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“किंग मेकर” सैय्यद बन्धु का जीवन परिचय

Sayyid brothers were Abdulla Khan and Hussain Ali Khan

भारतीय इतिहास में “राजा बनाने वाले” के नाम से सैयद बन्धु काफी मशहूर है। मुगल साम्राज्य में अपना खास प्रभाव रखने वाले हुसैन अली और उनके भाई अब्दुल्ला को सैयद बंधु के नाम से पुकारा जाता था।

मुगल साम्राज्य में उस समय वे इतने ज्यादा प्रभावशाली थे कि वह किसी भी व्यक्ति को राजा बनाने की क्षमता रखते थे। सैयद बंधु ने भारत में 4 मुगल राजाओं फ़र्रुख़सियर, रफ़ीउद्दाराजात, रफ़ीउद्दौलत और मुहम्मद शाह को शासन करने में सहायता की थी।

मेसोपोटामिया से आए इन दोनों भाइयों ने भारत के पटियाला के आसपास के क्षेत्रों को अपने रहने का स्थान बना लिया था। इस लेख में आपको सैयद बंधु के बारे में विस्तार में जानने को मिलेगा।

सैयद बंधु जीवनी

सैयद बंधु दो भाई थे, जिनमें से एक व्यक्ति का नाम हुसैन अली था और दूसरे व्यक्ति का नाम अब्दुल्ला था। इंडियन हिस्ट्री में सैयद बंधुओं को “किंगमेकर” कहा जाता था। यानी कि इन्हें ‘राजा बनाने वाले” व्यक्ति के तहत जाना जाता था और इन्होंने इसी नाम से इतिहास में खूब प्रसिद्धि पाई।

सैयद बंधु अपने समय में मुगल साम्राज्य में बड़ी भूमिका अदा रखते थे और इनका मुगल साम्राज्य में काफी ज्यादा प्रभाव था।

ऐसा कहा जाता है कि सैयद बंधु के पास ऐसी क्षमता थी कि, वह राज्य में किसी भी व्यक्ति को उस राज्य का राजा बनाने की हिम्मत रखते थे। दोनों सैयद बंधु हिंदुस्तानी दल के सदस्य थे।

सैयद बंधुओं का व्यक्तिगत परिचय

सैयद बंधु हुसैन अली, अब्दुल्लाह खान
दल हिंदुस्तानी दल
प्रसिद्धि किंग मेकर, राजा बनाने वाले
धर्म इस्लाम, मुस्लिम

सैयद बंधुओं का प्रारंभिक जीवन

सैयद बंधुओं का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के मुजफ्फरनगर जिले के जानसठ नाम के गांव में हुआ था। सैयद बंधुओं के अनुसार वह मोहम्मद साहब की बेटी फातिमा के खानदान से संबंध रखते हैं। आज के समय में भी मुजफ्फरनगर के जानसठ में इनकी कई निशानियां मौजूद है।

सैयद बंधु यानी कि हुसैन अली और अब्दुल्ला का जन्म एक बेहद साधारण घराने में हुआ था और जब यह पैदा हुए थे, तो इनका बचपन तो काफी हंसी खुशी से गुजरा। जब यह बड़े हुए तब यह मुगल साम्राज्य में महत्वपूर्ण जगह पाने में सफल हुए।

सैयद बंधुओं को इंडियन हिस्ट्री में किंग मेकर कहा जाता है। सैयद बंधुओं में आपस में बहुत ही ज्यादा प्यार था और इसीलिए यह एक दूसरे के बिना एक पल भी नहीं रह पाते थे और अगर किसी भी भाई के ऊपर कोई संकट आता था, तो दूसरा भाई उसकी हर संभव सहायता करता था‌।

गैर भारतीय दलों ने सैयद बंधुओं से सीधी टक्कर लेने की जगह पर साजिश की और साजिश से इन दोनों भाइयों का पतन किया।

सैयद बंधुओं का मूल्यांकन

दोनों सैयद भाई इंडियन मुस्लिम थे और आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दोनों भाई भारतीय मुसलमान होने पर बहुत ही ज्यादा फक्र और गर्व की अनुभूति करते थे। दोनों भाई तुरानी पार्टी की श्रेष्ठता को मानने करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे।

सैयद बंधु एक ऐसा शासन चाहते थे जिसमें कोई मुगल सम्राट उनके ऊपर राज ना करें बल्कि वह विदेशी राजा की जगह पर हमारे देश के ही राजा के शासन के अंतर्गत रहने की इच्छा रखते थे।

दोनों सैयद बंधु धार्मिक रूप से कट्टर नहीं थे और वह धार्मिक सहिष्णुता का पालन करते थे, जिसके कारण साल 1713 में जजिया टैक्स को हटा दिया गया था और जब एक बार फिर से उसे लगाया गया तो फिर से उसे हटा लिया गया था।

दोनों सैयद बंधुओं ने अपनी कार्यशैली से हिंदू समुदाय का विश्वास जीता और उन्हें ऊंचे पद दिए, जिसका प्रमुख उदाहरण है रत्नचंद नाम के हिंदू को दीवान के पद पर मनोनीत करना।

हिंदुओं का विश्वास जीतने के कारण राजपूतों का भी सैयद बंधुओं के ऊपर विश्वास जम गया था और इसीलिए सैयद बंधुओं ने अपनी विश्वसनीयता का इस्तेमाल करके उन्हें भी अपनी तरफ ले लिया था।

उन्होंने महाराजा अजीत सिंह को अपना दोस्त बना लिया। इसके अलावा सैयद बंधुओं ने जाटों पर भी निशाना साधा और जाटों के साथ सहानुभूति दिखा करके उन्होंने जाटों को अपने पक्ष में रख लिया इसके अलावा आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मराठों ने भी सैयद बंधुओं का साथ दिया था।

किंग मेकर सैयद बंधु

आपने कई बार यह सुना होगा कि सैयद बंधु को किंग मेकर कहा जाता था, परंतु आपको शायद ही यह पता होगा कि सैयद बंधु को आखिर किंग मेकर क्यों कहा जाता था।

इसके पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है, सैयद बंधु ने मोहम्मद शाह, रफ़ीउद्दौलत, फर्रूखसियर और रफ़ीउद्दाराजात जैसे इस्लाम धर्म को मानने वाले मुगल बादशाहों को सत्ता प्राप्त करने में उनका जबरदस्त साथ दिया था और सैयद बंधु का साथ पाने के कारण ही इन चारों बादशाहों ने सत्ता प्राप्त की और शासन किया।

सैयद बंधु यानी कि अब्दुल्ला खान और हुसैन अली खान ने उत्तराधिकार की लड़ाई में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

अपनी काबिलियत के कारण ही सैयद बंधुओं को राजकुमार अजीम-उस-शान का काफी समर्थन प्राप्त हुआ था जिन्होंने उनकी काबिलियत को देखते हुए 1708 में बिहार में एक महत्वपूर्ण पद पर हुसैन अली को रखा।

इसके अलावा राजकुमार अजीम-उस-शान ने अब्दुल्ला खान को इलाहाबाद शहर में 1711 में नायब के पद पर पोस्टिंग दी। राजकुमार अजीम-उस-शान के द्वारा दिए गए पद के कारण दोनों सैयद बंधु राजकुमार के बहुत ही आभारी थे

और इसी एहसान के बदले में साल 1713 में जब दिल्ली की राजगद्दी के लिए युद्ध हुआ, तो उसमें सैयद बंधुओं ने राजकुमार अजीम-उस-शान के बेटे फर्रूखसियर का युद्ध में साथ दिया और उस युद्ध में फर्रुखसियार की जीत हुई।

युद्ध में जब फर्रूखसियर को विजय प्राप्त हुई, तो वह सैयद बंधुओं पर काफी ज्यादा प्रसन्न हुए और प्रसन्न होकर के उन्होंने अपने वजीर के पद पर अब्दुल्लाह खान को नियुक्त किया और अब्दुल्ला खान को कुतुबुलमुल्क़, यामीनउद्दौला, जफ़रजंग जैसी उपाधियों से नवाजा। इसके अलावा फर्रूखसियर ने मीर बक्शी के पद पर हुसैन अली को नियुक्त किया और उसे इमादुलमुल्क़ जैसी उपाधि से नवाजा।

फर्रूखसियर की हत्या

सम्राट इत्काद ख़ाँ अब्दुल्ला खान की जगह पर वजीर बनाने की इच्छा रखते थे, परंतु उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई तो वह क्रोधित हो गए। इधर फर्रूखसियर ने भी ईद उल फितर के मौके पर तकरीबन 70,000 मुगल सैनिकों को युद्ध लड़ने के लिए तैयार कर लिया और उन्हें इकट्ठा किया।

दूसरी तरफ अब्दुल्ला खान ने भी एक विशाल सेना को युद्ध करने के लिए तैयार कर लिया और उन्हें इकट्ठा किया।

जब हुसैन अली को सम्राट और अपने भाई के बीच संबंधों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई, तो हुसैन अली ने मराठों की सहायता करने का निश्चय किया और वह मराठों की सहायता करने के लिए दिल्ली पर चढ़ आया।

दूसरी तरफ कई दिग्गज और महत्वपूर्ण सरदारों को धन संपदा का लालच देकर अब्दुल्ला खान ने अपनी साइड कर लिया, जिसमें अजीत सिंह जैसे महत्वपूर्ण सरदार शामिल थे।

इसके बाद सैयद बंधुओं ने अपनी मांगे सम्राट के समक्ष प्रस्तुत की और सम्राट को अपनी मांगों पर सोच विचार करने के लिए कहा, जिसके ऊपर विचार करते हुए सम्राट ने सैयद बंधुओं की मांग को स्वीकार कर लिया, जिसके बाद वर्ष 1719 में 28 अप्रैल के दिन सैयद बंधुओं ने फ़र्रुख़सियर की हत्या कर दी‌।

सैयद बन्धुओं की हत्या

सैयद बंधुओं की हत्या करने के लिए दिल्ली में शहादत अली खान, हैदर खान और एत्माद्दौला के द्वारा एक साजिश रची गई। इस साजिस के अंतर्गत हुसैन अली की हत्या करने की जिम्मेदारी हैदर खान ने उठाई।

इसके बाद एक दिन जब हुसैन अली दरबार में एक व्यक्ति की याचिका पढ़ रहे थे, तभी हैदर खान ने धोखा करके हुसैन अली को चाकू मार दिया, जिसके कारण हुसैन अली की तत्काल दरबार में ही मृत्यु हो गई।

इसके बाद जब अब्दुल्लाह खान को अपने भाई की हत्या किए जाने की बात पता चली तो वह क्रोध से भर उठा और उसने अपने भाई की हत्या करने वाले व्यक्ति से बदला लेने की ठानी, जिसके लिए उसने विशाल सेना युद्ध करने के लिए इकट्ठा की।

अब्दुल्लाह खान ने मोहम्मद साह की जगह पर रफ़ी-उस-शान के बेटे मोहम्मद इब्राहिम को सम्राट बनाने का फैसला किया, परंतु साल 1720 में 13 नवंबर को युद्ध में अब्दुल्ला खान की हार हुई और युद्ध में हारने के बाद उसे कैदी बना लिया गया।

इसके बाद साल 1722 में अब्दुल्ला खान को जहर देकर के 11 अक्टूबर के दिन मार दिया गया। इस प्रकार सैयद बंधुओं का अंत हुआ।

मुगल काल में सैयद बंधुओं का जलवा

मुगल काल में सैयद बंधुओं का जलवा इतना ज्यादा था कि हर कोई इनकी कृपा प्राप्त करने की कोशिश करता था‌ यह दोनों मुगल सेना की ऐसी टुकड़ी में शामिल थे, जो सबसे विशाल टुकड़ी मानी जाती थी।

जब साल 1707 में मुगल सम्राट औरंगजेब का निधन हो गया था तो उसके बाद तो सैयद बंधुओं का रुतबा देखते ही बनता था, क्योंकि साल 1707 में औरंगजेब का निधन होने के बाद सैयद बंधुओं की शक्ति में काफी ज्यादा बढ़ोतरी हो गई थी।

सैयद बंधुओं के अन्य नाम

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