Site icon AchhiBaatein.com

महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह का जीवन परिचय

The martyr Shaheed Bhagat Singh

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियो और क्रांतिकारियों में भगत सिंह का नाम सबसे पहले आता है। हमारे देश को अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाने के लिए भगत सिंह ने चंद्रशेखर आजाद व अपने अन्य मित्रों के साथ मिलकर जंग छेड़ दी थी। भगत सिंह एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारत माता के लिए अपने प्राणों की आहुति हंसते-हंसते दे दी।

जब भगत सिंह को फांसी दी जा रही थी, तब भी तीनों देश भक्त (राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह) देश भक्ति के गीत ही गा रहे थे। भगत सिंह ने हमारे देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए कौन-कौन से कार्य किए हैं यह जानने के लिए उनकी जीवनी को जरूर पढ़ें।

भगत सिंह जीवनी

भगत सिंह को गर्म स्वभाव का व्यक्ति कहा जाता था, इन्हें ब्रिटिश असेंबली में बम फेंकने के जुर्म में अपने 2 साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ 31 मार्च को तब के पाकिस्तान के लाहौर शहर की जेल में बिना किसी व्यक्ति को सूचना दिए हुए अंग्रेजी गवर्नमेंट ने फांसी पर लटका दिया।

इनका जन्म सन 1907 में 27 सितंबर को हुआ था। भगत सिंह ने अपनी जिंदगी में जो कार्य किए उनके लिए भारत सदा उनका ऋणी रहेगा और जब जब देश प्रेम के लिए अपनी जान निछावर करने वाले व्यक्तियों का नाम लिया जाएगा, तब तब उसमें भगत सिंह का नाम अवश्य रहेगा।

भगत सिंह व्यक्तिगत जीवन परिचय

पूरा नाम शहीद भगत सिंह
जन्म 27 सितम्बर 1907
जन्म स्थान जरंवाला तहसील, पंजाब
माता-पिता विद्यावती, सरदार किशन सिंह सिन्धु
भाई-बहन रणवीर, कुलतार, राजिंदर, कुलबीर, जगत, प्रकाश कौर, अमर कौर, शकुंतला कौर
मृत्यु 23 मार्च 1931, लाहौर
प्रसिद्धि शहीद-ए-आजम
धर्म सिक्ख

शहीदे आजम भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन

एक पंजाबी सिख फैमिली में साल 1907 में 27 सितंबर को उस समय के पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां गांव में भगत सिंह का जन्म हुआ था। जब भगत सिंह का जन्म हुआ था, तब शायद उनकी माता को भी नहीं पता था कि 1 दिन उनका यह बेटा आगे चलकर भारत देश के लिए कुर्बान हो जाएगा और इतिहास में इसका नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा।

भगत सिंह के पिता जी का नाम सरदार किशन सिंह था और इनकी माता जी का नाम विद्यावती था। भगत सिंह अपने माता पिता की तीसरी संतान थे। भगत सिंह के पैदा होने से पहले ही इनकी फैमिली स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी हुई थी और सक्रिय रूप से हर आंदोलन में शामिल होती थी।

भगत सिंह के पिता किशन सिंह और भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह गदर पार्टी के मेंबर थे। इस पार्टी का निर्माण अंग्रेजी हुकूमत को भारत से खदेड़ने के लिए अमेरिका में किया गया था। जब भगत सिंह पैदा हुए और थोड़े बड़े हुए तो परिवार के माहौल का उनके ऊपर काफी ज्यादा प्रभाव पड़ा, बाल काल से ही उनके अंदर देश प्रेम की भावना जागने लगी और वह बाल्यकाल से ही यह सोचने लगे कि बड़े होकर वह भी अंग्रेजों का अपने स्तर से पुरजोर विरोध करेंगे।

भगत सिंह का लाला लाजपत राय और रासबिहारी बोस से संपर्क

जब लाहौर के DAV विद्यालय में साल 1916 में भगत सिंह अपनी स्टडी कर रहे थे, तभी भगत सिंह की मुलाकात उस टाइम के बहुत ही प्रसिद्ध स्वतंत्रता आंदोलनकारी और गर्म मिजाज के व्यक्तित्व रखने वाले लाला लाजपत राय और रासबिहारी बोस से हुई।

उस टाइम तक लाला लाजपत राय पंजाब में बहुत ही ज्यादा फेमस हो गए थे। जब जलियांवाला बाग में अंग्रेजी अधिकारी के द्वारा निर्दोष लोगों पर गोलीबारी करके उनकी हत्या की गई, तब सिर्फ 12 साल की उम्र भगत सिंह ने पार की थी।

इस हत्याकांड का भगत सिंह के मन पर काफी बुरा इफेक्ट पड़ा था और हत्याकांड होने के अगले दिन भगत सिंह जलियांवाला बाग में गए और वहां पर उन्होंने थोड़ी सी मिट्टी को अपने हाथों में लिया और उसे जिंदगी भर अपने साथ एक निशानी के तौर पर रखा।

इस हत्याकांड के कारण भगत सिंह के मन में अंग्रेजों के प्रति बहुत ही ज्यादा नफरत पैदा हो गई और उन्होंने मन ही मन अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह करने का निर्णय बना लिया।

आजादी की लड़ाई

आजादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए सबसे पहले भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा में शामिल होने का निर्णय लिया।इसके बाद भगत सिंह ने कीर्ति किसान पार्टी के साथ अपने संबंधों को मजबूत बनाया और उन्होंने “कीर्ति” मैगजीन के लिए काम किया।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, भगत सिंह बहुत ही अच्छे लेखक भी थे़, जो पंजाबी के अलावा उर्दू भाषा में भी पेपर लिखने का काम करते थे। भगत सिंह को साल 1926 में सेक्रेटरी का पद भारत सभा में प्रदान किया गया, जिसे उन्होंने सहर्ष रूप से स्वीकार कर लिया।

इसके बाद भगत सिंह ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन को साल 1928 में ज्वाइन कर लिया। इस पार्टी का गठन एक अन्य दमदार क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद जी ने किया था।

इस पार्टी में शामिल होने के कुछ समय बाद ही अंग्रेजी गवर्नमेंट के द्वारा साइमन कमीशन का गठन किया गया, जिसमें कई अंग्रेज अधिकारी थे, जो भारत आए थे। साइमन कमीशन का भारत आना भारत के लोगों को अच्छा नहीं लगा।

इसलिए भगत सिंह ने अन्य लोगों के साथ मिलकर साइमन कमीशन का विरोध किया और साइमन कमीशन की टीम के सामने ही साइमन गो बैक के नारे लगाए, जिसके बाद अंग्रेज अधिकारी क्रोधित हो गए और उन्होंने भारतीय लोगों पर लाठीचार्ज करने का आदेश दे दिया और इसी लाठीचार्ज में सर पर लाठी लगने के कारण लाला लाजपत राय को काफी गंभीर चोट आई और कुछ समय पश्चात लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई।

लाला लाजपत राय की मृत्यु होने से भगत सिंह को काफी ज्यादा क्रोध आया और उन्होंने दुगनी रफ़्तार से अंग्रेजी गवर्नमेंट के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया। इसके बाद भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजी अधिकारी सांडर्स का मर्डर करने का प्लान बनाया।

भगत सिंह हमेशा अपने साथियों से कहा करते थे कि अंग्रेजी गवर्नमेंट को काफी कम सुनाई देता है। इसीलिए उन्हें सुनाने के लिए बम फोड़ने की आवश्यकता है और अपने द्वारा कही गई इस बात को सच साबित करने के लिए साल 1929 को दिसंबर के महीने में भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अंग्रेजी गवर्नमेंट की असेंबली हॉल में एक बम ब्लास्ट किया।

हालांकि इसमें किसी की जान नहीं गई, परंतु बम ब्लास्ट करने के बाद भगत सिंह वहां से भागे नहीं और उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए अपनी गिरफ्तारी दी। इस गिरफ्तारी में बटुकेश्वर दत्त भी शामिल थे।

शहीद भगत सिंह की फांसी

असेंबली हॉल में बम फेंकने के कारण अंग्रेजी हुकूमत ने भगत सिंह के साथ सुखदेव और शिवराम राजगुरु पर कोर्ट केस चलाया और कोर्ट केस में इन तीनों पर आरोप साबित हुआ, जिसके बाद अंग्रेजी गवर्नमेंट ने इन तीनों को फांसी की सजा सुनाने का ऐलान किया।

हालाकी फांसी की सजा कोर्ट में सुनाने के दौरान भी भगत सिंह और उनके साथियों के माथे पर किसी भी प्रकार की चिंता नहीं दिखाई दी और लगातार भगत सिंह अपने साथियों के साथ अदालत में भी इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते रहे, जो इनके देश प्रेम को दर्शा रहा था।

फांसी की सजा सुनाने के बाद इन्हें जेल में डाल दिया गया, जहां पर भगत सिंह को और उनके साथियों को अंग्रेजी अधिकारी के द्वारा बहुत सारे कष्ट दिए जाते थे, परंतु भगत सिंह एक ऐसी मिट्टी में पैदा हुए थे,जहां वीर क्रांतिकारियों ने जन्म लिया है।

इसलिए उनके ऊपर अंग्रेजी गवर्नमेंट के अत्याचारों का कोई भी फर्क नहीं पड़ रहा था। जेल में रहने के दौरान भी भगत सिंह ने अपने आंदोलन को जारी रखा। जेल में कई दिन ऐसे होते थे कि उन्हें खाने के लिए खाना भी नहीं दिया जाता था, ना ही उन्हें बाहर जाने दिया जाता था़, परंतु भगत सिंह ने हार नहीं मानी और उन्होंने जेल में भी कई बार अंग्रेजी अधिकारी के खिलाफ और अंग्रेज गवर्नमेंट के खिलाफ आंदोलन किया।

भगत सिंह ने साल 1930 में एक किताब भी लिखी थी, जिसका शीर्षक उन्होंने Why I Am Atheist रखा था।

शहीद भगत सिंह की कविता

“इतिहास में गूँजता एक नाम हैं भगत सिंह
शेर की दहाड़ सा जोश था जिसमे वे थे भगत सिंह
छोटी सी उम्र में देश के लिए शहीद हुए जवान थे भगत सिंह
आज भी जो रोंगटे खड़े करदे ऐसे विचारो के धनी थे भगत सिंह ..”

भगत सिंह की मृत्यु

अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी की सजा सुनाने के बाद लगातार भारत के लोग भगत सिंह और उनके साथियों की रिहाई की मांग करते रहे और लगातार होते हुए प्रदर्शन को देखकर अंग्रेजी हुकूमत काफी ज्यादा डर गई।

उन्हें यह लगने लगा कि कहीं जनता का विद्रोह और ज्यादा न भड़क जाए। इसीलिए साल 1931 में मार्च के महीने में 23 और 24 तारीख की आधी रात को ही अंग्रेजी गवर्नमेंट ने बिना किसी को सूचना दिए हुए भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी पर लटका दिया और इस बार तीन महान क्रांतिकारी भारत माता के लिए हंसते-हंसते कुर्बान हो गए।

इनकी जीवनी भी पढ़ें

Exit mobile version