हौंसला और कार्य के प्रति समर्पण होना चाहिए, कोई भी रुकावटें और मुश्किल आपको लक्ष्य से नहीं हटा सकती।
लेखक के शब्द
वह इंसान जो अपनी जिंदगी में कुछ नहीं करता वह किसी जिंदा लाश के समान है। जिंदगी में कुछ नया ना करना या बिना कुछ किए हर दिन को यूं ही गुजार देना सिर्फ वही लोग करते हैं जिन्हें जिंदगी से कोई मतलब नहीं होता।
ऐसे लोगों को उनके भविष्य की भी कोई चिंता नहीं होती है। इस तरह के लोग न तो खुद अपने बारे में सोचते हैं और ना ही अन्य लोग उनके बारे में सोचते हैं क्योंकि वह भी जानते हैं ऐसे लोगों को कुछ भी कहना पत्थर में सर मारने के बराबर हैं।
वहीं जो लोग अपनी जिंदगी में कुछ करना चाहते हैं अपनी जिंदगी में बड़ा बनने के लिए मेहनत करते हैं उनके जीवन में कई सारी मुश्किलें आती हैं लेकिन ऐसे लोग अपनी हर मुश्किल से लड़कर आगे बढ़ते हैं।
और जिंदगी में बड़ा मुकाम हासिल करते हैं। ऐसा नहीं है कि इस तरह के लोगों के रास्ते में दूसरे लोग मुश्किल पैदा नहीं करते हैं। लेकिन यह लोग अपनी मेहनत और सच्चाई से हर मुश्किल को पार कर जाते हैं।
मुंबई जिसे सपनों का शहर कहा जाता है। यहां हजारों लोगों के अपने अलग-अलग सपने होते हैं। यहां बड़े बड़े घरों में रहने वाले लोगों के अपने सपने हैं तो वही समुंदर किनारे बसी बस्तियों में भी रहने वाले लोगों के कई सारे सपने होते हैं।
इन्हीं मुंबई के गलियों में एक लड़का अपने घर में बैठकर खुली आंखों से सपना सजा रहा था। राजवीर बैठे-बैठे शब्दों का जाल बुन रहा था। ऐसा लग रहा था कि शब्दों से खेलना उसे काफी पसंद है। अपने शब्दों से कभी वह कोई कविता लिखता तो कभी कहानियों की दुनिया में खो जाता।
लेकिन अपने सपने और अपने हुनर से दूर वो बिजनेस की पढ़ाई कर रहा था। क्योंकि उसके पिता चाहते थे कि वह एक बहुत बड़ा बिजनेसमैन बने। लेकिन राजवीर को तो बचपन से ही लिखना बहुत अच्छा लगता था।
हालांकि उसने आज तक ऐसी कोई भी कहानी या पुस्तक लोगों तक नहीं पहुंचाई, जिससे लोग उसकी तरफ आकर्षित होते।
हां! वह सोचता जरूर था लेकिन सिर्फ अपने ख्यालों में। अपने ख्यालों में वह खुद को एक राइटर की तरह देखता था।
लेकिन हकीकत में वह एक अलग ही जिंदगी जी रहा था। राजवीर BBA के सेकंड ईयर में था यानी कि MBA की पढ़ाई करने के लिए वह पहले Bachelor of Business Administration पढ़ रहा था।
ताकि उसे बिजनेस की पूरी नॉलेज हो जाए। लेकिन उसका ध्यान और दिल दोनों ही मैनेजमेंट की पढ़ाई में नहीं लगता था।
उसने अपने पिता की इच्छा के लिए यह करियर चुन तो लिया था पर उससे यह जिंदगी जी नहीं जा रही थी। अपने पसंद से उल्टा काम करना किसे ही पसंद होता है। इस समय राजवीर अपने सपने को लेकर बहुत ही ज्यादा सीरियस था। राइटिंग ही राइटिंग उसके दिमाग में घूमती रहती थी।
इसी वजह से उसने कॉलेज के सेकंड ईयर के एग्जाम में बहुत गंदा परफॉर्म किया जिसकी वजह से उसके बहुत ही खराब नंबर आए। खराब नंबर आने की वजह से राजवीर के पिता ने उसे खूब डांट लगाई और उसे बहुत कोशा।
राजवीर भी बेचारा कितना सहता उसने भी गुस्से में आकर कह दिया कि मुझे मैनेजमेंट की पढ़ाई नहीं करनी! मुझे यह पढ़ाई अच्छी नहीं लगती! मैं सिर्फ आपके लिए पढ़ रहा था लेकिन मुझसे यह नहीं होता है। मुझे बिजनेसमैन बनने का कोई शौक नहीं है! मुझे एक राइटर बनना है।
राजवीर की इन बातों को सुनकर उसके पिता को भी यह अहसास हुआ कि वह आखिर राजवीर से क्या करवा रहे थे! अपनी गलती को स्वीकार करने के बाद राजवीर के पिता ने राजवीर को कुछ नहीं कहा बल्कि उसे BBA छोड़कर राइटिंग करने के लिए कहा।
अपने बेटे की सपने को देखकर राजवीर के पिता ने उसके लिए बहुत सारे पेपर और लिखने के लिए दूसरे सामान जैसे पेन, पेंसिल, लैपटॉप जैसी चीजें खरीद कर दी।
अब राजवीर के पास अपने सपने को पूरा करने के लिए हर वह साधन था जो उसे चाहिए। साथ ही साथ अब उसके पास उसके पिता का सपोर्ट भी था। लेकिन सब होने के बाद भी राजवीर कुछ नहीं लिख पा रहा था। पहले तो उसे लगा कि शायद नए-नए कॉलेज छोड़ने की वजह से उसका दिमाग काम नहीं कर रहा है। वक्त के साथ वो लिखना शुरु कर देगा।
लेकिन राजवीर का ऐसा सोचना सिर्फ एक सोच बन कर रह गई थी। दिन बीत गए दिन महीने में बदलते गए लेकिन राजवीर ने कुछ नहीं लिखा और उसके पिता के पूछने पर राजवीर बस यही कहता कि उसे लिखने के लिए कोई आईडिया नहीं आ रहा है।
लेकिन नया आईडिया लाने के लिए राजवीर कोई हाथ पांव नहीं मारता था वह बस सुबह उठता, ब्रेकफास्ट करता और गेम खेलते रहता था। ऐसा 1 दिन नहीं बल्कि हर रोज होता था। पहले पहले तो राजवीर के पिता को ऐसा लग रहा था जैसे शायद सच में राजवीर को कुछ लिखने के लिए आईडिया नहीं मिल रहे हैं।
लेकिन जैसे-जैसे महीने बीते गए राजवीर के पिता को भी यह बात समझ आ चुकी थी कि राजवीर अब अपने सपने को लेकर बिल्कुल सीरियस नहीं है।
राजवीर के अंदर अपने सपने को लेकर वही आग जगाने के लिए उसके पिता बार-बार उससे पुरानी बातें याद करवाते थे। लेकिन इन सभी चीजों का राजवीर पर कोई असर नहीं होता था। ऐसा लगता था जैसे राजवीर एक मुर्दा है। उसे कोई भी चीज से फर्क नहीं पड़ता! उसे सिर्फ अपने खाने पीने से मतलब है और सोने से मतलब है।
राजवीर की यह हालत देखकर उसके पिता ने भी तो कुछ कहना छोड़ दिया था। क्योंकि वह भी अब राजवीर से पूरी तरह ऊब चुके थे। उनके मन में राजवीर को लेकर अब कोई उम्मीद बाकी नहीं थी। राजवीर के पिता बस अपने पिता होने का फर्ज पूरा कर रहे थे।
ऐसे ही होते होते महीने साल में बदल गए और MBA की पढ़ाई छोड़े अब राजवीर को 1 साल पूरा हो गया था। लेकिन आज फिर आज भी वैसे ही जिंदगी जी रहा था जैसे पहले। एक दिन अचानक उसके घर पर उससे मिलने के लिए उसके कॉलेज का दोस्त पीयूष आया।
पीयूष को देखकर राजवीर काफी खुश हो गया और पूछने लगा कि पीयूष आजकल क्या कर रहे हो? राजवीर की बात सुनकर पीयूष ने बड़े प्यार से कहा कि मैं एक बड़े से कंपनी में मैनेजर का काम कर रहा हूं और मेरी कमाई लाखों में है।
राजवीर के सवाल का जवाब देने के बाद पीयूष ने उससे पूछा कि तुम क्या कर रहे हो राजवीर? राइटिंग के सपने को पूरा करने के लिए तुमने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी तो बताओ तुम्हारा राइटिंग कैसा चल रहा है? पीयूष की बातों का जवाब देते हुए राजवीर कहता है कि मेरी राइटिंग कुछ खास नहीं चल रही! मैं कोई भी चीज नहीं लिख पा रहा हूं।
राजवीर की बातों को सुनकर पीयूष हंसने लगा और कहने लगा कि बस यही तो तुम्हारा सपना! तुम बस बड़ी-बड़ी डींगे हांकते हो। तुम से कुछ होने वाला नहीं। तुम सिर्फ बिना कोई काम की है अपने पापा के पैसे पर पलना चाहते हो। पीयूष ने राजवीर को कहा कि तुम एक नंबर के बेकार लड़के हो।
पीयूष की बातों को सुनकर राजवीर को काफी बुरा लग रहा था। उसे पीयूष पर बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था। लेकिन पीयूष से भी ज्यादा गुस्सा से खुद पर आ रहा था।
इसलिए उसने अपने सभी बुरी आदतों को बदलने का फैसला कर लिया। वह दूसरे दिन सुबह बहुत जल्दी उठा और फिर मुंह हाथ धोकर लिखने के लिए बैठ गया। पहले तो उसके दिमाग में कोई भी आईडिया नहीं आ रहा था और ना ही उसकी कलम चल रहे थे। लेकिन पूरे ध्यान से सोचने पर उसके दिमाग में एक अच्छी सी कहानी आ गई और उसने अपने कहानी को बड़े ही खूबसूरत शब्दों में कागज पर पिरोदिया। उसने एक के बाद एक कई सारी खूबसूरत कहानियां लिखी।
कहानियां लिखने के बाद उसने अपनी कहानी एक पब्लिशर को दिखाई। वैसे तो उसे कहानी काफी अच्छी थी लेकिन पब्लिशर ने राजवीर के कहानी को कचरे के डब्बे में फेंक दिया और कहा कि ये बहुत बेकार है। जब आप कुछ नहीं करते तब कोई भी आपको कुछ नहीं कहता। लेकिन जब आप कुछ करने की कोशिश करते हैं तो लाखों लोग आपके सामने रुकावट बन कर खड़े हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ राजवीर के साथ भी हो रहा था।
राजवीर अपनी बेइज्जती करवा कर घर वापस आ गया और उसने जो किताब लिखी थी वह कचरे के डब्बे में ही थी। अचानक एक सूट बूट वाला आदमी उस कचरे के डब्बे के पास आया और उस किताब को उठाकर पढ़ने लगा। उसे वह कहानी काफी अच्छी लगी और उन्होंने राजवीर को फोन करके उस किताब को छापने की बात कहने लगा।
इस तरह अब राजवीर अपने सपने पूरे करने के लिए निकल पड़ा था। और 5 साल बाद वह एक अच्छा राइटर बन गया। उसने कई सारी अच्छी-अच्छी किताबें लिखी जो लोगों को काफी पसंद आई।
आज राजवीर एक पेशेवर लेखक बन चुका है और नाम और पैसे दोनों को कमा रहा है।
Moral –
रुकावटें तो जिंदा इंसान के सामने ही आती है, मुर्दों के लिए तो सब रास्ता छोड़ देते हैं असल में यह कहानी इन पंक्तियों को बखूबी दर्शाती है।
अर्थात राजवीर अपने सपने को लेकर सचेत हो गया था और मेहनत कर रहा था तब उसके रास्ते में कई सारे मुश्किले आई। लेकिन जब वह अपने सपने को भूल चुका था तब उसे किसी भी तरह की परेशानी नहीं झेलनी पड़ रही थी और ऐसा सिर्फ राजवीर के साथ नहीं बल्कि हर किसी के साथ होता है।