इतिहास में बिरला ही होते हैं जो निस्वार्थ भाव से जन सेवा में अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। इतिहास में आपको कुछ ऐसे ही चुनिंदा लोगों के उदाहरण मिल जाएंगे जिनमें से एक है मदर टेरेसा जिन्होंने सच्चाई और भलाई के मार्ग पर चलने के लिए अपना घर बार यहां तक कि देश भी छोड़ दिया।
इसलिए आज भी मदर टेरेसा का नाम पूरे आदर्श एवं सम्मान के साथ पूरे विश्व में लिया जाता है आज हम आपको मदर टेरेसा की जीवनी के इस लेख में उनके जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें आपके साथ साझा करेंगे।
मदर टेरेसा व्यक्तिगत परिचय
पूरा नाम | अगनेस गोंझा बोयाजिजू |
जन्म | 26 अगस्त 1910 |
जन्म स्थान | स्कॉप्जे शहर, मसेदोनिया |
माता – पिता | द्रना बोयाजू – निकोला बोयाजू |
धर्म | कैथलिक |
काम | मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना |
मृत्यु | 5 सितम्बर 1997 |
भाई बहन | 1 भाई 1 बहन |
मदर टेरेसा का प्रारंभिक जीवन
मदर टेरेसा का जन्म 1910 में मशेदोनिया नामक स्थान पर 26 अगस्त को हुआ था। मदर टेरेसा का पूरा नाम अग्नेश गोंजा बोया जीजू था।
मदर टेरेसा के जो पिताजी थे, वह एक व्यापारी थे और इनके पिताजी स्वभाव से बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। मदर टेरेसा के पिता के घर के पास ही एक चर्च मौजूद था, जहां पर अक्सर उनके पिता जाते थे।
मदर टेरेसा के पिता को यीशु भगवान में बेहद आस्था थी। साल 1919 में मदर टेरेसा के पिताजी की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद मदर टेरेसा का लालन-पालन उनकी माताजी ने किया।
जब मदर टेरेसा के पिताजी की मृत्यु हो गई तो उसके बाद इनके घर की आर्थिक हालत बहुत ज्यादा खराब होने लगी, जिसके कारण मदर टेरेसा की फैमिली को विभिन्न प्रकार की आर्थिक परेशानियों से जूझना पड़ा।
मदर टेरेसा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भी यही पूरी की थी। इसके साथ ही आपको यह बता दे कि मदर टेरेसा की आवाज भी काफी अच्छी थी। मदर टेरेसा अक्सर अपनी बहन और अपनी माता के साथ अपने घर के पास स्थित चर्च में जाती थी और वहां पर जाकर भगवान यीशु के भजन गाने का काम करती थी।
जब मदर टेरेसा सिर्फ 12 साल की थी, तब वह एक धार्मिक यात्रा पर गई थी। उस यात्रा पर जाने के बाद उनका मन काफी ज्यादा बदल गया और उसके बाद उन्होंने भगवान यीशु को अपना पिता और अपना मुक्ति दाता स्वीकार कर लिया। इसके साथ ही उन्होंने पूरी दुनिया भर में भगवान यीशु के वचनों और उनके उपदेशों को फैलाने का बड़ा निर्णय लिया।
जब मदर टेरेसा 18 साल की हुई, तब उन्होंने साल 1928 में बपतिस्मा (चर्च की सदस्यता) और क्राइस्ट को भी अपनाया। क्राइस्ट को एक्सेप्ट करने के बाद मदर टेरेसा डबलिन चली गई और वहीं पर जाकर वह रहने लगी। इसके बाद मदर टेरेसा कभी भी अपने घर लौट कर नहीं आई। जब मदर टेरेसा ने Baptism(ईसाई दीक्षा) लिया तो उन्हें एक नया नाम मिला जो था सिस्टर मेरी टेरेसा। मदर टेरेसा ने डबलिन के ही एक इंस्टिट्यूट से ट्रेनिंग भी प्राप्त की।
मदर टेरेसा के द्वारा भारत में किए गए विशेष कार्य
डबलिन इंस्टीट्यूट से अपनी ट्रेनिंग को पूरी करने के बाद इंस्टिट्यूट की अन्य नन के साथ मिशनरी के वर्क के लिए साल 1929 में मदर टेरेसा भारत देश के दार्जिलिंग सिटी में आई, जहां पर मदर टेरेसा को मिशनरी स्कूल में टीचिंग करने के लिए भेजा गया।
साल 1931 में मदर टेरेसा ने ईसाई नन के तौर पर शपथ ली। शपथ लेने के बाद मदर टेरेसा को भारत देश के कोलकाता सिटी में भेजा गया।
मदर टेरेसा ने कोलकाता सिटी पहुंचने के बाद गरीब लड़कियों को एजुकेशन देने का काम कोलकाता में ही किया और उन्हें शिक्षित किया।
मदर टेरेसा जब इंडिया आई, तब धीरे-धीरे उन्हें बंगाली और हिंदी भाषा की काफी अच्छी जानकारी हो गई थी। इसीलिए वह अक्सर बच्चों को भारतीय इतिहास और भूगोल के बारे में पढ़ाती थी। मदर टेरेसा ने पूरी लगन के साथ काफी सालों तक इस काम को किया।
जब मदर टेरेसा कोलकाता की बंगाली लड़कियों को पढ़ाने का काम कर रही थी, तभी उन्होंने वहां पर लोगों में फैलने वाली बीमारी, लोगों की लाचारी, लोगों की अज्ञानता और लोगों की गरीबी को काफी नजदीक से देखा और इन सभी चीजों का मदर टेरेसा के मन पर काफी ज्यादा इफेक्ट पड़ा।
इसीलिए उन्होंने कुछ ऐसा करने के बारे में सोचा जिससे कि वह भारत के लोगों की प्रॉब्लम को कम कर सके और उनके दुख में उनके साथ सहभागी हो सके। बता दें टेरेसा को मदर की उपाधि वर्ष 1937 प्रदान की गई थी जिसके बाद साल 1944 में उन्होंने सेंट मैरी स्कूल के प्रिंसिपल का पद ग्रहण किया था।
एक नया एक्सपीरियंस
साल 1946 में 10 सितंबर को मदर टेरेसा को एक नया एक्सपीरियंस हुआ और इस एक्सपीरियंस के बाद मदर टेरेसा की लाइफ पूरी तरह से चेंज हो गई। मदर टेरेसा के अनुसार- साल 1946 में 10 सितंबर को वह कोलकाता शहर के दार्जिलिंग में कुछ काम करने के लिए जा रही थी, तभी उनकी बात भगवान यीशु से हुई।
भगवान यीशु ने उनसे कहा कि वह टीचिंग का काम छोड़ कर के कोलकाता में ऐसे लोगों की सेवा करें जो गरीब है़, लाचार हैं या फिर बीमार है, जिसके बाद साल 1948 में मदर टेरेसा ने टीचिंग करने का काम छोड़ दिया और टीचिंग के काम को छोड़ने के बाद मदर टेरेसा ने अपने पहनावे में काफी परिवर्तन किया।
टीचिंग के काम को छोड़ने के बाद मदर टेरेसा सफेद रंग की नीली धारी वाली साड़ी पहनने लगी और वह जिंदगी के आखिरी दिनों तक इसी साड़ी में दिखाई दी। टीचिंग को छोड़ने के बाद मदर टेरेसा पटना चली गई और वहां पर जाकर उन्होंने ट्रेनिंग ली।
इसके बाद मदर टेरेसा पूरे जी जान से और लगन से लोगों की सेवा करने में जुट गई। इनके सेवा भाव को देखकर पटना और बिहार के कई चर्च इनकी हेल्प के लिए आगे आए। लोगों की सेवा करने के काम को करने के दरमियां कई बार मदर टेरेसा को भूखा रहना पड़ता था और उन्हें परेशानियों का सामना करना भी पड़ता था, परंतु उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार इस काम में लगी रही।
मदर टेरेसा और मिशनरी ऑफ चैरिटी
मदर टेरेसा की काफी कोशिशों के बाद साल 1950 में 7 अक्टूबर को मिशनरी ऑफ चैरिटी का निर्माण करने की परमिशन मदर टेरेसा को प्राप्त हुई। मिशनरी ऑफ चैरिटी इंस्टिट्यूट में सेंट मैरी स्कूल के टीचर ही थे, जो सेवा करने के लिए इस इंस्टीट्यूट से जुड़े थे।
जब इस इंस्टिट्यूट का आगाज हुआ था तब इसमें सिर्फ 12 लोग ही काम करते थे, परंतु वर्तमान के टाइम में देखा जाए तो वर्तमान के टाइम में मिशनरी ऑफ चैरिटी में तकरीबन 4000 से भी अधिक फीमेल नन वर्क कर रही हैं। मिशनरी ऑफ चैरिटी इंस्टिट्यूट के द्वारा असहाय और लाचार लोगों की सेवा की जाती है।
रोम के पोप जॉन पौल ने वर्ष 1965 में अपनी मिशनरी को दुनिया के अन्य देशों में भी चलाने के लिए मदर टेरेसा ने परमिशन मांगी थी।इसके बाद परमिशन मिलने के बाद इंडिया के बाहर मिशनरी ऑफ चैरिटी का पहला इंस्टिट्यूट वेनेजुएला देश में स्टार्ट हुआ और वर्तमान के समय में इंडिया के अलावा दुनिया के तकरीबन 100 कंट्री में मिशनरी ऑफ चैरिटी इंस्टिट्यूट वर्क कर रहा है।
शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति दुनिया में होगा, जो मदर टेरेसा के बारे में और उनके काम के बारे में इंफॉर्मेशन ना रखता होगा, क्योंकि मदर टेरेसा एक ऐसा नाम है, जिनके बारे में अधिकतर देशों की किताबों में पढ़ाया जाता है।
मदर टेरेसा और विवाद
जिस प्रकार मदर टेरेसा ने भारत के गरीब और लाचार लोगों की सेवा की उस प्रकार शायद ही किसी महिला ने गरीब और लाचार लोगों की सेवा की होगी़, परंतु ऐसा कहा जाता है जब किसी व्यक्ति की प्रसिद्धि होने लगती है, तो उस पर तरह-तरह के लांछन भी लोग लगाने लगते हैं।मदर टेरेसा भी इससे बच नहीं पाई।
मदर टेरेसा पर अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि वह भारत में समाज सेवा और लोगो की सेवा करने की आड़ में लोगों का धर्म परिवर्तन करवाती थी और लोगों को लोभ और लालच देकर ईसाई मजहब में शामिल होने का न्योता देती थी।
कई लोगों के अनुसार मदर टेरेसा लोगों की सेवा नहीं करते थी, बल्कि वह क्रिश्चियन रिलिजन का प्रचार करती थी और हिंदू धर्म के गरीब लोगों को क्रिश्चियन रिलिजन अपनाने के लिए तरह-तरह के लालच देती थी। हालांकि इस बात में कितनी सच्चाई है, इसके बारे में कोई भी नहीं जानता है।
मदर टेरेसा की मौत
दिल और किडनी की बीमारी से मदर टेरेसा अक्सर परेशान रहती थी। साल 1983 में उन्हें पहला हार्ट अटैक आया था। इसके बाद साल 1989 में उन्हें दूसरी बार हार्ड अटैक आया था।
इसके बाद साल 1997 में उनकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी, जिसके बाद उन्होंने मिशनरी ऑफ चैरिटी के पद से त्यागपत्र दे दिया था। इसके बाद निर्मला जोशी ने इस पद को संभाला था। साल 1997 में 5 सितंबर को भारत देश के कोलकाता शहर में मदर टेरेसा का निधन हो गया था।
मदर टेरेसा को प्राप्त अवार्ड और अचीवमेंट
- इंडियन गवर्नमेंट के द्वारा साल 1962 में पद्मश्री से मदर टेरेसा को नवाजा गया।
- इंडियन गवर्नमेंट के द्वारा इंडिया के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से साल 1980 में मदर टेरेसा को नवाजा गया।
- साल 2003 में ब्लेस्ड टेरेसा ऑफ़ कलकत्ता कहकर पोप जॉन पॉल ने मदर टेरेसा को सम्मानित करने का काम किया।
- अमेरिकन गवर्नमेंट के द्वारा साल 1985 में “मेडल ऑफ फ्रीडम अवार्ड मदर टेरेसा” को प्रदान किया गया।
- वहीं नोबेल पुरस्कार साल 1989 में मदर टेरेसा को मिला।