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सरकारी नौकरी ही हैं सफलता का ठप्पा?

इंसान जब अपने बचपन को छोड़कर जवानी की दहलीज पर पड़ाव डालता है तो इसी बीच उसके कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ भी बढ़ने लगता है। उसे अपने सुनहरे भविष्य और कामयाब कैरियर की फिक्र सताने लगती है।

वह चाहता है कि जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा हो जाय और आत्मनिर्भरता के साथ अपने जिंदगी के कारवां को आगे बढ़ाए। वह चाहता है कि किसी तरह वह अपने देश, समाज और परिवार के भविष्य को उज्जवल बनाकर अपने सपनों को साकार करे।

उसकी ख्वाहिश होती है कि राष्ट्र और समाज हित में वह कोई बड़ा कारनामा अंजाम देकर उसके विकास और निर्माण में अपना सहयोग कर सकते। यही चाहत और मंशा लिए वह कभी कभार जिंदगी के दोराहे पर खड़ा हो जाता है जहां एक तरफ उसके कैरियर से जुड़ी मनपसंद फील्ड होती है तो दूसरी ओर लोगों की भ्रमित करने वाली सलाह!

इसी वजह से वह ज्यादातर मामलों में संदेह और शक में पड़कर अपने जीवन का सही निर्णय नहीं ले पाता और समय गुज़र जाने के पश्चात हाथ मलने के सिवा उसके हाथ कुछ लगता भी नहीं। अगर किस्मत ने साथ दिया और कुछ हाथ लग भी जाए तो वह संतुष्ट नहीं हो पाता और इस तरह उसका जीवन संकोच और चिंता के बीच घिरा रह जाता है।

व्यस्क होने के बाद वह आजीविका की तलाश में इधर उधर की खाक छानते हुए आसान और समृद्ध जीवन की खोज में व्यस्त रहने लगता है। अपनी जिन्दगी को आसान बनाने के लिए या तो वह किसी नौकरी की तलाश में रहता है या फिर अपना कोई निजी काम या बिज़नेस कर अपने परिवार का भरण पोषण करने की कोशिश करता है।

वैसे तो दुनिया में रोजगार और आजीविका (Sustenance) के बहुत से साधन है लेकिन अक्सर लोग नौकरी को ही ज्यादा महत्व और तरजीह (Importance) दिया करते हैं। ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि आदमी को नौकरी के पेशे में काम करके कोई आर्थिक क्षति या नुक्सान नहीं उठाना पड़ता जबकि बिजनेस में कदम कदम पर नुक्सान और पैसे डूब जाने के खतरों का सामना करना होता है।

इसीलिए आजकल ज्यादातर छात्र पढ़ने लिखने के बाद किसी सरकारी या गैर सरकारी विभाग में नौकरी पेशा बनने की कोशिश करते हैं। हमारे यहां सरकारी नौकरी को ही बिजनेस पर ज़्यादा महत्व दिया जाता है।

तो आइए! जानते हैं कि नौकरी और खुद का बिजनेस करने में क्या फर्क है

नौकरी करने वाला हमेशा अपने मालिक को अमीर बनाता है

Naukri or Business

नौकरी करने वाला आदमी एक सीमित दायरे में रहकर अपने बॉस के अधीन रहता है और हमेशा अपने मालिक की अर्थव्यस्था को मजबूत बनाने के लिए मेहनत करता है। इस मेहनत के दौरान उसे अपने बॉस की डांट डपट या कड़ी फटकार का सामना भी होता है जिसे खून का घूंट पीकर उसे हर हाल में बर्दाश्त करना होता है।

अगर उसने ऐसा नहीं किया तो वह अपनी नौकरी से हाथ भी धो सकता है। एक तरफ जहां समय से ऑफिस पहुंचना उसके लिए बेहद जरूरी होता है, वहीं लौटते समय कोई जरूरी काम आ जाने पर वह ऑफिस से देर से भी घर आ सकता है।

कभी कभार तो अपने मालिक को अमीर बनाने के चक्कर में उसे खाने-पीने तक का समय नहीं मिल पाता। मतलब ये कि प्राइवेट या सरकारी नौकरी में सरकारी अधिकारी या कर्मचारी किसी न किसी रूप से अपने बॉस के अधीन रहा करते हैं।

अगर कर्मचारी हैं तो अधिकारी के अधीन रहें और अधिकारी सरकार के अधीन रहकर काम करते हैं। उन्हें हर हाल में अपने बॉस के आदेशों का पालन करना होता है जिसकी अवहेलना या खिलाफवर्जी करने पर उन्हें कड़ी डांट फटकार या सजा का सामना करना पड़ता है।

बिजनेस से होता है स्वतंत्रता का एहसास

बिजनेस में रिस्क तो है लेकिन इससे आदमी के अंदर एक अनोखी किस्म की स्वतंत्रता का एहसास होता है और वह किसी शख्स के दबाव में आकर कार्य नहीं करता। वह विचारों और भावनाओं से आजाद होता है।

उसका अपने दायरे और क्षेत्रभर में हर चीज पर अख्तियार और कब्जा होता है। एक बिजनेसमैन जब भी कोई मानसिक या शारीरिक मेहनत करता है तो इसका सीधा असर उसकी व्यक्तिगत अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इसके अलावा, फायदे और नुकसान के लिए हर कदम पर रिस्क होने के बावजूद जब वह आगे बढ़ता है तो एक दिन ऐसा भी आता है जब वह हर तरह के नुक्सान से खुद को बचाने में सफल हो जाता है और अगर उसे इस दौरान कोई नुक्सान की आशंका हो तो वह उससे बचने का भरपूर प्रयास भी करता है।

चूंकि फायदा और नुक्सान किसी भी व्यापार का अभिन्न अंग है, यह समझते हुए वह चुनौतियों से लड़ने के लिए हरदम तैयार रहा करता है। उसे एक ही बात की फिक्र होती है कि इस जीवन में अपने दायरे और क्षेत्र का विस्तार और फैलाव किस तरह किया जाए और कैसे ढेर सारी दौलत इकट्ठा की जाए?

अगर उसे सफलता हाथ आ गई तो उसका जीवन सरल और सुगम हो जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि बिजनेस में चुनौतियां तो हैं लेकिन एक बार अगर सफलता हाथ आ जाए तो जीवन सार्थक हो जाता है।

हमने बहुत से ऐसे बिजनेसमैन भी देखे हैं जो किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे। फिर उसमें अनुभव प्राप्त कर उन्होंने अपनी एक निजी कंपनी खोली और वह कंपनी सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए उस मकान तक पहुंच गई जहां उसका कोई सानी और प्रतिद्वंदी नहीं था।

जैसे मोबाईल फोन की प्रसिद्ध कंपनी ओप्पो के सीईओ पहले इस कंपनी में नौकरी करते थे। फिर उन्होंने स्वयं की एक कंपनी खोली जिसे आज दुनियाभर में 1 प्लस के नाम से जाना जाता है। कहने का मतलब ये कि जब आप किसी के अधीन रह कर काम करते हैं तो सम्मान और बड़ी सफलता मिलना आपके लिए मुश्किल होता है लेकिन बिजनेस में ऐसा नहीं है।

आप छोटे स्तर पर भी रह कर कुछ ऐसा कारनामा कर सकते हैं जिससे चारों ओर आपके लिए सम्मान प्राप्ति और सफलता के रास्ते खुल जाएं।

क्या बिज़नेस से जुड़ी है असल कामयाबी

यह सच है कि जब आप नौकरी करते हैं तो पहले महीने से ही आपके हाथ भर जाते हैं और आपको एक मोटी रकम प्राप्त होती है जिससे आप परिवार के भरण पोषण और अपने भविष्य के बारे में प्लानिंग कर सकते हैं।

इसके अलावा अपने परिवार के लिए नौकरी में आपको ज्यादा चिंता नहीं करनी पड़ती क्योंकि आपको बखूबी मालूम है कि महीना खतम होते ही आपके हाथ एक निश्चित धनराशि आने वाली है। शायद यही वजह है कि इसी आसानी के चलते चुनौतियों से पीछे हट कर कुछ लोग नौकरी को महत्व देते रहे हैं।

लेकिन अगर आपने थोड़ी हिम्मत, सब्र एवं संयम और आत्मविश्वास का प्रदर्शन करते हुए बिज़नेस के मैदान में कदम रख दिया तो इस बात की प्रबल संभावना है कि आप जल्द ही कोई कामयाबी हासिल कर अपने नाम को दुनिया के दूसरे नामों से बिल्कुल अलग बना लें।

आप इज्ज़त, शोहरत और सफलता की बुलंदियों पर पहुंच सकते हैं। आपकी वह महत्वाकांक्षा पूरी हो सकती है जिसके बारे में अतीत में आपने सच होने का कभी सपना देखा था।

दरअसल, वह सपना हकीकत का रूप तभी ले पाएगा जब आप कोई निजी काम कर बिजनेस की दुनिया में साहस और संकल्प के साथ आगे बढ़ेंगे वरना नोकरी तो केवल आर्थिक हालात को सुधारने का माध्यम मात्र है।

ऊंट और खरगोश की इस प्रचलित कहानी पर ध्यान दीजिए

किसी युग में ऊंट और खरगोश के बीच गहरी दोस्ती थी। दोनों हर रोज मिलते और एक दूसरे का हालचाल तलब करते रहते। एक दिन बातचीत के दौरान दोनों में कुछ तीखी नोक झोंक हो गई और मामला हद से ज़्यादा गम्भीर हो गया। ऊंट ने अपनी ताकत का हवाला देते हुए खरगोश से कहा कि मैं कद काठी के मामले में तुमसे कहीं ज्यादा हूं।

तभी तो मेरा खयाल रखकर मेरा मालिक मुझे हर रोज खाने के लिए उम्दा व्यंजन देता है और मेरी खूब देखभाल किया करता है। वह हर रोज सुबह सवेरे मेरे लिए अच्छी खुराक का बंदोबस्त करता है और काम से घर लौटने पर मेरा स्वागत करता और पीठ थपथपाता है।

यह सुनकर खरगोश ने जवाबन कहा…”हां! ये तो है कि तुम्हारा मालिक तुम्हारी खूब खातिरदारी करता है लेकिन मेरा कोई मालिक नहीं है क्योंकि मैं स्वयं अपनी मर्जी का मालिक आप हूं। मुझे जब भूख का एहसास होता है तो मैं किसी के भी खेत में प्रवेश कर मन भर अनाज खाता हूं और अपने बच्चों के भरण पोषण के लिए भी कुछ अनाज अपने साथ ले आता हूं।

तुम्हारी नाक में गुलामी की एक नकेल है। तुम्हारी हैसियत एक तुच्छ गुलाम से ज़्यादा कुछ भी नहीं है। अभी अगर इसी समय तुम कमज़ोर या बेकार हो जाओ तो तुम्हारा मालिक तुमसे सीधे मुंह बात नहीं करेगा

वह केवल अपनी स्वार्थ सिद्धि और फायदे के लिए तुमसे प्रेम मुहब्बत का नकली इज़हार करता है। जबकि मैं आज़ाद फिजा में सांस लेने वाला एक ऐसा स्वतंत्र जीव हूं जो कहीं भी बेरोकटोक आवागमन कर सकता हूं और मुझे जिल्लत की रोटी बर्दाश्त नहीं हो सकती।

कहानी का सारांश ये कि नौकरी में भले ही रिस्क कम और आर्थिक स्थिति बेहतर होती हो लेकिन आदमी के ज़मीर और आत्मसम्मान पर इससे कभी गहरी चोट भी पहुंचती है

शायद इसीलिए कहा जाता है कि हर कामयाबी को आप पैसे से नहीं जोड़ सकते। कुछ कामयाबियां रुतबे और आत्मसम्मान में भी इजाफा करती है और यही असल कामयाबी है क्यूंकि इंसान पैसे केवल इसलिए नहीं कमाता कि उसके और उसके परिवार का भविष्य उज्ज्वल हो सके बल्कि उसे अपने सम्मान और प्रतिष्ठा की चिंता भी सताती रहती है।

और असल सम्मान और आदर तो वैचारिक रूप से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनकर दूसरों के हितों की रक्षा करने में है।

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