Sri krishna janmashtami, Life Changing Lessons to Learn from Lord Krishna, Sri Krishna’s life & teachings, Management Guru & Bhagwat Gita
हमें श्रीमद्भागवद्गीता का ज्ञान देने वाले परम पुरषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं, श्रीमद्भागवद्गीता में तो भगवान ने सभी प्रकार का ज्ञान दिया हैं, परन्तु यदि हम केवल उनके जीवन को देखे तो हमें काफी कुछ सीखने को मिलेगा, हम उनके जैसा तो नहीं बन सकते परन्तु उनके दिखाए गए रास्ते पर चलने की कोशिश तो कर ही सकते हैं।
आखिर क्यों हैं श्रीकृष्ण सर्वाकर्षक
- सम्पति – श्रीकृष्ण जैसा और कोई नहीं हैं जो यह दावा कर दे कि वह सर्वाधिक सपन्न हैं, उसके पास जगत की सम्पूर्ण सम्पति हैं, भगवत गीता के 5th अध्याय में भगवान ने कहा हैं कि मैं समस्त प्रकार के यज्ञो तथा तपस्याओं का भोगता व् समस्त लोको का स्वामी हूँ।
- सौदर्य – हम श्रीकृष्ण की वृद्ध रूप में कोई चित्र नहीं पाते हैं क्योकि वो कभी वृद्ध नहीं होते हैं, कुरुक्षेत्र की रणभूमि में जब उनकी आयु 90 वर्ष थी तथा उसने अनेक प्रपोत्र भी थे, तब भी वो एक नवयुवक जैसे ही दिखाई देते थे।
- ज्ञान – भागवतगीता में आप समस्त प्रकार के ज्ञान-विज्ञान (भौतिक, आध्यत्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक, दार्शनिक आदि) प्राप्त कर सकते हैं और यह हमें दिखाता हैं कि श्रीकृष्ण का ज्ञान पूर्ण हैं।
- शक्ति – 3 माह की उम्र में पूतना का वध किया, सात वर्ष की आयु में गोवर्धन पर्वत को 7 दिनों तक एक ऊँगली पर उठाएं रखना, उनकी अपार शक्ति को दिखाता हैं।
- यश – संसार के इतिहास में 5000 वर्षो के बाद भी भागवतगीता के वक्ता के रूप में पुरें विश्व में प्रसिद हैं विश्व की हर भाषा के शब्दकोष में श्रीकृष्ण शब्द होता हैं।
- वैराग्य – हम स्वयं द्वारा निर्मित की गई वस्तु से आसक्त रहते हैं तथा उसका त्याग नहीं करना चाहते, जबकि सम्पूर्ण भौतिक संसार श्री कृष्ण द्वारा सृजित होते हुए भी यहाँ उनकी लेश मात्र भी रूचि नहीं हैं।
कृष्ण के सिद्दांत जो जीना सीखाते हैं
- हमेशा मुस्कराहट फैलाइयें
किसी भी तस्वीर, चित्र या प्रतिमा में आप पायेंगे कि श्री कृष्ण (Krishna) कभी उदास-निराश नहीं दिखे, श्री कृष्ण मतलब “हँसते-हँसते जीना”, जब से श्रीकृष्ण माता के गर्भ में आये तो तब से न जाने कितने जुल्म और अत्याचार और हमले उन पर होते रहे, परन्तु वे उन सभी परिस्थितियों में समान बने रहे।उनका चेहरा हमेशा मुस्कराहट से चमचमाता दिखता हैं वे नृत्य करते हैं लीला करते हैं, आजीवन मस्ती में झूमते रहते हैं जो भी स्थिति हो-भले ही विरोधी का वध हो या युद्ध, आनंदमय वातावरण हो या फिर गंभीर स्थिति हमेशा ही उनके चेहरे पर मुस्कान ही रही हैं, लोग कई बार इसको दैवीय गुण मानते हैं, लेकिन यह हैं वास्तव में मानवीय गुण।
- दोस्ती दिल से निभाएं
श्रीकृष्ण ने मित्रता के खातिर नियम-शर्ते(Protocols) सहित सभी बंधन तोड़ दिए थे
श्री कृष्ण, दोस्ती के लिए सारे बंधन तोड़ देते हैं युद्ध में उन्होंने अस्त्र-शस्त्र नहीं उठाने का संकल्प लिया था, लेकिन जब भीष्म के सामने मित्र अर्जुन को संकट में देखा तो रथ का पहिया लेकर भीष्म की तरफ दौड़ पड़े। अर्जुन ने सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध करने की प्रतिज्ञा की थी, जयद्रथ को बाहर निकलने के लिए श्री कृष्ण ने सूर्य तक को ढक दिया था और जयद्रथ को बाहर पाकर अर्जुन के उसका वध कर दिया था।सुदामा के आने की खबर पाकर इतने उतावले हो गए कि नंगे पैर स्वयं लेने के लिए दौड़े दौड़े आये और ऐसा आदर सत्कार किया गया कि पूरा राज्य आश्चर्य से देखता रह गया।
- सैदव प्रेम से रहिये
घर में सुदर्शनधारी कृष्ण नहीं बल्कि बंशी वाले की पूजा की जाती हैं यह उनके प्रेमस्वरुप को दिखाता हैं।
स्वर्ग में राधा ने कृष्ण से कहा था कि जब आप प्रेम में थे तब ऊँगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगो को बचाया था और जब प्रेम से अलग हुए तो आपने सुदर्शन चक्र उठा लिया और दुष्टों का विनाश करने लगे। प्रेम आपका सच्चा स्वरुप हैं इसलिए घरो में प्रेम में डूबे बांसुरी वाले कान्हा की ही तस्वीर मिलेगी, राधा ने कहा भले ही “भागवत गीता” में मेरा नाम न हो लेकिन गीता के पूर्ण होने पर “राधे राधे” स्मरण किया जाता हैं। - हमेशा सादगी में रहिये
जेल में जन्में, ग्वालो संग बाललीला, गोधन की सेवा और वन में देहत्याग
ईश्वर रूप होते हुए भी कृष्ण साधारण मानव की तरह रहे, जन्म कारावास में हुआ उफनती यमुना नदी से होते हुए गोकुल गाँव में पहुचे, ग्वालो संग गाये चराई, सादगी में दिव्यता और भव्यता का सन्देश दिया कृष्ण ने कई राजाओ को जीता, लेकिन कभी किसी पराजित का सिंहासन नहीं लिया, हमेशा किंग मेकर रहे दिव्य अवतारी शक्ति के बावजूद मनुष्य की भांति ही देहत्याग किया, बहेलिए के बाण से जख्मी होकर भालका तीर्थ में देह त्याग किया।
कृष्ण के सिद्दांत जो संघर्ष सिखाते हैं
- दमनकारी और अहंकारी के सामने चुप न रहे
कनिष्का ऊँगली पर गोवर्धन उठाकर इंद्र का अहंकार तोडा, ग्वालबालो का सम्मान लौटाया
श्री कृष्ण के गोवर्धन पर्वत एक ऊँगली पर उठा लिया था, इसमें स्वाभिमान का सन्देश हैं असल में “इंद्र देव” मथुरा गोकुल और वर्न्दावन के लोगो को डराकर अपनी पूजा करवाते थे, श्री कृष्णा ने लोगो से कहा की पूजा बंद कर दो, नाराज इंद्र ने बहुत बारिश कर दी, कृष्ण ने अपनी सबसे छोटी ऊँगली पर गोवर्धन उठा लिया और लोगो से कहा कि अपनी लाठियों से गोवर्धन उठाएं ताकि विजय में सभी का योगदान हो। - सहनशील बनो, कायर नहीं
शिशुपाल के 100 अपराध किये सहन, 101 अपराध पर दे दी जीवन से मुक्ति
कोई भी और किसी भी प्रकार का दमन सहन नहीं करना चाहिए, शिशुपाल की माँ जानती थी कि उनके बेटे का वध श्रीकृष्ण के हाथ होगा इसलिए मां ने शिशुपाल के लिए कृष्ण से जीवनदान माँगा था। श्रीकृष्ण ने भी उन्हें वचन दिया कि मैं उसके 100 अपराध माफ़ कर दूंगा। जब शिशुपाल ने उन्हें अपशब्द कहना जारी रखा तब कृष्ण ने 101 वे अपशब्द कहते ही उसके जीवन का अंत कर दिया। - अत्याचार के खिलाफ, हिम्मत दिखाए
बलवान से डरे नहीं, 16 की उम्र में कंस के योद्धा के प्राण हथेलियों के प्रहार से हर लिए
श्री कृष्ण मार्शल आर्ट के सच्चे जनक थे, इससे कंस के समक्ष मल्ल-युद्द में चाणूर और मुष्टिक नाम के शक्तिशाली दानवो का अंत कर दिया इनके वध के समय श्री कृष्ण की उम्र मात्र 16 वर्ष थी, मथुरा में रजक का मस्तक हथेली के प्रहार से धड से अलग कर दिया था पूतना सहित कंस द्वारा भेजे गए पांच और दानवो का वध किया कंस का वध भी कंस के दरबार में ही किया था।
सन्देश था बलवान से डरे नहीं बल्कि विश्वास के साथ मुकाबला करें। - विजय के लिए जरुरी हैं व्यूह रचना (Strategy)
महाभारत युद्ध में पांड्वो की विजय हुयी इसमें सबसे अहम् भूमिका भगवान कृष्ण के प्रबंधन की ही रही। श्रीकृष्ण महामानव थे, बिना किसी की मदद से वह सबकुछ कर सकते थे लेकिन महाभारत में सक्रिय भूमिका के बिना रणनीतिक दक्षता से पांडव विजयी रहे, इसलिए श्री कृष्ण (Krishna) मैनेजमेंट गुरु कहलायें उनकी फिलोसफी और सिद्दांत रोजमर्रा के जीवन और उसके प्रबंधन में हमेशा कारगर साबित होते हैं।