पुरुषोत्तम दास टंडन भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में गिने जाते हैं। हिंदी भाषा को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने में इनका बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा था। इतना ही नहीं पुरुषोत्तम दास टंडन जी भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता थे।
एक महान नेता होने के साथ-साथ पुरुषोत्तम दास टंडन जी एक महान वक्ता और समाज सुधारक थे समाज सुधार के कार्यों में पुरुषोत्तम दास टंडन जी हमेशा ही आगे रहते थे।
इसीलिए उन्हें भारतरत्न राजर्षि के नाम से भी पुकारा जाता है। पुरुषोत्तम दास टंडन जी के प्रयासों के द्वारा देश में राजनीतिक, सामाजिक हर क्षेत्र में चेतना की अलग लहर दौड़ गई थी। पुरुषोत्तम दास टंडन जी के बारे में जानने के लिए उनकी ये जीवनी जरूर पढ़ें।
पुरुषोत्तम दास टंडन की जीवनी
हिंदी भाषा के प्रबल समर्थक और प्रचारक पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म साल 1882 में 1 अगस्त को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद(प्रयागराज) शहर में हुआ था। जब देश के बंटवारे का प्रस्ताव कांग्रेस कमेटी के सामने आया तब उसका विरोध जिन लोगों ने किया था उसमें पुरुषोत्तम दास टंडन भी शामिल थे।
इनके अनुसार देश के बंटवारे से किसी को कोई भी फायदा नहीं होगा। इससे पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू और भारत में रहने वाले मुसलमान दोनों परेशान रहेंगे। सबसे पहले 1899 में पुरुषोत्तम दास टंडन ने कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन किया।
पुरुषोत्तम दास टंडन का व्यक्तिगत परिचय
पूरा नाम | पुरुषोत्तम दास टंडन |
जन्म स्थान | इलाहाबाद (प्रयागराज) |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | शालिकराम |
कार्य | स्वतंत्रता सेनानी |
जन्म साल | 1 अगस्त 1882 |
पत्नी | चंद्रमुखी देवी |
निधन | 1 जुलाई 1962 |
शिक्षा | ग्रेजुएट |
संतान | एक बेटी |
राजनीतिक पार्टी | इंडियन नेशनल कांग्रेस |
अवॉर्ड | भारत रत्न |
जाति | खत्री |
धर्म | हिंदू |
पुरुषोत्तम दास टंडन का प्रारंभिक जीवन
देश के उत्तर प्रदेश राज्य के प्रयागराज शहर में शालिकराम परिवार मे 1882 में 1 अगस्त को पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म हुआ था। पुरुषोत्तम दास टंडन के पिता शालिकराम अकाउंटेंट जनरल के ऑफिस में जॉब करते थे। शालिकराम ने अपने कई गुण पुरुषोत्तम दास टंडन को दिए थे।
उन्होंने बचपन से ही पुरुषोत्तम दास टंडन को विषम परिस्थिति में किस प्रकार से जीना है, इसकी शिक्षा दी थी। जब पुरुषोत्तम दास थोड़े समझदार हुए तो इनकी बुद्धि निखर कर सामने आने लगी क्योंकि अपन स्टूडेंट लाइफ में पुरुषोत्तम दास टंडन काफी इंटेलिजेंट थे और इन्हें स्पोर्ट्स के अंदर भी काफी अच्छा इंटरेस्ट था।
पुरुषोत्तम दास टंडन की शिक्षा और शादी
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अपनी प्रारंभिक शिक्षा को पुरुषोत्तम दास टंडन ने प्रयागराज शहर में मौजूद सिटी एंगलो वर्नाक्यूलर स्कूल से पूरी की थी।
इसके बाद साल 1894 में पुरुषोत्तम दास टंडन इसी स्कूल से 10वी की एग्जाम को भी उत्तीर्ण किया था। जब पुरुषोत्तम दास टंडन ने दसवीं कक्षा पास की तो पुरुषोत्तम दास टंडन के पिता श्री सालिक राम ने चंद्रमुखी देवी नाम की महिला के साथ पुरुषोत्तम दास का विवाह करवा दिया।
इनकी पत्नी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद शहर की रहने वाली थी।
साल 1899 में पुरुषोत्तम दास टंडन का मन किसी पॉलिटिकल पार्टी में शामिल होने का किया और उस टाइम कांग्रेस ही सबसे ज्यादा मजबूत पॉलिटिकल पार्टी थी। इसीलिए पुरुषोत्तम दास टंडन ने कांग्रेस पार्टी को साल 1899 में ज्वाइन कर लिया।
इसके सिर्फ 1 साल के बाद ही साल 1900 में पुरुषोत्तम दास टंडन की पत्नी ने एक बेटी को जन्म दिया। जब पुरुषोत्तम दास टंडन ने 12वीं की कक्षा पास की तो आगे की पढ़ाई करने के लिए वह प्रयागराज चले गए।
प्रयागराज जाने के बाद उन्होंने म्योर सेंट्रल कॉलेज में एडमिशन लिया परंतु आजादी की लड़ाई और विभिन्न प्रकार के आंदोलन में शामिल होने के कारण पुरुषोत्तम दास टंडन को साल 1901 में कॉलेज से निकाल दिया गया।
कॉलेज से रेस्टीक्वेशन होने के सिर्फ 2 साल के बाद ही यानी कि 1903 में पुरुषोत्तम दास के पिता श्री सालिक राम की मृत्यु हो गई। इसके बाद कठिन परिस्थितियों से गुजरते हुए पुरुषोत्तम दास टंडन ने साल 1904 में अपने ग्रेजुएशन की डिग्री को हासिल किया।
इसके बाद हिस्ट्री सब्जेक्ट में पुरुषोत्तम दास टंडन ने पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की और फिर उन्होंने कानून की पढ़ाई आरम्भ कर दी। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत करने का काम पुरुषोत्तम दास टंडन ने साल 1906 मे स्टार्ट कर दिया।
इसके बाद पुरुषोत्तम दास टंडन अधिवक्ता तेज बहादुर के अंडर में इलाहाबाद हाईकोर्ट में काम करने लगे। इसके बाद साल 1921 में पुरुषोत्तम दास टंडन ने आंदोलन में भाग लेने के लिए वकालत करना बंद कर दिया।
पुरुषोत्तम दास टंडन का राजनैतिक कैरियर
जब साल 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध के लिए पूरे देश में आंदोलन हो रहा था, तब पुरुषोत्तम दास टंडन के पोलिटिकल कैरियर की स्टार्टिंग हुई।
पुरुषोत्तम दास टंडन ने स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का निर्णय और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का फैसला बंगाल विभाजन के आंदोलन के दरमियान लिया।
जब पुरुषोत्तम दास टंडन पढ़ाई कर रहे थे तभी साल 1899 में ही वह कांग्रेस पार्टी के एक्टिव मेंबर बने। इसके बाद अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में इलाहाबाद का प्रतिनिधित्व करने का कार्य पुरुषोत्तम दास टंडन ने साल 1906 मे किया।
गांधी जी के द्वारा जब साल 1920 में असहयोग आंदोलन और वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह चालू किया गया था, तो उसमें भी पुरुषोत्तम दास टंडन ने बढ़ चढ़कर भाग लिया था़, जिसके कारण अन्य भारतीय क्रांतिकारियों के साथ-साथ पुरुषोत्तम दास टंडन को भी ब्रिटिश गवर्नमेंट ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें कई दिनों तक जेल में रखा गया।
इसके अलावा जब साल 1931 में जवाहर लाल नेहरू के साथ महात्मा गांधी जी को गिरफ्तार किया गया था तब उन गिरफ्तार लोगों में पुरुषोत्तम दास टंडन भी शामिल थे। इसके अलावा किसानों से संबंधित आंदोलन में भी पुरुषोत्तमदास टंडन सक्रिय रूप से भागीदारी निभाते थे।
वर्ष 1934 में पुरुषोत्तम दास टंडन को बिहार प्रादेशिक किसान कमेटी का अध्यक्ष मनोनीत किया गया था। इसके अलावा लाला लाजपत राय के द्वारा बनाए गए “लोक सेवा मंडल” में भी अध्यक्ष के पद को संभालने का काम पुरुषोत्तम दास टंडन ने किया था।
पुरुषोत्तम दास टंडन को यूनाइटेड प्रोविंस का मेंबर पद साल 1937 से लेकर सन 1950 तक दिया गया था। इसके बाद साल 1946 में वे इंडिया की संविधान कमेटी में भी पुरुषोत्तम दास टंडन को शामिल किया गया था।
आचार्य जेबी कृपलानी को हराकर किसी प्रकार पुरुषोत्तम दास टंडन ने साल 1950 में कांग्रेस के अध्यक्ष के पद को हासिल करने में सफलता प्राप्त की, परंतु उसके बाद उनका जवाहरलाल नेहरू के साथ मतभेद हो गया।
जिसके कारण वह अधिक समय इस पद पर नहीं रह पाए और बाद में आगे चलकर उन्होंने खुद से ही कांग्रेस के अध्यक्ष पद से रिजाइन कर दिया। लोकसभा मेंबर के लिए साल 1952 में और राज्यसभा के मेंबर के लिए साल 1956 में पुरुषोत्तम दास टंडन का सिलेक्शन हुआ इसके बाद उनका स्वास्थ्य अधिकतर खराब ही रहने लगा और खराब स्वास्थ्य के कारण पुरुषोत्तम दास टंडन ने राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी।
पुरुषोत्तम दास टंडन को प्राप्त पुरस्कार
इंडियन गवर्नमेंट द्वारा भारत रत्न का पुरस्कार पुरुषोत्तम दास टंडन को दिया गया था। यह पुरस्कार उन्हें साल 1961 में प्रदान किया गया था।
पुरुषोत्तम दास टंडन के देश के विभाजन पर विचार
जब अंग्रेजों से हमारे भारत देश को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली तो जब देश के बंटवारे का समय आया और कांग्रेस कार्यसमिति ने साल 1947 में 12 जून को भारत देश को बांटने के डिसीजन को स्वीकार कर लिया।
इस प्रकार जब देश के बंटवारे के प्रस्ताव को कांग्रेस कमेटी के सामने पेश किया गया, तब जिन लोगों ने इसका विरोध किया, उसमें पुरुषोत्तम दास टंडन भी शामिल थे। पुरुषोत्तम दास टंडन का यह कहना था कि अगर देश का बंटवारा किया जाता है, तो इसका मतलब यह होगा कि हम मुस्लिम लीग और अंग्रेजों के सामने नतमस्तक हो गए हैं।
पुरुषोत्तम दास टंडन का कहना था कि देश के बंटवारे से किसी को कोई भी फायदा नहीं होगा। अगर देश का बंटवारा होता है, तो पाकिस्तान देश में हिंदू और भारत के मुसलमान भारत देश में डर कर रहने के लिए मजबूर होंगे।
हालांकि फिर भी पुरुषोत्तम दास टंडन के विरोध के बावजूद देश का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान अलग देश बना तथा इंडिया अलग देश हुआ।
पुरुषोत्तम दास टंडन हिंदी के समर्थक
पुरुषोत्तम दास टंडन हिंदी भाषा के प्रबल समर्थक थे, उन्होंने हिंदी भाषा को भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए काफी ज्यादा प्रयास किया था। पुरुषोत्तमदास अपने हिसाब से हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार करते थे।
उन्होंने हिंदी भाषा का प्रचार करने के लिए हिंदी प्रचार सभा का आयोजन किया था। पुरुषोत्तम दास टंडन देवनागरी लिपि के इस्तेमाल पर ज्यादा जोर देते थे और वह हिंदी भाषा के साथ उर्दू भाषा या फिर अरबी अथवा फारसी भाषा के शब्दों के इस्तेमाल का भी काफी पुरजोर तरीके से विरोध करते थे।
पुरुषोत्तम दास टंडन की मृत्यु
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और हिंदी भाषा के प्रबल समर्थक और प्रचारक पुरुषोत्तम दास टंडन का निधन वर्ष 1962 में 1 जुलाई को हुआ।
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