मगध के राजा धनानंद को हराने के बाद जब चंद्रगुप्त मगध के शासक बने तो राजकुमारी कुमारीदेवी से विवाह के पश्चात समुंद्र गुप्त का जन्म हुआ। चंद्रगुप्त की मृत्यु के बाद समुद्रगुप्त ने गुप्त वंश की राजगद्दी संभाली थी।
प्राचीन भारत में स्वर्ण युग की शुरुआत करने वाले समुद्रगुप्त गुप्त वंश के महान शासक थे। समुद्रगुप्त ना सिर्फ एक कुशल योद्धा बल्कि उदार शासक भी थे, बल्कि समुद्रगुप्त ने कला संरक्षण के लिए काफी प्रयास भी किए थे।
यह समुंद्रगुप्त के प्रयासों का ही फल है कि उनके वंश के बाद भी कला के प्रति लोगों का प्रेम कम नहीं हुआ! इस लेख में आपको समुद्रगुप्त के जीवन से जुड़ी अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेंगी।
समुद्रगुप्त जीवनी
समुद्रगुप्त के राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी। समुद्रगुप्त को विश्व के इतिहास में सबसे महान और सफल सम्राट तथा सेनानायक माना जाता है। कई विद्वानों के अनुसार समुद्रगुप्त का शासनकाल हमारे देश के लिए स्वर्ण युग की शुरुआत कहा जाता था। समुद्रगुप्त गुप्त वंश संबंध रखते थे और इन्हें गुप्त वंश का महान राजा कहा जाता था। समुद्रगुप्त एक बहादुर योद्धा होने के साथ-साथ एक उदार शासक और कलाप्रेमी व्यक्ति थे।
इसके अलावा इन्हें संगीत से भी बहुत ही ज्यादा लगाव था। समुद्रगुप्त के कई भाई थे परंतु उनके पिता ने समुद्रगुप्त की खूबियों को देखते हुए इन्हें ही राजा के पद के लिए चुना, जिसके लिए 1 साल तक काफी संघर्ष चला परंतु आखिर में सभी समुद्रगुप्त को राजा बनाने के लिए मान गए।
समुद्रगुप्त का व्यक्तिगत परिचय
नाम | समुद्रगुप्त |
उपनाम | तनत्रीकमन्दका |
पिता | चन्द्रगुप्त प्रथम |
माता | लिच्छवी कुमारी देवी थी |
पुत्र | चंद्रगुप्त द्वितीय |
पत्नी | दत्तदेवी |
शासन | ईसवी सन 335-380 |
समुद्रगुप्त का प्रारंभिक जीवन
भारत के महान सम्राट समुद्रगुप्त का जन्म चंद्रगुप्त प्रथम और लिच्छवी कुमार देवी के परिवार में हुआ था। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, समुद्रगुप्त की गिनती हमारे भारत देश के महान सम्राटों में होती है। सम्राट समुद्रगुप्त का नाम इंडियन हिस्ट्री में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है।
समुद्रगुप्त एक महान विजेता थे। इसके साथ ही समुद्रगुप्त उदार शासक के तौर पर भी भारतीय इतिहास में जाने जाते थे। समुद्रगुप्त को कला और संस्कृति से बेहद प्रेम था। इन्हें कविता और संगीत से बहुत ज्यादा लगाव बचपन से ही था।
समुद्रगुप्त का विवाह
अपनी जिंदगी में समुद्रगुप्त ने वैसे तो कई शादियां की थी क्योंकि उस टाइम एक राजा कई रानियों से शादी करता था, परंतु समुद्रगुप्त को किसी भी रानी से शादी करने के बाद संतान की प्राप्ति नहीं हुई।
परंतु जब समुद्रगुप्त ने अग्र महिषी पट महादेवी से शादी की, तो उनसे इन्हें एक बेटा पैदा हुआ, जिसका नाम इन्होंने “चंद्रगुप्त विक्रमादित्य” रखा गया।
मृत्यु से पहले समुद्रगुप्त का राजा बनना
समुद्रगुप्त हालांकि काफी कम समय तक राजा के पद पर रह पाए थे, क्योंकि इनकी आयु काफी कम थी। जब इनके पिताजी ने इन्हें राजा बनाया, तो उन्होंने कुशलतापूर्वक अपना कार्यकाल चलाया, परंतु अधिक दिन तक जीवित ना रहने के कारण इनका कार्यकाल लंबे समय तक नहीं चल पाया।
जब समुद्रगुप्त के पिताजी ने इन्हें राजा बनाने का निर्णय लिया, तब उनके प्रतिद्वंद्वियों को उनका यह निर्णय बिल्कुल भी पसंद नहीं आया और इसी के कारण वह लगातार अपने प्रतिद्वंद्वियों से संघर्ष करते रहे।
यह टकराव तकरीबन 1 साल तक चला और आखरी में सर्वसम्मति से समुद्रगुप्त को राजा के पद पर विराजमान किया गया। समुद्रगुप्त को संगीत से काफी लगाव था। इसके साथ ही साथ वह खुद भी एक अच्छे संगीतकार और प्रसिद्ध कवि थे। समुद्रगुप्त को संस्कृति का इंसान भी माना जाता था।
समुद्रगुप्त द्वारा साहित्यिक प्रचार
समुद्रगुप्त को साहित्य से बहुत ही ज्यादा लगाव था और खुद एक कवि होने के नाते वह हमेशा साहित्य के प्रचार प्रचार में विश्वास रखते थे और इसीलिए उन्होंने साहित्य का प्रचार करने के लिए विद्वान लोगों को इकट्ठा किया और इंडियन हिस्ट्री के धार्मिक, कलात्मक और साहित्यिक पहलुओं को बढ़ावा देने का काम किया और उन विद्वानों को भी इसे प्रचारित प्रसारित करने के लिए कहा।
समुद्रगुप्त एक धार्मिक राजा
गुप्त वंश के अन्य राजाओं की तरह समुद्रगुप्त को भी हिंदू धर्म में काफी ज्यादा इंटरेस्ट था। वह हिंदू धर्म की शिक्षा में विश्वास रखते हुए दयालुपन के गुणों का पालन करते थे, इसीलिए समुद्रगुप्त को दयालु शासक भी कहा जाता था।
इसके अलावा वह अन्य धर्म, मजहब, मत और संप्रदाय के प्रति भी समान भाव रखते थे। समुद्रगुप्त ने बोधगया में बौद्ध तीर्थ यात्रियों के लिए भी तब एक मठ बनवाने का आदेश दिया, जब सिलोन के राजा ने उनसे बौद्ध यात्रियों के लिए मठ बनवाने की अपील की।
समुद्रगुप्त के कौशल
समुद्रगुप्त एक भिन्न प्रकार के कौशल रखने वाले शासक थे। उन्हें भगवान ने कई उपहार दिए थे। जैसे कि समुद्रगुप्त एक अच्छे राजनेता थे, वह युद्ध करने में भी माहिर थे। यानी कि वह एक अच्छे योद्धा थे, वह एक नॉर्मल कवि और संगीतकार भी थे।
वह परोपकारी भी थे। इसके अलावा समुद्रगुप्त Art और साहित्य के संरक्षक भी थे। गुप्त काल के दौरान जारी किए गए सिक्के और शिलालेख में समुद्रगुप्त की प्रतिभा बखूबी देखने को मिलती है।
समुद्रगुप्त द्वारा राज्य विस्तार
पिताजी के आदेश पर समुद्रगुप्त ने साल 335 ईसवी में गुप्त राजवंश के दूसरे शासक के तौर पर राजगद्दी संभाली और उसके बाद उन्होंने लगातार अपने राज्य का विस्तार किया।
इसीलिए सबसे पहले उन्होंने अपने पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण किया और वहां पर कब्जा करके उन्होंने अपने कार्यक्षेत्र और प्रभाव को बढ़ाया। इसके अलावा भी उन्होंने इंडिया के कई राज्यों को जीतने के लिए अपनी विजय यात्रा स्टार्ट की।
समुद्रगुप्त ने मुख्य तौर पर उत्तर भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार करने पर विशेष तौर पर ध्यान दिया। अपनी विजय यात्रा के दौरान समुद्रगुप्त ने इलाहाबाद से लेकर बंगाल की सीमा तक तथा गंगा घाटी, नेपाल, असम, बंगाल, पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्सों पर अधिकार जमा लिया था।
समुद्रगुप्त की उपलब्धियां और सफलता
अपने पिताजी के कहने पर राज गद्दी संभालने के बाद तकरीबन 51 साल तक समुद्रगुप्त ने अद्भुत शासन किया और उन्होंने अपने 40 साल के शासन में कई राज्यों पर अधिकार किया और अपने राज्य का काफी बड़ी मात्रा में विस्तार किया।
समुद्रगुप्त भारत के नेपोलियन
इतिहासकार के जानकार वी ए स्मिथ ने समुद्रगुप्त को उनकी जीत के लिए इंडिया का नेपोलियन यानी की भारत का नेपोलियन कह कर संबोधित किया था।
हालांकि ऐसे कई इतिहासकार और भी थे, जो उनके इस वक्तव्य पर सहमत नहीं थे, परंतु ऐसा कहा जाता है कि समुद्रगुप्त ने जितनी भी लड़ाई लड़ी थी, उसमें वह किसी भी लड़ाई में हारे नहीं थे, ना ही उन्हें कभी कारावास हुआ था। समुद्रगुप्त ने राज गद्दी संभालने से लेकर अपनी मृत्यु तक अपने राज्य का शासन संभाला था।
समुद्रगुप्त द्वारा स्वर्ण मुद्राओं का चलन
समुद्रगुप्त ने राज्य का शासन संभालने के बाद स्वर्ण मुद्राओं को करेंसी के तौर पर मान्यता दी थी और इसीलिए अपने शासन के दौरान समुद्रगुप्त ने शुद्ध स्वर्ण मुद्रा और अच्छी क्वालिटी की ताम्र मुद्राओं का प्रचलन करवाया था।
समुद्रगुप्त ने अपने शासन काल के दौरान कुल 7 प्रकार के सिक्के जारी किए थे, जो आर्चर, बैकल एक्स, अश्वमेघ, टाइगर स्लेयर, राजा और रानी एवं लयरिस्ट थे।
योद्धा के अलावा समुद्रगुप्त
समुद्रगुप्त एक कुशल और पराक्रमी योद्धा तो थे ही। इसके अलावा भी उनके अंदर ऐसे कई गुण थे, जिसने उन्हें काफी प्रसिद्धि पूरी दुनिया में दिलाई। समुद्रगुप्त को संगीत सुनने का काफी ज्यादा शौक था।
इसके अलावा वह काफी अच्छे तरीके से वीणा भी बजा लेते थे। इसके अलावा समुद्रगुप्त बहुत ही अच्छे संगीतकार भी थे, इसकी झलक उनके द्वारा निर्माण किए गए सिक्कों में भी दिखाई देती है, जिसमें कई जगह पर वीणा की झलक दिखाई देती है। समुद्रगुप्त काफी अच्छी कविता भी कह लेते थे, क्योंकि यह एक अच्छे कवि थे।
लोक मान्यता के अनुसार समुद्रगुप्त समय मिलने पर अपने दरबार में कविता का पाठ करते थे, परंतु उनकी रचनाओं के बारे में कहीं भी कोई भी जानकारी नहीं मिलती है। इसलिए बहुत सारे इतिहासकार ऐसे हैं, जो इस बात पर सहमत नहीं है कि समुद्रगुप्त कविता का पाठ अपने दरबार में करते थे।
समुद्रगुप्त और नेपोलियन
सम्राट समुद्रगुप्त ने जिंदगी भर अपनी मातृभूमि के लिए लड़ाई लड़ी, वही नेपोलियन ने जितनी भी लड़ाई लड़ी, उन सब के पीछे उसका उद्देश्य खुद को पावरफुल बनाना था।
कई लड़ाइयों में नेपोलियन को हार का सामना भी करना पड़ा था, वही समुद्रगुप्त ने अपने शासनकाल के दौरान जितनी भी लड़ाई लड़ी थी, उसमें उन्होंने विजय प्राप्त की थी। किसी भी लड़ाई में उन्हें हार का मुंह नहीं देखना पड़ा था।
समुद्रगुप्त राजा के बेटे थे, वही नेपोलियन एक सेनापति था, जिसने अपनी रणनीति से शासन को प्राप्त किया था।
शासन संभालने से लेकर अपनी अंतिम सांस लेने तक समुद्रगुप्त ने स्वतंत्र राजा के तौर पर कार्यभार संभाला, वहीं नेपोलियन की मृत्यु एक बंदी के तौर पर हुई।
नेपोलियन की कोई भी संतान नहीं थी, वही समुद्रगुप्त ने अपने पीछे उसके राज्य के उत्तराधिकारी के तौर पर चंद्रगुप्त द्वितीय “विक्रमादित्य” को छोड़ा।
समुद्रगुप्त की मृत्यु
समुद्रगुप्त की मृत्यु कब हुई, इस बारे में कोई भी इंफॉर्मेशन किसी भी ग्रंथ से प्राप्त नहीं हुई है, परंतु ऐसा माना जाता है कि अगर समुद्रगुप्त ने ईसवी सन 335 से लेकर 380 तक शासन किया था, तो उनकी मृत्यु ईसवी सन 381 में हो सकती है, क्योंकि कई जगह पर इस बात का उल्लेख मिलता है कि राजा बनने के बाद समुद्रगुप्त ने अपनी मृत्यु तक राज्य का शासन संभाला था।