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तेरे मेरे इर्द गिर्द : पुस्तक समीक्षा

Tere Mere Ird Gird ~ Samsamyik Muddon Par Vicharon ki Shrinkhala

सामाजिक सरोकार के पहलुओं पर रोशनी डालती पुस्तक  ” तेरे मेरे इर्द गिर्द

तेरे मेरे इर्द गिर्द” पुस्तक में लेखक मनोज कुमार ने पुस्तक में सामाजिक सरोकार के मुद्दों पर अपने विचार रखे हैं। इस पुस्तक में आम आदमी से जुड़े मुद्दें एवं उनसे जुड़े बिंदुओं को आलेख के माध्यम से बड़े रोचक ढंग से समझाया गया है।

पुस्तक के प्रथम आलेख में लेखक ने छात्रों में पुस्तक से पढ़ने की छूटती आदत पर चिंता जताई है। लेखक ने कहा हैं कि पढ़ने की आदत धीरे धीरे छूटती जा रही हैं, आज उन्होने पुस्तकों का स्थान गूगल एवं यूट्यूब को दे दिया हैं, उन्हे अब किताबो के पन्नो की खुशबू रास नहीं आती।

पुस्तक के दूसरे आलेख में लेखक ने जंगली जानवरों के प्रति मानव की बढ़ती क्रूरता को उजागर किया है। इस आलेख में लेखक ने केरल राज्य की एक प्रमुख घटना का उल्लेख किया है। यह घटना जानवरों के प्रति मानव की बढ़ती संवेदनहीनता को बयां करती है।
आज हमारे समाज में समय-समय पर Fake News परोसी जाती रहती है। लेखक ने फेक न्यूज पर चिंता जताते हुए इस मुद्दे को माननीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ जी के “फेक न्यूज़” विषय पर दिए गए महत्वपूर्ण व्याख्यान को विस्तार पूर्वक बताया है। इस लेख जरूर ही हर किसी को पढ़ना चाहिए।

बढ़ता निजीकरण (Privatization) एवं इसके सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव पर भी लेखक ने विस्तारपूर्वक जानकारी दी है। देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकारी संस्थानों एवं उनकी कार्यशैली को बेहतर बनाना सही हैं या उन्हे निजी व्यापारियों के हाथों में सौंपना सही हैं ? इस बारे में भी लेखक ने अपने विचारों से अवगत कराया है।

आजादी क्या है? वर्तमान समय में आज़ादी एवं अधिकारों के दुरपयोग के बारे में लेखक ने कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण देकर लेख को रोचक बना दिया हैं जिससे पढ़ते पढ़ते हम सच के करीब पहुँचने लगते हैं ।

पुस्तक में लेखक ने गरीबी में रह रहे किसान, मजदूर के संघर्ष एवं उसकी व्यथा को बताया है। एक मजदूर और किसान वर्तमान में किन परेशानियों से गुजर रहा हैं बहुत ही सटीक ढंग से बताया गया है। किसान की व्यथा को बताते हुए लेखक लिखते हैं कि समय समय पर हुकूमतों की नज़र अलग अलग जरिये से अधिक से अधिक टैक्स इकठ्ठा करने पर रही जो उन्हें व्यापरियों से ही मिल सकता था किसानो से नहीं ।

यह भी एक कारण रहा कि सरकारी महकमों का ध्यान अन्य क्षेत्रो में निवेश करने का रहा नतीजन किसान के विकास की कल्पना हुकूमतों की आँखों से ओझल हो गयी एवं एक कल्पना रह गई। आज भी देश का किसान बदहाल हैं देश के अलग अलग हिस्सों में आए दिन किसान आत्महत्या कर रहा हैं।

किसान के हालात पर गौर करते हुए आगे लेखक लिखते हैं कि आज भी किसान कभी अपने बच्चो की पढ़ाई के लिए तो कभी बिटिया की शादी के वास्ते तो कभी माता पिता के इलाज के लिए कर्ज ले रहा हैं। जिनके पास जमीन हैं वह अपनी जमीन गिरवी रख बैंक से कर्ज ले रहे हैं और छोटे किसान मेहनत मजदूरी कर पेट पाल रहे हैं।

अपनी पुस्तक में लेखक ने रोजगार जैसे गंभीर मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया हैं। लेखक ने जनता से यह सवाल पूछा हैं कि क्या वर्तामन समय में रोजगार के मुद्दे को हाशिये पर ले जाया जा रहा है। इस बारे में लेखक का कहना हैं कि युवा देश की किस्मत और भविष्य हैं उन्हे अच्छी शिक्षा और स्थायी रोजगार मिलना ही चाहिए।

सरकारी नौकरियाँ देश के युवाओं के लिए पानी के उस कुँए की तरह हैं जिस पर जाकर हर प्यासा अपनी प्यास बुझाना चाहता हैं। ताली दोनों हाथो से बजती है। ऐसा भी न हो की युवा पढ़ाई ही करते रहें, तैयारी और मेहनत ही करते रहे और उन्हे सरकार की ओर से नौकरी के लिए अवसर ही प्रदान न किया जाए।

वही दूसरी ओर युवाओं को भी रोजगार एवं सरकारी नौकरी को पाने के लिए उसकी तैयारी करनी होगी, जब तक तैयारी पानी की गहराई तक नहीं होगी तब तक कुँए से पानी कैसे हाथ लगेगा।

पुस्तक के कुछ अन्य अध्याय में लेखक ने कमजोर पड़ती पत्रकारिता, बढ़ता हुआ निजीकरण एव उसके परिणाम, मतदाता के तौर पर भारतीय नागरिक, नैतिक मूल्यों का हनन, महंगी शिक्षा मानवीय चेतना के विकास के महत्व, तकनीकी शिक्षा, Social Media आदि पर एवं कुछ अन्य विषयो पर आदि पर आलेख के माध्यम से रोशनी डाली गई हैं।
यह सभी आलेख इतने सजीव हैं कि हम इन्हे अपनी जिंदगी, अपने जीवन यापन से जुड़ा हुआ ही महसूस करते हैं।

जब आप इस पुस्तक को पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि यह सभी मुद्दे आपसे जुड़े हैं और आपके इर्द गिर्द ही हैं। जिनका हल कही न कहीं आप भी ढूंढ ही रहे हैं या ढूंढ़ना चाहते हैं। एक स्वस्थ समाज एवं स्वस्थ जीवन शैली के लिए इन सभी मुद्दों पर चिंतन मनन करने की जरुरत है। इनका उचित समाधान ढूँढ़कर समाधान की दिशा में उपयोगी कदम उठाने की जरुरत है।

इस पुस्तक को पढ़ने के बाद सबसे अच्छी बात यह लगी कि पुस्तक के आलेख ज्यादा बड़े नहीं हैं इसलिए पढ़ते हुए बोरियत नहीं होती, आलेख इतने रोचक हैं कि इन्हे पढ़ने में मजा आता है। बड़ो के साथ साथ छात्रों के लिए भी यह पुस्तक पढ़ने लायक है।

सामाजिक सरोकार से जुड़े कुछ अन्य महवत्पूर्ण मुद्दों की कमी पुस्तक में थोड़ी जरूर खलती है। आशा करते हैं कि इन मुद्दों पर भी लेखक का ध्यान जायेगा एवं उन्हे पुस्तक के अगले संस्करण में लेखक पुस्तक में शामिल करें।

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पुस्तक लेखक – मनोज कुमार
प्रकाशन – प्रखर गूंज पब्लिकेशन
वर्ष – 2024
मूल्य – 250

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