आज हर किसी का जीवन इस प्रकार यापन हो रहा है जैसे वह प्रेम के बाजार में बिक रहा हो क्योंकि इस वर्तमान समय में अधिकांश लोग प्रेम की कीमत नहीं समझते बस वे पल भर का छलावा करना जानते हैं, जिसे “प्रेम” का नाम देते हैं।
इस प्रकार के प्रेम ने आज लाखों लोगों का जीवन तबाह कर दिया। क्योंकि कोई भी वास्तविक प्रेम और पल भर के प्रेम में अंतर नहीं समझ पाता और इसके बिना ही ये लोग हर किसी से प्रेम करते हैं और अपने जीवन को संकट में डालने के खुद जिम्मेदार रहते हैं।
आज हर कोई प्रेम के बाजार में इस कदर बिखरा हुआ है कि उसे वही नजर आता है जो दिखने में आकर्षित होता है, और उसे ही वे अपना सबकुछ मान बैठते हैं।
प्रेम के बाजार में हर कोई प्रेम का व्यापारी बन चुका है, यहां हर किसी को प्रेम खरीदना व बेचना बहुत अच्छी तरीके से आने लगा है इस प्रेम के बाजार में आजकल छोटे-छोटे बच्चे भी इस कदर अपने प्रेम को बेच देते हैं, जिसकी कीमत उन्हें पता ही नहीं चलती।
आज हर कोई प्रेम के बाजार में प्रेम का व्यापारी उम्र से पहले ही बन जाता है इन्हें न ही उम्र का ध्यान होता है और ना ही खुद की इज्जत का।
उन्हें अपनी इज्जत का सवाल कभी आता ही नहीं और वे बेमतलब में अपने प्रेम को लोगों के सामने रख देते हैं और अपने जीवन के एक सफल मार्ग से भटक कर प्रेम राही बन जाते हैं।
आज संसार में बहुत कम लोग ही ऐसे रहते है, जो अपनी प्रेम की कीमत समझ पाते हैं और एक आदर्श जीवन जीने के लिए अच्छे व्यक्तित्व की अहमियत को समझते हैं। ऐसे लोगों को भी उन लोगों से हमेशा बचकर रहना पड़ता है जो लोग प्रेम का व्यापार करते हैं।
हर कोई प्रेम का व्यापारी बनने के कारण कुछ अच्छे लोगों को भी अपने व्यापार में शामिल कर लेते हैं।
भले ही इनके बाजार में हर किसी की कीमत उनके चेहरे देखकर ही बयां हो जाती है अतः इनके झांसे में आकर कई बार मासूम लोग खुद की कीमत को बिना समझे ही अदा कर देते हैं ।
वैलेंटाइन – डे
विदेशी संस्कृति से प्रभावित होकर आज इंडिया में भी वैलेंटाइनडे द्वारा भव्य अंदाज में आज की युवा पीढ़ी द्वारा मनाया जाता है।
दरअसल खुद की संस्कृति और इतिहास का अध्ययन कर सीख लेने की बजाय विदेशी संस्कृति को सर्वोपरि मानने वाले कुछ प्रेम के व्यापारियों ने 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे के रूप में एक नए रिवाज के रूप में शुरू कर दिया।
उनका मानना था कि वे इस तरह अपने प्रेम के व्यापार को बढ़ा सकते हैं।
व्यापार को बढ़ाने के कारण उन्होंने वैलेंटाइन डे एक ऐसा त्यौहार बना दिया जिसमें प्रत्येक प्रेम का व्यापारी अपने व्यापार को उस दिन अधिक से अधिक वक्त दे सके। क्योंकि वैलेंटाइनडे सिर्फ प्रेम के प्यासे लोगों के लिए एक तालाब के समान है।
जिसमें लोग उस दिन सुकून से पानी पी सकते हैं अर्थात अपने झूठे प्यार को दिखा सकते हैं। वैलेंटाइनडे कुछ लोगों द्वारा बनाया गया एक ऐसा त्यौहार है जिसमें प्रत्येक प्रेमी का जोड़ा उस दिन मिलने के लिए तैयार रह सके।
वैलेंटाइनडे कोई वास्तविक त्योहार नहीं है ना ही यह गीता, महाभारत ,वेद , व पुराणों में लिखा गया है, कि 14 फरवरी को प्रेमी जोड़ा आपस में मिले।
वास्तव में प्रेम के व्यापारियों द्वारा यह दिन बाजार में ग्राहकों की भीड़ बढ़ाने के लिए एक मेला बनाया गया।
इस दिन वे लोग प्रेम के बाजार में दर्शक या ग्राहक होते हैं जो प्रेम का व्यापार करते हैं “उनके लिए यह दिन शुभ माना जाता है”
लेकिन को इस बात का एहसास नहीं होता है कि वे लोग ऐसे कार्य को करके खुद अपनी संस्कृति को हानि पहुंचा रहे हैं और आने वाले नए पीढ़ी को वे लोग इतना बुरा सबक देने को जा रहे हैं।
क्या उनके मन में ये ख्याल नहीं आते होंगे कि यह सब करना जरूरी है? क्या शादी से पहले प्यार करना जरूरी है?
शायद नहीं इसी कारण बहुत सारे लोग 14 फरवरी को वैलेंटाइनडे के रूप में अपना प्यार का इजहार करते हैं।
यह सिर्फ एक बहाना है जिसके कारण हम अपने वक्त के साथ-साथ अपनी संस्कृति को भी मिटाने के लिए तैयार रहते हैं। ऐसे त्योहारों को अपनाने के कारण हमारा कीमती वक्त व पैसा खर्च होता है इसके बदले में हमें कुछ भी सीखने को नहीं मिलता, यहां हम केवल एक कदम बर्बादी की ओर बढ़ते हैं।
विदेशी कंपनियों द्वारा या स्वयं भारतीय लोग भी हमारे देश में वैलेंटाइनडे को जोरो शोरों से प्रचारित कर हमारी संस्कृति को बदनाम करने में जुटे हुए हैं इस प्रकार हमारी संस्कृति हमसे,हमारे कार्यों से नियंत्रण दूरी बनाए जा रही है।
हमें अपनी संस्कृति को समझना चाहिए और ऐसे अशुद्ध त्योहारों से घृणा करनी चाहिए जिनके कारण हमारी संस्कृति की प्रतिष्ठा पर आंच आ रही हो।
युवा पीढ़ी
फिर एक तरफ पनप रही युवा पीढ़ी को एसे मौके ही चाहिए कि ये लोग ज्यादा से ज्यादा वक्त यूं ही बर्बाद कर दें, इसलिए वैलेंटाइनडे इन लोगों के लिए एक बहुत ही अच्छा मौका बन जाता है।
ताकि ये लोग अपने कीमती वक्त को बिना किसी कीमत के गवा दे। आने वाली नई युवा पीढ़ी ऐसे त्योहारों का ही समर्थन कर रही है जबकि वे लोग हमारी संस्कृति को भूलने के लिए तैयार है।
ये लोग अपनी संस्कृति को लगातार दबाते जा रहे हैं। इनके सामने हमारी संस्कृति की कोई कीमत नहीं है और ना ही ये उसकी कीमत को पहचान पाएंगे। इसलिए हमें अपनी संस्कृति की कीमत इन लोगों को बतानी चाहिए और उसे कभी नहीं भूलना चाहिए।
जिस दिन हम अपनी संस्कृति को भूल जाएंगे वहीं हमारा जीवन सिर्फ एक जीवन ही रह जाएगा हम उसे सिर्फ जीवन नाम दे सकेंगे ना की जी पाएंगे।
इसलिए हमें अपनी संस्कृत को बचाने का कार्य करना चाहिए।
यह बात गलत नहीं है कि हमें नए रीति रिवाज अपनाने चाहिए, बल्कि दिक्कत इस बात से ही कि हम नए रीति-रिवाजों को अपनाते अपनाते अपनी पुरानी संस्कृति को भूलने के तट पर हैं, जो हमें कभी नहीं भूलना चाहिए।
क्योंकि हमारी संस्कृति सबसे किमती विरासत है इसी कारण हम अपने आदर्श एवम महान लोगों को याद कर पाते हैं और उनके जीवन का अनुभव लेते हुए अपने जीवन में कुछ खास कर पाते हैं।
हमें अपनी संस्कृति को महत्व देना चाहिए क्योंकि सिर्फ उस संस्कृति के कारण ही हम आज अपना इतना अच्छा व्यवहारिक जीवन जी पाते हैं परंतु नई युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति को भूलने के लिए हर एक कदम उठा रही हैl
जिससे लगता है हम बहुत जल्द अपनी संस्कृति को भुला देंगे और हमारी संस्कृति इतिहास के पन्नों में ही रह जाएगी। अगर ऐसा होता है तो इस तरह हजारों वर्षों से चली आ रही महान सभ्यता धराशाई हो जाएगी।
प्रतिस्पर्धी बाजार
अर्थात आज लोग उनके समर्थन में खड़े हो रहे है, जो हमारी संस्कृति के खिलाफ जाने का प्रयास कर रहे हैं।
एक तरफ वे लोग हैं जो अपनी संस्कृति और पूर्वजों की महान विचारधारा को बनाए रखने के लिए सामने आ रहे हैं वहीं दूसरी तरफ विदेशी संस्कृति के प्रभाव में आकर गलत चीजें अपनाने को तैयार लोग है।
अतः जितने लोग बोलते हैं कि हमें संस्कृति को बचाना चाहिए संस्कृति के विरोध में कार्य नहीं करने चाहिए उतने ही लोग संस्कृति को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार हैं और संस्कृति के विरोध में कार्य कर रहे हैं।
इसलिए इसका सही हल मिलना मुश्किल ही है क्योंकि जब दोनों ओर संख्या बराबर है तो हल मिल पाना मुश्किल ही है। यदि विरोधियों की संख्या कम होती है, समर्थकों की संख्या ज्यादा होती तो हम कह सकते कि बहुत जल्द विरोधी भी अपनी संस्कृति को समझ पाएंगे और संस्कृति के विकास में प्रत्येक कदम आगे बढ़ेंगे।
परंतु यहां कुछ ऐसा विकल्प ही नहीं रहा जिस कारण हम अपनी संस्कृति को बचा सकते हैं और उसे हमेशा आगे अपने साथ ले जा सके।
आज प्रतिस्पर्धी बाजार में हर कोई क्रेता और विक्रेता ऐसे ही हैं जो हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए सहमत नहीं है और ना ही वे अपने साथ ले जाना चाहते हैं।
उनका मानना है कि हमारी संस्कृति के कारण ही हमारा सही विकास नहीं हो पाया, परंतु यह सब गलत विचार हैं।
हमारी संस्कृति कभी भी हमारे विकास के आगे नहीं आई बल्कि यह हमारे विचार ही रहे इस कारण हम खुद का विकास करने में असमर्थ रहे यदि हम अपनी संस्कृति को अपने साथ ले जाते और आगे स्वयं का विकास करने की सोचते तो अवश्य ही हमारा विकास हो पाता और हम खुद के विकास के साथ खुद के शहर, देश का विकास कर पाते।
परंतु हमारे मन में ऐसे विचार कभी आते ही नहीं हम हमेशा लोगों की देखा देखी करते हैं जैसे वैलेंटाइनडे सिर्फ इंग्लिश देशों का त्यौहार था तो हमने देखा देखी करके उसको अपने देश में भी बनाना शुरू कर दिया यही कारण रहा कि हम खुद का विकास करने में असमर्थ रहे।
यदि हम खुद का विकास खुद की संस्कृति के साथ करें तो अवश्य ही एक दिन हम अपने देश का उत्थान कर पाएंगे।