धर्मं क्या हैं, यह केवल व्यक्ति को उसका कर्तव्य मार्ग दिखाने का रास्ता मात्र हैं, यहीं बात श्रीमद भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने हजारो साल पहले कहीं थी, जाति या वर्ण व्यवस्था केवल व्यक्ति के कर्म के अनुसार थी, कोई भी व्यक्ति की जाति उसके कर्म के अनुसार तय की जाती थी, परन्तु अब क्या हो रहा हैं यह हम सब देख ही रहे हैं, जाति और धर्म के नाम में राजनीति और दंगे फसाद किए जाते हैं और इनमें हजारो लोग हर साल अपनी जान गवा देते हैं।
कुछ लोग वर्ण व्यवस्था के पीछे पुराणों और ग्रंथो को ही दोषी ठहराया देते हैं, जबकि सच्चाई यह नहीं हैं, किसी भी धर्म के ग्रन्थ कभी भी समाज को गलत दिशा नहीं देते, बल्कि समाज ही उनकी गलत परिभाषा निकाल लेते हैं। जिसका परिणाम आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ता हैं।
भारत के सविधान में सभी धर्मो को बराबर का दर्ज़ा दिया हैं, परन्तु धर्म और जाति की राजनीति देश के आज़ाद होते ही शुरू हो गई थी और अब भी वैसा ही सिस्टम चला आ रहा हैं, आपको किसी न किसी धर्मं और जाति में होना ही पड़ेगा, किसी भी आवेदन का फार्म में आपको इसका विवरण देना होगा, अगर सभी समान हैं तो इसकी आवश्यकता ही क्या हैं?
कितना धर्मनिरपेक्ष है हमारा देश, यह एक छोटा सा प्रसंग बता देगा, जिसमें नई पीढ़ी को यह अहसास करवा दिया जाता हैं कि आपकी समाज (लोगो की सोच में) में कहां जगह हैं?
हिन्दी कहानी (प्रेरक प्रसंग)
अध्यापक का स्कूल में प्रथम दिन था।
कक्षा में आते ही नए अध्यापक ने बच्चों को अपना लंबा परिचय दिया। बातों ही बातों में उसने जान लिया कि लड़कियों की इस कक्षा में सबसे तेज और सबसे आगे कौन सी लड़की है?
उसने खामोश सी बैठी उस लड़की से पूछा बेटा, आपका क्या नाम है?
लड़की खड़ी हुई और बोली
जी सर, मेरा नाम जूही है
अध्यापक ने फिर पूछा
पूरा नाम बताओ बेटा?
जैसे उस लड़की ने
नाम में कुछ छुपा रखा हो।
लड़की ने फिर कहा : जी सर, मेरा पूरा नाम जूही ही है।
अध्यापक ने सवाल बदल दिया : अच्छा.. तुम्हारे पापा का नाम बताओ?
लड़की ने जवाब दिया : जी सर, मेरे पापा का नाम है शमशेर।
अध्यापक ने फिर पूछा :
अपने पापा का पूरा नाम बताओ?
लड़की ने जवाब दिया : मेरे पापा का पूरा नाम शमशेर ही है, सर जी !
अब अध्यापक कुछ सोचकर बोले : अच्छा अपनी माँ का पूरा नाम बताओ?
लड़की ने जवाब दिया : सर जी, मेरी माँ का पूरा नाम है निशा।
अध्यापक के पसीने छूट चुके थे, क्योंकि अब तक वो, उस लड़की फैमिली के पूरे बायोडाटा में जो एक चीज ढूंढने की कोशिश कर रहा था…
वो उसे नहीं मिली थी।
उसने आखिरी पैंतरा आजमाया और पूछा :
अच्छा तुम कितने भाई बहन हो?
अध्यापक ने सोचा, कि
जो चीज वो ढूँढ रहा है
शायद इसके भाई बहनों के नाम में वो Clue मिल जाये?
लड़की ने अध्यापक के इस सवाल का भी
बड़ी मासूमियत से जवाब दिया : बोली, सर जी, मैं अकेली हूँ।
मेरे कोई भाई बहन नहीं है।
अब अध्यापक ने सीधा और निर्णायक सवाल पूछा – बेटे, तुम्हारा धर्म और जाति क्या है?
लड़की ने इस सीधे से सवाल का भी सीधा सा जवाब दिया
बोली : सर, मैं एक विद्यार्थी हूँ, यही मेरी जाति है, और ज्ञान प्राप्त करना ही मेरा धर्म है।
मैं जानती हूँ, कि अब आप मेरे पेरेंट्स की जाति और धर्म पूछोगे। तो मैं आपको बता दूँ, कि
मेरे पापा का धर्म है मुझे पढ़ाना
और… मेरी मम्मी की जरूरतों को पूरा करना
और मेरी मम्मी का धर्म है…
मेरी देखभाल और मेरे पापा की जरूरतों को पूरा करना.
लड़की का जवाब सुनकर अध्यापक के होश उड़ गये…
उसने टेबल पर रखे पानी के गिलास की ओर देखा, लेकिन उसे उठाकर पीना भूल गया।
तभी लड़की की आवाज …एक बार फिर उसके कानों में किसी धमाके की तरह गूँजी
सर, मैं विज्ञान की छात्रा हूँ और एक साइंटिस्ट बनना चाहती हूँ। जब अपनी पढ़ाई पूरी कर लूँगी और अपने माँ-बाप के सपनों को पूरा कर लूँगी, तब कभी फुरसत में सभी धर्मों के अध्ययन में करूंगी।
और जो भी धर्म विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरेगा, उसे अपना लूँगी।
क्योंकि साइंस कहता है एक गिलास दूध में अगर एक बूंद भी केरोसिन मिली हो, तो पूरा का पूरा दूध ही बेकार हो जाता है।
लड़की की बात खत्म होते ही पूरी कक्षा तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठी। तालियों की गूंज अध्यापक के कानों में सुनाई दे रही थी।
उसने आँखों पर लगे धर्म और जाति के मोटे चश्मे को उतार कर कुछ देर के लिए टेबल पर रख दिया।
थोड़ी हिम्मत जुटा कर…लड़की से बिना नजर मिलाये ही बोला : बेटा..
Proud of you !!
जातियता का जहर देखो अपनी आंखें खोलें और एक मानवतावादी बनकर, इस जाति के बीज को खत्म करने की कोशिश करें, तभी देश और समाज प्रगति कर सकेगा।
धर्मं और जाति, मान्यताएं केवल अपने तक सीमित हो, क्योकि कोई भी धर्मं गलत नहीं हैं परन्तु जब देश, शिक्षा, नौकरी, व्यवसाय में इनके आधार पर राजनीति की जाती हैं, तब यह अभिशाप बनने लगता हैं और सबसे बुरी बात अपना देश भारत धर्मं निरपेक्ष होते हुए, संविधान में सभी धर्मो को बराबर दर्ज़ा होते हुए भी राजनेता भी इस तरह के प्रकरण में गन्दी राजनीति करने लगते हैं, तब देश और समाज को एक गलत सन्देश जाता हैं और उसके बुरे परिणाम सभी को भुगतने पड़ते हैं।
आशा करता हूँ, स्नेहा जिनकी कोई जाति नहीं हैं, इनकी यह सामाजिक क्रांति देश को एक नए मुकाम पर ले जायेगी।