चालू किया गया बर्मिंघम अभियान तकरीबन 2 महीने तक चला था।
वाशिंगटन मार्च
लगातार आंदोलन में मिलने वाली सफलता के कारण मार्टिन लूथर किंग बहुत ज्यादा आशावादी हो गए थे। इसलिए उन्होंने साल 1963 में 28 अगस्त को अमेरिका के वॉशिंगटन में एक बहुत ही बड़ा मार्च निकाला, जिसमें काफी बड़ी संख्या में नीग्रो समुदाय के लोग शामिल हुए।
इस मार्च का मुख्य उद्देश्य अमेरिका के स्कूलों और नौकरियों में नस्लीय भेदभाव पर रोक लगाना था ताकि जिस प्रकार का व्यवहार अमेरिका के स्कूलों में गोरे लोगों के साथ होता है, उसी प्रकार का व्यवहार काले लोगों के साथ भी किया जा सके।
शिकागो यात्रा
अमेरिका के दक्षिणी भाग में सफल आंदोलन करने के बाद मार्टिन लूथर किंग ने अमेरिका के उत्तरी भाग का रुख किया, जहां पर उन्होंने शिकागो की यात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य नागरिक अधिकार गतिविधियों का प्रचार प्रसार करना था।
मार्टिन लूथर किंग को प्राप्त सम्मान और पुरस्कार
मार्टिन लूथर किंग को साल 1964 में विश्व शांति के लिए काम करने के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया। इसके अलावा अमेरिका की कई यूनिवर्सिटी मार्टिन लूथर किंग को उनकी उपलब्धियों के लिए विभिन्न प्रकार की मानद उपाधि प्रदान की।
इसके अलावा भी अमेरिका के कई धार्मिक और सामाजिक संस्थानों ने मार्टिन लूथर किंग को कई मेडल दिए। साल 1963 में टाइम मैगजीन ने मार्टिन लूथर किंग को मैन ऑफ द ईयर का अवार्ड दिया। मार्टिन लूथर किंग भारत के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले गांधी जी से भी बहुत ही ज्यादा प्रभावित थे।
इसीलिए उन्होंने अपने आंदोलन में गांधीजी के पैटर्न को ही फॉलो किया। मार्टिन लूथर किंग को अमेरिका में काले लोगों के साथ-साथ गोरे लोगों का भी समर्थन प्राप्त था। इसलिए इन्होंने अपने अधिकतर आंदोलन में सफलता हासिल की।
बता दें मार्टिन लूथर किंग को अमेरिका का गांधी भी कहा जाता था। मार्टिन लूथर किंग ने साल 1959 में हमारे भारत देश की यात्रा की थी। इसके अलावा इन्होंने 2 पुस्तकें भी लिखी थी जिनका नाम स्ट्राइड टुवर्ड फ्रीडम’ (1958) तथा ‘व्हाय वी कैन नॉट वेट’ (1964) था। मार्टिन लूथर किंग ने साल 1957 में साउथ क्रिश्चियन लीडरशिप कॉन्फ्रेंस की भी स्थापना की थी।
मार्टिन लूथर किंग की पसंदीदा लाइन
“हम वह नहीं हैं, जो हमें होना चाहिए और हम वह नहीं हैं, जो होने वाले हैं, लेकिन खुदा का शुक्र है कि हम वह भी नहीं हैं, जो हम थे।”
मार्टिन लूथर किंग की मृत्यु
अपनी जिंदगी को अमेरिका के काले लोगों के अधिकारों के लिए खपाने वाले मार्टिन लूथर किंग का अंत काफी दर्दनाक हुआ था। साल 1968 में जब यह अमेरिका के एक होटल में ठहरे थे, तभी वहां पर कुछ लोग आए और उन्होंने गोली मार करके इनकी हत्या कर दी। इस प्रकार काले लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले एक व्यक्ति ने इस धरती पर आखिरी सांसे ली।
जब मार्टिन लूथर किंग ने की थी आत्महत्या की कोशिश
जब मार्टिन लूथर किंग अपने स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रहे थे यह बात तब की है। मार्टिन लूथर किंग के पिताजी चर्च में पादरी का काम करते थे। इसलिए मार्टिन लूथर किंग अपना अधिकतर टाइम चर्च में ही व्यतीत करते थे और इनकी माता जी घर से अधिकतर समय बाहर ही रहती थी।
ऐसे में घर पर दादी की देखभाल करने के लिए मार्टिन लूथर किंग के पिता ने मार्टिन लूथर किंग को कहा था, परंतु ऐसा हो नहीं पाया और किसी काम को करने में मार्टिन लूथर किंग इतने ज्यादा व्यस्त हो गए कि उन्हें यह पता ही नहीं चला कि उन्हें अपनी दादी की देखभाल भी करनी है और तभी दादी को हार्ट अटैक आ गया जिसके कारण उनकी दादी की मृत्यु हो गई।
जब मार्टिन लूथर किंग को अपनी दादी की मृत्यु के बारे में जानकारी हुई, तो उन्हें बहुत ही ज्यादा दुख पहुंचा और उन्हें यह लगने लगा कि उनकी दादी की मौत उनके कारण ही हुई है, जिसके कारण धीरे-धीरे मार्टिन लूथर किंग परेशान रहने लगे और वह काफी चिंता में रहने लगे और इसी चिंता के कारण एक दिन वह अपने दो मंजिला घर की बालकनी पर चले गए और वहां से उन्होंने छलांग लगा दी। हालांकि उनकी मौत नहीं हुई, बल्कि उन्हें पैर और हाथ में फ्रैक्चर अवश्य हो गया था।
इसके बाद उनकी फैमिली ने उन्हें काफी समझाया जिसके बाद मार्टिन लूथर किंग अवसाद से बाहर निकल पाए।
अन्य प्रेरणादायी जीवनी भी पढ़ें
- हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय
- सर्वाधिक प्रखर कुटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य की जीवनी
- बर्डमैन सलीम अली जीवनी
- विलियम शेक्सपियर का संक्षिप्त जीवन परिचय
- रेबीज के टीके के आविष्कारक लुइस पाश्चर की जीवनी
- टेलीफोन के आविष्कारक एलेग्जेंडर ग्राहम बेल का जीवन परिचय