सेहत इंसानों के लिए कुदरत का बेहद अनमोल तोहफा है जिसकी अगर सही ढंग से देखभाल न की जाए और इसके विपरीत उससे लापरवाही बरती जाने लगे तो मुमकिन है कि यह तोहफा हमारे हाथ से कभी भी निकल जाए।
एक बार अगर यह तोहफा हाथ से निकल जाए तो इसे पाना लोगों के लिए बेहद मुश्किल हो जाता है। हममें से बहुत से लोग इसी सेहत से खिलवाड़ करते हुए नशे की बुरी लत और आदत में गिरफ्तार हो जाते हैं।
हमारे समाज में देखा जाता है कि अक्सर युवा नशे की आदत में पड़ कर अपने शारीरिक और मानसिक क्षति के मार्ग प्रशस्त करते हैं और तबाही और बरबादी की ओर कदम बढ़ा देते हैं। जब नशे से बचने की युवाओं को नसीहत की जाती है तो वह कोई ना कोई हीला बहाना ढूंढ कर अपना बचाव करते हुए किनारा धर लेते हैं।
नशे का आखिर क्या है दुष्प्रभाव?
नशे से इंसान के दिमाग और उसकी इंद्रियों पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है। नशा युवाओं के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है। नशा इंसान को कमजोर, सुस्त और मंथर बनाकर उसे गलत संगत की ओर ले जाता है।
गलत लोगों के बीच गुमराह होकर इन्सान अपने जीवन के लक्ष्य और जिम्मेदारियों को भूल जाता है। नशे का प्रभाव सीधे तौर पर किसी आदमी की प्रतिभा एवं मानसिक कार्यशैली पर पड़ता है। कोई व्यक्ति अगर हर तरह से दक्ष और सक्षम होने के बावजूद यदि नशे की लत में गिरफ्तार हो जाए तो राष्ट्र एवं समाज तो छोड़िए वह स्वयं अपना भला करने से भी असमर्थ हो जाता है।
लंबे समय से नशे की आदत में लीन रहने के बाद जब वह आंखें खोल कर कभी अपने भविष्य की ओर देखता है तो सामने उसे अंधेरा ही अंधेरा नजर आता है।
एक सरकारी आंकड़े के अनुसार हमारे देश में 10 से 75 साल की उम्र के लगभग 16 करोड़ लोग शराब पीते हैं। देश के पांच राज्यों छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, पंजाब, सरकार अरुणाचल प्रदेश और गोवा में इसका इस्तेमाल चरम सीमा पर है।
शराबनोशी ऐसा जहर है जो केवल व्यक्ति विशेष ही नहीं बल्कि समाजभर को अनेक क्षेत्रों में नष्ट कर देती है। शराब और ड्रग्स की लत लग जाने पर भूख और वजन में कमी, चिंता और चिड़चिड़ापन, नींद न आना और कामकाज के दौरान उसके मन पर आलस्य हावी रहने लगता है।
इन सबके अलावा नशे को अपराध के सबसे बड़े कारणों में से एक शुमार किया जाता है जिसे बड़े शौक से ग्रहण कर नशा करने वाला व्यक्ति हर वह बुरे काम करता है जिससे उसे रोका गया है।
क्यों लगती है नशे की लत
कोई व्यक्ति जो नशा कर रहा हो यदि आप उसके अतीत में झांकिएगा तो मालूम होगा कि वह बुरी संगत में पड़कर ही नशे की लत में गिरफ्तार हुआ था। दरअसल, गलत संगत का असर सीधे तौर पर किसी व्यक्ति की शख्सियत और उसकी सोच एवं विचारधारा पर पड़ता है।
जो भी बुरे लोगों के पास बैठेगा तो वहां से कुछ न कुछ बुराइयां जरूर लेकर उठेगा। इसलिए हर व्यक्ति को अपनी मित्र मंडली पर खासा ध्यान देना चाहिए। उसे यह देखना चाहिए कि उसने किस तरह के लोगों से दोस्ती के हाथ बढ़ा रखे हैं क्योंकि बुरे दोस्त उसे उसके लक्ष्य से भटका कर हमेशा के लिए पछतावे के दलदल में पड़ा छोड़ देंगे और फिर सही समय एवं सुगम परिस्थितियां हाथ से निकल जाने के बाद वह आदमी अंधेरे में पड़ा रह जाता है।
आपने भी देखा होगा कि एक शराबी अपना ज्यादातर समय शराबियों पर ही खर्च करता है। हालांकि मनोवैज्ञानिकों के अनुसार नशे की लत नशा करने वाले व्यक्ति की अनुवांशिकता, जातीयता, जीन या अन्य बाहरी कारणों के चलते भी लग सकती है लेकिन इनमें सबसे बड़ा कारण किसी व्यक्ति की मित्रमंडली को ही स्वीकार किया जाता है।
नशा एक बीमारी है
मनोविज्ञान में किसी व्यक्ति की नशा करने की लत को मानसिक बीमारी माना जाता है। इस बीमारी से ग्रस्त होने पर लोगों को मानसिक तनाव झेलना पड़ता है। नशे की हालत में उसके व्यवहार को भी बुरी तरह प्रभावित होना पड़ता है जिससे किसी इंसान के व्यवहार में भी भारी बदलाव आ सकता है।
ज्यादतर लोग नशे की आदत में पड़कर निकोटीन, अल्कोहल और मारीजुआना नामक खतरनाक पदार्थ का सेवन करने लगते हैं। वह इन पदार्थों के घातक प्रभाव को जानते हुए भी इसका सेवन करना नहीं छोड़ पाते और एक तरह की मानसिक गुलामी की जकड़बंद में उलझे नज़र आते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कहा जाता है कि इंसान जब नशे का आदी हो जाता है और दिन या रात में ज्यादा समय बीत जाने पर वह नशे का पदार्थ नहीं लेता तो उसके शरीर में निकोटीन या अल्कोहल, जो तंबाकू और शराब के सेवन से खून में शामिल हो जाता है, उसका दिमाग उन पदार्थों की मात्रा कम होने पर फिर से मांगने लगता है।
इस तरह वह अपनी भावनाओं पर काबू न पाकर अपने दिमाग के आदेशों के अधीन हो जाता है और उसे नशे से जिन्दगीभर के लिए निजात नहीं मिल पाती।
पारिवारिक कलह भी बन सकती है नशे की वजह
इंसान जब किसी घरेलू वजह या पारिवारिक कलह से अपने लोगों से दूर हो जाता है तो वह खुद को संभालने के लिए नशावर चीजों का इस्तेमाल करने लगता है। आपने भी फिल्मों में या समाज के किसी कोने में यह चीज देखी होगी कि जब आदमी को मानसिक कष्ट या दुख पहुंचता है तो ज्यादातर मामलों में नशे के पदार्थ का सेवन करने लगता है।
वह या तो शराब पीना शुरू कर देता है या फिर अपनी हर फिक्र को धुए में उड़ाने की कोशिश करने लगता है। लेकिन उसकी यह आदत उसके संभलने के बाद भी नहीं छूट पाती और इस तरह वह इन पदार्थों का मानसिक तौर पर गुलाम हो जाता है।
फिल्मों में भी अक्सर दिखाया जाता है कि जब कोई हीरो अपनी गर्लफ्रेंड के साथ धोखे या फिर किसी और ट्रेजडी का शिकार होता है तो वह या तो सिगरेट पीने लगता है या अपने गमों को दूर करने के लिए शराब की बोतल का सहारा लेता है। इसके अलावा अगर आपके किसी दोस्त ने आपको धोखा दे दिया है तो भी आप नशीले पदार्थों की ओर आकर्षित हो सकते हैं और यह सब बनावटी नहीं बल्कि सच और अनुभव पर आधारित बातें हैं।
इसके अलावा गरीबी, बेरोजगारी, भूखमरी और भविष्य की चिंता की वजह से भी इंसान नशीले पदार्थों की ओर ध्यान देना शुरू कर देता है। हमने तो कई बार ऐसा होते हुए भी देखा है कि इस नशे की वजह से ही हमारी कितनी माताओं और बहनों के घर उजड़ गए।
नशे से उनकी आर्थिक स्थिति इस कदर डांवाडोल हो गई कि वह खुद को संभाल ना सके और घर से बेघर हो गए। हमने यह भी देखा है कि कई बार एक शराबी पति के चलते हमारी बहनों को मजबूरन तलाक लेकर अपने घरों का रुख करना पड़ता है। कई बार तो शराब या अन्य नशीले पदार्थ हिंसा और अपराध का भी कारण बनते हैं।
शराबी पति अपनी पत्नी पर अत्याचार और जुल्मों सितम के वह पहाड़ तोड़ता है जिसे सुनकर मानवता की रूह भी कांप उठती है। नशे में मदहोश होकर वह अपनी पत्नी को बुरी तरह मारता पीटता और उसका शारीरिक शोषण और मानसिक उत्पीड़न करता है।
नशावर चीजों से कैसे मिले निजात
किसी व्यक्ति को नशे से आज़ादी दिलाने के लिए वैसे तो कोई खास और असरदार दवा उपलब्ध नहीं है लेकिन मरीज की संतुष्टि के लिए मनोवैज्ञानिक या डॉक्टर उसे बुफ्रीनारसीन टेबलेट को नियमित रुप से इस्तेमाल में लेने की सलाह देते हैं।
दरअसल, नशे से मुक्त होने के लिए सबसे जरूरी आपकी दृढ़ इच्छा शक्ति और इरादे की ताकत है जिसके बिना आप इस नशीले दलदल से कभी निकल नहीं पाएंगे। किसी को नशे से मुक्त होने की चाहत हो तो वह अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से ही इसे धीरे धीरे छोड़ने की कोशिश करता है।
अगर कोई व्यक्ति शराब का दो पैग रोज पीता है तो वह बात का संकल्प ले कि वह अपने शराब की मात्रा को आज से कम करके एक पैग कर देगा। वह इस कसम पर निरंतरता के साथ अमल भी करता रहे।
फिर जब एक पेग हो जाए तो वह इसे आधा कर दे और इस तरह जब उसे आधा पैग पीने की आदत हो जाए तो मान लिया जाए कि अब उसके लिए शराब को पूर्ण रूप से त्याग देने का समय आ चुका है। यही कानून आप तंबाकू या सिगरेट पर भी लागू कर सकते हैं कि आप उनकी मात्रा को कम कर दें और फिर धीरे-धीरे कर उसे पूरी तरह छोड़ दें।
याद रहे कि कोई भी बुरी आदत धीरे-धीरे इंसान का दामन छोड़ती है। अगर आपने अचानक किसी चीज को छोड़ दिया तो आप अंदर से इतने व्याकुल और बेचैन हो जाएंगे कि अगले दिन हो सकता है कि आप उस नशीले पदार्थ जिसे आप छोड़ना चाहते थे, पहले से कहीं ज्यादा आकर्षित हो जाएं और यह भी संभव है कि आप उसकी मात्रा पूर्व के मुकाबले बढ़ा भी दें।
इसलिए किसी भी व्यक्ति को जो नशीले पदार्थों का सेवन अब नहीं करना चाहता, उसे चाहिए कि वह धीरे-धीरे इन पदार्थों से इतना दूर निकल जाए कि उसके मन में उसका खयाल तक ना आ सके।