हिंदी साहित्य के इतिहास में महाकवि कालिदास का नाम महान साहित्यकारों में लिया जाता है क्योंकि कालिदास अपनी रचनाओं में प्रकृति का सजीव चित्रण करते थे। तीसरी-चौथी शताब्दी के मध्य कालिदास की रचनाओं की तूती हर जगह बोलती थी।
कालिदास ने पौराणिक रचनाओ और दर्शन को आधार मानकर ही अपनी रचनाएं की थी। समग्र राष्ट्र में राष्ट्रीय चेतना का विकास करने में कालिदास का महत्वपूर्ण योगदान था क्योंकि वह अपनी रचनाओं से जनमानस को प्रेरित करते थे।
बहुत से महान साहित्यकार कालिदास को राष्ट्रकवि की संज्ञा देते हैं। महाकवि कालिदास जिन्होंने मेघदूत जैसी महान कृति की रचना की है उनके बारे में जानने के लिए इस लेख को पढ़ें।
महाकवि कालीदास की जीवनी
महाकवि कालिदास की गिनती सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकारों में की जाती है। इनके द्वारा लिखा गया अभिज्ञान शाकुंतलम् इनकी बहुत ही फेमस रचना थी, जिसका ट्रांसलेशन दुनिया की कई भाषाओं में किया गया है।
महाकवि कालिदास के गुणों को देखते हुए राजा विक्रमादित्य ने महाकवि कालिदास को अपने दरबार में नवरत्न में शामिल किया था। महाकवि कालिदास श्रृंगार रस की रचनाओं के लिए जाने जाते थे। यह अपनी रचनाओं में मधुर और सरल भाषा का इस्तेमाल करते थे।
महाकवि कालिदास बचपन में अनपढ़ थे, परंतु जब इनकी पत्नी ने इन्हें ज्ञान प्राप्त करने के लिए घर से निकाल दिया, तब इन्होंने परिश्रम करके ज्ञान अर्जित किया और इस प्रकार कवि कालिदास, महाकवि कालिदास बन गए।
महाकवि कालिदास का व्यक्तिगत परिचय
पूरा नाम | कालिदास |
जन्म | पहली से तीसरी शताब्दी ईस पूर्व के बीच |
जन्मस्थान | विवाद पूर्ण |
विवाह (Wife Name) | राजकुमारी विद्योत्तमा से। |
निधन | ज्ञात नहीं |
महाकवि कालिदास का प्रारंभिक जीवन
ऐसा माना जाता है कि महाकवि कालिदास का जन्म एक से लेकर तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व हुआ था। हालांकि यह एक मान्यता है। इसके बारे में किसी भी व्यक्ति के पास या फिर किसी भी ग्रंथ अथवा किताब में कोई भी ठोस प्रमाण नहीं है।
इसीलिए यह स्पष्ट तौर पर नहीं कह सकते कि महाकवि कालिदास का जन्म कब हुआ था। महाकवि कालिदास के पैदा होने को लेकर अलग-अलग विद्वानों की अलग-अलग मान्यता और विचार हैं। कई विद्वानों का ऐसा मानना है कि महाकवि कालिदास का जन्म 150 ईसा पूर्व से लेकर 450 ईसवी के बीच हुआ होगा।
यह भी एक अनुमान ही है। कई रिसर्च के अनुसार ऐसा माना जाता है कि महाकवि कालिदास गुप्त काल में पैदा हुए होंगे, इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि महाकवि कालिदास ने “मालविकाग्निमित्रम्” नाम के नाटक को अग्नि मित्र के आधार पर लिखा था और 170 ईसा पूर्व में अग्निमित्र ने शासन किया था।
महाकवि कालिदास का उल्लेख ‘हर्षचरितम” नाम के ग्रंथ में छठी शताब्दी में बाणभट्ट ने किया है। इस प्रकार अनुमान के मुताबिक महाकवि कालिदास का जन्म पहली शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर तीसरी शताब्दी ईस्वी के बीच हुआ माना जा सकता है।
कालिदास के जन्म स्थान पर भी संदेश
जिस प्रकार किसी भी ग्रंथ या फिर किताब में महाकवि कालिदास के पैदा होने की तिथि के बारे में कोई भी स्पष्ट जानकारी या फिर सूचकांक नहीं मिलता है, उसी प्रकार महाकवि कालिदास कहां पैदा हुए थे, इसके बारे में भी पक्के तौर पर किसी भी ग्रंथ में कोई भी जानकारी नहीं है, ना ही किसी भी किताब में अथवा शिलालेख में इस बात का उल्लेख है कि महाकवि कालिदास कहां पर पैदा हुए थे।
कई इतिहासकारों के अनुसार ऐसा माना जा सकता है कि महाकवि कालिदास का जन्म देश के मध्य प्रदेश राज्य के उज्जैन शहर में हुआ होगा, क्योंकि कालिदास ने अपने खंडकाव्य मेघदूत में उज्जैन शहर का बहुत बार वर्णन किया है।
जिस प्रकार महाकवि कालिदास के पैदा होने की तिथि को लेकर विद्वानों के बीच मतभेद है अथवा असमंजस की स्थिति है, उसी प्रकार महाकवि कालिदास कौन सी जगह पर या फिर किस राज्य में पैदा हुए थे, इसे लेकर भी विद्वानों के बीच काफी ज्यादा कंफ्यूजन है।
कई इतिहासकार ऐसा कहते हैं कि, महाकवि कालिदास का जन्म देश के कविल्ठा गांव में हुआ था, जो कि उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में पड़ता है। इस गांव में महाकवि कालिदास की एक मूर्ति स्थापित की गई है, साथ ही उनके नाम पर एक सभागार भी बनाया गया है।
आपकी इंफॉर्मेशन के लिए यह भी बता दें कि, इस सभागार में जून के महीने में हर साल टोटल 3 दिन की एक साहित्य की मीटिंग भी रखी जाती है, जिसमें पार्टिसिपेट करने के लिए इंडिया के कोने-कोने से लोग आते हैं।
महाकवि कालिदास बहुत ही विद्वान व्यक्ति थे और अपने ज्ञान के बल पर यह हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित करने में कामयाब हो जाते थे। अपने ज्ञान के कारण ही राजा विक्रमादित्य ने महाकवि कालिदास को अपने दरबार में नवरत्न में जगह दी थी।
कई लोक मान्यताओं के अनुसार ऐसा भी कहा जाता है कि, जब महाकवि कालिदास छोटे थे़ तब यह अनपढ़ थे, परंतु आगे चलकर इन्हें शिक्षा में रुचि हुई और उन्होंने साहित्य की शिक्षा हासिल की, जिसके कारण इन्हें हिंदी साहित्य का महान कवि कहा गया।
राजकुमारी विद्योत्मा से महाकवि कालिदास का विवाह
महाकवि कालिदास ने अपनी जीवनसंगिनी के तौर पर राजकुमारी विद्योत्मा को चुना और महाकवि कालिदास ने राजकुमारी विद्योत्मा से शादी की। महाकवि कालिदास की राजकुमारी विद्योत्मा से शादी होने के पीछे भी एक जबरदस्त कहानी है।
उस कहानी के अनुसार एक बार राजकुमारी विद्योत्मा ने यह प्रतिज्ञा ली कि वह ऐसे ही व्यक्ति से शादी करेंगी, जो उनके साथ शास्त्रार्थ पर चर्चा करेगा और शास्त्रार्थ में उन्हें हरा देगा।
इसके बाद कई लोगों ने राजकुमारी विद्योत्मा के चैलेंज को स्वीकार किया और उनके साथ शास्त्रार्थ किया परंतु राजकुमारी विद्योत्मा ने सभी व्यक्तियों को हरा दिया। इसके बाद कुछ लोगों ने छल कपट करके कवि कालिदास से राजकुमारी विद्योत्तमा की शादी करवा दी।
कालिदास जब राजकुमारी विद्योत्मा की धिक्कार के बाद बने महान कवि
राजकुमारी ने जब कालिदास से शादी की तो कुछ समय तो इनकी शादीशुदा जिंदगी ठीक चली, परंतु जब राजकुमारी को यह पता चला कि कवि कालिदास अनपढ़ है और उन्हें शास्त्रार्थ का उतना ज्ञान नहीं है जितना कि उन्हें बताया गया था़।
तब राजकुमारी को काफी ज्यादा दुख पहुंचा और उन्होंने कालिदास को यह कहकर घर से निकाल दिया कि जब तक आप सच्चे पंडित नहीं बन जाते या फिर आपके पास ज्ञान का भंडार नहीं हो जाता तब तक आपको वापस घर की तरफ देखना भी नहीं है ना ही आपको घर आना है।
अपनी पत्नी की यह बातें कालिदास को बहुत ही ज्यादा चुभ गई और उन्होंने मन ही मन शिक्षा प्राप्त करने का निर्णय कर लिया और ज्ञानवान बनने का प्रण किया। इसके बाद वह अपने घर से निकल पड़े और घर से जाने के बाद एक जगह पर महाकवि कालिदास माता काली की सच्चे मन से साधना और प्रार्थना करने लगे।
माता काली की साधना करते करते माता कवि कालिदास पर बहुत ज्यादा खुश हुई और माता काली का आशीर्वाद प्राप्त करने के कारण कवि कालिदास के पास बहुत सारा ज्ञान आ गया और वह साहित्य के विद्वान बन गए।
ज्ञान प्राप्ति के बाद महाकवि कालिदास ने वापस अपने घर जाने की ठानी और अपने घर जाने के लिए यात्रा पर निकल पड़े। घर आने पर जब वह अपने घर के द्वार पर पहुंचे, तब उन्होंने घर के बाहर से ही खड़े होकर अपनी पत्नी को आवाज दी। आवाज सुनते ही राजकुमारी यह समझ गई कि दरवाजे पर जरूर कोई ज्ञानवान व्यक्ति आया है।
इसके बाद वह दरवाजे पर आई और राजकुमारी को जब यह पता चला कि महाकवि कालिदास ज्ञान प्राप्ति करके वापस आए है, तब वह बहुत ही ज्यादा खुश हुई।
इस प्रकार अपनी पत्नी के द्वारा घर से निकाले जाने के बाद और धिक्कारने के बाद महाकवि कालिदास ने ज्ञानवान बनने का अपना सफर तय किया और कालिदास महाकवि कालिदास बन गए।
वर्तमान में महाकवि कालिदास की गिनती दुनिया के सबसे बेस्ट कवियों में की जाती है। इसके अलावा आपको बता दें कि, संस्कृत साहित्य में दूसरा कोई भी कवि कालिदास के जैसा आज तक नहीं हुआ है।
दुनिया के सबसे बेस्ट साहित्यकार कालिदास
इंडिया ही नहीं बल्कि दुनिया के सबसे बेस्ट और सर्वश्रेष्ठ साहित्यकारों की गिनती में महाकवि कालिदास का नाम शामिल किया जाता है।महाकवि कालिदास ने महाकाव्य, नाट्य और गीतिकाव्य की फील्ड में अपनी क्रिएटिविटी के कारण अलग पहचान बनाई थी।
महाकवि कालिदास की रचनाएं
महाकवि कालिदास ने अपनी बुद्धि और अपने ज्ञान का इस्तेमाल करके जो रचनाएं की थी, उन्हीं रचनाओं की बदौलत वर्तमान के टाइम में दुनिया के सबसे बेस्ट कवियों की लिस्ट में महाकवि कालिदास का नाम लिया जाता है।
इसके अलावा सर्वश्रेष्ठ नाटककार की लिस्ट में भी महाकवि कालिदास का नाम शामिल है। महाकवि कालिदास ने ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ अपनी रचनाओं में साहित्य के महत्व को भी शामिल किया था। महाकवि कालिदास की कुछ प्रसिद्ध रचनाएं निम्नानुसार है।
- रघुवंश
- कुमारसंभव
- मेघदूत
- सेतुकाव्यम्
- श्रुतबोधम्
- ऋतुसंहार
- अभिज्ञान शाकुंतलम्
- श्यामा दंडकम्
- ज्योतिर्विद्याभरणम्
- श्रृंगार रसाशतम्
- श्रृंगार तिलकम्
- कर्पूरमंजरी
- पुष्पबाण विलासम्
- मालविकाग्निमित्र
- विक्रमोर्वशीय
महाकवि कालिदास की रचनाओं की महत्वपूर्ण बातें
महाकवि कालिदास जब कोई भी रचना करते थे तो वह अपनी रचनाओं में अधिकतर मधुर, अलंकार युक्त और सिंपल भाषा का इस्तेमाल करते थे।
महाकवि कालिदास अपनी रचना में श्रृंगार रस का भी काफी शिद्दत के साथ वर्णन करते थे। महाकवि कालिदास ने अपनी रचनाओं में मौसम की भी व्याख्या की है। महाकवि कालिदास रचना बनाते समय नैतिक मूल्यो और परंपरा का भी विशेष तौर पर ध्यान रखते थे।
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